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पुलवामा : कुछ याद उन्हें भी कर लो

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अंग्रेजी अखबार हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स ने उत्‍तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के तहत आने वाले गांव टुडीहार बादल का पुरवा में रह रहीं 24 साल की संजू देवी की कहानी बयां की है. संजू देवी ने अखबार के साथ बातचीत में बताया है कि कई नेता उनके घर आए लेकिन अभी तक परिवार को उनसे कोई मदद मिली हो, ऐसा नहीं हो पाया. उन्‍होंने बताया, ‘इस घटना ने मुझे तोड़कर रख दिया. मेरे दो बेटे छह साल का समर और पांच साल का साहिल स्‍कूल जाते हैं. हमें वादा किया गया था कि उनकी पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद दी जाएगी मगर अभी तक यह पूरा नहीं हुआ है. अब मुझे उनकी पढ़ाई के लिए खर्च निकालने एक छोटे स्‍कूल में पढ़ाने को मजबूर होना पड़ रहा है.’

शांति देवी ने बताया कि छोटे बेटे अमरेश को सरकारी नौकरी का वादा किया गया था मगर अभी तक पूरा नहीं हुआ है. मां कहती हैं कि अमरेश ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली है और अभी तक बेरोजगार है. न तो उनके पति और न ही उन्‍हें अभी तक पेंशन मिली है. इसके अलावा महेश कुमार के सम्‍मान में 1.5 एकड़ की जमीन देने का जो वादा किया गया था, वह भी अधूरा है. इसी परिवार की तरह ऐसे कुछ और परिवार हैं जो अभी तक सरकारी नौकरी मिलने वाले वादे के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं. कई परिवार तो ऐसे हैं जिनमें शहीद जवान ही रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया थे. इसी तरह का एक परिवार आगरा में है जहां पर शहीद जवान कौशल कुमार रावत का परिवार रहता है.

शांति देवी का यह बयान फुलवामा में मारे गये जवानों के परिवार कारूण कथा देश की तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार के चेहरे पर बदनुंमा दाग है. जो सरकार सेना और उसके जवानों के नाम पर दुबारा सत्ता में लौट कर वापस आई है, उसके एक वर्ष बाद तक उसके परिवार की कोई सुधी नहीं ली जा सकी है. बहरहाल चिन्तन गुरूचरण सिंह अपने विचार इस प्रकार रखते हैं –

पुलवामा : कुछ याद उन्हें भी कर लो

देश भर में सोशल मीडिया जब वेलेंटाइन बाबा की शान में कसीदे पढ़ रहा होगा, मैं उस एक हादसे की बात करने बैठा हूं जिसने देश की राजनीति का चेहरा ही बदल दिया है. एक ऐसी राजनीति जो किसी भी छल, बल या कीमत पर सत्ता को हासिल करना चाहती है, नैतिकता जिसके लिए संविधान की मर्यादा की तरह महज़ एक शब्द है. और शब्दों का क्या है, वे तो बनते बिगड़ते ही रहते हैं !

हालांकि आज तक मैं तय नहीं कर पाया हूं कि यह ‘आतंकी हमला’ सरहद के उस पार से प्रायोजित था या इस पार की ही किसी साजिश का नतीजा था या सुरक्षा में हुई भयानक चूक थी (जैसाकि वहां के गवर्नर महोदय ने भी स्वीकार किया था) या अर्ध सैनिक बल के जवानों की जान-जोखिम में डालते हुए उन्हें विमान मुहैया करवाने के अनुरोध का स्वीकार न किया जाना था, पहले उस हादसे की याद ताजा कर लेना उचित होगा !

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के अवन्तिपोरा क्षेत्र में गुरुवार को आतंकवादियों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल CRPF के भारतीय सुरक्षा कर्मियों के काफिले को निशाना बनाकर हमला किया था, जिसमें अब तक लगभग 40 (कुछ स्रोत यह संख्या 47 बताते हैं) जवान शहीद हो चुके है और कई अन्य घायल भी हुए. रिपोर्ट्स में बताया गया है कि आतंकियों ने इस काम के लिए महिंद्रा स्कॉर्पियो का इस्तेमाल किया था, जिसमें 300 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक था. पहले इस वाहन को मारुति की कार बताया गया था, जिसकी क्षमता को देखते हुए कई सवाल भी उठे थे. प्रारंभिक जांच में बताए गए लगभग 300 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक को भी बाद में बदल कर 30 से 40 किलोग्राम घोषित किया गया.

निरंतर बदलते जांच परिणामों और अब डीएसपी देवेंदर सिंह से हिरासत में पूछताछ से एक बात तो साफ हो जाती है कि कहीं तो कुछ ऐसा है, जिसे मेकअप से छिपाने की कोशिश की जा रही है. इसके बाद पाकिस्तान के बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक, तनातनी और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की प्रतिक्रिया, लोकसभा चुनाव के लिए इसी एक मुद्दे का सभी आर्थिक मुद्दों को ढक लेना भी इसी बात की पुष्टि करता है कि पूरा सच आज भी जनता के सामने नहीं है.

गौरतलब है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने वाली बालाकोट (Balakot) में भारतीय सेना की आतंकियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई के बाद कश्मीर में पाकिस्तान के दखल को पूरी तरह से रोकने, अलगाववाद पर काबू पाने और आतंक की जड़ों पर प्रहार करने के लिए केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करते हुए आर्टिकल 370 और 35A के अधिकतर प्रावधान समाप्त कर दिए. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में बांट दिया. इस संविधान संशोधन को पारित करवाते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने भूमिका में ये सभी उद्देश्य बताए थे.

इस संशोधन और संकल्प पत्र के पारित होने के बाद कश्मीर में हालात और भी बिगड़ गए और एक लंबे अर्से तक वहां कर्फ्यू लगा रहा. आज भी हालात वहा सामान्य नहीं हो पाए हैं. राज्य के तमाम अलगाववादी नेताओं के अलावा मुख्य धारा के नेताओं को भी हिरासत में ले लिया गया. मुख्य धारा के दो शीर्ष नेताओं महबूबा मुफ्ती और उमर फारुख अब्दुल्ला को अगस्त के बाद से ही हिरासत में रखे जाने की वजह भी बड़ी हास्यप्रद है; एक की पार्टी के झंडे का रंग उग्रता और अलगाव का प्रतीक है. मजेदार बात तो यह है कि उसी पार्टी के साथ दो-अढ़ई साल तक मिल कर जम्मू कश्मीर में सरकार भी चलाते रहे, ऐसा कहने वाले लोग. दूसरे के बारे में कहा गया है कि उसकी वाणी में लोगों को प्रभावित करने की क्षमता है. अरे भाई, इस क्षमता के बिना कोई नेता बन पाता है क्या ?

खैर, लेथेपोरा में एक शहीद स्मारक बनाया गया है जहां पर सीआरपीएफ के विशेष महानिदेशक जुल्फिकार हसन, महानिरीक्षक कश्मीर क्षेत्र राजेश कुमार और वरिष्ठ अधिकारी और इस बल के दूसरे जवान लेथेपोरा स्थित सीआरपीएफ प्रशिक्षण केंद्र में पुलवामा में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देंगे. बता दें कि इस समारोह शहीदों के परिजनों को आमंत्रित नहीं किया गया है.

इतना अवश्य है इस पुलवामा हादसे / आतंकी हमले को इसलिए याद रखना जरूरी है कि इसने देश को गहरे जख्म तो दिए ही है, अनसुलझे कई सवाल भी खड़े किए हैं. सबसे बढ़ कर इस हादसे ने देश की राजनीति की दशा और दिशा ही बदल दी और उसे नयी चाल, चरित्र और चेहरा ही दे दिया एक ऐसा चेहरा जो संवेदनहीन है, अपने ही चाल चलने वाला है, और अपनी ही फितरत के मुताबिक काम करने वाला है.

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ROHIT SHARMA

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