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ब्राह्मणों के प्रकार का इतिहास बताता है कि ये घुमन्तु प्रजाति के थे

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भारत में यह रहस्य अब बिलकुल नहीं रहा जब ब्राह्मण पहले कहते हैं कि ये देवता हैं और भगवान् ने इन्हें बनाया है और भारत में ही सारे भगवान् पैदा हुए. वैज्ञानिक शोध से सब मालूम हो चुका है की ये लोग इस देश में विदेशों से आये घुमन्तु जाति के लोग थे और जहां जहां इनको स्थान मिलता गया ये वहां-वहां अपना वर्चस्व कायम करते गए. इनके खुद के ग्रंथों से ही मालूम होता है कि ये विदेशी हमलावर थे.

यहां पर कुछ ब्राह्मणों के प्रकार दिए गए है:

शाकद्वीपीय ब्राह्मण / मग ब्रह्मिनों का इतिहास खोजना शुरू किया गया तो इनका इतिहास भारत से लेकर अर्याण (ईरान) और ग्रीक से शुरू होता है. पारसी धर्म और इसाई धर्म के अन्दर इनका उल्लेख निकलता है. अर्याण (ईरान) के सबसे पुराने मध् साम्राज्य तक में मग ब्रह्मिनों का इतिहास दर्ज है.

पुष्करना ब्रह्मिनों का इतिहास भारत से शुरू होकर पारस (पर्शिया) तक जाता है. कितनी सभ्यताओं से निकल के पुजारी रहते हुए युद्ध का इतिहास आ जाता है, अर्याण (ईरान) के इतिहास में जाकर मिल जाता है.

दाधीच ब्रह्मिनों का इतिहास अरब से शुरू होकर शाकद्वीप के भारत तक चला आता है. दाधीच ब्रह्मिनों का एक कुल करेशिया का उल्लेख इस्लाम के सबसे पुराने खानदान कुरेशिया जिसमें पैगम्बर हुए उनसे मिलता है.

सारस्वत ब्रह्मिनों का इतिहास सरस्वती नदी मध्य एशिया से लेकर अरब तक आ जाता है. मरुधरा (राजस्थान) में रहते सारस्वतांे का उल्लेख इस्लाम के कर्बला में जाता है. कभी श्रेष्ठ पंडित बनके स्तोत्र रचना कर दी तो कभी तलवारें उठाकर शिया मुस्लिमों के साथ मिल के याजिद को खतम किया.

श्रीमाली ब्रह्मिनों का इतिहास अरब के रेगिस्तान से शुरू होता है जो सीधा श्री लंका तक चला जाता है. कभी पंडित बनके श्रीमाल पुराण की रचना करते ब्राह्मण गुजरात के सोलंकी घराने से युद्ध में उतर जाते हैं. मालवीय ब्रह्मिनों का इतिहास मलय पर्वत से शुरू होता है. सर्युपरीन ब्रह्मिनों का इतिहास सुवर्ण द्वीप (सुमात्रा) से मिलता है. भुमिहार ब्रह्मिनांे का इतिहास रुमेर (कम्बोडिया) से मध्य मगध तक जा मिलता है.

जिस तरह मात्र एक शाकद्वीपीय ब्राह्मण का इतिहास खोजने के लिए पहले देखना पड़ा उत्पति स्थल ईरान है, उसके बाद उसके इतिहासकार ने बताया शाकद्वीपीय ब्राह्मण ईरान के भी सबसे पुराने मेदेस साम्राज्य के पुजारी थे. अब मेदेस साम्राज्य के इतिहास में घुसे तो पता चलता है वे पारसी धर्म के भी पुजारी रहे. पारसी धर्म का इतिहास आगे यहूदी धर्म के मागी और मागुस ब्राह्मण जुड़ते गए. यहूदी धर्म के शामन ज्योतिष का इतिहास खोजे तो पता चला वो भी माघ ब्राह्मण निकलते हैं, जिन्होंने इसा मसीह के जन्म पर उनके ईश्वर होने की पुष्टि की, उसके बाद कुरान में आयात निकलती है. उसके बाद ब्रह्मणों द्वारा लिखे ग्रन्थ के पुराण देखे तो शाकद्वीपीय ब्रह्मिनों के जम्बूद्वीप आने की कहानी लिखी होती है, जिसका उल्लेख खुद महाभारत में भी आता है.

103 ई. पू. में ब्राह्मणों द्वारा लिखे ग्रंथों में ही ब्राह्मणों की उत्पत्ति कुछ इस तरह मिलती है:

‘‘श्री’’ एक एव पुर वेदः प्रणवः सर्ववाङमय देवो नारायणो ,नान्योरहयेकोेग्निवर्ण एव च।
न विशेषोेस्ति वर्णानां सर्व ब्रह्ममयं जगत। प्रथमरू ब्राह्मणरू कर्मणा वर्णतां गतरू।।

पहले वेद एक था। ओंकार में संपूर्ण वांग्मय समाहित था. एक देव नारायण था. एक अग्नि और एक वर्ण था. वर्णों में कोई वैशिष्ट्यर नहीं था. सब कुछ ब्रह्मामय था. सर्वप्रथम ब्राह्मण बनाया गया और फिर कर्मानुसार दूसरे वर्ण बनते गए. सभी व्यक्ति विराट पुरुष की संतान हैं और सभी थोड़ा बहुत ज्ञान भी रखते हैं तो भी वो अपने आप को ब्राह्मण नहीं कहते. एक निरक्षर भट्टाचार्य मात्र ब्राह्मण के घर जन्म लेने से अपने आपको ब्राह्मण कहता है और न केवल वही कहता है अपितु भिन्न-भिन्न समाजों के व्यक्ति भी उसे ‘पण्डितजी’ कहकर पुकारते हैं. लोकाचार सब न्यायों में व सब प्रमाणों में बलवान माना जाता है. ‘‘सर्व ब्रह्मामयं जगत’’ अनुसार सब कुछ ब्रह्म है और ब्रह्म की संतान सभी ब्राह्मण हैं. डॉ. रामेश्वर दत्त शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘ब्राह्मण समाज परिचय एवं योगदान’’ के मुखपृष्ठ पर अंकित ब्रह्मरूपी वृक्ष में 14 शाखाएं हैं और इन चैदह शाखाओं में अलग-अलग ब्राह्मणों का वर्णन किया गया है. जैसे 1. गौड़ आदि गौड़, बंगाली और त्यामगी 2. सारस्वपत, कुमडिये, जैतली, झिगन, त्रिखे, मोहल्ले , कश्मीडरी 3. खण्डेंलवाल, दायमा, पुष्कारणा, श्रीमाली, पारीक, पालीवाल, चैरसिया 4. कान्यकुब्जट, भुमिहार, सरयूपारीण, सनाढय, जिझौतिया 5. मैथल, श्रोत्रिय 6. उत्कल, मस्ताकना 7. सुवर्णकार, पांचाल, शिल्पेयान, जांगडा, धीमान 8. गोस्वामी, आचार्य, डाकोत, वेरागी, जोगी, ब्रह्मभाट 9. कौचद्वीपी, शाकद्वीपी 10. कर्णाटक 11. तैलंग, बेल्लोरी, बगिनाड, मुर्किनाड़ 12. द्राविड़, नम्बूदरी 13. महाराष्ट्र चितपावन 14. गुर्जर, औदित्य, गुर्जर गौड़ नागर तथा देशाई.

इस प्रकार ब्राह्मणों के कुछ 54 भेद हुए. जब ब्राह्मण एक जाति बन गई तो उनकी पहचान के लिए उनके वेद, शाखा, सूत्र, गोत्र, प्रवर आदि पहचान कारक माने गए. यह क्रम मध्यकाल तक चलता रहा. तदन्तर ब्राह्मणों के भेद उनके प्रदेशों के आधार पर गठित किए गए.

पं. छोटेलाल शर्मा ने अपने ब्राह्मण निर्णय में ब्राह्मणों के 324 भेद लिखे हैं. ब्लूतम फील्ड के अनुसार ‘‘ब्राह्मणों के 2500 भेद हैं.’’ शेरिंग साहब के अनुसार ‘‘ब्राह्मणों के 1782 भेद हैं.’’ कुक साहब के अनुसार ‘‘ब्राह्मणों के 924 भेद हैं.’’ जाति भास्कर आदि ग्रन्थों के अनुसार ‘‘ब्राह्मणों के 51 भेद हैं.’’ वैदिक काल में और उसके बहुत समय बाद तक किसी के साथ उपाधि लगती दिखाई नहीं देती. केवल नामों का ही उल्लेख मिलता हैं. जैसे कश्यकप, नारद, वशिष्ठी, पराशर, शांडिल्यर, गौतम आदि. बाद में मनु के चारों वर्णों के चार आस्पादों का उल्लेख मिलता है. अर्थात् ब्राह्मण शर्मा, क्षत्रिय वर्मा, वैश्यण गुप्त तथा शुद्र दास आदि शब्दों का प्रयोग अपने नाम के पीछे करने लगे. बहुत समय बाद गुण, कर्म और वृति के सूचक तथा प्रशासकों, राजा-महाराजाओं द्वारा प्रदत्त उपाधियों का प्रयोग होने लगा. अधिकांश उपाधियां मुस्लिमकाल में प्रचलित हुई. स्मृति और पुराणों के युग के बाद ब्राह्मणों की भट्ट और मिश्रा उपाधियां अधिक मिलीं. महाराजा गोविन्द् चन्द्रादेव आदि गहखोर राजाओं के समय ठाकुर और राउत पदवी भी ब्राह्मणों के लिए प्रयुक्त होने के प्रमाण मिलते हैं. मिश्रा, पाण्डेय, शुक्ल, द्विवेदी, चतुर्वेदी आदि उपाधियां शासन द्वारा प्रदत्त हैं. उसी समय की राय, सिंह आदि उपाधियां शासन द्वारा प्रदत्त हैं.

जो पाण्डेय, द्विवेदी आदि उपाधिधारी थे वे बाद में शासन द्वारा राय, सिंह, चैधरी आदि हो गए. मुस्लिम शासन के समय मियां, खान आदि उपाधियां ब्राह्मणों को दी गई. तानसेन मिश्र को मियां की उपाधि दी गई थी. वेद पढ़ने-पढ़ाने से द्विवेदी (दूबे) हो गए. त्रिवेदी (तिवाड़ी), चतुर्वेदी (चैबे), अध्यापक होने से (पाठक), उपाध्याय (ओझा), यज्ञादि कर्मानुष्ठान कराने से वाजपेयी, अग्निहोत्री, अवस्थी, दीक्षित और समृति कर्मानुष्ठान कराने से मिश्र, शुक्ल् वंश के पुरुष के नाम से शांडिल्यर (सान्यील) पदवी के नाम से चक्रवर्ती, मुखर्जी, चटर्जी, बनर्जी, गांगुली, भट्टाचार्य कार्य व गुण के कारण से दीक्षित सनाढ्य याजक नैगम, आचार्य वेद की पद, क्रम, जटा, माला, रेखाध्वज, दंडरथ और धनपाठ आदि आठ पद्धतियों में से तीन प्रकार के पाठ करने वाले त्रिपाठी कहलाए.

उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणों के भेद इस प्रकार है:

81 ब्राम्हाणों की 31 शाखा कुल 115 ब्राह्मणसंख्या (1) गौड़ ब्राह्मण (2)मालवी गौड़ ब्राह्मण (3) श्री गौड़ ब्राह्मण (4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राह्मण (5) हरियाणा गौड़ ब्राह्मण (6) वशिष्ठ गौड़ ब्राह्मण (7) शोरथ गौड ब्राह्मण (8) दालभ्य गौड़ ब्राह्मण (9) सुखसेन गौड़ ब्राह्मण (10) भटनागर गौड़ ब्राह्मण (11) सूरजध्वज गौड ब्राह्मण (षोभर) (12) मथुरा के चैबे ब्राह्मण (13) वाल्मीकि ब्राह्मण (14) रायकवाल ब्राह्मण (15) गोमित्र ब्राह्मण (16) दायमा ब्राह्मण (17) सारस्वत ब्राह्मण (18) मैथल ब्राह्मण (19) कान्यकुब्ज ब्राह्मण (20) उत्कल ब्राह्मण (21) सरवरिया ब्राह्मण (22) पराशर ब्राह्मण (23) सनोडिया या सनाड्य (24) मित्र गौड़ ब्राह्मण (25) कपिल ब्राह्मण (26) तलाजिये ब्राह्मण (27) खेटुुवे ब्राह्मण (28) नारदी ब्राह्मण (29) चन्द्रसर ब्राह्मण (30) वलादरे ब्राह्मण (31) गयावाल ब्राह्मण (32) ओडये ब्राह्मण (33) आभीर ब्राह्मण (34) पल्लीवास ब्राह्मण (35) लेटवास ब्राह्मण (36) सोमपुरा ब्राह्मण (37) काबोद सिद्धि ब्राह्मण (38) नदोर्या ब्राह्मण (39) भारती ब्राह्मण (40) पुश्करर्णी ब्राह्मण (41) गरुड़ गलिया ब्राह्मण (42) भार्गव ब्राह्मण (43) नार्मदीय ब्राह्मण (44) नन्दवाण ब्राह्मण (45) मैत्रयणी ब्राह्मण (46) अभिल्ल ब्राह्मण (47) मध्यान्दिनीय ब्राह्मण (48) टोलक ब्राह्मण (49) श्रीमाली ब्राह्मण (50) पोरवाल बनिये ब्राह्मण (51) श्रीमाली वैष्य ब्राह्मण (52) तांगड़ ब्राह्मण (53) सिंध ब्राह्मण (54) त्रिवेदी म्होड ब्राह्मण (55) इग्यर्शण ब्राह्मण (56) धनोजा म्होड ब्राह्मण (57) गौभुज ब्राह्मण (58) अट्टालजर ब्राह्मण (59) मधुकर ब्राह्मण (60) मंडलपुरवासी ब्राह्मण (61) खड़ायते ब्राह्मण (62) बाजरखेड़ा वाल ब्राह्मण (63) भीतरखेड़ा वाल ब्राह्मण (64) लाढवनिये ब्राह्मण (65) झारोला ब्राह्मण (66) अंतरदेवी ब्राह्मण (67) गालव ब्राह्मण (68) गिरनारे ब्राह्मण (69) गुग्गुले ब्राह्मण (70) मेरठवाल ब्राह्मण (71) जाम्बु ब्राह्मण (72) वाइड़ा ब्राह्मण (73) कड़ोल ब्राह्मण (74) ओदुवे या दुवे (75) वटमूल ब्राह्मण (76) श्रृंगालभाट ब्राह्मण (77) गौतम ब्राह्मण (78) पाल ब्राह्मण (79) सोताले ब्राह्मण (80) सिरापतन मोताल ब्राह्मण (81) महाराणा ब्राह्मण (82) चितपाक ब्राह्मण (83) कराश्ट ब्राह्मण (84) त्रिहोत्री या अग्निहोत्री ब्राह्मण (85) दशगोत्री ब्राह्मण (86) द्वात्रिदश ब्राह्मण (87) पन्तिय ग्राम ब्राह्मण (88) मिथिनहार ब्राह्मण (89) सौराष्ट्र.

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4 Comments

  1. Satyam tripathi

    August 20, 2020 at 2:48 am

    Kon sa scientist khoj lia ki brahman ghumantu hote the sale scientist khud hi dunia ko barbaad kar rahe hai tum unki baar maan rahe hi tum bol rahe ho ki inke hi granthi se pata chala ki ye videshi hamlavar the mere bhai pehli baar to brahmanon ko koi kitabi granth baandh nahi sakta sacha brahman kabhi kitabi gyan pe vishwas nahi karta kyonki kitabi grantho me milavat ki ja sakti hai aur kai videshi akraman kario ne bharat ke grantho me milavat bhi ki hai tum jhoothe grantho ka naam lekar brahmano ka apmaan kar rahe ho me batata hu tumhe brahman ko koi granth padne ki aavashyakta nahi hai vi vedi ka gyan apne khud ke dhyan mudra se prapt kar sakta hai to tum ye kitabi gyan aur do kaudi ke angrezi scientist ka naam lekar yahan apni maa mat chudao samajh gye madarchod kabhi janna hai ki brahman kaisa hota hai to mere se mil lena sab bata dunga brahmano ke bare me sach samajh gye kutte ke pille mera WhatsApp no lele madarchod 6381032736 jai parshuram

    Reply

    • Rohit Sharma

      August 20, 2020 at 8:32 am

      तथ्यों के बजाय गाली-गलौज करने के आपके अंदाज ही यह बयां कर रहा है कि आप गलत हैं, और आपको कुछ भी ज्ञान नहीं है. धन्यवाद !

      Reply

  2. Mayank Tiwari

    May 29, 2021 at 7:45 pm

    पहले आप अपने तथ्यों को सही कर लिजिए आपके लिखिए हुए शब्द से लगता है कि आप ही को कोई जानकारी नहीं है गलत जानकारी को लिखका लोग को बेवकुफ मत बनाइए धन्यवाद।

    Reply

  3. Mayank Tiwari

    May 29, 2021 at 7:53 pm

    आपका गुस्सा सही है मुझे लगता है इन लोग को अफवाह फैलाना है और इनको कुछ भी नही पता ये तो अपने बारे में भी नही जानते होगे ये खुद ही के जन्मदाता होंगे

    Reply

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