
हिटलर, मित्र सेनाओं और समाजवादी सोवियत संघ से हारने से पहले एक कलाकार से बुरी तरह हार चुका था. वह कलाकार था ‘सर चार्ल्स स्पेंसर चार्ली’ यानी चार्ली चैपलिन. 1940 में चार्ली चैपलिन ने हिटलर पर अपनी मशहूर फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ बनायी. यह उनकी पहली बोलती फिल्म भी थी. इस फिल्म में उन्होंने दुनिया के सबसे ‘ताकतवर’ तानाशाह को जिस तरह से चित्रित किया उससे फासीवाद से सताए और फासीवाद से नफ़रत करने वाले लोगों को एक तरह का ‘रिलीफ’ मिला.
इस फिल्म को कई देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया था. कहते हैं कि हिटलर ने अकेले में इस फिल्म को कई बार देखा लेकिन कभी हंस नहीं पाया और हार गया. तानाशाहों में हास्यबोध कहां होता है. आज भी हम अपने समय के तानाशाहों का अक्स इस फिल्म में देख सकते है.
चार्ली चैपलिन ने अपनी फिल्मों से कॉमेडी को एक नई ऊंचाई दी. उनका ट्रैम्प (Tramp) चरित्र उस भूखे, बेरोजगार आम आदमी का चरित्र था जो अपनी त्रासदी को कॉमेडी में बदलने में माहिर था. त्रासदी को कॉमेडी में बदलना आसान काम नहीं है. यह एक निर्मम युद्ध है. यह युद्ध वही लड़ सकता है जिसने पूंजीवादी नियति को अस्वीकार कर दिया हो.
याद कीजिये चार्ली चैपलिन की पहली फिल्म ‘द किड’. एक लावारिस बच्चे की सरपरस्ती के लिए बच्चे और चार्ली चैपलिन की राज्य की एजेंसी से युद्ध. जहां क्षण-क्षण कॉमेडी त्रासदी में बदलती है और त्रासदी कॉमेडी में. यह क्रूर पूंजीवादी नियमों-कानूनों पर मासूमियत की जीत की फिल्म है. जैसा की चार्ली चैपलिन खुद कहते थे, यहां ‘क्लोस-अप’ में त्रासदी है तो ‘लॉन्ग शॉट’ में कॉमेडी. जीवन भी तो ऐसा ही है.
1936 में आयी उनकी फिल्म ‘मॉडर्न टाइम्स’ अपने खास अंदाज में पूंजीवादी अनुशासन और उसके ‘मैन्युफैक्चरिंग कंसेंट’ की धज्जियां उड़ा देती है. पूंजीवाद में इन्सान को कल पुर्जो में बदलने के खिलाफ विद्रोह है यह फिल्म. इस फिल्म पर भी कई देशों में प्रतिबन्ध लगा दिया गया था.
किसी भी मानव द्रोही व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई सबसे पहले कला के क्षेत्र में ही जीती जाती है. चार्ली चैपलिन की फ़िल्में ऐसी ही फ़िल्में है. अपनी इसी प्रतिबद्धता के कारण उन्हें अमेरिका में मैकार्थीवाद का भी शिकार होना पड़ा.
बहुत कम कलाकार ऐसे होते है, जिनकी कला से सभी देशों की जनता अपनापन महसूस करे. चार्ली चैपलिन की फ़िल्में भी ऐसी ही है. और यह अनायास नहीं है. चार्ली चैपलिन खुद को एक विश्व नागरिक समझते थे. 1942 में फासीवाद के ख़िलाफ़ कलाकारों के एक सम्मेलन में उन्होंने जो कहा, वह आज भारत में ‘देशभक्ति’ और नागरिकता की बहस में बहुत ही प्रासंगिक है.
चार्ली चैपलिन ने उस सम्मेलन में घोषणा की — ‘मैं नागरिक नहीं हूं. मुझे नागरिकता-कागज़ात की जरूरत नहीं है. इस अर्थ में मैं किसी एक देश का देशभक्त नहीं हूं लेकिन मैं पूरी मानवता का प्रेमी हूं. मैं एक विश्व नागरिक हूं.’
कामरेड चार्ली चैपलिन को सलाम – सुनील सिंह
‘मैं कम्युनिस्ट हूं, मुझे यह कहने में गर्व हो रहा है कि मैं अपने आपको को जबर्दस्त कम्युनिस्ट समर्थक महसुस करता हूं.’ उपरोक्त बातें 1942 में चार्ली चैपलिन ने कही थी. अपनी मूक फिल्मों से महान एक्टर डायरेक्टर चार्ली चैपलिन ने अमेरिका में पूंजीवाद, फासिज्म और युद्ध के खिलाफ मजबूत संदेश दिये थे.
चार्ली चैपलिन का पूरा नाम सर चार्ल्सस्पेन्सर चैप्लिन था.
16 अप्रैल 1889 को चार्ली चैपलिन का जन्म हुआ था. चार्ली चैपलिन के पिता एक एक्टर थे और उन्हें शराब की लत थी. उनका बचपन काफी संघर्षों में बीता. अपनी मां को मेंटल अस्पताल में भर्ती कराने के बाद चार्ली और उनके भाई को अपने पिता के साथ रहना पड़ता था.
कुछ सालों में चार्ली के पिता की मौत हो गई थी लेकिन उनके व्यवहार के चलते एक संस्था ने चार्ली और उनके भाई को पिता से अलग कराना पड़ा था. परेशानी भरे बचपन के बावजूद वे अमेरिकी सिनेमा में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे. चार्ली चैपलिन सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक होने के अलावा एक महत्वपूर्ण फिल्मनिर्माता, संगीतकार और संगीतज्ञ थे.
चैपलिन ने 1930 के दशक में बहुत ही रोचक और आकर्षक फ़िल्में की. सन 1931 में उनकी फ़िल्म ‘सिटी लाइट’ आई, इस फ़िल्म से उनको व्यावसायिक सफलता मिली और इस फ़िल्म में उन्होंने अपना खुद का संगीत शामिल किया. सन 1936 के आधुनिक समय में इन्होंने दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक ढांचे की स्थिति के बारे में एक कमेंटरी की, जिससे उनको बहुत प्रशंसा मिली. चैपलिन एक बहुत अच्छे निर्माता भी थे.
चैपलिन ने सन 1940 में आई फ़िल्म ‘दी ग्रेट डायरेक्टर’ में जोर से बात की, जिसमें हिटलर और मुसोलीनी की सरकारों का उपहास किया और कहा, ‘मैं शालीनता और दया की वापसी करना चाहता हूं.’ चैपलिन ने फ़िल्म की रिलीज के आसपास यह भी कहा कि ‘मैं सिर्फ एक इन्सान हूं, जोकि इस देश में वास्तविक लोकतन्त्र चाहता है.’
चार्ली चैपलिन के असल जिंदगी में बहुत से ड्रामे हुए, जिसके लिए वे प्रसिद्ध हो गए. उनके अपने साथ काम करने वाली बहुत सी अभिनेत्रियों के साथ प्रेम सम्बन्ध थे. कई शादियों और तलाक के बाद 1943 में चैपलिन ने 18 साल की ‘ऊना ओ’नील’ से शादी की, यह उनकी सफल शादी रही, इससे उनको 8 बच्चे हुए.
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1950-60 के दशक में लगभग पूरी दुनिया दो गुटों में बट गई थी. एक गुट का नेतृत्व अमेरिका और दूसरे का सोवियत संघ (रूस) कर रहा था. सोवियत संघ जहां साम्यवाद का समर्थक था तो अमेरिका पूंजीवाद का. ऐसे में अमेरिकी सरकार साम्यवाद का सफाया करने के लिए हर तरह की कोशिश कर रही थी.
वामपंथ का समर्थन करने के कारण चार्ली पर अमेरिका ने बैन भी लगा दिया था क्योंकि अमेरिका को शक था कि – चार्ली चैपलिन कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित हैं और वे समाज में लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करते हैं और यही बात अमेरिका सरकार को खटक रही थी. इसी कारणवश अपने देश की खुफिया एजेंसी एफबीआई को चार्ली चैपलिन की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारी जुटाने को कहा.
दरअसल, चार्ली चैपलिन ज्यादातर लंदन में निवास करते थे, इसलिए एफबीआई ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने का जिम्मा ‘एमआई 5’ को सौंप दिया. हालांकि एमआई 5 चार्ली चैपलिन के खिलाफ वैसा कोई सबूत जुटाने में नाकाम रही, जो यह साबित कर सके कि यह हास्य कलाकार अमेरिका के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं.
1953 में चार्ली चैपलिन अमेरिका से बाहर गए तो उन्हें दोबारा यहां नहीं लौटने दिया गया. आखिरकार वे स्विटजरलैंड में बस गए. उनकी मृत्यु 25 दिसंबर 1977 को 88 साल की उम्र में हुई थी.
फिल्म लाइम-लाइट के लिए चार्ली चैपिलन को 1973 में 21 साल बाद ऑस्कर अवॉर्ड दिया गया था. यह अवॉर्ड फिल्म के बेस्ट म्यूजिक के लिए था. लॉस ऐंजिलिस में यह फिल्म 1972 में रिलीज हुई थी. उससे पहले यहां फिल्म के रिलीज न होने की वजह से इसे पुरस्कृत नहीं किया जा सका था. 1975 में महारानी एलिजाबेथ सेकंड ने ‘नाइट’ की उपाधि दी थी.
महात्मा गांधी से मुलाकात चैप्लिन की जिंदगी के अहम पड़ावों में से एक है. मुलाकात के वक्त चार्ली चैप्लिन ने बापू से पूछा कि- आधुनिक समय में उनका मशीनों के प्रति विरोधी व्यवहार कितना जायज है ? इसके जवाब में गांधी जी ने कहा था कि – वो मशीनों के नहीं, बल्कि इस बात के विरोधी हैं कि मशीनों की मदद से इंसान ही इंसान का शोषण कर रहा है. इससे चैप्लिन इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस मुद्दे पर ‘टाइम मशीन’ नाम की एक फिल्म बना डाली.
उत्कट मानवतावादी और जनवादी, बीसवीं शताब्दी के महानतम सिने कलाकारों में से एक, चार्ली चैप्लिन के जन्मदिन के अवसर पर उनकी उक्ति – ‘इंसानों की नफरत ख़तम हो जाएगी, तानाशाह मर जायेंगे, और जो शक्ति उन्होंने लोगों से छीनी वो लोगों के पास वापस चली जायेगी और जब तक लोग मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी ख़त्म नहीं होगी.’
कम्युनिस्टों के बारे में चैपलिन ने कहा था, ‘Communists are ordinary people like ourselves who love beauty, who love life.’
चैपलिन का अमर प्रेम- वी आर ह्यूमन एंजेल्स
‘मुझसे शादी करो, ताकि मैं तुम्हें जीना सिखा सकूं और तुम मुझे मरना सिखा सको,’ यह वह मशहूर बात है जो हॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता चार्ली चैपलिन ने अपनी बेहद कम उम्र की प्रेमिका ओना ओ’नील को प्रपोज करते समय कही थी.
इस पर ओना, जो मशहूर नाटककार यूजीन ओ’नील की जीवंत और स्वतंत्र विचारों वाली बेटी थीं, ने उत्तर दिया, ‘नहीं चार्ली. मैं तुमसे शादी करूंगी ताकि मैं परिपक्व होना सीख सकूं और तुम्हें हमेशा के लिए युवा बने रहना सिखा सकूं.’
उनकी उम्र में 36 साल का अंतर था, जिसने सभी को चौंका दिया और काफी विवाद भी खड़ा किया. लेकिन ओना ने ‘हां’ कहकर सभी को हैरान कर दिया. यह उनकी सच्ची मोहब्बत थी, जिसने साबित कर दिया कि प्यार उम्र नहीं देखता.
गॉसिप और आलोचनाओं के बावजूद, ओना ने चार्ली की ज़िंदगी में फिर से खुशियों के रंग भरे, जबकि चार्ली ने उन्हें अपने अनुभव और ज्ञान से समृद्ध किया. दोनों ने मिलकर आठ बच्चों का स्वागत किया, जिससे उनकी ज़िंदगी और भी रंगीन और खुशहाल हो गई.
उनकी प्रेम कहानी हमें यह याद दिलाती है कि सच्चा प्यार हर बाधा को पार कर सकता है. उम्र ? वह सिर्फ एक नंबर है जब बात प्यार की हो. असली प्यार क्या है ? यह आत्माओं का जुड़ाव है, जो जन्मदिन या उम्र की गिनती से कहीं परे है. जब दो दिल एक लय पर धड़कते हैं, तो उम्र सिर्फ बैकग्राउंड म्यूज़िक की तरह होती है क्योंकि असली प्यार की दुनिया में आत्माओं का कोई झुर्रीदार चेहरा या सफेद बाल नहीं होता. आत्माएं बस होती हैं.
जनता के कलाकार चार्ली चैपलिन की जयंती पर
चार्ली ने ना केवल फिल्मों में फासीवाद-पूंजीवाद की मार खाते इंसान के चरित्र को जिया बल्कि हकीकत में भी वो मानवता की मुक्ति के लिए संघर्ष करते रहे. एक तरफ ‘मॉर्डन टाइम्स‘ में वो पूंजीवादी शोषण में बंधे मजदूर के मशीन में रूपांतरित होने की कथा कह रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ ‘द ग्रेट डिक्टेटर‘ में तानाशाह हिटलर का मजाक उड़ाते हुए उसके फासीवादी विचारों का विरोध कर रहे थे.
व्यवस्था द्वारा मानव जीवन में उपजी समस्याओं को हास्य में तब्दील कर उस पर चोट करने वाले महान कलाकार थे चैपलिन. ऐसे कलाकार अपने काम की वजह से हमेशा जीवित रहते हैं और जनता की बीच आदर से याद किए जाते हैं.
1942 में फासीवाद के ख़िलाफ़ कलाकारों के एक सम्मेलन में बोलते हुए चार्ली चैपलिन ने कहा था ‘मैं नागरिक नहीं हूं. मुझे नागरिकता-कागज़ात की जरूरत नहीं है. इस अर्थ में मैं किसी एक देश का देशभक्त नहीं हूं लेकिन मैं पूरी मानवता का प्रेमी हूं. मैं एक विश्व नागरिक हूं.’ इसलिए आज भी उनके विचार तानाशाहों को नागवार गुजरते हैं.
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