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‘किसी की ट्रेजडी किसी की कॉमेडी बन जाती है’ – चार्ली चैपलिन

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'किसी की ट्रेजडी किसी की कॉमेडी बन जाती है' - चार्ली चैपलिन
‘किसी की ट्रेजडी किसी की कॉमेडी बन जाती है’ – चार्ली चैपलिन

एक बार आठ-दस साल का चार्ली चैप्लिन लंदन की दुपहरी में घर के बाहर खड़ा था. बस यूं ही गली की हलचल देख टाइमपास कर रहा था. तभी उसने देखा कि एक आदमी छोटे से मेमने को पकड़े हुए गली से गुज़र रहा है. गली के सिरे पर एक कसाईखाना था.

अचानक ही मेमना उस आदमी की पकड़ से छूट गया और जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगा. इधर मेमना छूटा और उधर आदमी ने उसे पकड़ने को दौड़ लगाई. मेमना था कि हाथ ही ना आए.. कभी इधर फुदकता तो कभी उधर. गली-मुहल्ले के बच्चे ये नज़ारा देख पेट पकड़कर हंसने लगे.

चार्ली ने भी जब छुटकू से मेमने को उस लंबे-चौड़े आदमी को हलकान करते देखा तो खूब हंसा. पांच-दस मिनट तक ये खेल चलता रहा. आखिरकार मेमना उस आदमी के हाथ लग ही गया. थकान और गुस्से से चूर उस आदमी ने मेमने को बहुत ही क्रूरता से जकड़ा और कंधों पर रखकर चल दिया.

हंसी का दौर जैसे ही थमा, अचानक एक ख्याल ने चार्ली को हिलाकर रख दिया. उसे समझ आया कि अभी जो मेमना दौड़ लगा रहा था वो अपनी मौत से बचने की कोशिश कर रहा था. कुछ ही देर बाद मेमना जिबह कर दिया जाएगा. उसकी मुलायम गर्दन को किसी तलवार या बड़े चाकू से काट दिया जाएगा. उसका संघर्ष कितना दयनीय लेकिन ठीक उसी वक्त कितना हास्यपूर्ण था.

नन्हा चार्ली कल्पना करने मात्र से विचलित हो उठा. वो भागकर घर में घुसा और मां की गोद में मुंह छिपाकर रोने लगा. चार्ली को इस हालत में देखकर मां घबरा गई. उसने प्यार से चार्ली के सिर पर हाथ फेरा. उसके रोने की वजह पूछी लेकिन वो बस रोता गया. अपनी आत्मकथा में चार्ली चैप्लिन ने इस घटना का ज़िक्र किया है और बताया है कि कैसे कई बार ज़िंदगी की ट्रेजेडी और कॉमेडी आपस में मिक्स होती हैं. किसी की ट्रेजडी किसी की कॉमेडी बन जाती है, जैसे कोई गिर पड़ा और आप उसे देखकर हंस पड़े। ऐसे ही कोई ट्रेजडी कुछ दिन बाद कॉमेडी हो जाती है, जैसे आप गिरे लेकिन बाद में याद करके हंसे।

चार्ली चैप्लिन ने अपनी फिल्मों में भी यही किया. मैंने इस सूत्र को समझने के बाद उनकी फिल्में देखी तो उस दृष्टि और गहराई का कायल हो गया. चार्ली एक फिल्म में श्रमिक बनते हैं. वो एक फैक्ट्री में खड़े हैं, जहां उनके सामने एक मेज पर चलनेवाली पट्टी है. उस पट्टी पर एक के बाद एक कुछ सामान चार्ली के पास पहुंचता है और उन्हें उस सामान का पेंच ठीक करना होता है. ऐसा करने के लिए उन्हें दो ही सेकेंड मिलते थे. चलायमान पट्टी पर अगर उन्होंने दो सेकेंड से ज़्यादा लगाया तो अगला सामान इतनी देर में उनके पास पहुंच जाता था.

बेचारे चार्ली इतनी तेज़ी से काम नहीं कर पाते और फिर इसी चक्कर में वो पट्टी के साथ चलते-चलते मशीन के बड़े से मुंह में जा फंसते हैं. देखनेवालों को ये बड़ा मनोरंजक लगेगा लेकिन चार्ली चैप्लिन अपनी फिल्म के ज़रिए पूंजीपतियों का वो जानलेवा दबाव दिखा रहे थे जो श्रमिकों पर लगातार बना हुआ था. श्रमिकों को तयशुदा घंटों में ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन करना होता था और ऐसा उनकी जान की परवाह किए बगैर चलता रहता था.

इसी तरह चार्ली चैप्लिन एक सर्कस में काम करनेवाले चरित्र को निभाते हैं. वो वहां पर शायद जोकर की नौकरी करते हैं लेकिन उन्हें जो लड़की पसंद है वो एक जानलेवा करतब करनेवाले पर फिदा है. चार्ली चैप्लिन उसे रिझा लेना चाहते हैं. एक दिन अचानक करतब करनेवाला सर्कस के शो पर नहीं पहुंचता. चार्ली को लगता है कि लड़की को प्रभावित करने का यही मौका है. वो बिना सोचे उस करतब करनेवाले की जगह जा पहुंचते हैं. दर्शकों को उनकी ये स्थिति बहुत हंसाती है मगर यदि आप अपनी ज़िंदगी पर नज़र डालें तो वहां भी ऐसा कुछ मिलेगा, पर आप उस पर हंसते नहीं बल्कि अपने बेचारगी पर दुःखी होते हैं.

तो ऐसा ही कुछ कमाल था उस अभिनेता का जो मुझे पसंद है. वो सिर्फ अभिनेता नहीं था बल्कि कहानी कहने की कला में निपुण संपूर्ण शो मैन था. असल ज़िंदगी में भी चार्ली चैप्लिन ने अपनी संवेदनशीलता की वजह से बहुत कुछ भुगता. एक वक्त तो ऐसा आया कि अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों ही छोड़कर जाना पड़ा. 16 अप्रैल को उनका जन्मदिन था.

  • नितिन ठाकुर

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