Home कविताएं हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

0 second read
0
0
304

यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िंदगी के लिए शर्त बन जाए
आंख की पुतली में ‘हां’ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

हम तो देश को समझे थे घर–जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है

हम तो देश को समझे थे
आलिंगन–जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम–जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझे थे क़ुर्बानी–सी वफ़ा

लेकिन ’गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है
’गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है

’गर देश का अमन ऐसा होता है
कि क़र्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुंह पर थूकती रहे
क़ीमतों की बेशर्म हंसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है

’गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है
कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक्म के कुएं पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है.

  • अवतार सिंह ‘पाश’

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…