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यह सरकार है या डाकू

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[ प्रस्तुत आलेख माओवादियों द्वारा 30 जून, 2018 ई. को जारी किया एक पर्चा है, जिससे सशस्त्र आन्दोलन के प्रति उनकी दृढ़ता का पता चलता है. इसके साथ ही इस आलेख से यह पता चलता है कि उसकी भारतीय संसदीय राजनीति पर कितनी गहरी समझ रही है, इसकारण देश में आये दिन हो रहे माओवादी-पुलिस वारदात में जाती जानें और ज्यादा बढ़ने की संभावना बलबती लग रही है. ऐसे में देश के तमाम बुद्धिजीवियों और प्रगतिशील ताकतों को जागरूक होना होगा ताकि वह देश की सरकारों पर दबाव डाल सके ताकि आये दिन जानें वाली जानों की हिफाजत की जा सके. ]




चोर-डाकूओं के अनगिनत किस्से-कहानियों और उनके द्वारा किये गये चोरी-लूट की अनेकों वास्तविक घटनाआें से हम लोगों की समझ स्पष्ट है. चोरी की आम परिभाषा में हम कह सकते हैं कि छूपकर पर-धनहरण को चोरी कहा जाता है और परधन हरणकर्ता को चोर कहा जाता है. वही चोर अथवा चोरों का गिरोह जब इतना मजबूत हो जाता है कि लोग उसे देख जान-पहचान के बावजूद भी उसे भयभीत होकर विरोध करने का साहस नहीं कर पाते, तो वह व्यक्ति अथवा किसी से भी उसकी सम्पत्ति अथवा प्रियवस्तु बलपूर्वक लेने या छीनने की स्थिति में आ जाता है, तो लोग उस घटना को डकैती अथवा डकैती करने वाले गिरोह अथवा व्यक्ति को डाकू कहने लगते हैं.

सरकार की परिभाषा भी हम जानते हैं कि देश अथवा देश के किसी विशेष क्षेत्र में शासन चलाने वाले समूह विशेष को सरकार कहते हैं, जिसके पास कानून बनाने और कानून लागू कराने की विशेष क्षमता पुलिस-मिलिटरी, कोर्ट-कानून और जेल जैसे शक्तिशाली संस्थाएं मौजूद रहती है. वर्तमान में हम इसे विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के नाम से जानते हैं. विभिन्न क्षेत्रों, प्रांतों में स्थित सरकारों के क्षेत्र को संघ राज्य के नाम से जाना जाता है. राज्य अथवा संघ राज्य में स्थित विधायिका अर्थात् विधान (नियम-कानून) बनाने वाली संस्था को विधानसभा (लेजिसलेटिव असम्बली) और संसद, लोकसभा (पार्लियामेंट) कहते हैं.




विधानसभा के सदस्यों को विधायक, जिससे चुनकर राज्य के मंत्री-मुख्यंमत्री आदि बनाये जाते हैं. तथा लोकसभा के सदस्यों को संसद कहा जाता है, जिससे चुनकर केन्द्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री आदि बनाये जाते हैं. राज्यों में कानून का अनुपालन न करने वालों को दण्डित करने के लिए जो न्यायालय होेते हैं, उसे लोअर कोर्ट, अपर कोर्ट और हाई कोेर्ट कहते हैं, जिसके अधिकारी, दण्डाधिकारी, जज, न्यायाधीश, मुख्य न्यायाधीश आदि नामों से जाने जाते हैं. संघ राज्य के न्यायालय को सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है, वहां भी जज अथवा न्यायाधीश, मुख्य न्यायाधीश आदि होते हैं.

कार्यपालिका के नाम पर दो तरह के प्रशासनिक संस्थाएं होते हैं, जिसे पुलिस-प्रशासन और नागरिक प्रशासन कहा जाता है. पुलिस-प्रशासन के अधिकारी को आई.पी.एस. और नागरिक प्रशासन के अधिकारी आई.ए.एस. होेते हैं. हर प्रांत अथवा केन्द्रीय संघ राज्य के सरकारों के आलाधिकारी, जिसे लोग मंत्री, जज और ऑफिसर (नौकरशाह) के रूप में जानते हैं, उपरी तौर पर असल में तमाम विभागों के बड़ा-बड़ा अफसर ही शासन चलाने में मुख्य भूमिका पालन करते हैं और जो लोग चुनाव के जरिए नहीं चुने जाते. यही लोग मिलकर शासन चलाते हैं। जिसे सरकार कहा जाता है.




समाज मेें वर्गों के उदय के बाद से होने वाले वर्ग-संघर्ष के दौरान एक वर्ग विशेष द्वारा दूसरे वर्ग विशेष का दमन हेतु छोटे-छोटे राज्य नाम के विशेष संस्था समूह अस्तित्व में आया. वर्ग-संघर्षों के इतिहास में उत्पादिका शक्तियों और उत्पादन संबंधों में उत्तरोत्तर होने वाले परिवर्तनों के क्रम में पुरातन राज्यों का ध्वंस और नूतन राज्यों के उदय और उसका विस्तार के क्रम में समाज विकास का भिन्न-भिन्न स्वरूप आज भी दुनिया में मौजूद है. हम भारतवासी कई शताब्दियों से बाहरी आक्रांताओं द्वारा आक्रांत होने और उनकी हुकूमत मानने को बाध्य रहे हैं.

फिलहाल पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के इस युग में हम प्रायः 200 साल तक हुकूमत करने वाले ब्रिटिश साम्राज्यवाद का औपनिवेशिक कानून भारतीय दण्ड विधान 1860 मानकर आज भी चल रहे हैं. हालांकि आज प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेज शासक यहां मौजूद नहीं है. हम कथित आजाद मूल्क के वासी हैं, ऐसे कथित आजाद मूल्कों की संख्या दुनिया में ज्यादा है. उपनिवेश खोकर भी उपनिवेश का बागडोर अपने हाथों में रखने वाले विकसित मूल्कों जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान तथा बाद में उसमें जुटने वाले रूस और चीन जिसे हम साम्राज्यवादी देश के नाम से ही नवाजते हैं. इनका स्थायी प्रतिनिधित्व वाला वैश्विक राज्य है, जिसे हम संयुक्त राष्ट्र संघ के नाम से जानते हैं.




दुनिया के अन्य राज्य इसके सामान्य सदस्य या परिषद सदस्य आदि हैं, जो बतौर उपनिवेश या अर्द्ध उपनिवेश के रूप में है. आज दुनिया की जनता साम्र्र्र्राज्यवाद विरोधी, सामंतवाद विरोधी, पूूजीवाद विरोधी वर्ग-संघर्ष की भट्ठी में तप रही है, जिसकी दिशा नव जनवादी क्रांति और समाजवादी क्रांति तथा साम्यवाद की ओर है. भारत की जनता साम्राज्यवाद-सामंतवाद-दलाल नौकरशाह पूंजीपति के खिलाफ नव जनवादी क्रांति को सम्पन्न करने हेतु सशस्त्र कृषि क्रांति दीर्घकालीन लोकयुद्ध के मार्ग से आगे बढ़ रही है.

मूल रूप से भारतीय शासक वर्ग भारतीय जनता के इज्जत-आजादी, अधिकार के दुश्मन साम्राज्यवाद के चाटुकार सामंतवाद और दलाल नौकरशाह पूंजीपति के सेवादास है. बीजेपी, कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल हो या अन्य सभी क्षेत्रिय दल का एक ही काम है, साम्राज्यवाद, सामंतवाद, दलाल नौकरशाह पूंजीपति का सेवा करना तथा उनके लूट को उत्तरोत्तर विस्तार करना, यही उक्त दलाल सरकारों का काम है. केन्द्र में ब्राह्मणीय हिन्दूत्ववादी राजग की मोदी सरकार आने के बाद से उनके पूर्व के यूपीए के समय से जारी ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ के नाम से क्रांतिकारी जनता पर थोपा गया युद्ध में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.




वनवासी-मूलवासी-आदिवासी जनता जो सदियों से अपना विशेष राष्ट्रीयता की पहचान बनाये रखी हैं एवं वर्तमान में जल, जंगल, जमीन पर अपना अधिकार के लिए लड़ रही हैं. उन्हें वहां से विस्थापन हेतु तथा उनकी भूमि पर दलाल नौकरशाह पूंजीपति व कॉरपोरेट घरानों का कब्जा सुनिश्चित कराने के लिए कॉर्पेट सिक्युरिटी के नाम पर चप्पे-चप्पे पर अर्द्ध-सैनिक बलों को रखकर विशेष ऑपरेशन के लिए सैनिक हेलीकॉप्टर तथा ड्रोन जैसे अत्याधुनिक तकनीक से लैस होकर अत्याधुनिक ढंग से प्रशिक्षित बलों को बाहर से अचानक एल.आर.पी. पेट्रोलिंग के नाम पर घुसाकर बिहड़ जंगलों में अचानक बमों और मोर्टार के गोलों का बेहिसाब वर्षा का सिलसिला जारी किया है.




जनता का सच्चा मित्र, रहनुमा, देशभक्त, राष्ट्रभक्त व अंतरराष्ट्रवाद का मानवातावादी वसूलों को आत्मसात करने वाले जन-हितैषी, जीवन समर्पण के लिए कटीबद्ध माओवादी क्रांतिकारियों के खिलाफ झूठ पर आधारित बेबुनियाद तथ्य गढ़कर जनता में नफरत पैदा कराने हेतु साजिशपूर्ण कुप्रचार चलाया जा रहा है. यह कार्य केन्द्र की तरफ से सुनियोजित ढंग से बिहार-झारखण्ड सहित देश के तमाम माओवाद प्रभावित क्षेत्र बंगाल, ओडि़सा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, यूपी आदि समस्त क्षेत्रें में चलाया जा रहा है. ब्राह्मणीय हिन्दूत्ववादी मनुवादी (जिसका सिद्धांत ‘‘शूद्र अगर भूल से वेद पाठ सून ले तो उसके कान में राँगा गलाकर डाल दो’’) भाजपा सरकार कुप्रचार और क्रांतिकारियों की व्यक्तिगत व सामूहिक नरसंहार हेतु अपने सुरक्षा बलों को विशेष हिदायत देकर जनता के बीच से आर्थिक प्रलोभन के बल पर कोवर्टों का संगठन बनाकर गुप्त ढंग से क्रांतिकारी संगठनों में घुसाकर भोजनों में विष मिलाकर मारने की नीति अपनायी है. ऐसा निर्मम हरकत भला कौन कर सकता है ?




जंगल, गांव अथवा शहरों में भी माओवादी समर्थक के नाम पर सेना, अर्द्ध-सैनिक बल और पुलिस कर्मियों द्वारा गरीब, दलित, आदिवासी, गैर-आदिवासी घर के माँ-बहनों के साथ निर्मम बलात्कार व हत्या जैसा घृणित कौशल इस्तेमाल कर दहशत पैदा किया जा रहा है. गरीब घर के खस्सी, मुर्गी मारकर खा जाना, उनके घर का सारा सामान लूट लेना, आम नियम बन चुका है. क्या यह किसी भी लोकतंत्र में संभव है ? स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है, नहीं.

हम इसके लिए खासकर उन तमाम बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, इतिहासकारों और पत्रकारों व मानवधिकार तथा सामाजिक संगठनों को विशेष करके यह आह्नान करते हैं कि जो देश, राष्ट्र व जनता के हित में अपने भावी पीढ़ी में अपने कलम से वास्तविक व यथार्थ संदेश देना, गलतफहमियाें से उन्हें बचाना अपने जीवन का मकसद बनाया है. वे अवश्य बिहार-झारखण्ड समेत देश के समस्त माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में बिना पुलिस व अर्द्ध-सैनिक बलों का संरक्षण लिए स्वतंत्र रूप से जाएं और वहां से तथ्यगत रिर्पोट संग्रह करें. हम और हमारी जनता आपको गले लगाएंगें. आपसे बस एक ही प्रार्थना है कि आप सिर्फ पुलिस व अर्द्ध-सैनिक बल अथवा सरकारी अधिकारियों के एकतरफा ब्यान को आधार बनाकर कलम को कलंकित न करें. रूपये के लिए अपनी कलम व ईमान को न बेचें.




आंतरिक सुरक्षा और विकास विरोधी प्रचार के नाम पर नक्सलवाद व आतंकवाद को कमजोर करने का मोदी और उनकी सरकार का मनगढ़ंत सिद्धांत को आधार बनाकर चलाया गया नोटबंदी अभियान से पूरे देश की आम जनता को होनवाली परेशानी तथा कितने लोगों की गयी जाने तथा शादी-ब्याह जैसे सामाजिक क्रियाकर्म भी बाधित हुआ था. छोटे-मोटे व्यापारी का धंधा ठप पड़ गया था. इससे कोई कानून व संविधान का रत्ति भर भी संबंध नहीं था, ना नक्सलवाद व आतंकवाद का. बल्कि ठेठ भाषा में कहा जाए तो सरकार के गुण्डागर्दी के बल पर जनता की जेब से जर्बजस्ती रूपया छीनकर बड़े-बड़े पूंजीपतियों एवं कॉरपोरेटरों के जेब में डालने के लिए की गयी डकैती के अलावा और कुछ नहीं था.

मोदी सरकार का केन्द्र की सत्ता में स्थापित होने के बाद भाजपा शासित राज्य समेत पूरे राष्ट्रीय स्तर पर फासिस्ट हमले तेज हो गये. सब जगह बंदूक का शासन विकराल रूप ले लिया. विदेशी पूंजी 100 प्रतिशत देशी पूंजी के नाम पर आने का दरवाजा खुल गया. श्रम कानूनों में संशोधन के नाम पर मजदूरों से संगठन बनाने और हड़ताल करने जैसे न्यूनतम जनवादी अधिकार छीन लिए गये. ठेका मजदूरों का सिलसिला शुरू कर दिया गया. शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है, महिलाओं को पितृसत्तात्मक जुआ ढोने को बाध्य करने के लिए उन पर उत्पीड़न बढ़ा दिया गया.




देशभक्ति और देशद्रोही का प्रमाण पत्र बांटने और देशद्रोही के आरोप में निर्धारित व्यक्ति पर हमला करने का जिम्मा आर.एस.एस. को मिल गया. भाजपा की आलोचना करने वाले पत्रकारों व साहित्यकारों पर जानलेवा हमला या हत्याएं शुरू हो गयी. गोविन्द पनसारे, एम.एस. कलबुर्गी और गोरी लंकेश की हत्या उनके प्रमाण हैं. गो-वंश की रक्षा के नाम पर अल्पसंख्यक मुस्लिम जनता व दलित समुदाय पर ब्राह्मणीय हिन्दूत्ववादियों के हमला में बेपरवाह वृद्धि हुई. धार्मिक अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई समुदाय पर साम्प्रदायिक हमले और उनकी हत्याओं का सिलसिला में तीव्र वृद्धि हुई. आत्मनिर्णय का अधिकार और स्वतंत्र होने की मांग करने वाली राष्ट्रीयताओं की जनता का भाग्य फौजी संगिनों, गोलियों और उनके बूटों तले डाल दिया गया.

येन-केन-प्रकारेण देश के सभी राज्यों में भाजपा या राजग की सरकार ही बनें, इसके लिए तमाम संवैधानिक नियम-कानून ताक पर रख दिये गये. संसदीय विरोधी दल कांग्रेस, राजद आदि समेत तमाम विरोधी दलों पर भी हमले बढ़ा दिये गये. फासिस्ट ताकतों के साथ तालमेल करके न चलने के कारण दलित समुदाय के बीच से सुप्रीम कोर्ट की कुर्सी पर बैठने वाले एक न्यायाधीश की हत्या भी हो गई. इस तरह से बंदूक की हुकूमत और डाकू का शासन से आज मजदूर-किसान, मेहनतकश आवाम ही नहीं समाज के सभी तबके और विरोधी दल अपनी अस्मिता के दांव पर चढ़े महसूस कर रहे हैं. आमतौर पर यह परिस्थिति का एक सशक्त फासीवाद विरोधी मोर्चा का गठन की भी मांग कर रही है.




पहले से ही चली आ रही माओवादी नेता व कार्यकर्ताओं के घरों के सारे सामान कुर्की-जप्ती के नाम पर, जो लूट व अत्याचार जारी था, अब 2017 में मोदी सरकार द्वारा 2018 से 2022 तक माओवादियों के खिलाफ नया और घृणित ऑपरेशन ‘समाधान’ चलाने की घोषणा के बाद से माओवादियों के परिवार और रिश्तेदारों को ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा सम्पत्ति जप्त का सिलसिला शुरू किया गया है.

जैसे पिता, चाचा व भाई की सम्पत्ति, ससूर की सम्पत्ति, बेटी-दामाद की सम्पत्ति आदि. कई जगहों में देखा जा रहा है, जहां कार्यकर्ता के नाम से सम्पत्ति है ही नहीं, क्योंकि वह घर, मकान की चिंता से मुक्त होकर देश-दुनिया और जनता के लिए खूद को समर्पित कर उनके लिए स्वयं को न्योछावर कर मृत्यूंजय बन गया. वहां उनके भाई, रिश्तेदार आदि की सम्पत्ति जप्त कर, बर्बर ढंग से उनके घरों को लूटपाट करने, महिलाओं से छेड़छाड़ व अश्लील हरकत करने, घर-मकान का ढाहकर, जनता में दहशत पैदा करने का जघन्यतम दृश्य उपस्थित किया गया है.




यह घटना क्रमागत रूप से व्यापक रूप ले रहा है, जो निंदनीय है, पाठक बंधु स्वयं इसे जांचकर देखेंगे. यह भी कोई संविधान अथवा राष्ट्रीय कानून के मातहत नहीं है, बल्कि स्पष्ट डकैती है. हम संविधान और कानून की दुहाई देकर तथा न्यायालयों में फरियाद कर खूद को अपने सगे-संबंधियों को और जन-समुदाय को इस डकैती से नहीं बचा सकते. यह एक निर्मम वर्ग युद्ध है. जनता का दुश्मन शोषक वर्ग और उसकी सरकार ऐसा कोई भी जघन्यतम कार्य नहीं है, जिसे बाकी छोड़ेगा.
अतएव, इसे रोकने का मात्र एक उपाय है यानी खूद को संगठित व सशस्त्र करो, दुश्मन के राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक और तकनीकी शक्तियों पर लगातार हमला चलाओं.

हम देश के समग्र मजदूर-किसान तथा तमाम मेहनतकश आवाम वर्षों से विस्थापन का दंश झेल रहे तथा विस्थापन को बाध्य किये जा रहे, आदिवासी, गैर-आदिवासी समुदाय और विस्थापितों, फासिस्ट हमलों का निरंतर शिकार हो रहे दलित व अल्पसंख्यक समुदाय मुस्लिम, ईसाई समुदाय के तमाम जनगण तथा तमाम जनवादी व प्रगतिशील शक्तियों को यह बताना चाहते हैं कि देश के गरीब व उपेक्षित मेहनतकश आवाम और उत्पीडि़त राष्ट्रीयताआें का शत्रु साम्राज्यवाद-सामंतवाद-दलाल नौकरशाह पूंजीवाद का सेवा दास वर्तमान सरकार और राज्य मशीनरी के द्वारा जारी जनता का अधिकार और जनता का जनवादी राज्य के लिए क्रांतिकारी वर्ग-संघर्ष पर बर्बर युद्ध थोपने व निर्मम अत्याचार व लूट-खसोट, नरसंहार तथा मां-बहनों का बलात्कार व हत्या लीला उनकी बहादूरी या बढ़ती ताकत का नहीं, उनका बहसीपन का परिचायक है. इन्हें हम सब एकजूटता की ताकत से सिर्फ हरा ही नहीं, उन्हें दफना सकते हैं. उनके द्वारा लूटी गयी सम्पत्ति की वापसी तथा लूटे जा रहे सम्पत्ति की स्थायी रक्षा भी हम तभी और सिर्फ तभी कर पायेंगे.




आयें, दलछूट हो चूके तथा दुश्मन के हाथ का खिलौना बनें, हमारे वर्ग-समुदाय के लाखों-लाख की संख्या में जो सेना, अर्द्ध-सैन्य बल व पुलिस बल, तकनीसियन तथा मानवीय और यांत्रिक सूचना देने वाले खुफिया तंत्र को वर्ग-संघर्ष और उसकी परिभाषा समझा दें कि तुम्हारी सेवा की आखरी मूल तुम्हारी गुलामी ही होगी. कुछ अधिक वेतन या घुस से तुम्हें क्षणिक लाभ अवश्य मिलेेगा. हो सकता है कुछ छोटा-मोटा पूंजी का मालिक भी तुम्हें बना दें, तो तुम यह समझना भाई कि हम भी ‘शंभूनाथ के भाई’ बन गये. उनके यहां ‘‘बड़ी मछली, छोटी मछली को खाती है’’ का सिद्धांत चलता है इसलिए सोचों कि तुम अपने वर्ग भाई-बंधु का नुकशान से फायदे में रहोगे या उनके साथ मिलकर बनने वाले नये राज्य का संगठक बनकर.




इस प्रकार वर्ग-संघर्ष की तीव्र राजनीतिक-सांगठनिक, सामरिक और सांस्कृतिक ताकत के रूप में स्वयं को परिवर्तन करने हेतु व्यापक रूप से निम्न स्तर के पार्टी संगठनों का विस्तार, क्रांतिकारी किसान कमेटी, आरपीसी, जन-मिलिशिया, एलजीएस सरीखे बुनियादी शक्तियों को मजबूत बनाते हुए क्रांतिकारी युद्ध का देशव्यापी प्रसार हेतु भिन्न-भिन्न रूपों के खुला, अर्द्ध-खुला व गुप्त जन-संगठनों तथा जन-आंदोलनों के निर्माण व विस्तार में तेजी लाने का संकल्प लेते हुए पीएलजीए को पीएलए में, छापामार युद्ध को चलायमान युद्ध में तथा छापामार क्षेत्र को आधार क्षेत्र में विकास के जरिये सशस्त्र कृषि क्रांति और दीर्घकालीन लोकयुद्ध को नई ऊंचाई तक विकसित करें.




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