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जब सरकार न्याय और सच्चाई की बातें बनाती है तो मैं चुपचाप मुस्कुरा कर चुप हो जाता हूं-हिमांशु कुमार

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Himanshu Kumarआज जब सरकार न्याय और सच्चाई की बातें बनाती है तो मैं चुपचाप मुस्कुरा कर चुप हो जाता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि जब कोई सच्चाई और न्याय के लिए आवाज़ उठाता है तो यही सरकार उस पर हमला कर देती है. आदिवासियों पर सरकारी हमले आज भी उसी तरह से जारी हैं. हमारे ऐशो-आराम के लिए हमारे ही समाज के किन लोगो को मारा जा रहा है, यह हमें कभी पता नहीं चलेगा

-हिमांशु कुमार

आठ तारीख महीना जनवरी का. इसी दिन सन दो हज़ार नौ में छत्तीसगढ़ ज़िले में एक ऐसी घटना घटित हुई थी, जो मेरे मन से कभी नहीं मिटेगी.

ये तब की बात है जब मैं दंतेवाड़ा में ही काम करता था. सरकार चाहती थी कि आदिवासी गांव खाली कर के भाग जाएं ताकि आदिवासियों की ज़मीनें अमीर उद्योगपतियों को दी जा सकें. सरकार बार-बार आदिवासियों को डराने के लिए गांव पर हमले करती थी.

आठ जनवरी की सुबह सरकारी विशेष पुलिस अधिकारियों ने सिंगारम गांव पर हमला किया. चौबीस लड़के-लड़कियों को पकड़ लिया गया. लड़कियों को एक तरफ ले जाकर बलात्कार कर के चाकू से गोद कर मार दिया गया. लड़कों को एक लाइन में खड़ा किया गया. लड़कों पर फायरिंग कर दी गयी. उन्नीस आदिवासी मारे गए. पांच आदिवासी बच कर भागने में सफल हो गए.

बचे हुए आदिवासी मेरे पास पहुंच गए. मैंने मीडिया के मेरे दोस्तों को इसके बारे में सूचना दी. तहलका पत्रिका से पत्रकार अजीत साही दंतेवाड़ा आ गए. हमारे साथी गांव में पहुंचे. आंध्र प्रदेश से भी पत्रकार गांव में आ गये. हमने मारे गए लोगों के रिश्तेदारों को अपने आश्रम में बुलाया.




पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया. सरकार ने कहा कि यह तो नक्सलवादियों के साथ मुठभेड़ थी, जिसमें नक्सलवादी मारे गए हैं. हम आदिवासियों को लेकर हाई कोर्ट पहुंच गए. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज़ करवाया गया.

हमने सरकार से कोर्ट में पूछा कि आपका कहना है कि मारे गए लोग नक्सली थे तो पहले तो आप यह बताइये कि अगर वे नक्सली थे तो, मुठभेड़ में तो वो आप पर गोली चलते हैं, आप उन पर गोली चलाते हैं लेकिन इस मामले में आपने लड़कियों को चाकू कैसे मारा ? हमने पूछा कि अच्छा आपने इनके पास से कौन से हथियार बरामद किये ?

पुलिस ने पांच सड़ी हुई नाली वाली पुरानी बंदूकें अदालत को दिखाई. हमने पूछा कि आपने छत्तीसगढ़ राज्य बनने से लेकर आज तक कितने हथियार बरामद किये हैं, उनकी सूची दीजिए. पुलिस बेचारी कहां से सूची देती ? उसके पास तो वही पांच-सात बंदूकें थीं, जिन्हें हर फर्ज़ी मुठभेड़ के बाद अदालत को दिखा दिया जाता था. पुलिस अदालत में फंस चुकी थी.




हमने पूछा कि आपने मुठभेड़ के बाद इन लोगों का पोस्टमार्टम क्यों नहीं करवाया ? सरकार ने कहा कि नक्सली अपने साथियों की लाशें उठा कर ले जाते हैं. हमने अदालत से कहा कि पुलिस झूठ बोल रही है. मारे गए लोग आदिवासी थे. उनकी लाशें कोई नक्सली नहीं ले गए. लाशें तो गांव में ही आदिवासियों द्वारा दफन करी गयी हैं.

अदालत ने आदेश दिया कि हमारी संस्था पुलिस को मारे गए लोगों की कब्रें दिखाए और पुलिस को आदेश दिया कि वह मारे गए लोगों की लाशें खोद कर उनका पोस्टमार्टम करवाए.

तेईस दिन के बाद लाशें फिर से खोदी गयीं. सारी मीडिया के सामने पोस्टमार्टम किया गया. एक लड़की की गर्दन की हड्डी कटी हुई थी. उसकी मां ने कहा कि बलात्कार के बाद उसके गले में चाकू मारा गया था.

मैंने पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर से पूछा कि आप इस कटी हुई गर्दन की बात भी अपनी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखेंगे ना ? सरकारी डाक्टर ने कहा क्यों नहीं लिखेंगे ? लेकिन डाक्टर ने इस बात को पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नहीं लिखा. सरकार अब हमसे बुरी तरह चिढ़ गयी थी.




सरकार ने हमें सबक सिखाने का फैसला किया. एक दिन सुबह एक हज़ार सिपाही मशीनगनयुक्त गाडियां और चार बुलडोजर लेकर हमारे आश्रम में आ गए. दो घंटे में अट्ठारह साल पुराना हमारा आश्रम धूल में मिला दिया गया. पिछले साल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क़ुबूल किया कि यह मुठभेड़ फर्ज़ी थी.

कहने की ज़रूरत नहीं है कि सरकार ने इस मामले में किसी को कोई सज़ा नहीं दी. आरोपी आज भी खुलेआम दूसरे आदिवासियों पर हमला कर रहे हैं. नए बलात्कार कर रहे हैं. अदालत ने अभी तक इस मामले में कोई फैसला नहीं दिया.

आज जब सरकार न्याय और सच्चाई की बातें बनाती है तो मैं चुपचाप मुस्कुरा कर चुप हो जाता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि जब कोई सच्चाई और न्याय के लिए आवाज़ उठाता है तो यही सरकार उस पर हमला कर देती है. आदिवासियों पर सरकारी हमले आज भी उसी तरह से जारी हैं. हमारे ऐशो-आराम के लिए हमारे ही समाज के किन लोगो को मारा जा रहा है, यह हमें कभी पता नहीं चलेगा.

  • हिमांशु कुमार





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