मोदी का अघोषित आपातकाल जिसमें उसने खुलेआम देश की जनता के खिलाफ यु़द्ध छेड़ दिया है और देश की तमाम दलित, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों पर अपने गुंडों को छोड़ दिया है. अंधराष्ट्रवादी ब्राह्मणवादी भ्रष्ट मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को एक ओर पाताल में धंसा दिया है तो वहीं लाखों करोड़ रूपये देश के नामी धन्नासेठों को बतौर उपहार में दे दिया है, जिसकी पूर्ति के लिए पहले तो नोटबंदी जैसे काले-कानून लाकर लाखों करोड़ का घोटाला किया. जब इससे भी आपूर्ति नहीं हो सकी तब देश की तमाम नामी-गिरामी संस्थानों, इमारतों, एयरलाईंसों, रेलवे स्टेशनों को बेच डांला. मोदी सरकार के इस कुतृत्यों के खिलाफ जब कहीं से आवाज उठी तब उसने इस आवाज को गोलियों से छलनी करने के लिए गुंडों की फौज खड़ी कर ली. आज मोदी सरकार उद्योगपतियों की रखैल, ब्राह्मणवादी गुंडों की फौज बनकर रह गयी है, इसमें किसी शर्म के बजाय छाती ठोक कर मंचों से मोदी खुलेआम इसकी घोषणा भी करते हैं.
भीमा-कारेगांव, जो दलितों के आजादी की पहली किरण की तरह फूटी है, का दमन करने में मोदी सरकार वगैर किसी लज्जा के खुलेआम लगी हुई है. मोदी की यह ब्राह्मणवादी धन्नासेठों की रखैल सरकार दलितों के किसी भी आकांक्षा के दमन में सरकारी फौजों के अतिरिक्त अपने गुंडों का मनोबल एक ओर जहां बढ़ा रही है, वहीं विरोधी आवाजों का दमन करने में जुटी हुई है. वकील, शिक्षक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, प्रख्यात कवि और बुद्धिजीवी वरवर राव, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, बिजनेस ऑर्गनाइजेशन के वर्णन गोंजालविस और लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा को छापेमारी के बाद पुलिस ने बिल्कुल ही फर्जी मामलों के आधार पर विभिन्न स्थानों से गिरफ्तार कर लिया. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें एक हफ्ते 6 सितंबर तक हाउस अरेस्ट का फैसला सुनाया है.
कोर्ट के नजरबंदी के आदेश के बाद सुधा भारद्वाज ने मीडिया से कहा कि ‘मुझे लगता है जो भी वर्तमान शासन के खिलाफ है, चाहे वह दलित अधिकारों, जनजातीय अधिकारों या मानवाधिकारों की बात हो, विरोध में आवाज उठाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के साथ इसी तरह व्यवहार किया जा रहा है.’ सुधा ने कहा, ‘मेरा मोबाइल, लैपटॉप और पेन ड्राइव जब्त कर लिए गए हैं. मेरे जीमेल और ट्विटर अकाउंट के पासवर्ड भी ले लिए गए हैं.’ वहीं हाउस अरेस्ट किए गए और जिनके घर छापे पड़े उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि ‘ये छापे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला हैं और आपातकाल की यादें ताजा करते हैं.’
सुधा भारद्वाज की बेटी अनु भारद्वाज के मुताबिक ‘जब उनकी मां सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार करने पुलिस आई तो उस दल में दस लोग शामिल थे. उनमें से हरियाणा पुलिस से केवल एक महिला कांस्टेबल थी, अन्य महाराष्ट्र पुलिस से थे. जब सुधा भारद्वाज ने उनसे तलाशी वारंट दिखाने को कहा तो उन्होंने कहा कि वारंट उनके पास नहीं है’. गौरतलब है कि मानवाधिकार वकील सुधा भारद्वाज छत्तीसगढ़ में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. वह 29 साल तक वहां रही हैं और दिवंगत शंकर गुहा नियोगी के छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की सदस्य के तौर पर भिलाई में खनन श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ चुकी हैं. जब वह आईआईटी कानपुर की छात्रा थीं, तब पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में बिताए दिनों में श्रमिकों की दयनीय स्थिति देखने के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के साथ 1986 में काम करना शुरू किया था. नागरिक अधिकार कार्यकर्ता एवं वकील सुधा जमीन अधिग्रहण के खिलाफ भी लड़ाई लड़ती रही हैं. फिलहाल सुधा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की छत्तीसगढ़ इकाई की महासचिव हैं.
कल 28 अगस्त की सुबह 6 बजे महाराष्ट्र पुलिस ने आदिवासी भूमि अधिकारों के लिए चलाए जा रहे आंदोलन ‘पत्थलगड़ी’ में सक्रिय स्टैन स्वामी के आवास पर छापा मारा. महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने इसी के साथ भीमा कोरेगांव मामले में अरुण फरेरा के पुणे स्थित आवास पर छापेमारी की, जबकि सुसान अब्राहम और वर्णन गोंजाल्विस के मुंबई आवास पर पुलिस ने रेड मारी.
मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के दिल्ली आवास, वकील और ट्रेड यूनियन नेता सुधा भारद्वाज के हरियाणा स्थित फरीदाबाद के आवास, आईआईटी प्रोफेसर और लेखक आनंद तेलतुंबड़े के गोवा स्थित आवास पर छापेमारी हुई. आंध्र प्रदेश के चर्चित जनकवि वरवर राव, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता नसीम, नमस्ते तेलंगाना के पत्रकार क्रांति टेकुला के हैदराबाद स्थित आवास, वरवर राव की बेटी अनाला के घर और हिंदू के पत्रकार के. वी. कुमारनाथ के यहां भी पुलिस ने लगातार छापे मारे.
देश की आम जनता के जीने के अधिकारों को छीनने जैसा घिनौना कृत्य करने वाली कॉरपोरेट घरानों की रखैल यह मोदी सरकार अब विरोध पर खुला हमला कर रही है, जिसे गौतम नवलखा ने आसान शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया है – “यह समूचा केस इस कायर और प्रतिशोधी सरकार द्वारा राजनीतिक असहमति के खिलाफ़ की गई राजनीतिक साजिश है जो भीमा कोरेगांव के असली दोषियों को बचाने के लिए जी जान लगा रही है और इस तरह से उसने अपने उन घोटालों और नाकामियों की ओर से ध्यान बंटाने का काम किया है, जो कश्मीर से लेकर केरल तक फैली हुई हैं.
एक राजनीतिक मुकदमे को राजनीतिक तरीके से ही लड़ा जाना चाहिए और मैं इस अवसर का स्वागत करता हूं. मुझे कुछ नहीं करना है. अपने सियासी आकाओं की शह पर काम कर रही महाराष्ट्र पुलिस का असल काम है कि वह मेरे खिलाफ और मेरे संग गिरफ्तार हुए साथियों के खिलाफ अपना केस साबित करे. हमने पीयूडीआर में रहते हुए बीते चालीस साल के दौरान सामूहिक रूप से निडर होकर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी है और मैं, पीयूडीआर का हिस्सा होने के नाते ऐसे कई मुकदमे कवर कर चुका हूं. अब मैं खुद किनारे खड़े रह कर एक ऐसे ही सियासी मुकदमे का गवाह बनने जा रहा हूं.”
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