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फासीवाद को चारू मजूमदार के रास्ते पर चल कर ही हराया जा सकता है

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विनोद शंकर

तीन राज्यों के विधनसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद ज्यादातर प्रगतिशील लोगों का कहना है कि उत्तर भारत गोबर पट्टी है. यहां जनता को विकास नहीं सिर्फ़ धर्म से मतलब है इसलिए वो भाजपा को वोट दे रही है.

आज भी बहुत से पत्रकार, लेखक, कवि और प्रगतिशील लोगों के नजर में कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है. फासीवाद के खिलाफ़ लड़ाई कांग्रेस के नेतृत्व में ही लड़ी जा सकती है. इसलिए कांग्रेस और इण्डिया गटबंधन को अपना नैतिक समर्थन देना इन लोगों ने अपना कर्तव्य समझ लिया है.

लेकिन ये लोग भूल रहे हैं कि कांग्रेस भी तो एक फासीवादी पार्टी ही है. जितना जन आंदोलनों का दमन कांग्रेस ने किया है, क्या वो इसका सबूत नहीं है ? नक्सलबाड़ी आंदोलन के समय कांग्रेस ने हजारो नौजवानों की हत्या कर उनका लाश गायब कर दिया. आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन छीनने के लीए ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत किया, जिसके तहत लाखों सैनिक और अर्धसैनिक बलों को आदिवासी इलाकों में उतार दिया गया है, जो रोज ही आदिवासियों पर गोली चला रहे हैं. देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति भी कांग्रेस ही लायी, जिसका भयावह परिणाम आज देश के सामने है.

आज कांग्रेस और भाजपा क्या ? देश के किसी भी संसदीय पार्टी के आर्थिक नीतियों में कोई अंतर नहीं है. सब देश की विकास के लिए विदेशी पूंजी के पीछे भाग रहे हैं. सबको लग रहा है बिना विदेशी पूंजी निवेश के अपने राज्य और देश का विकास ही नहीं हो सकता है. लेकिन कोई भी पूंजीपति चाहे वो देशी हो या विदेशी वह पूंजी निवेश अपने मुनाफे के लिए करता है, जनता की भलाई के लिए नहीं. और उसके लिए ही मजदूरों और किसानों के लोकतांत्रिक अधिकारों का रात-दिन दमन किया जा रहा है.

दरअसल चुनाव जनता को बरगलाने का एक साधन मात्र है. मार्क ट्वेन ने तो कहां था, अगर वोट देने से कोई बदलाव होता तो वे हमें ऐसा करने ही नहीं देते. आज उनकी ये बात भारत के सन्दर्भ में तो सही ही है. चुनाव तो बस एक बहाना हो गया है, शोषक वर्ग को अपना पाप ढकने का और दलाल नेताओं को जनता के नाम पर कुछ भी करने का.

इसलिए चारू मजूमदार ने चुनाव का बहिष्कार कर, जनता को सीधे संघर्ष के मैदान में ला कर खड़ा कर दिया. उनको लग गया था कि इस चुनाव प्रकिया से सत्ता भले ही बदल जाए पर व्यवस्था नहीं बदलने वाला है. और जब तक व्यवस्था नहीं बदलेगा, तब तक जनता की दुःख और तकलीफ़ दूर नहीं होने वाला है. आज फासीवाद को चारू के रास्ते पर चल कर ही हाराया जा सकता है, चुनाव में भाग ले कर नहीं.

इतिहास भी गवाह है फासीवाद चुनाव के रास्ते सत्ता में आ तो जाता है लेकिन चुनाव के रास्ते सत्ता छोड़ता नहीं है. इटली और जर्मनी के फासीवादियों का इतिहास पूरी दुनिया के सामने है, जिससे हम सबक नही लेंगे तो ये हमारी मूर्खता और कमजोरी ही कही जायेगी. और फासीवाद के खिलाफ़ संघर्ष में जनता को नेतृत्व भी अपने हाथ में लेना होगा. किसी संसदीय पार्टी को इसका नेतृत्व देना आत्मघाती साबित होगा, जिसे आजादी की लड़ाई में कांग्रेस को नेतृत्व दे कर जनता देख चुकी है, जिससे जनता को सिर्फ़ धोखा ही मिला है.

जब तुम से छिन लिया जाएं
तुम्हारा परिवार
तुम्हारा दोस्त
और तुमको उन सब से
छुप-छुप के मिलना पड़े
तब समझना तुम युद्ध में उतर चुके हो

जब तुम्हें जिन्दा और मुर्दा
पकड़ने के लिए रख दिया जाए ईनाम
तब समझना तुम राज्य के लिए
खतरा बन चुके हो

तब तुम पीछे मुड़ के मत देखना
नहीं तो आगे बढने में
तुम्हारे पांव लडखडाने लगेगा

अब तुम कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो
इतिहास ने चुन लिया है
तुम्हें अपना नायक
तुम्हारे कंधे पर डाल दिया है
मानव मुक्ति की
ऐतिहासिक जिम्मेदारी

जैसे उसने कभी
मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, माओ
और भगत सिंह के कंधे पर डाला था
तुम भी अब उन सब में से एक हो
बस तुम में और उन सब में
समय और परिस्थिति का ही अंतर है

अगर तुम ये सब महसूस कर सको
तो खतरों से भरा ये
जीवन भी तुम्हें सुन्दर लगेगा
कोई भी कठिनाई
तुम्हारा रास्ता रोक नहीं पाएगा
और तुमसे ही सबको ताकत और प्रेरणा मिलेगा

इससे शानदार जीवन
और क्या हो सकता है
साथी ?
जिसके बारे में सिर्फ़ सोच कर ही
हम गर्व से भर जाते हैं
और तुम तो वो जीवन जी रहे हो
ऐसे ही जियो और पूरी ज़िन्दादिली के साथ जियो
पूरी कायनात तुम्हारे साथ है !

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