Home गेस्ट ब्लॉग राहुल गांधी का दार्शनिक जवाब और संघियों की घिनौनी निर्लज्जता

राहुल गांधी का दार्शनिक जवाब और संघियों की घिनौनी निर्लज्जता

3 second read
0
0
210
कृष्ण कांत

राहुल गांधी से उनके पिता की मौत से जुड़ा सवाल पूछा गया और उन्होंने कुछ क्षण रुककर सोचा. यह देश के साथ बड़ा बुरा हुआ. आप मौत से जुड़े सवाल पर रुककर सोचने की जुर्रत करते हैं ? वह भी मौतों पर अट्ठहास करने वाले समय में ?

सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री को मात्र 46 साल की उम्र में मार दिया गया. उस वक़्त सिर्फ 21 साल का बेटा आज अपने पिता की मौत से जुड़े सवाल पर सोचने लगता है और दार्शनिक-सा जवाब देता है. फॉरगिवनेस की बात करता है. यह तो कुफ्र हुआ.!

अभी आपने देखा नहीं ? एक बीजेपी नेता ने दूसरी बीजेपी नेता के विक्षिप्त और बुजुर्ग बेटे को पीट-पीट कर मार डाला. जिस कुनबे ने निंदा तक न की, उसके सत्ता में रहते आप मौत के सवाल पर रुककर सोचते हैं ? यह नाकाबिले बर्दाश्त है !

हमें ऐसा नेता पसंद है जो बोल-बोल कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को माइनस 25 पहुंचा दे. जो बोल बोल कर हमें आपस मे लड़ाए, उल्लू बनाए, काल्पनिक डर से डराए, बेरोजगारी और गरीबी का रिकॉर्ड बना डाले, पर रुककर सोचे नहीं. बोलता जाए… बर्बाद करता जाए… बोलता जाए… अहा ! क्या फील आता है !

हम ऐसा नेता चाहने लगे हैं जो प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी 90 बरस की मां के लिए 3000 रुपये का इंतजाम न कर सके और उन्हें एटीएम की लाइन में खड़ा कर दे. ऐसे में हम ये कैसे बर्दाश्त करें कि किसी से उसके पिता की मौत पर सवाल पूछा गया और उसने कुछ क्षण का विराम लिया ?

मामला क्या है ?

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी का कार्यक्रम था. कॉरपस क्रिस्टी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर और भारतीय मूल की शिक्षाविद डॉक्टर श्रुति कपिला ने उनसे राजीव गांधी की मौत से जुड़ा सवाल किया –

मेरी-आपकी पीढ़ी में हिंसा का एक अहम रोल रहा है और आपके मामले में ये व्यक्तिगत भी है. हाल में आपके पिता (राजीव गांधी) की बरसी गुज़री है. मेरा सवाल थोड़ा गांधीवादी सवाल है, वो भी हिंसा और उसके साथ जीने से जुड़ा हुआ और आपके मामले में ये व्यक्तिगत हो जाता है. क्या आप इसे लेकर सामने आने वाले दबावों से निपटने के व्यक्तिगत तौर-तरीकों पर कुछ बोल सकते हैं और ये भी बताइएगा कि आप भारतीय समाज में हिंसा और अहिंसा के बीच उलझन को किस तरह देखते हैं…

राहुल गांधी कुछ क्षण चुप रहे फिर बोले, ‘मुझे लगता है… जो शब्द दिमाग़ में आता है, वो क्षमा करना है. हालांकि, वो सबसे सटीक शब्द नहीं है.’

राहुल गांधी फिर चुप हो गए और कुछ लोगों ने ताली बजाई. इस पर राहुल मुस्कुरा के बोले, ‘अभी कुछ सोच रहा हूं.’

श्रुति ने कहा, ‘मैं आपको परेशानी में नहीं डालना चाहती थी.’

राहुल बोले, ‘आपने मुझे किसी परेशानी में नहीं डाला और ये सवाल मुझसे पहले भी किया जा चुका है.’

उन्होंने आगे कहा –

मुझे लगता है कि ज़िंदगी में आपके सामने… ख़ासतौर से अगर आप ऐसी जगह हैं, जहां बड़ी ऊर्जाओं में बदलाव आता रहता है तो आपको चोट लगनी तय है। अगर आप वो करते हैं, जो मैं करता हूं, तो आपको चोट लगेगी ही. ये कोई संभावना नहीं, बल्कि निश्चितता है क्योंकि ये बड़ी लहरों के बीच समंदर में तैरने जैसा है. आप कभी ना कभी लहरों के नीचे आएंगे ही, ऐसा नहीं है कि ऐसा कभी नहीं होगा और जब आप लहरों के नीचे जाते हैं तो सीखते हैं कि किस तरह सही प्रतिक्रिया देनी है.’

‘मेरी ज़िंदगी में अगर सीख देने वाला कोई सबसे बड़ा अनुभव है तो वो मेरे पिता का निधन है. इससे बड़ा अनुभव हो ही नहीं सकता. अब मैं उसे देख सकता हूं और कह सकता हूं कि जिस व्यक्ति या ताक़त ने मेरे पिता को मारा, उसने मुझे भीषण दु:ख और दर्द दिया. ये बात पूरी तरह ठीक है. एक बेटे के रूप में मैंने अपने पिता को खोया. आप में से कुछ लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा, और ये काफी दर्दनाक बात है लेकिन मैं इस तथ्य से भी इनकार नहीं कर सकता कि इसी घटना ने मुझे वो चीज़ें भी सिखाई हैं, जो मैं और किसी परिस्थिति में कभी नहीं सीख सकता था. इसलिए जब तक आप सीखने को तैयार हैं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग कितने दुष्ट हैं, वो कितने बुरे हैं.’

‘अगर आप सीखने को तैयार हैं तो… अगर मैं पीछे मुड़कर देखता हूं और कहता हूं कि मिस्टर मोदी ने मुझ पर हमला किया है, हे भगवान वो कितने बुरे हैं कि इस तरह मुझ पर हमला कर रहे हैं… ये इस मामले को देखने का एक नज़रिया हो सकता है… लेकिन दूसरा तरीका ये भी हो सकता है कि वाह, मैंने उनसे भी कुछ सीखा है. और करिए ऐसा.’

‘लेकिन आप ये तब महसूस कर पाते हैं जब आप किसी हमले का सामना कर रहे हों… और किसी तरीके से इस बात का अहसास नहीं किया जा सकता. ये उस कविता की तरह है. ये फ़लस्तीन के एक व्यक्ति ने लिखी है, जिन्हें जेल में डाल दिया गया था, वो कविता मैं आपको भेज दूंगा. इस कविता में वो जेलर से कह रहे हैं कि अपनी कोठरी की छोटी खिड़की से मैं आपकी बड़ी कोठरी देख पा रहा हूं. एक तरह से देखें तो सभी लोग जेल में क़ैद हैं… और आपको ये ठीक से देखना आना चाहिए और अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो इससे निपटने के तरीके भी खोज सकते हैं.’

अब इसमें खेल क्या हुआ ? जवाब देने की शुरुआत में जहां राहुल गांधी ने दो बार पॉज लिया, उतना हिस्सा काटा गया और वीडियो वायरल कराया गया. मकसद वही आठ साल पुराना… यह साबित करना कि राहुल गांधी ‘पप्पू’ हैं.

राहुल गांधी का समर्थन या विरोध उतना बड़ा मसला नहीं है. बड़ा मसला यह है कि आपको अमानुष बनाने का अभियान चल रहा है. क्या आप इस अभियान में शामिल होना चाहते हैं ? नहीं चाहते हैं तो चाहने लगिए. जो इस पागलपन शामिल नहीं होंगे, मारे जाएंगे…

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

गंभीर विमर्श : विभागीय निर्णयों की आलोचना के कारण पाठक ने कुलपति का वेतन रोक दिया

बिहार के एक विश्वविद्यालय के कुलपति का वेतन शिक्षा विभाग ने इसलिए रोक दिया कि वे विभाग और …