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मोदी को वोट देने के पहले कश्मीर की जनता के बारे में सोचो !

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मोदी को वोट देने के पहले कश्मीर की जनता के बारे में सोचो !
मोदी को वोट देने के पहले कश्मीर की जनता के बारे में सोचो !
जगदीश्वर चतुर्वेदी

हिंदी भाषी मध्यवर्ग, उसके धर्मनिरपेक्ष पहरूए खुदगर्जी के शिकार हैं. सवाल यह है कश्मीर में 70 लाख लोगों की सात महीने रोजी रोटी बंद रही लेकिन दिल्ली में मीडिया जश्न जारी रहा. क्या मीडिया जश्न मनाकर कश्मीर का भला हुआ ? क्या मीडिया जश्न में मोदी के जनविरोधी चरित्र को देख पाओगे ? अफसोस कि कश्मीर के 70 लाख लोगों के लिए मीडिया में कोई गुस्सा नहीं है. अधिकतर फेसबुक मित्रों ने कश्मीर पर लिखा तक नहीं ! दिल्ली में सदभाव है, लोग खीर खा रहे हैं, कह रहे हैं गंगा जमुनी तहजीब बची है ! हद है पाखंड की.

सवाल करो कश्मीर में क्या हो रहा है ? कश्मीर क्या दिल्ली का अंग नहीं है ? किस तरह के पाखंड में जी रहे हैं ! सत्ता के नग्नतम क्रूर और बहशी आतंक को देखकर भी विभ्रम में जी रहे हैं मध्यवर्ग के बजरबट्टू ! इस तरह के बजरबट्टुओं के कंधे पर सवार होकर तो मोदी सेवा ही हो सकती है. कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, वह जघन्य अपराध है और यह सब संविधान की आड़ में या उसके बहाने हुआ है. वह एक राज्य था. उसका राज्य का दर्जा मोदी-आरएसएस ने छीन लिया. वह आज तक अपना था, एक ही झटके में पीएम मोदी ने उसे अधिकारहीन बना दिया.

पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से कश्मीर लगातार बंद रहा है. किसी न किसी बहाने कश्मीर की अर्थव्यवस्था और जनजीवन को ठप्प करके रखा गया. संभवतः इतने बड़े पैमाने पर कश्मीर बंद कभी नहीं रहा. भारत विभाजन के समय भी इतने लंबे समय तक कश्मीर बंद नहीं रहा. राजनीतिक हृदयहीनता का आलम यह है कि कश्मीर की जनता से, उसके प्रतिनिधियों से किसी भी स्तर पर केन्द्र सरकार कोई बात नहीं की.

सात महीने 70 लाख लोग घरों में बंद पड़े हैं. हजारों बेगुनाह जेलों में ठूंस दिए गए जबकि आतंकी छुट्टा सांड़ की तरह घूम रहे हैं, उनको सेना और सरकार आज तक पकड़ नहीं पाई है. वे मौका लगाकर लगातार हमले कर रहे हैं. लाखों सैनिक लगाकर भी जब आतंकी हमले रूक नहीं रहे, 370 हटाकर भी आतंकी हमले रूक नहीं रहे, सात महिने बाजार नहीं खुले, स्कूल-कॉलेज बंद रहे. पूरा सिस्टम ठप्प पड़ा रहा. यह ब करके कश्मीर की जनता को अकल्पनीय कष्ट दिए गए.

शासन का मतलब है जनता की सेवा, जनता का सहयोग, जनता का समर्थन. कश्मीर की आम जनता ने पीएम मोदी की असंवैधानिक, मनमानी और अविवेकपूर्ण कश्मीर नीति को पूरी तरह ठुकरा दिया है. 370 हटाए जाने के साथ ही सातमहिने तक सब कुछ ठप्प रहा. कश्मीर से एक भी पैसा भारत सरकार को टैक्स का नहीं मिला. फूटी कौड़ी की बैंकों को आमदनी नहीं हुई है. कोई फरियादी सरकार के पास नहीं आया. इसके विपरीत सैंकड़ों कश्मीरियों ने सरकार के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे दायर किए.

सरकार के खिलाफ इतने मुकदमे पहले कभी दायर नहीं हुए. ये मुकदमे और उनकी संख्या बताती है कि कश्मीर की आम जनता ने मोदी सरकार की कश्मीर नीति को पूरी तरह ठुकरा दिया है. अब कश्मीर में सिर्फ मोदी हैं और आतंकी हैं, इन दोनों के बीच कश्मीर की जनता पिस रही है, उसकी पूरी अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी है. आरएसएस-मोदी ने सुनियोजित ढ़ंग से 370 हटाने के बहाने से कश्मीरियों की पूरी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है.

जाहिरा तौर पर इससे गरीब मुसलमान सबसे अधिक प्रभावित हुआ है, इससे कश्मीरी पंडित भी तबाह हुए हैं, जम्मू की अर्थव्यवस्था भी चौपट हुई है, लेह-लद्दाख-कारगिल की अर्थव्यवस्था चौपट हुई है. इससे एक तरह से मुसलमानों, हिंदुओं, बौद्धों, पंडितों, सिखों, आदिवासी, किसान और मजदूरों की पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी है.

जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की धुरी है कश्मीर की पर्यटन और कृषि अर्थव्यवस्था. सात महीने तक सरकार की ओर से कश्मीर बंद रहा. वहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह तबाह कर दी गयी. बाजार को वहां प्रतिदिन 140 करोड़ रूपये का नुकसान हुआ, तकरीबन इतना ही कृषि को प्रतिदिन नुकसान हुआ. वहीं दूसरी ओर सारे देश को कश्मीर विरोधी घृणा और असत्य कथाओं से सराबोर कर दिया गया.

कश्मीरी हिंसक नहीं होते, यह बात अब तक के इतिहास ने सिद्ध कर दिया है. इस दौरान जो चुनाव हुए उनमें हिंसा नहीं हुई और उसमें सारी जनता ने शांति से हिस्सा लिया. कुछ साल पहले ब्लॉक डवलपमेंट कौंसिल के चुनाव में भाजपा को बुरी तरह हराया. हाल में लेह-लद्दाख के चुनावों में भी भाजपा बुरी तरह हारी. हर एक तरह से 370 हटाए जाने का विरोध है.

ध्यान रहे बंदूकों के साए में उपरोक्त दोनों चुनाव हुए हैं और भाजपा-मोदी-आरएसएस बुरी तरह चुनाव हारे हैं. कहीं पर कोई भी एक भी हिंसा की वारदात नहीं हुई, जबकि समूचा विपक्ष जेल में बंद पड़ा है. कश्मीर में जनता के इस अहिंसक प्रतिवाद और अनंत कष्टों को आपको महसूस करना चाहिए. उनके पक्ष में आवाज उठानी चाहिए.
आज कश्मीरी कष्ट और जुल्म सह रहे हैं, कल आपके ऊपर जुल्म होंगे. मणिपुर में जुल्म जारी हैं. सारे देश की अर्थव्यवस्था चौपट पड़ी है. इस सबको मोदी के भाषणों के मोह के बाहर निकलकर देखो. आप कब तक मोदी-आरएसएस के असत्य प्रचार अभियान को सच मानकर चुपचाप तमाशा देखते रहेंगे ?

मोदी ने मुसलिम औरतों के लिए क्या और कितने दुःख दिए हैं. उसे कश्मीरी औरतों के संदर्भ में देखो, मणिपुर की औरतों के संदर्भ में देखो. 30 लाख से अधिक कश्मीरी औरतें-बहनें-मां और बच्चियां भूख, अभाव और आतंकियों के साए में जी रही हैं. अफसोस है कि आप इस सबको देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं, आप तो तीन तलाक पर मुसलिम औरतें के रखवाले की तरह बोल रहे थे, लेकिन कश्मीर में तो 30 लाख से अधिक मुसलिम औरतें जुल्म सह रही हैं, आपको कभी गुस्सा क्यों नहीं आया ! इतने सलेक्टिव कैसे हो सकते हो ? अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर इस कदर कैसे जी सकते हो ?

पीएम मोदी-आरएसएस खांटी देशी हिंदू राजनीति नहीं कर रहे, वे तो ग्लोबल प्रतिक्रियावादी, घनघोर अल्पसंख्यक विरोधी राजनीतिक गठजोड़ का हिस्सा हैं. उनकी वे ही चिन्ताएं हैं जो सारी दुनिया में प्रतिक्रियावादी राजनीतिक दलों की हैं. वे भारत में अकेले नहीं हैं, उनके भाई बंधु देश-विदेश दोनोंं जगह हैं. इन सबकी राजनीतिक मां एक है. यह वही मां है जिसके विचारों के गर्भ से हिटलर-मुसोलिनी- तोजो-फ्रेंको जन्मा था. ये भारत मां की संतान नहीं हैं. ये तो उस बर्बर मां की संतान हैं, जिसने सारी दुनिया में सबसे घृणित और बर्बर राजनेता दिए हैं.

जाहिर है मुसोलिनी-हिटलर-तोजो आदि फासिस्ट भी तो किसी मां के गर्भ से ही जन्मे थे. उन्होंने मां की कोख को लज्जित किया था. हर औरत उनसे नफरत करती थी. सारी दुनिया में औरतों पर फासिस्टों ने अकथनीय जुल्म ढाए थे. यह कैसे संभव है औरतों पर इटली-फ्रांस-सोवियत संघ-जर्मनी आदि देशों में फासिस्ट नेता जुल्म ढाएं और भारत में जुल्म न करें !

भारत में भी लंबी कहानी है फासिस्टों के द्वारा औरतों के खिलाफ किए गए अपराधों की. इस समय जुल्म की चक्की कश्मीरी औरतों पर चल रही है. वहां हर औरत पीडित है सत्ता के आतंक-जुल्म से. दूसरी ओर उनको आए दिन आतंकियों के जुल्म भी सहने पड़ रहे हैं. मुसलिम औरतों के ऊपर जो जुल्म हो रहे हैं, उनको आप कश्मीर में 370 हटाने का आड़ में जायज नहीं ठहरा सकते. तुमने जो 370 हटाई इस पर आपत्ति नहीं है आपत्ति यह है कि कश्मीरियों को इसके लिए राजी नहीं किया, संवैधानिक प्रक्रियाओं का ख्याल नहीं रखा.

कश्मीर में सीधे फासिज्म से दो-चार है वहां की आम जनता. उस पर अकथनीय जुल्म हो रहे हैं. धारा 370 हटाए जाने के सात महीने तक बच्चे स्कूल नहीं जा पाए, परिवहन बंद, सड़कें श्मशान, बाजार बंद. यह सब क्या है, यह भी नहीं मालूम कि इन दिनों से वहां आम जनता कैसे गुजारा कर रही थी ? दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले वकील-मजदूर आदि किस तरह जिंदा रहे ? जब दुकानें बंद हैं तो वे खा क्या रहे थे ? इस बीच जो लोग मारे गए या मर गए वे कैसे दफनाए गए ? जो पैदा हुए वे किस अवस्था में पैदा हुए ? किसी भी चीज का हिसाब नहीं है. पूरा कश्मीर यातना शिविर बना दिया गया. इसके लिए एकमात्र जिम्मेदार है पीएम मोदी और आरएसएस.

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