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कुमार विश्वास का “अविश्वास”

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अमानतुल्ला के ब्यान ने कुमार विश्वास के असली चेहरा को सामने ला दिया है. बकौल अमानतुल्ला, ‘‘कुमार विश्वास बीजेपी और आर.एस.एस. के एजेंट हैं’’ से भड़के कुमार विश्वास मीडिया के सामने बहुत कुछ कह गये और वे जितना ज्यादा कहते गये, उनका असली चेहरा जनता के सामने उतना ही ज्यादा साफ आता गया. कुमार विश्वास के अनुसार, ‘‘अमानतुल्ला खान अगर केजरीवाल या सिसोदिया के खिलाफ कुछ भी बोलते तो उन्हें 10 मिनट के भीतर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता.’’ किसी भी आन्दोलनरत् संगठन में अमूमन ऐसा नहीं होता है. दरअसल किसी को संगठन से निकालने या रखने के लिए कुछ तय प्रक्रिया होती है. केजरीवाल संगठन का नेतृत्व करते हंै, पर केजरीवाल या सिसोदिया मात्र ही संगठन नहीं होते. संगठन की नीति-प्रक्रिया से अलग जब कोई शख्स या व्यक्तियों का समूह चलता है तो यह समूचे संगठन की जिम्मेवारी होती है कि उसे संगठन की नीति-प्रक्रिया के तहत समझाये और धारा में वापस लाये. अंततः जब उनके रवैये में कोई बदलाव नहीं आता है तभी उसे पद-अवनति कराते हुए संगठन से बाहर निकाला जाता है. इस प्रक्रिया के तेज या धीमा होना उस शख्स या व्यक्तियों के समूह की सक्रियता पर भी निर्भर करता है. आम आदमी पार्टी ने प्रशांत भूषण-शांति भूषण समेत योगेन्द्र यादव को संगठन से बहिष्कृत करने में भी इस प्रक्रिया को अपनाया था. कुमार विश्वास स्वयं वहां मौजूद थे, इस बात को क्यों भूल जाते हैं ?
सोमवार को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) की बैठक में पार्टी नेताओं को मीडिया से बात करने से परहेज करने की हिदायत को धता बताते हुए कुमार विश्वास पत्रकारों से बातचीत में कहते हैं, ‘‘वह पार्टी की गलतियों को उजागर करते रहेंगे और देशहित में जो भी सही होगा, उसे बोलने से नहीं रूकेंगे.’’ आम आदमी पार्टी वर्तमान दौर की वह पार्टी है, जो शासकीय भ्रष्टों का सबसे ज्यादा हमला झेल रही है. ऐसे में जब पार्टी के शीर्ष नेता माने जाने वाला व्यक्ति पत्रकारों के बीच खुलेआम पार्टी के कमजोरियों को ‘‘उजागर’’ करता फिरे तब इसे क्या माना जायेगा, यह विश्वास खुद ही खूब जानते हैं. आज ‘‘देशहित’’ में ही अरबों-खरबों के घोटाले हो जाते हैं, ये काश्मीर से लेकर बस्तर के जंगलों और असम-नागालैंड में आम आदमियों की हत्या भी इसी ‘‘देशहित’’ में होता है. रोहित बेमुला की प्रशासनिक हत्या से लेकर जेएनयू को बदनाम करने तक की तमाम प्रक्रिया ‘‘देशहित’’ में ही किया गया था. आप किसी भी पार्टी या काॅपोेरेट घरानों से बात कर लीजिये सारे के सारे काम देशहित में होता है. नोटबंदी से लेकर मंहगाई, हत्या और बलात्कार तक इसी ‘‘देशहित’’ में होते हैं. कोई नहीं बोलता कि उसका किया गया काम देश के हित में नहीं है, कि वह देश का गद्दार है. तो पहला सवाल यही उठता है कि आखिर जब सारे काम ‘‘देश के हित’’ में ही होता है तो फिर इतने देशभक्तों के रहते आखिर देश रसातल में क्यों जा रहा है ? कहना नहीं होगा यह ‘‘देशहित’’ एक काल्पनिक शब्दाबली है, जिसका हर कोई अपने-अपने हित में सहज इस्तेमाल करता है. यह देशहित दरअसल उसका ‘‘स्वहित’’ ही होता है. तभी जब कुमार विश्वास मीडिया के सामने बोलते हैं कि ‘‘उनके मन में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री या आप संयोजक बनने की केाई महत्वाकांक्षा नहीं है. पंजाब, गोवा विधानसभा चुनाव और नगर निगम चुनाव में आप के लचर प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी के तमाम विधायक केजरीवाल को पार्टी संयोजक पद से हटाने के लिए पैरोकारी कर रहे हैं’’ तो इसका यह भी अर्थ निकलता है कि उसे भी कुछ चाहिए. जैसा कि खबर है कि कुमार विश्वास को राज्यसभा में बतौर सदस्य भेजने की सहमति मिलने के बाद ही कुमार विश्वास शांत हुए हैं. तो यही है ‘‘देशहित’’. देशहित की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अक्सर ही ‘‘स्वहित’’ की बातें करने लग जाते हैं. यह कोई नवीन परिघटना नहीं है.
जहां तक ‘‘पार्टी की गलतियों को उजागर करते रहेंगे’’ का सवाल है तो निःसंदेह अगर कुमार विश्वास इसी तरह चलते रहे तो वे एक दिन पार्टी को ही खत्म कर देंगे. वे पार्टी को दुश्मनों के सामने खड़ा कर उसे बतायेगे कि पार्टी पर यहां हमला कीजिए पार्टी टुट जायेगी या खत्म हो जायेगी. यह ठीक वैसी ही बातें होगी जो विभीषण ने रावण को खत्म करने में निभाया था. दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि राजनीतिक रूप से कमजोर अथवा आदर्शवादी व्यक्ति बहुधा खतरनाक ही साबित होता है. यहीं पर कुमार विश्वास की एक सीमा बंध जाती है. आदर्शगत राजनीति केवल आदर्श समाज में ही संभव है. पर यहां तो वर्ग समाज है, जहां एक ओर अमीरों की विशाल अट्टालिका है, वहीं करोड़ों भूख से तड़पते हुए इंसान हैं. ऐसे में दोनों के लिए ही एक ही राजनीति का होना संभव नहीं है. दोनों के लिए दो तरह की राजनीति होती है. निःसंदेह यही कारण है कि दोनों के लिए अलग-अलग राजनीतिक पार्टी भी बनेगी. एक वह राजनीति जो कांग्रेस-भाजपा करती है और दूसरे के लिए वह राजनीति जो केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी करती है. इसमें आदर्श की कहीं कोई जगह नहीं होती. दरअसल आदर्श राजनीति करने वाले उसी विशाल अट्टालिका वाले चंद लोगों की चाकरी का ही नाम है, जो दशकों से कांग्रेस-भाजपा करती आ रही है. कुमार विश्वास भी इसी आदर्श की बात करने वाले राजनीति का एक हिस्सा बन रहे हैं या बन चुके हैं. इस बात को भी समझना होगा.
कुमार विश्वास का अपनी बात पार्टी फोरम पर रखने के बजाय संगठन की तय नीति से अलग हट कर सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी करना, उनके अहंकार को ही दर्शाता है, जो निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी को और कमजोर बनाती है और विरोधियों को मजबूत करती है, जो निःसंदेह पार्टी विरोधी गतिविधि है. बेशक अमानतुल्ला भी इस नीति का उल्लंघन किये हैं, पर वह कुमार के अहंकारपूर्ण बयानबाजी के जवाब में एक जरूरी कदम माना जा सकता है.
बहरहाल, भावी संकट को आम आदमी पार्टी ने बड़ी ही कुशलता से तत्कालिक तौर पर तो हल कर ही लिया है, भविष्य की बातें भविष्य पर तो छोड़ी ही जा सकती है.

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