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बंगाल पर चुनाव आयोग का ऐतिहासिक फैसला

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देश को एक-एक कर निजी हाथों में बेच देने वाले भाजपा-आरएसएस लोकतंत्र की पहली कसौटी चुनावी-व्यवस्था को ही संदिग्ध बना दिया है, वह भी इस घोषणा के साथ कि अगर भाजपा सत्ता में चुनकर आती है तो देश में फिर कोई चुनाव ही नहीं होगा. यानी लोकतंत्र खत्म हो जायेगा. देश को चंद कॉरपोरेट घराने और हिन्दु फासिस्ट ही चलायेंगे और विरोध के स्वर को खत्म कर दिया जायेगा. इसी लक्ष्य को तय करने के लिए नरेन्द्र मोदी ने पिछले पांच सालों में देश के उन तमाम संवैधानिक संस्था को या तो खत्म कर दिया या फिर उसमें अपने दलाल-पिट्ठुओं को घुसाकर अपना चाटुकार बना लिया है. जो संस्था इन दोनों से नहीं संभल पाये, उसे मौत के घात उतार दिया अथवा मौत के साये में थर्रा दिया. यही कारण है कि आज देश की तमाम संवैधानिक संस्था पंगु बन गयी और मोदी का दल्ला बन गया है. हकलाता सुप्रीम कोर्ट, दल्ला चुनाव आयोग मोदी के चरणों में बिछ गया है, और गुंडे राज कर रहे हैं और दलाल चाटुकार मीडिया घराना इन भगवा गुंडों का महिमामंडन कर अपना हिस्सा बटोर रहा है.

चुनाव आयोग ने चुनावी फिजा को इस तरह बनाया है जिससे भाजपा को फायदा हो सके और वह चुनाव जीत जाये. यही कारण है कि भाजपा के लिए सबसे कठिन चुनावी मैदान पश्चिम बंगाल में पूरे 7 चरणों में चुनाव कराये जा रहे हैं, ताकि भाजपा के भगवा गुंडे दंगे-आगजनी करके पश्चिम बंगाल में ज्यादा सीटें जीत सके. यह ईवीएम के जरिये वोटों को मैनज करने के अतिरिक्ति है. पश्चिम बंगाल के अंतिम 7वें चरण के चुनाव में देश भर से भगवा गुंडों को जुटाकर बंगाल की स्मिता पर ही हमला बोल दिया और महान ईश्वरचंद विद्यासागर के द्वारा बनाये गये महाविद्यालय में घुसकर उनकी प्रतिमा को तोड़ दिया. पथराव और आगजनी किया. फिर भाजपा का दल्ला चुनाव आयोग ने चुनावी फिजा को भाजपा के पक्ष में करने के लिए ऐतिहासिक तौर पर दुष्टता से भरा ऐलान किया. इसी विषय पर देश के प्रसिद्ध पत्रकार रविश कुमार ने अपना ब्लॉग लिखा है, पाठकों के लिए प्रस्तुत है –

बंगाल पर चुनाव आयोग का ऐतिहासिक फैसला

भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार चुनाव आयोग ने आर्टिकल 324 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार 20 घंटे पहले ही ख़त्म करने का फ़ैसला किया है… यानी गुरुवार रात दस बजे के बाद पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार नहीं होगा जबकि इसे शुक्रवार शाम पांच बजे बंद होना था. ये ध्यान दिया जाना ज़रूरी है कि कल बंगाल में प्रधानमंत्री मोदी की दो रैलियां हैं. माथुरपुर लोकसभा क्षेत्र में शाम पौने पांच बजे और दमदम में शाम साढ़े छह बजे प्रधानमंत्री रैली करेंगे.

आख़िर टीवी को बंगाल मिल ही गया. जितनी कोशिश बंगाल में हो रही हैं उससे हैरानी तो हो रही थी कि 2019 का चुनाव बंगाल को लेकर ही क्यों नहीं हो गया. हिंसा बंगाल की राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा रही है. आज से नहीं, लेफ्ट के ज़माने से. भारत के कई राज्य राजनीतिक हिंसा से बाहर आ गए मगर बंगाल की राजनीति इस हिंसा को बैज की तरह लगाए घूम रही है. लेकिन यह भी नहीं समझना चाहिए कि हिंसा के लिए कोई एक ही पक्ष ज़िम्मेदार है. कौन किस तरह के बयान दे रहा है, किस तरह से ललकार रहा है, अगर आप बंगाल के चुनावी भाषणों को खंगालेंगे तो पता चलेगा कि हिंसा का इंतज़ार इस बार किसे है. यहां की 42 लोकसभा सीटों की दावेदारी के लिए घमासान मचा है. 15 मई की शाम कोलकाता के कालेज स्ट्रीट पर जो कुछ हुआ आप यह कभी नहीं जान पाएंगे कि पहला पत्थर किसने मारा. अपने मुख्यालयों से प्रेस कांफ्रेंस कर देने से दावे सही नहीं हो जाते हैं.




14 मई को कोलकाता के एस्प्लानेड एरिया से अमित शाह का रोड शो शुरू होता है. इसे उत्तरी कोलकाता में मौजूद स्वामी विवेकानंद के पैतृक निवास पर जाकर ख़त्म होना था. रोड शो में काफी भीड़ थी जैसा कि तस्वीरों में दिखा भी. बंगाल में 31 सीटों के लिए मतदान हो चुका है. 19 मई को 9 सीटों पर मतदाना होना है जिसमें से कोलकाता और आस-पास की सीटें भी हैं. इस रोड शो में राम-लक्ष्मण की झांकी भी बनी है. कायदे से चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि किसकी इजाज़त से अमित शाह के रोड में धार्मिक झांकी निकल रही है. यह आचार संहिता का उल्लंघन है या नहीं. अमित शाह का यह रोड शो कालेज स्ट्रीट एरिया पहुंचता है. भीड़ काफी है. यहीं पर है विद्यासागर कालेज. जिसके पास तनाव होता है. इसका जो भी वीडियो आया है वह सड़क के साइड से है. जिस तरफ बीजेपी के समर्थक हैं. कालेज के भीतर से कोई कैमरा नहीं है. न ही रिकार्डिंग अभी आई है.

कोलकाता आने से पहले अमित शाह की रैली थी जॉयनगर में. जहां की मोआ मिठाई बहुत फेमस है और मुझे पंसद भी है. जॉयनगर की रैली में अमित शाह कोलकाता के रोड शो को लेकर चुनौती देते हैं. यह चुनौती जय श्री राम को लेकर है. वहां जय श्री राम का नारा लगता है. चुनाव आयोग को बताना चाहिए कि धार्मिक नारे लगाना आचार संहिता का उल्लंघन है या नहीं.

अमित शाह ने दिल्ली में जो प्रेस कांफ्रेंस की है उसमें कहा है कि उनके कार्यकर्ताओं को उकसाया गया. जबकि जय श्री राम का नारा लगाने पर गिरफ्तार कर दिखाने का चैलेंज ममता को देकर कोलकाता आए थे. उन्होंने दिल्ली में की गई अपनी प्रेस कांफ्रेस में कहा कि सुबह से खबर थी कि कालेज से लड़के हिंसा कर सकते हैं. अमित शाह को यह सूचना कहां से मिली, क्या बीजेपी ने सुबह थाने में कहीं तहरीर दी थी, चुनाव आयोग से कहा था कि कालेज से लड़के हिंसा कर सकते हैं. हमें इसकी जानकारी नहीं है मगर अमित शाह ने कहा है कि सुबह से ख़बर थी कि कालेज से लड़के हिंसा कर सकते हैं लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया. चुनाव आयोग के कैमरे लगे होते हैं रोड शो में. आयोग ही बेहतर बता सकता है कि तथ्य क्या हैं.

अमित शाह कह रहे हैं कि कालेज का गेट नहीं टूटा. जिस कमरे में ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ति थी उसका ताला नहीं टूटा. ताले को चाबी से खोला गया. हमारी सहयोगी मोनोदीपा घटना के अगले दिन विद्यासागर कालेज गईं और उन्होंने बताया कि गेट भी तोड़ा गया था और ताला भी वहीं नीचे फेंका गया था.




अब यहां एक चेतावनी देना चाहता हूं. वीडियो किसी भी तरफ से हो, वह पूरा प्रमाण नहीं हो सकता है. जब तक सारे वीडियो के रॉ फुटेड न देखे जाएं और उनका विश्लेषण न हो, कहना मुश्किल है. यह बात एएनआई के भेजे वीडियो फुटेज पर भी लागू है और तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन के ट्विट किए गए वीडियो पर भी लागू है. बीजेपी का आरोप है कि कालेज के भीतर से हिंसा हुई. पत्थर फेंके गए. एक नौजवान का सर फट जाता है जो एएनआई के कैमरे पर बयान भी देता है कि कालेज के भीतर से जो पत्थर आया है उससे उसका सिर फटा है. लेकिन सड़क की तरफ से रिकार्ड किए गए वीडियो को देखें, जो न्यूज़ एजेंसी एएनआई से आया है तो देखेंगे कि बीजेपी के समर्थक कालेज के पास रुके हुए हैं. गेट पर हमला कर रहे हैं. गेट के भीतर भी प्रवेश करते हैं. कालेज के भीतर पत्थर चलाते हैं. आप इस वीडियो में साफ-साफ देख सकते हैं.

एक वीडियो फुटेज को तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन ने ट्विट किया है. इस वीडियो का सोर्स क्या है, किसने रिकार्ड किया है, हम नहीं जानते मगर डेरेक ने जो वीडियो दिया है उससे लगता है कि बीजेपी के समर्थकों ने भी हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. एक चीज़ पर ग़ौर कीजिएगा. कालेज अंधेरे में है. अगर उसके भीतर बहुत से लोग होते हैं और पत्थर चलता तो भगदड़ मच जाती. मगर वहां पर कार्यकर्ता आराम से रुके हुए नज़र आ रहे हैं. शाम को तृणमूल कांग्रेस ने वीडियो प्रूफ चुनाव आयोग को सौंप दिया है.

अब आते हैं इस सवाल पर कि क्या ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति तोड़ी गई. यह मूर्ति कालेज के कमरे में रखी हुई थी. अमित शाह ने कहा कि बीजेपी के समर्थक अंदर नहीं गए. ताला नहीं टूटा. डेरेक ने जो वीडियो दिया है उससे लगता है कि कुछ लोग कमरे पर हमला कर रहे हैं. पत्थर से दरवाज़े को तोड़ रहे हैं. यह वीडियो डाक्टर्ट है या नहीं, हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते मगर इसे डेरेक ओ ब्रायन ने जारी किया है और इसे सबूत के तौर पर चुनाव आयोग को भी दिया है. अगर डाक्टर्ड होता  तो डेरेक चुनाव आयोग लेकर नहीं जाते.

ईश्वरचंद विद्यासागर का जन्म 1820 में हुआ था. बिजली के खंभे के नीचे पढ़ने की कहानी सब जानते हैं. 21 साल की उम्र में फोर्ट विलियम्स कालेज में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष के रूप में ज्वाइन भी किए. बांग्ला वर्णमाला पर वर्ण परिचय नाम की किताब आज भी पढ़ी जाती है. बांग्ला टाइपोग्राफी को बदल दिया. लड़कियों के लिए बहुत से स्कूल बनाए. उनकी शिक्षा के मसले को आंदोलन में बदल दिया. 1856 में जो विधवा विवाह कानून बना, उसमें उनका भारी योगदान था.




जिस कालेज में उनकी मूर्ति तोड़ी गई है वो कालेज भी ईश्वरचंद विद्यासागर का ही बनाया हुआ है. 1872 में इस कालेज की स्थापना की थी. उनकी मूर्ति टूट जाने को लेकर बंगाल की राजनीति दूसरी दिशा में चली गई है. बीजेपी के अमित शाह कहते हैं कि मूर्ति तृणमूल के लोगों ने तोड़ी है. ममता बनर्जी कहती हैं कि बीजेपी ने विद्यासागर की मूर्ति तोड़ी है. ममता विद्यासागर कालेज भी गई थीं. ममता ने मूर्ति के टूटे हुए हिस्से की तस्वीर भी ट्विट किया है. इसके विरोध में ममता बनर्जी ने रोड शो करने का ऐलान कर दिया. ममता बनर्जी 14 मई की रात को ही विद्यासागर कालेज पहुंच गईं और उस कमरे का दौरा किया जिसमें मूर्ति रखी थी और तोड़ी गई थी. उनका कहना है कि इस घटना के लिए बंगाल बीजेपी को कभी माफ नहीं करेगा. कांग्रेस ने भी कोलकाता में मूर्ति तोड़े जाने की घटना को लेकर मार्च किया है. सीपीएम के नेताओं ने विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने को लेकर प्रदर्शन किया है. सीताराम येचुरी ने कहा कि विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ना हमारी सभ्यता के खिलाफ है. जो कुछ भी हुआ है वो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए हुआ है. हम लोगों से अपील करते हैं कि बंगाल के लोग सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के फेर में न पड़ें.

इन सबके बीच ममता बनर्जी का बयान भी कम ख़तरनाक नहीं है. उन्होंने कहा है कि बीजेपी के दफ्तरों पर कब्ज़ा हो जाएगा. कहीं ऐसा तो नहीं कि हिंसा दोनों के काम आ रही है. ममता बनर्जी को इस तरह की भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था. इसमें और अमित शाह की भाषा में कोई अंतर नहीं है कि मैं जय श्री राम बोलूंगा आप गिरफ्तार करके दिखा दीजिए. हमने चुनाव आयोग की बात की, अमित शाह के रोड शो में राम लक्ष्मण की झांकी बनाई गई, जय श्री राम के नारे लगे, चुनाव आयोग को नहीं लगा कि यह चुनाव में धर्म का इस्तेमाल है और आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है.

उधर दिल्ली में जंतर मंतर पर बीजेपी के नेताओं ने मौन प्रदर्शन किया. विजय गोयल, हर्षवर्धन और जितेंद सिंह ने अपने होठों पर उंगलियां रख लीं ताकि पता चले कि मौन धरना है. बीजेपी का कहना है कि कोलकाता के रोड शो में उनके पोस्टर फाड़े गए. रोड शो में गड़बड़ी पैदा करने की कोशिश की गई. बीजेपी का कहना है कि बंगाल में लोकतंत्र ख़तरे में है. ममता बनर्जी बंगाल में हिंसा का सहारा ले रही हैं. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने दिल्ली में कहा है कि ममता की भाषा उकसाने वाली है. धमकी भरी है. चुनावी सभा करने से ममता पर रोक लगा देनी चाहिए.




बंगाल में टकराव और हिंसा की घटनाओं से सतर्क हो जाना चाहिए. बंगाल को भी और इसे लेकर व्हाट्स ऐप यूनिवर्सिटी में सांप्रदायिक अफवाह फैलाने वालों को भी. चौथे चरण के चुनाव में बंगाल में जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे अधिक सुरक्षा बल तैनात किए गए थे. फिर भी हर चरण में चुनावी हिंसा हुई है. इसमें तृणमूल समर्थक की भी मौत हुई है और बीजेपी समर्थक की भी. दूसरे चरण में जब दार्जिलिंग रायगंज और जलपाईगुड़ी में मतदान हुआ था तब उसके लिए 15000 अर्धसैनिक बल तैनात किए गए थे. इतनी तैनाती बंगाल में हाल के चुनावों में कभी नहीं हुई थी. यह तैनाती चुनाव आयोग के निर्देश पर होती है. आयोग को ही बताना चाहिए कि फिर हिंसा क्यों हुई.

उसी सड़क पर ममता बनर्जी पदयात्रा कर रही हैं जिस रास्ते पर एक दिन पहले अमित शाह का रोड शो गुज़रा था. रोड शो बनाम रोड शो बता रहा है कि बंगाल की राजनीति में कुछ उबल रहा है. बीजेपी और तृणमूल दोनों एक दूसरे से लोहा ले रहे हैं. ममता की पदयात्रा में तृणमूल समर्थकों ने ईश्वर चंद विद्यासागर के पोस्टर को कुर्ते पर चिपका लिया है. पदयात्रा में विवेकानंद का पोस्टर भी है. टैगोर की तस्वीर है. ममता ने इसे बंगाल के सांस्कृतिक गौरव का मुद्दा बना दिया है. चुनाव आयोग ने कहा है कि राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी, चुनाव पर्यवेक्षकों के साथ एक समीक्षा बैठक करेगा. चुनाव आयोग के पास फैसला लेने के लिए 3 दिन हैं क्योकि 19 को मतदान होना है. 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है. विद्यासागर कालेज के छात्रों ने अमित शाह के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई है. राजनाथ सिंह ने निंदा की है और लोकतंत्र के साथ मज़ाक बताया है.

प्रधानमंत्री मोदी भी कोलकाता के पास डायमंड हार्बर में सभा कर रहे थे. उनके भाषणों में भी इस घटना का असर था. उन्होंने कहा कि दीदी डर गई है. यहां से ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी तृणमूल कांग्रेस से चुनाव मैदान में हैं. बीजेपी से निलांजना रॉय लड़ रही हैं. सीपीएम से एफ हलीम मैदान में हैं और कांग्रेस से सौम्या रॉय हैं.




2019 के चुनाव यूपी के साथ साथ बंगाल और ओडिशा पर सबकी नज़र है. यहां होने वाले नतीजे 2019 के समीकरण को बदल देंगे. किस तरह से बदलेंगे इसे लेकर बहुत लोग व्यस्त हैं. 2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 4 प्रतिशत वोट मिला था.  2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 17 फीसदी हो गया. 2014 में बीजेपी को लोकसभा में दो सीटें मिलीं. 2016 में विधानसभा चुनाव हुआ तो बीजेपी का वोट प्रतिशत 7 प्रतिशत घट गया. 2014 के 17 प्रतिशत से घट कर 10.16 प्रतिशत पर आ गई, सीट मिलीं 3. 2014 में तृणमूल कांग्रेस का वोट प्रतिशत था 39 प्रतिशत जो 2016 के विधानसभा में बढ़कर 44.19 प्रतिशत हो गया.

बीजेपी पूछती है कि ममता जय श्री राम का नारा क्यों नहीं लगाती हैं. ममता कहती हैं कि ये बीजेपी का नारा हैं, वो क्यों लगाएंगी. इस नारे को लेकर गर्मी पैदा की जा रही है. यहीं पर याद दिला दें. वंदे मातरम को लेकर टीवी पर कितनी बहस हुई, लेकिन जब प्रधानमंत्री ने वंदे मातरम का नारा लगाया तो उन्हीं के मंच पर नीतीश कुमार चुप बैठे रहे. बाद में प्रधानमंत्री ने नीतीश की मौजूदगी में वंदे मातरम का नारा लगाना छोड़ दिया. यही नहीं ममता की तरह जेडीयू नेता केसी त्यागी ने साफ-साफ कहा कि हम वंदे मातरम और भारत माता की जय नहीं लगाएंगे क्योंकि यह संघ और बीजेपी का एजेंडा, एनडीए का हिस्सा नहीं है. क्या आपने सुना कि बीजेपी ने नीतीश कुमार से नाता तोड़ लिया या उनके खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, नहीं. जब नीतीश कुमार को छूट है कि वे वंदे मातरम का नारा न लगाएं तो फिर ममता बनर्जी को क्यों जय श्री राम का नारा लगाना चाहिए. पटना में डॉ प्रणय रॉय ने सुशील मोदी से यही सवाल किया तो कितनी सहजता से सुशील मोदी ने कह दिया कि हम भी कभी कभी वंदे मातरम पर खड़े नहीं होते हैं. अगर ये बात ममता बनर्जी कह देतीं तो तो फिर अमित शाह का क्या राजनीतिक जवाब होता, बस इतना समझ जाइए, चुनाव मुद्दों पर होने लगेगा.




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