Home गेस्ट ब्लॉग तालकटोरा में मजदूरों और किसानों का अखिल भारतीय संयुक्त सम्मेलन और उसका घोषणा-पत्र

तालकटोरा में मजदूरों और किसानों का अखिल भारतीय संयुक्त सम्मेलन और उसका घोषणा-पत्र

33 second read
0
0
305
तालकटोरा में मजदूरों और किसानों का अखिल भारतीय संयुक्त सम्मेलन और उसका घोषणा-पत्र
तालकटोरा में मजदूरों और किसानों का अखिल भारतीय संयुक्त सम्मेलन और उसका घोषणा-पत्र

24 अगस्त, 2023 को तालकटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों/ फेडरेशनों/एसोसिएशनों और संयुक्त किसान मोर्चा के संयुक्त आह्वान पर आयोजित श्रमिकों और किसानों का यह अखिल भारतीय संयुक्त सम्मेलन, जो कामकाजी लोगों के बड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है, देश में 2014 से केंद्र सरकार द्वारा आक्रामक रूप से अपनाई जा रही विनाशकारी और कॉर्पाेरेट समर्थक नीतियों के कारण हमारे देश के श्रमिकों, किसानों और आम लोगों के सभी वर्गों के सामने उपस्थित चिंताजनक स्थिति का जायजा लेता है.

यह नीतियां मजदूर विरोधी, किसान विरोधी, जन विरोधी और राष्ट्र विरोधी हैं. ये नीतियां हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और लोगों की एकता और राष्ट्र की अखंडता के लिए विनाशकारी साबित हुई हैं. इस राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन इन विनाशकारी नीतियों से ‘लोगों और उनकी आजीविका को बचाने के लिए’ आने वाले समय में, संयुक्त और समन्वित कार्यक्रम तय करने के लिए किया गया है.

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (सीटीयू)/फेडरेशनों/एसोसिएशनों का यह मंच हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों-औपचारिक/संगठित और अनौपचारिक/असंगठित के श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करता है, और संयुक्त किसान मोर्चा सीमांत, छोटे और मध्यम सहित किसानों के बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है.

किसानों का अनुभव

खेती से लेकर बाजार तक की अंतहीन समस्याओं के कारण आत्महत्या करने के लिए मजबूर किसानों को कॉर्पाेरेट समर्थक तीन कृषि कानूनों से परेशान किया गया. बड़े कॉर्पाेरेट्स ने सरकारी स्वामित्व वाले गोदामों के स्थान पर निजी गोदाम बनाने के लिए जमीन के बड़े हिस्से का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया था. यह संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसानों का दृढ़ संघर्ष ही था, जो 13 महीने तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे रहे, सभी बाधाओं, कठोर मौसम, यहां तक कि कोविड महामारी, उत्पीड़न और सबसे अपमानजनक दुर्व्यवहार का सामना करते हुए (लखीमपुर खीरी की घटना को हम कभी नहीं भूलेंगे), जिसने केंद्र सरकार को अपनी साख बचाने के लिए पीछे हटने के लिए मजबूर किया.

लेकिन केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी और बिजली (संशोधन) विधेयक आदि पर किसानों को दिए गए लिखित आश्वासन का भी सम्मान नहीं किया गया है. सरकारी नीतियों के कारण किसानों पर कर्ज बढ़ गया है और किसानों से उनकी आय दोगुनी करने के सारे वायदे धरे के धरे रह गए हैं. पर्याप्त सिंचाई की कमी, गैर-कार्यशील फसल बीमा योजना, सार्वजनिक वितरण योजना को प्रत्यक्ष लाभ योजना से बदलना किसानों की परेशानियों को बढ़ाता है. किसानों द्वारा उत्पादन स्तर को ऊंचा करने के योगदान के बावजूद, कृषि अर्थव्यवस्था लगातार संकट का सामना कर रही है.

श्रमिकों का अनुभव

श्रमिकों को बढ़ती बेरोजगारी, नौकरी छूटने और सभी आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ रहा है. ‘व्यापार करने में आसानी के लिए’ श्रम संहिताओं (लेबर कोड) के माध्यम से कड़ी मेहनत से हासिल किए गए उनके सभी अधिकारों को खत्म किया जा रहा है. स्थायी नौकरियां तेजी से घट रही है. आउटसोर्सिंग, विभिन्न प्रारूपों में अनुबंध कार्य, निश्चित अवधि के रोजगार, गिग कार्य आदि के साथ-साथ कुल मिलाकर वास्तविक वेतन स्तर में भारी गिरावट अब सामान्य बात बनती जा रही है.

खेतिहर मजदूर जो देश की कृषि आबादी का एक प्रमुख घटक है, सबसे अधिक प्रभावित है और उन्हें पूर्ण गरीबी में धकेल दिया गया है, उन्हें किसी भी सामाजिक सुरक्षा से वंचित होकर बड़ी संख्या में कस्बों और शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक रही है, लेकिन सरकार, 2014 के बाद से, सरकार द्वारा स्वीकृत आईएलओ कन्वेंशनों का भी पालन नहीं कर रही है.

प्रथम कन्वेंशन सरकार को प्रतिदिन काम के घंटे 8 घंटे तक सीमित करने का आदेश देता है, लेकिन केंद्र सरकार और राज्य सरकारें विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारे पर इसे बढ़ाकर 12 घंटे कर रही हैं. कन्वेंशन 144 के अनुसार सरकार को वर्ष में कम से कम एक बार त्रिपक्षीय बैठक (सरकारी-नियोक्ता-कर्मचारी) बुलाना चाहिए, मगर अनेक बार मांग किए जाने के बावजूद, इस सरकार ने 2015 से ऐसी कोई बैठक नहीं बुलाई है.

सभी लेबर कोड ऐसे परामर्श के बिना पारित किए गए हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन श्रमिकों के लिए व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है (जून, 2023 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में अपनाया गया सर्वसम्मत कन्वेंशन 189), इस सरकार ने प्रतिष्ठानों का निरीक्षण भी बंद कर दिया है. पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) वापिस पाने के लिए और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस, पिछली एनडीए सरकार द्वारा 1999 से 2004 तक लाई गई) को रद्द करने के लिए सरकारी कर्मचारियों – केंद्र और राज्य दोनों – का संघर्ष राष्ट्रव्यापी स्वरुप ले चुका है. कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) को बहाल कर रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार ‘पेंशन समितियों’ द्वारा इस पर गौर करने का वादा करके बचने का रास्ता खोजने की कोशिश कर रही है.

सरकार की नीतियां

निजीकरण इस सरकार की नीतियों के केंद्र में है. जब बीपीसीएल, सीईएल, एयर इंडिया, पवन हंस आदि जैसी दुधारू गायों की बिक्री उस गति से नहीं बढ़ रही थी जैसा वे चाहते थे, सरकार राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) परियोजना लेकर आई, जिसमें लोगों के पैसे से निर्मित विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों को बड़े कॉर्पाेरेट्स को बिना किसी निवेश के पैसा कमाने के लिए सौंपने का रास्ता शुरू किया. हवाई अड्डे, राजमार्ग, बंदरगाह, रेलवे ट्रैक, स्टेशन सब कुछ बिकाऊ है.

शिक्षा का निजीकरण किया जा रहा है. पीएसयू बैंकों का विलय किया जा रहा है और निजीकरण की तैयारी की जा रही है. एलआईसी, जीआईसी को निजीकरण का लक्ष्य दिया गया है. यहां तक कि रक्षा उपकरण बनाने वाली 41 आयुध फैक्ट्रियों को भी उनके निजीकरण से पहले 7 निगमों में 2 बदल दिया गया है, जो स्पष्ट रूप से एक राष्ट्र-विरोधी कदम है, जिससे 80,000 कर्मचारी प्रभावित हुए हैं. सरकार की नजर रक्षा, रेलवे आदि की विशाल जमीनों पर है.

प्रधानमंत्री की विश्व मान्यता के रूप में जी-20 अध्यक्ष पद (जो भारत को उसकी बारी से मिला था) का धूमधाम से प्रदर्शन किया जा रहा है. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और आईटीयूसी के विरोध के बावजूद, सरकार एल-20 के प्रमुख के रूप में अपने पसंदीदा ट्रेड यूनियन को नामित करने के लिए आगे बढ़ी. एक तरफ कॉर्पाेरेट करों को कम किया जा रहा है और आम लोगों पर जीएसटी का अधिक बोझ और लगभग सभी सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं के उच्च उपयोगकर्ता शुल्क का बोझ डाला जा रहा है.

विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों को उनके हिस्से का धन नहीं दिया जा रहा है, जिसके कारण मनरेगा मजदूरी तथा योजना श्रमिकों के बकाया आदि का भुगतान नहीं हो रहा है. जानबूझकर बैंक डिफॉल्टरों और धोखेबाजों को ‘बातचीत और समझौते’ के लिए आमंत्रित किया जा रहा है, जबकि जमाकर्ताओं की जमा राशि के लिए केवल 5 लाख रुपये का बीमा किया जा रहा है.

पिछले 9 वर्षों के दौरान सार्वजनिक बैंकों द्वारा 14.56 लाख करोड़ रुपये माफ किए गए हैं, लेकिन यह सरकार किसानों का कर्ज माफ करने या उनकी कृषि उपज के लिए सी2+50% एमएसपी दरें प्रदान करने के लिए तैयार नहीं है. राष्ट्रीय कर्ज 153 लाख करोड़ रुपये हो गया है.

परिणाम

इन नीतियों के परिणामस्वरूप, गरीबी खतरनाक हद तक बढ़ गई है, मांग सिकुड़ गई है, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था लगातार धीमी हो रही है, देश के औद्योगिक आधार का विऔद्योगीकरण (deindustrialisation) और विनाश, एमएसएमई (MSME) का विनाश, आत्मनिर्भरता की हानि तथा लोगों पर बोझ बढ़ रहा है. बड़े कॉर्पाेरेट वर्ग की संपत्ति और आय में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और मेहनतकश लोगों की बड़ी संख्या दरिद्र हो गई है.

भारत में शीर्ष 10% और शीर्ष 1% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 72% और 40.5% हिस्सा है, जबकि निचले 50% (70 करोड़) लोगों की हिस्सेदारी घटकर महज़ 3% रह गई है. भारत भूख, गरीबी, बाल देखभाल, महिला सुरक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार आदि सभी सूचकांकों में नीचे गिर रहा है. हमें चिंता है कि हमारे बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है. यहां तक कि सरकारी रिक्तियां भी नहीं भरी जातीं, जो काम सरकार के अधिकार में हैं.

कई सार्वजनिक उपक्रमों को बंद किया जा रहा है या निजी पार्टियों को बेचा जा रहा है, जो तुरंत आकर रोजगार कम करना शुरू कर देते हैं, जिससे कई हजार कर्मचारी रोजगार से बाहर हो जाते हैं. संविदा कर्मचारी नौकरी छूटने और छंटनी के प्रमुख शिकार बन गए हैं. सरकारी अस्पतालों में कार्यरत स्वास्थ्य क्षेत्र के संविदा कर्मचारी (ठेका कर्मचारी) को पक्का करने के वादे के बाद भी अब नौकरी से निकाला जा रहा है. कोविड के बाद, जब जीवन को पटरी पर लाने के लिए नौकरियों की सख्त जरूरत है, ऐसे में कारखानों को अवैध रूप से भी बंद करने की अनुमति दी जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ रही है.

कोविड के बहाने रेलवे ने वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, दिव्यांगों, खिलाड़ियों को दी जाने वाली रियायतें वापस ले ली. कृषि गतिविधि, पशुपालन आदि पर आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जो हमारी ग्रामीण आबादी के विशाल बहुमत के भरण-पोषण में बड़ा योगदान देती है, मूल्य अस्थिरता और बिक्री की अनिश्चितता के कारण व्यवस्थित रूप से कुचली जा रही है.

देश के श्रम बाजार में अनौपचारिकता बढ़ती जा रही है. श्रमिक, मुख्य रूप से महिलाएं, दो वक्त की रोटी के लिए स्व-रोज़गार और घरेलू व्यापार अपनाती हैं. भारत में कृषि श्रम शक्ति में 33% और स्व-रोज़गार किसानों में 48% महिलाएं शामिल हैं. स्व-रोज़गार श्रमिकों और उनके व्यापार को सुविधा, सुरक्षा और विनियमन के लिए कोई कानून/नीति नहीं है. प्रवासी मजदूरों की हालत बिगड़ती जा रही है. डिजिटलीकरण के बड़े दावों के बावजूद उनके लिए कोई पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा नहीं है.

बीओसीडब्ल्यू में भारी उपकर (Cess) फंड एकत्र होने के बावजूद निर्माण श्रमिक सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. सामाजिक सुरक्षा को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निर्माण श्रमिकों के ऑफ़लाइन पंजीकरण और नवीनीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए और उपकर राशि से ईएसआईसी को उन पर लागू किया जाना चाहिए. यहां तक कि ई-श्रम पोर्टल के तहत पंजीकृत लोगों को भी कोई सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है. ये सभी वर्ग स्वास्थ्य देखभाल, जीवन और विकलांगता बीमा, वृद्धावस्था लाभ, मातृत्व, बाल देखभाल और शैक्षिक लाभ जैसी बुनियादी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के सही हकदार हैं.

राज्य सरकारों को श्रमिकों के व्यापार और कौशल में सुधार के लिए कार्य आधारित विशिष्ट योजनाओं का काम सौंपा जाना चाहिए. इससे अनौपचारिक कार्यों का औपचारिकीकरण सुनिश्चित होगा.

संघीय ढांचा और कानून का शासन खतरे में

केंद्र में सरकार की गतिविधियां हमारे देश के संघीय ढांचे के खिलाफ हैं. केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल खुले तौर पर केंद्र के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं, जिससे निर्वाचित राज्य सरकारों के लिए काम करना मुश्किल हो जाता है, अपनी पार्टी की सरकारें स्थापित करने के लिये निर्वाचित राज्य सरकारें गिराई जाती हैं. केंद्र में एकत्रित जीएसटी (GST) फंड को राज्य सरकारों के साथ साझा नहीं किया जाता है, जिससे उन्हें अपने उचित बकाया का दावा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ता है !

केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों (राष्ट्रीय राजधानी सेवा मामले का मामला) को पलटने के लिए अपने बहुमत का इस्तेमाल कर रही है, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का फैसला करने वाली 3 सदस्यीय समिति का पुनर्गठन कर रही है. मुख्य न्यायाधीश को हटाकर प्रधानमंत्री तथा विपक्ष के नेता के साथ सत्तारूढ़ दल के एक मंत्री को शामिल किया गया है. आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य (Evidence) अधिनियम को बदलना, जाहिर तौर पर ब्रिटिश काल के कानूनों को खत्म करना है, लेकिन वास्तव में उन्हें और भी सख्त बनाया जा रहा है, सीमावर्ती क्षेत्रों में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को 5 किमी से बढ़ाकर 50 किमी करना आदि…. सूची लंबी है.

विभाजनकारी साम्प्रदायिक नीतियां

लेकिन इससे भी अधिक अशुभ कुछ और भी घटित हो रहा है. यह सरकार और केंद्र में सत्तारूढ़ इस पार्टी के नेतृत्व वाली अन्य राज्य सरकारें, लूट-खसोट के अपने शासन को बनाए रखने के लिए, समाज में जहरीला सांप्रदायिक-विभाजनकारी ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए अति सक्रिय हो गई हैं और मजदूरों, किसानों और आम जनता को उनके ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए विभाजित करने और कॉर्पाेरेट्स को लाभ पहुंचाने के लिए एकजुट संघर्षों को कमजोर करने पर आमादा हैं. यह कॉर्पाेरेट स्वामित्व वाली मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया ट्रोल सेनाओं के सक्रिय समर्थन से किया जा रहा है.

मणिपुर में जारी जातीय (Ethnic) संघर्ष के कारण भारी जानमाल की हानि और महिलाओं पर अत्याचार, हरियाणा (नूंह) में हाल की सांप्रदायिक झड़पें और देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह की उकसावे की घटनाएं – सभी जगह एक ही विभाजनकारी-ध्रुवीकरण उन्मुख नीति, शासन द्वारा तैयार की गई हैं. समाज के सबसे दलित वर्गों पर लगातार अत्याचार (मध्य प्रदेश में एक आदिवासी व्यक्ति और यूपी में दो दलित लड़कों पर पेशाब करने की हाल की घटना) और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित महिला पहलवानों पर अत्याचार, जिन्होंने अपने उत्पीड़क, कुश्ती महासंघ के उस समय के अध्यक्ष के खिलाफ आवाज उठाई.

भारत में पिछले साल बिलकिस बानो के बलात्कारियों की समय से पहले रिहाई भी शासक-गुट द्वारा समाज पर रची जा रही उसी विभाजनकारी साजिश की क्रूर अभिव्यक्ति है. और उन सभी का उद्देश्य शोषण के खिलाफ आम लोगों के एकजुट संघर्ष को तोड़ना और बाधित करना है. चौंकाने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री राष्ट्र की सामूहिक चेतना को झकझोर देने वाली इन सभी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं.

लेखकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्ष के सदस्यों को केवल इस सरकार की आलोचना करने के लिए ईडी, सीबीआई, एनआईए जैसी सरकारी एजेंसियों की मदद से तथा यूएपीए और राजद्रोह अधिनियम आदि जैसे नापाक कानूनों के दुरुपयोग के माध्यम से निशाना बनाया जा रहा है. इसका उद्देश्य आतंक का माहौल बनाना, सभी विरोधों और असहमति को चुप कराना और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचाना है.

शासन की पूरी व्यवस्था जो लोगों के साथ-साथ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की लूट को बढ़ावा देती है और उसे कायम रखती है, इन कृत्यों से बेनकाब हो गई है. दृढ़संकल्पित संयुक्त संघर्ष इस सत्तारूढ़ गुट का सामना कर सकता है. संयुक्त किसान मोर्चा के संघर्ष की दुनिया में कोई मिसाल नहीं है. सरकार को अपने कृषि कानून वापस लेने पड़े. हमारे श्रमिक संगठनों के संयुक्त संघर्षों के माध्यम से, बीपीसीएल, सीईएल, कुछ इस्पात संयंत्रों आदि जैसे कई सार्वजनिक उपक्रमों में निजीकरण प्रक्रिया को रोका जा सका, हालांकि केवल कुछ समय के लिए.

विशाखापट्टनम स्टील प्लांट को निजीकरण से बचाना, लोगों का संघर्ष बन गया है. महाराष्ट्र, यूपी, पुडुचेरी, जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़ और हरियाणा में बिजली कर्मचारियों के एकजुट संघर्ष ने सरकारों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. अपने जुझारू एकजुट संघर्षों के माध्यम से, विभिन्न राज्यों में योजना कर्मियों ने अपने पारिश्रमिक में वृद्धि सहित अपनी कई मांगें हासिल की. हमें यहां ध्यान देना चाहिए कि सरकार द्वारा बिजली क्षेत्र में सभी तथाकथित सुधारों को जोर-शोर से आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य लागत-प्रतिबिंबित टैरिफ व्यवस्था स्थापित करने के लिए बिजली क्षेत्र में क्रॉस सब्सिडी और राज्य की भूमिका की सोच को समाप्त करना है. यह कृषि, एमएसएमई को बर्बाद कर देगा और बिजली को आम लोगों की पहुंच से बाहर कर देगा.

हमारे लिए क्या करना आवश्यक है

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को नवउदारवादी नीतियों के चलते संकट के द्वेष से बचाने के लिए आम लोगों के हाथों में अधिक पैसा देकर, जो हमारी राष्ट्रीय संपत्ति बनाते हैं और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को चालू रखते हैं, वैधानिक न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि और विस्तार करने और सार्वभौमिकरण करके, सरकारी वित्त पोषण के साथ सामाजिक सुरक्षा उपाय और ऐसे अन्य उपाय, जैसे कृषि आदानों सहित किसानों को सब्सिडी, राज्य के स्वामित्व वाली मंडियां, उचित एमएसपी आदि कृषक समुदाय के संकट को दूर करने के लिए आवश्यक उपाय हैं.

यह कॉर्पोरेट्स, अमीरों और सुपर रिच पर कर बढ़ाकर, संपत्ति कर और उत्तराधिकार कर को बहाल करके किया जा सकता है. नोबेल पुरस्कार विजेता भी यही सलाह दे रहे हैं. आवश्यकता इस बात की है कि श्रमिकों, किसानों और लोगों को जागरूक किया जाए कि उनका असली दुश्मन, उनके दुःखों और राष्ट्र के दुःखों का कारण, केन्द्र में कॉर्पाेरेट-सांप्रदायिक गठजोड़ द्वारा संचालित राष्ट्र-विरोधी विनाशकारी नीति शासन है. उनसे अपनी कॉर्पाेरेट समर्थक नीतियों को बदलने की उम्मीद नहीं की जा सकती. उन्हें सत्ता से बेदखल करना होगा.

हमारे संयुक्त और समन्वित संघर्षों को इतनी ऊंचाई पर विकसित करना है कि केंद्र या राज्य की कोई भी सरकार मजदूर विरोधी और किसान विरोधी नीतियों को लागू करने की हिम्मत न कर सके. मजदूर वर्ग और किसान आंदोलन को बड़े पैमाने पर लोगों के साथ मिलकर, अपनी अगुवाई में इस कार्य को अंजाम देना होगा. यह एक बहुत ही बड़ा कार्य है जिसके लिए हममें से प्रत्येक को अपने सामान्य अनुभव को आम जनता के लिए एक संदेश में बदलने के लिए अथक प्रयास करने की आवश्यकता होगी ताकि सत्ता में बैठे उन लोगों के खिलाफ माहौल बनाया जा सके जो देश और इसके लोगों को अभूतपूर्व संकटों और विनाश की ओर धकेल रहे हैं.

एक ओर केंद्रीय ट्रेड यू नियनों/फेडरेशनों/एसोसिएशनों के मंच और दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा के संयुक्त आंदोलन के संयुक्त और समन्वित संघर्षों के हमारे पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए, साथ ही विभिन्न कार्यक्रमों में एक-दूसरे का समर्थन करने के हमारे अनुभव को ध्यान में रखते हुए, श्रमिकों और किसानों का यह संयुक्त सम्मेलन आह्वान करता है कि हमारे देश के मेहनतकश लोगों को संयुक्त और समन्वित संघर्षों को उच्च स्तर तक ले जाना होगा.

हमें क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर इस सरकार की विनाशकारी नीतियों के खिलाफ अपनी लड़ाई बढ़ानी होगी. 2023 का पूरा वर्ष अभियानों और जुझारू आंदोलनों का वर्ष होना चाहिए, जिससे सभी स्तरों पर संघर्ष के उच्चतर स्वरूप सामने आएं. हम निम्नलिखित मांगों के चार्टर पर संयुक्त रूप से काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैंः

मांगों का चार्टर

  1. मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण हो, भोजन, दवाओं, कृषि-इनपुट और मशीनरी जैसी आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी हटाई जाए, पेट्रोलियम उत्पादों और रसोई गैस पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में काफी कमी की जाए.
  2. वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, दिव्यांगों, खिलाड़ियों को दी जाने वाली रेलवे रियायतें, जो कोविड के बहाने वापस ले ली गई थीं, बहाल की जाएं.
  3. खाद्य सुरक्षा की गारंटी और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सर्वव्यापी बनाया जाए.
  4. सभी के लिए मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और स्वच्छता के अधिकार की गारंटी हो. नई शिक्षा नीति, 2020 को रद्द करें.
  5. सभी के लिए आवास सुनिश्चित करें.
  6. वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) कड़ाई से लागू हो. वन संरक्षण अधिनियम, 2023 और जैव-विविधता अधिनियम और नियमों में संशोधन वापस लें, जो केंद्र सरकार को निवासियों को सूचित किए बिना जंगल की निकासी की अनुमति देते हैं.
  7. जोतने वाले को भूमि सुनिश्चित करें.
  8. राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन रु.26000/-प्रतिमाह की जाए.
  9. नियमित रूप से भारतीय श्रम सम्मेलन बुलाया जाए.
  10. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों व सरकारी विभागों का निजीकरण बंद हो, और राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) को ख़त्म करें. खनिजों और धातुओं के खनन पर मौजूदा कानून में संशोधन करें और स्थानीय समुदायों, विशेषकर आदिवासियों और किसानों के उत्थान के लिए कोयला खदानों सहित खदानों से लाभ का 50 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित करें.
  11. बिजली (संशोधन) विधेयक, 2022 को वापस लें. कोई प्री-पेड स्मार्ट मीटर नहीं.
  12. काम के अधिकार को मौलिक बनाया जाए. स्वीकृत पदों को भरें और बेरोजगारों के लिए नए रोजगार पैदा करें. मनरेगा का विस्तार और कार्यान्वयन (प्रति वर्ष 200 दिन और 600 रुपये प्रति माह मजदूरी). शहरी रोजगार गारंटी अधिनियम बनायें.
  13. किसानों को बीज, उर्वरक और बिजली पर सब्सिडी बढ़ाएं, किसानों की उपज के लिए एमएसपी / सी-2+50% की कानूनी गारंटी दें और खरीद की गारंटी दें. किसानों की आत्महत्याओं को हर कीमत पर रोकें.
  14. कॉर्पाेरेट समर्थक पीएम फसल बीमा योजना को वापस लें और जलवायु परिवर्तन, सूखा, बाढ़, फसल संबंधी बीमारियों आदि के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सभी फसलों के लिए एक व्यापक सार्वजनिक क्षेत्र की फसल बीमा योजना स्थापित करें.
  15. सभी कृषक परिवारों को कर्ज के जाल से मुक्त करने के लिए व्यापक ऋण माफी योजना की घोषणा करें.
  16. केंद्र सरकार द्वारा किसानों को दिए लिखित आश्वासनों को लागू करें, जिसके आधार पर ऐतिहासिक किसान संघर्ष को निलंबित कर दिया गया था. सभी शहीद किसानों के लिए सिंघू सीमा पर स्मारक, परिवारों को मुआवजा दें और उनके परिवारों का पुनर्वास करें, सभी लंबित मामलों को वापस लें, केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर मुकदमा चलाएं.
  17. चार श्रम कोड, व निश्चित अवधि के रोजगार कानून को वापस लें और काम पर समानता व सुरक्षा सुनिश्चित करें. श्रम का कैजुएलाइजेशन Casualisation), व ठेकाकरण बंद करें. असंगठित श्रमिकों की सभी श्रेणियों, जैसे कि घर-आधारित श्रमिक, फेरीवाले, कचरा बीनने वाले, घरेलू कामगार, निर्माण श्रमिक, प्रवासी श्रमिक, योजना श्रमिक, खेतिहर मजदूर, दुकानों/प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले, बोझा ढोने वाले, गिग श्रमिक, नमक बनाने वाले, बीड़ी मजदूर, टॉडी टैपर, रिक्शा ऑटो, टैक्सी आदि चलाने वाले, पूर्व-देशवासी श्रमिक, मछली पकड़ने वाले समुदाय आदि को पंजीकृत किया जाए। पेंशन सहित व्यापक सामाजिक सुरक्षा में पोर्टेबिलिटी गारंटी हो.
  18. निर्माण श्रमिकों को कल्याण निधि से योगदान के साथ ईएसआई कवरेज दें, ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी श्रमिकों को स्वास्थ्य योजनाओं, मातृत्व लाभ, जीवन और विकलांगता बीमा का कवरेज भी दें.
  19. घरेलू कामगारों और गृह-आधारित कामगारों पर आईएलओ कन्वेंशन की पुष्टि करें और उचित कानून बनाएं. प्रवासी श्रमिकों पर व्यापक नीति बनाएं, मौजूदा अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक (रोजगार का विनियमन) अधिनियम, 1979 को मजबूत करें और उनके सामाजिक सुरक्षा कवर की पोर्टेबिलिटी प्रदान करें.
  20. एनपीएस (नई पेंशन स्कीम) ख़त्म करें, ओपीएस (पुरानी पेंशन स्कीम) बहाल करें और सभी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करें.
  21. अत्यधिक अमीरों पर कर लगाएं, कॉर्पाेरेट टैक्स बढ़ाएं, संपत्ति कर और उत्तराधिकार कर पुनः लागू करें.
  22. संविधान के मूल मूल्यों – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, असहमति का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, विविध संस्कृतियों, भाषाओं, कानून के समक्ष समानता और देश की संघीय संरचना (Federal Structure) आदि पर हमला बंद करें.

राष्ट्रव्यापी कार्रवाई का आह्वान

उपरोक्त मांगों के लिए काम करने के अलावा, हम देश भर के सभी श्रमिकों और किसानों से आने वाले दिनों में निम्नलिखित संयुक्त और समन्वित कार्यों में भाग लेने की पुरजोर अपील –

  1. 3 अक्टूबर 2023 (लखीमपुर खीरी में किसानों का नरसंहार 2021) को काला दिवस के रूप में मनाते हुए कथित साजिशकर्ता, गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करने और मुकदमा चलाने की मांग की जाएगी. (कार्रवाई का स्वरूप बाद में घोषित किया जाएगा.)
  2. 26 से 28 नवंबर 2023 तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में, राजभवनों के सामने दिन-रात महापड़ाव संघर्ष का आयोजन करें. (26 नवंबर 2020 श्रमिकों द्वारा अखिल भारतीय आम हड़ताल का दिन था और किसानों द्वारा संसद तक ऐतिहासिक मार्च का पहला दिन था)
  3. दिसंबर 2023/जनवरी 2024 – देश भर में दृढ़ और व्यापक संयुक्त विरोध प्रदर्शन. (कार्रवाई का स्वरूप बाद में घोषित किया जाएगा.)

Read Also –

24 अगस्त को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में होगा संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय श्रमिक संगठनों का संयुक्त सम्मेलन
किसान आंदोलन : जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए मोर्चे से मौत तक
किसान आंदोलन भाग- 2 : तैयारी और उसकी चुनौतियां
किसान आन्दोलन को व्यापक बनाने की चुनौतियां

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

जाति-वर्ण की बीमारी और बुद्ध का विचार

ढांचे तो तेरहवीं सदी में निपट गए, लेकिन क्या भारत में बुद्ध के धर्म का कुछ असर बचा रह गया …