Home गेस्ट ब्लॉग न्यूज चैनल न देखें – झुग्गियों, कस्बों और गांवों में पोस्टर लगाएं

न्यूज चैनल न देखें – झुग्गियों, कस्बों और गांवों में पोस्टर लगाएं

9 second read
0
0
665

न्यूज चैनल न देखें - झुग्गियों, कस्बों और गांवों में पोस्टर लगाएं

Ravish Kumarरविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार

रमित वर्मा के पास न्यूज चैनलों का हिसाब-किताब है. कुछ साल से रमित डिबेट को फोलो करते हैं और उनके खेल को official peeing human के नाम से उजागर करते हैं. 19 अक्टूबर तक चार चैनलों के पिछले 202 डिबेट का रिसर्च किया है. आज तक, न्यूज-18, जी-न्यूज और इंडिया-टीवी.

पाकिस्तान पर हमला – 79 डिबेट
विपक्ष पर हमला – 66 डिबेट
मोदी / संघ / बीजेपी की तारीफ – 36 डिबेट
राम मंदिर – 14 डिबेट
बिहार बाढ़ – 3 डिबेट
चंद्रयान मून मिशन – 2 डिबेट
स्वामी चिन्मयानंद पर बलात्कार के आरोप – 1 डिबेट
पीएमसी बैंक घोटाला – 1 डिबेट
अर्थव्यवस्था – कोई डिबेट नहीं
बेरोजगारी – कोई डिबेट नहीं
शिक्षा – कोई डिबेट नहीं
स्वास्थ्य – कोई डिबेट नहीं
पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर – कोई डिबेट नहीं
किसानों की परेशानी – कोई डिबेट नहीं
गरीबी और कुपोषण – कोई डिबेट नहीं
महिला सुरक्षा – कोई डिबेट नहीं
पर्यावरण सुरक्षा – कोई डिबेट नहीं
मॉब लिंचिंग – कोई डिबेट नहीं
सरकार के फैसलों पर सवाल – कोई डिबेट नहीं

यह साफ हो जाता है कि न्यूज चैनल कैसे आपको अंधेरे में रख रहे हैं इसलिए आप सभी से अपील है कि न्यूज चैनल देखना बंद करें. आप सभी लोगों से कहें कि वे न्यूज चैनल न देखें. देश के लिए कुछ करने का इससे आसान कुछ नहीं हो सकता. आपका पैसा बचेगा. गांव-गांव और आस-पड़ोस हर जगह अभियान चलाएं. लोगों को जागरूक करें.

मोदी के सपोर्टर से भी आग्रह करें कि वे इस आंदोलन में साथ दें. उनका साथ भी बहुत जरूरी है. उन्होंने मोदी को इसलिए वोट नहीं दिया है कि भारत का मीडिया झूठ बोलने लगे, सरकार के झूठ पर पर्दा डाले और जनता को दूर कर दे. मुझे यकीन है मोदी सपोर्टर भी समझते हैं कि मोदी को वोट देना और घटिया न्यूज चैनल देखना, दोनों में अंतर है.

आप सभी से आग्रह है कि न्यूज चैनल न देखने के अभियान को घर-घर पहुंचाएं. गरीब मोहल्लों, झुग्गियां और कस्बों में जाकर बताएं कि मीडिया भारत के लोकतंत्र की हत्या कर रहा है. अगर मुमकिन है तो अपने सामथ्र्य के अनुसार इलाके में पोस्टर लगाएं. पर्चा बांटें और कहें कि टीवी न देखें.

Read Also –

सरहद के पार नफरतों के खिलाफ एक दीया
कमलेश तिवारी की हत्या : कट्टरतावादी हिन्दुत्व को शहीद की तलाश
बेशर्म मीडिया का सम्पूर्ण बहिष्कार ही एकमात्र विकल्प है
आस्ट्रेलिया का लड़ता मीडिया बनाम भारत का दब्बू मीडिया
सोशल एक्सपेरिमेंट प्रैंक : भारत-पाकिस्तान की आम आवाम 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

जाति-वर्ण की बीमारी और बुद्ध का विचार

ढांचे तो तेरहवीं सदी में निपट गए, लेकिन क्या भारत में बुद्ध के धर्म का कुछ असर बचा रह गया …