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मोदी में भाजपा : हिन्दूराष्ट्र की स्थापना के लिए संकल्पित वोटर ?

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मोदी में भाजपा : हिन्दूराष्ट्र की स्थापना के लिए संकल्पित वोटर ?

Vinay Oswalविनय ओसवाल, वरिष्ठ पत्रकार
1952 में हुए पहले मतदान से लेकर कुल 16 बार हो चुके लोकसभा के चुनाव में किसी पार्टी को 287 सीटों पर, हर सीट पर अलग-अलग पड़े कुल वोटों का आधे से अधिक वोट मिला है क्या ?

हिन्दूराष्ट्र की स्थापना के लिए संकल्पित वोटरों का मानना है कि भाजपा में मोदी से पूर्व के सब नेता अब तक ‘ना-मर्द’ (बुजदिल) ही साबित हुए हैं. उन्हें पूर्ण विश्वास है कि इस बार ‘मोदी’ इस मामले में ‘मर्द’ साबित होंगे. संविधान से अनुछेद 370 हटेगा, नागरिकता रजिस्टर में हर नागरिक का पंजीकरण – पूर्वोत्तर राज्यों की तरह किया जाना – पूरे देश में लागू किया जाएगा, अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा, कश्मीर से मार-मार कर भगाए गए ब्राह्मणों को वहां फिर से बसाया जाएगा, वहां अनुच्छेद 35A समाप्त किया जाएगा, वगैरह-वगैरह कामों को करने के लिए वह भाजपा को वोट देकर अजमा चुके हैं, इसलिए इस बार उन्होंने भाजपा को नहीं ‘मोदी’ को वोट दिया है. गौरतलब है यह भावना देश के 12 राज्यों में प्रचण्ड रूप से उभर कर सामने आई है. देखें, मेरा यह चुनावी विश्लेषण :




राष्ट्रवादी/हिंदूवादी पार्टी भाजपा को हिन्दूराष्ट्र स्थापना को संकल्पित वोटर कई बार अजमा चुके हैं और हर बार मायूसी के सिवा कुछ नहीं मिला. मोदी जी ने मतदाताओं की भावनाओं की नब्ज को भली-भांति टटोला और समझा. इस बार मोदी जी ने भाजपा को नेपथ्य में धकेल, मतदाताओं से सीधे अपने नाम पर वोट मांगे हैं. उन्होंने वोटरों से बड़े साफ शब्दों में कहा कि – ‘फूल के निशान का बटन दबाने से आपका वोट सीधे मुझे (मोदी) मिलेगा.’

एक अनुमान के अनुसार देश के 90 करोड़ मतदाओं में से लगभग 54 करोड़ (60%) ने वोट डाले हैं. इन में से लगभग 30 करोड़ से अधिक वोट अकेले ‘मोदी’ को मिला है.

इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी जी ने वोट अपनी पार्टी के नाम पर नहीं, अपने नाम पर मांगा और वोटरों ने उन्हें ही वोट दिया. न उम्मीदवार को, न पार्टी को.




लोकसभा चुनाव (2019) के आंकड़े बोलते हैं कि  –  22 राज्यों में से 12 राज्यों की 320 सीटों में से 287 सीटों पर
मत डालने वालों के आधे से अधिक ने ‘मोदी’ ही ‘मोदी’ को जिता कर भेजा है.

पांच राज्यों राजस्थान (25), गुजरात (26), हिमाचल (4),और उत्तराखण्ड (5) की कुल 60 सीटों पर ‘मोदी’ को कुल हुए मतदान का 60 प्रतिशत से अधिक मत मिला और सभी 60 सीटों पर ‘मोदी’ ही ‘मोदी’ जीते.

तीन राज्यों की कुल 50 सीटों – छत्तीसगढ़ (11), मध्यप्रदेश (29), हरियाणा (10) – में से 47 सीटों पर ‘मोदी’ 50 प्रतिशत से अधिक (लेकिन 60 प्रतिशत से कम वोट मिले) वोटों से जीते हैं.

पांच राज्यों की 210 सीटों – उत्तरप्रदेश (80), महाराष्ट्र (48), बिहार (40), कर्नाटक (28), और झारखण्ड (14) – में से 180 सीटों पर कुल पड़े वोटों का आधे से अधिक ‘मोदी’ या ‘मोदी मुखौटाधारियों’ को  मिला है.




इस प्रकार उपरोक्त 12 राज्यों की कुल 320 सीटों में से 287 सीटों पर डाले गए वोटों का 50 प्रतिशत से अधिक वोट ‘मोदी’ को वोट मिला है. (लोकसभा में देश के 29 राज्यों और सात केंद्रशासित कुल 36 राज्यों में सीटों की संख्या 543 है).

इसके अतिरिक्त तीन राज्यों गोआ (2), पश्चिम बंगाल (42), और जे एंड के (6) की 50 सीटों पर ‘मोदी’ को 40 प्रतिशत से ज्यादा लेकिन 50 प्रतिशत से कम वोट मिला और उसने 21 सीटें जीती.

पंजाब (13), उड़ीसा (21) की कुल 34 सीटों पर ‘मोदी’ को 40 प्रतिशत से कम परन्तु 30 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिला और उसे 12 सीटें मिली.

तमिलनाडु (39) और तेलंगाना (17) इन दो राज्यों की 56 सीटों में ‘मोदी’ को मात्र पांच सीटों पर ही सफलता मिली. उसका वोट प्रतिशत भी 19 से ज्यादा और 30 से कम ही रहा.




वहीं आंध्रा (25), केरल (20), नागालैंड (1), मेघालय (2),  मिजोरम (1) पांच ऐसे राज्य हैं, जहां की 48 सीटों पर ‘मोदी’ को एक भी सीट नही मिली है.

पाठक जरा ठण्डे दिमाग से सोचें कि वर्ष 1952 में हुए पहले मतदान से लेकर कुल 16 बार हो चुके लोकसभा के चुनाव में किसी पार्टी को 287 सीटों पर, हर सीट पर अलग-अलग पड़े कुल वोटों का आधे से अधिक वोट मिला है क्या ? यह बात मैं बिना आंकड़े टटोले स्मृति के आधार पर कह रहा हूंं. 1984 में कांंग्रेस को 404 सीटों पर (लगभग 49 प्रतिशत  वोट मिले थे) विजय तो प्राप्त हुई थी, पर शायद तब भी कांंग्रेस यह रिकॉर्ड नही बना पाई थी.




(सुधी पाठकों, पत्रकार साथियों को यदि इस तथ्य के विपरीत कुछ तथ्य मिले तो वह कॉमेंट बॉक्स में अवश्य दें, उनका आभारी होऊंगा).

उम्मीद है मेरे इस लेख के निष्कर्षों से बहुत से पाठक सहमत होंगे. परंतु ‘मोदी’ आईटी सेल नहीं चाहता कि यह निष्कर्ष आमजन के बीच विमर्श का विषय बने. उसकी रणनीति है कि जनभावनाओं को उभारने और लक्ष्य प्राप्ति के बाद इसे पूरी तरह अनुपयोगी बना दिया जाय और जनविमर्श से बाहर कर दिया जाय. इसके लिए ‘मोदी’ आईटी सेल सोशल मीडिया पर एक मुहिम चला रहा है, इस सम्बंध में वरिष्ठ पत्रकार गिरीश मालवीय की फेसबुक वाल से उनकी पोस्ट यहांं पाठकों के साथ साझा कर रहा हूंं.




‘बीजेपी की आई-टी सेल का अगला टास्क यह है कि मोदी की जीत का कारण मोदी के तथाकथित ‘विकास’ को बताया जाए, और कुछ महीने तक हिन्दू-मुस्लिम जैसे संवेदनशील विषयों से दूर रहा जाए . जबकि यह सिद्ध हो चुका है कि बीजेपी सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के ध्रुवीकरण के मुद्दे पर ही चुनाव जीती है लेकिन इसे सबसे मुख्य वजह बताने वालो को डिमोरोलाइज किया जाए.

आज सुबह से बहुत सी वाल पर चलती हुई बहस को ध्यान से देखा है तब यह बात समझ में आयी है. अचानक से जो फेसबुक की आई डी मतदान के पहले हिंदू-मुस्लिम के बीच विद्वेष फैलाने वाले मीम चला रही थी, वो आज सुबह से यह बताने में लगी हुई हैं कि, ‘मोदी की यह जीत घर-घर में गैस सिलेंडर देने, और शौचालय बनवाने से आई है… इसमें धार्मिक ध्रुवीकरण का कोई स्थान नही है.’




‘यह मोडस ऑपरेंडी इतने अच्छे से संचालित होती है कि प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-छोटे कार्यकर्ता को क्या बात करनी है, यह बता दिया जाता है. कल प्रधानमंत्री का भाषण सुन लीजिए और आज आ रहे बीजेपी समर्थकों के कमेंट को ध्यान से देख लीजिए.

‘तथाकथित विकास का ढोल पीटने से दोहरा फायदा है. आर्थिक मंदी जो आ चुकी है, उसके प्रभाव को कम करके बतलाया जा सकता है. दूसरा, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मोदी की छवि को डिवाइडर इन चीफ की जगह ‘विकास पुरुष’ के रूप में पेश किया जा सकता है.




‘यकीन न आए तो बीजेपी आईटी सेल के कार्यकर्ताओं की पोस्ट देख लीजिए. एक में भी हिन्दू-मुस्लिम वाली बात आपको देखने को नहीं मिलेगी.’

अंत में, लोकसभा चुनाव-2019 के परिणामों के प्रमुख निहितार्थ जो बहुत से हिंदूवादी मतदाताओं से बातचीत करने के बाद मेरे सामने आए हैं, यहां दे रहा हूंं –

1. मोदी, हिन्दुराष्ट्र निर्माण के लिए आगे बढ़ें.

2.संविधान में वर्णित धर्मनिर्परक्षता स्वीकार नहीं.

3. राज्य द्वारा (सरकारों) हिंदुओं के धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों, भावनाओं का पोषण करने और सम्मान करने की नीति सही.




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