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102 करोड़ लोग बाहर होंगे CAA-NRC के कारण

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102 करोड़ लोग बाहर होंगे CAA-NRC के कारण

विश्व इतिहास के सबसे बदनाम और बेशर्म प्रधानमंत्री का खिताब अपने नाम करनेवाले अनपढ़ नरेन्द्र मोदी CAA और NRC पर जिस बेशर्मी के साथ झूठ बोल रहे हैं, वह अप्रतिम है. गृहमंत्री अमित शाह संसद में और पत्रकारों के सामने साफ-साफ कह रहे हैं कि वह CAA के बाद NRC पूरे देश में लागू करेंगे, और सारे देश में डिटेंशन कैम्प बनाया जायेगा. जिसके आगे शायद गैस चैम्बर भी लाखों लोगों को मारने के लिए बनाया जाये. वहीं देशभर में हो रहे भारी विरोध के बाद बेशर्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रामलीला मैदान में कहते हैं कि CAS – NRC लागू नहीं हुआ है. कि देश में कहीं भी डिटेंशन कैम्प नहीं बनाया गया है.

खैर, यह दो गुण्डों की आपसी बात है. एक गुण्डा मारने की बात करता है, जब वह उल्टा फंस जाता है तो दूसरा सीनियर गुण्डा उसको बचाने दौड़ा आता है. पर दोनों ही गुण्डों का असली मकसद जनता को लूटना है. ऐसे में जब एक गुण्डा NRC देशभर में लागू करने की बात करता है तो यह देशवासियों को समझ लेना होगा कि बड़ा गुण्डा उसे जरूर लागू करेगा. बस, समय की नजाकत को देखकर थोड़ी देर के लिए पल्टी मारा है, विरोध के स्वर थमते या कम होते ही वह लागू करेगा. वह यह प्रयास तब तक करता रहेगा जब तक आम जनता उसे हिटलर की भांति जमींदोज नहीं कर देता है.

ऐसे में देशवासियों को यह समझ लेना होगा कि CAA और NRC उसके लिए कितना खतरनाक है, कि उसे अपने ही देश में शरणार्थी या कैदी बनकर रहना होगा, कि उसके तमाम संवैधानिक अधिकार (वोट देने की भी) छीन लिये जायेंगे, कि उसके जीने-रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा तक के अधिकार खत्म कर दिये जायेंगे. और यह कितनी बड़ी तादाद में होगी, इसकी कल्पना ही रोंगटे खड़े कर देने वाली है.

NRC जिसे आसाम में लागू किया गया था, उसका परिणाम देश के सामने है. महज 3 करोड़ की आबादी वाले आसाम में पहले 44 लाख लोग NRC से बाहर हो गये, फिर दुबारा प्रयास करने के बाद 19 लाख लोग NRC से बाहर पाये गये, जिन्हें उठाकर डिटेंशन कैम्प में तिल-तिल मरने छोड़ दिया गया. खबर के अनुसार जिसमें से 16 लोग मर गये. आसाम में 6 डिटेंशन कैम्प बनाये गये हैं, 4 अभी और बनाने की बात चल रही है.

इसमें आर्थिक पहलू की बात करें तो सरकार को तकरीबन 1.6 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े और आम आदमी को तकरीबन 8 हजार करोड़ रुपये इन दस्तावेजों को बनवाने में खर्च करने पड़े. मानसिक परेशानी, भाग दौड़ की अफरातफरी जो हुई उसकी तो बात ही नहीं की जा सकती. अनेक लोग मर गये या आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब जब मोदी शाह की यह अपराधिक जोड़ी इसे देशभर में लागू करने की बात कर रहा है तब इसकी विभीषिका की कल्पना की ही जा सकती है क्योंकि नोटबंदी की महामारी हमारे सामने है कि किस तरह सैकड़ों लोग लाईन में लगकर मर गये, अपमान झेला फिर भी हासिल कुछ नहीं हुआ. देश की अर्थव्यवस्था आज तक उसका दंश झेल रही है.

अभी कोई तारीख़, कोई प्रक्रिया तय नहीं हुई है. हमारे सामने केवल असम का अनुभव है. असम में NRC के तहत जिन दस्तावेजों को आधार बनाया गया था, वह इस प्रकार है –

1. 1971 की वोटर लिस्ट में खुद का या मांं-बाप के नाम का दस्तावेज
2. 1951 में, यानि बंटवारे के बाद बने NRC में मिला मांं-बाप / दादा दादी आदि का कोड नम्बर.

साथ ही, नीचे दिए गए दस्तावेज़ों में से 1971 से पहले का एक या अधिक सबूत :

1. नागरिकता सर्टिफिकेट
2. ज़मीन का रिकॉर्ड
3. किराये पर दी प्रापर्टी का रिकार्ड
4. रिफ्यूजी सर्टिफिकेट
5. तब का पासपोर्ट
6. तब का बैंक डाक्यूमेंट
7. तब की LIC पॉलिसी
8. उस वक्त का स्कूल सर्टिफिकेट
9. विवाहित महिलाओं के लिए सर्किल ऑफिसर या ग्राम पंचायत सचिव का सर्टिफिकेट

ये दस्तावेज असम के हर नागरिक के लिए आवश्यक था, चाहे वे हिन्दू हो या मुस्लिम. परिणाम यह निकला कि 19 लाख लोग ये दस्तावेज पेश नहीं कर सके, वह सरकार ने उन्हें डिटेंशन कैम्प में मरने छोड़ दिया. इन 19 लाख में 14 लाख हिन्दू और 5 लाख मुस्लिम मिले. इन में वे भी शामिल थे जिन्होंने वर्षों सेना में नौकरी किये थे. यहां तक कि पूर्व राष्ट्रपति का परिवार भी NRC से बाहर फेंक दिये गये.

मालूम हो कि यह शातिर गुण्डा अमित शाह ने कहा था कि देश भर में 100 करोड़ घुसपैठिया है. आईये, अब हम इन घुसपैठियों के बारे में देखते हैं कि अमित शाह किसे घुसपैठिया कह रहे हैं –

  • देश में 30 करोड़ लोग भूमिहीन हैं यानी उनके पास कोई जमीन नहीं है (ये आंकड़ा अरुण जेटली ने भी सदन में बताया था, जब वह मुद्रा योजना लागू कर रहे थे)। जब इन लोगों के पास जमीन नहीं है तो किसकी जमीन के डाक्यूमेंट्स दिखाएंगे ?
  • देश में 17 करोड़ लोग बेघर हैं, यानी उनके पास रहने के लिए घर ही नहीं है. कोई सड़क पर सोते हैं, कोई झुग्गी बनाकर, कोई फ्लाईओवर के नीचे, कोई रैनबसेरा में. यह आंकड़े केन्द्र सरकार की सर्वे करने वाली संस्था NSSO का है. अब मकान ही नहीं है तो क्या सड़क के कागज दिखाएंगे ये लोग, कि कौन सी सड़क के किस फ्लाईओवर के नीचे सोते हैं.
  • देश में 15 करोड़ विमुक्त एवं घुमंतुओं की आबादी है, बंजारे, गाड़ेड़िया, लोहार, बावरिया, नट, कालबेलिया, भोपा, कलंदर, भोटियाल आदि. इनके रहने, ठहरने का खुद का ठिकाना नहीं होता, आज इस शहर, कल उस शहर. जब ठिकाना नहीं तो कागज कैसे ? दो एक बकरी और ओढ़ने-बिछाने के कपड़े के सिवाय क्या ही होता है इनके पास ? अब क्या बकरी का डीएनए चेक करवाकर बताएंगे कि अब्बा हमारे बकरी भी छोड़ कर मरे थे ?
  • देश में 8 करोड़, 43 लाख इस देश में आदिवासी हैं, जिनके बारे में खुद सरकार के पास अपर्याप्त आंकड़ें होते हैं (जनगणना 2011 के अनुसार).
  • देश में 6 लाख ऐसे लोग हैं, जो न तो स्त्री हैं और न ही पुरुष. इन लोगों को परिवार ने बहिष्कृत कर दिया है. फिर ये लोग दस्तावेज कहां से लायेंगे ?

इन आंकडों को हम अगर साथ मिला देते हैं तो कुल आबादी 70 करोड़ 43 लाख होती है. यानी यह शातिर गुण्डा अमित शाह और मोदी की जोड़ी एक झटके में 70.43 करोड़ की आबादी को घुसपैठिया साबित करने निकल पड़ा है. परन्तु बात यहीं खत्म नहीं होती है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 1970 में देश की साक्षरता दर 34 प्रतिशत थी यानी 66 प्रतिशत लोग अपढ़ थे, यानी इस देश के 66 प्रतिशत पुरखों-बुजुर्गों के पास पढ़ाई-लिखाई के कोई कागज नहीं हैं. आज भी करीब 26 प्रतिशत यानी 31 करोड़ लोग अपढ़ हैं. जब स्कूल ही नहीं गए तो मार्कशीट किस बात की रखी होगी ? यानी ये 31 करोड़ और लोग जिनके पास किसी भी प्रकार का कोई दस्तावेज नहीं है, या नामों में गड़बड़ी है, या वंशानुक्रम में क्लर्कों की कारिस्तानी के कारण गलत है, वे सब देश में घुसपैठिया है.

अब एक बार फिर आंकड़े मिला लीजिए तो हो गये पूरे 101.43 करोड़ घुसपैठिया. अब यह साफ है इस शातिर गुण्डा मोदी शाह की जोड़ी ने देश के चंद सवर्णों (ब्राह्मणों) की सेवा करने के लिए किस प्रकार देश के 101.43 करोड़ आबादी की रोजी, रोटी, शिक्षा, चिकित्सा, वोट डालने, चुनाव लड़ने और जीतने, नौकरी करने के अधिकार को छीन लिया. उसे गुलाम बना दिया. यही है मोदी शाह का ‘न्यू-इंडिया.’

अपने गांव-शहर के सबसे कमजोर- पिछड़े लोगों के घरों पर नजर डालिये और सोचिए कि उनके पास उनके दादा-परदादा के कौन-कौन से डॉक्युमेंट्स रखे हुए होंगे ? क्या नागरिकता साबित न कर पाने की हालत में इनके पास इतना धन होगा कि ये हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपना मुकदमा लड़ सकें ?

एनआरसी जैसा अनावश्यक, बेफिजूल, और अपमानजनक कानून केवल मुस्लिमों के लिए ही नहीं है. असम में भी जो हिन्दू शुरुआत में एनआरसी की तरफदारी कर रहे थे, वही एनआरसी लागू होने के बाद अपने ही देश में “इलीगल” हो गए हैं. वो भी शुरुआत में कह रहे थे कि 1 करोड़ घुसपैठिए हैं, जबकि 19 लाख लोग ही थे जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं, उसमें भी 15 लाख तो हिन्दू ही हैं, उसमें केवल 4 लाख ही मुस्लिम, ईसाई, आदिवासी थे. अब वही हिन्दू एनआरसी से परेशान हैं और इसे रद्द करने की बात कर रहे हैं, टैक्स का करोड़ों रुपए का पैसा-धेला लगा सो अलग. और रिजल्ट क्या रहा – गरीब से गरीब आदमी को सब काम छोड़कर वकीलों के चक्कर मारने पड़े, माथे का दर्द झेला, अपमान झेला, और अंत में एक भी आदमी असम के बाहर नहीं गया.

कोई और दूसरा काम नहीं रह गया ? कभी आधार के लिए लाइन, कभी नोट बदलने के लिए लाइन, कभी जीएसटी नंबर के लिए लाइन, अब अपने आप को इंडियन साबित करने के लिए लाइन! वो भी टैक्स के पैसे पर. सबकुछ हम ही करेंगे ? सरकार किसलिए बनाई ? कालाधन, स्कूल, यूनिवर्सिटी, वेकैंसी, हॉस्पिटल्स सब काम निपट गए ?

ये ध्यान दें कि 130 करोड़ लोग एक साथ ये डाक्यूमेंट ढूंंढ रहे होंगे. जिन विभागों से से ये मिल सकते हैं, वहांं कितनी लम्बी लाइनें लगेंगी, कितनी रिश्वत चलेगी ? अभी ही NRC दस्तावेज तैयार करने के लिए 55 हजार रुपया की बोली चल रही है ? यह रकम अभी और आगे बढ़ेगी. मतलब साफ है जिसके पास 55 हजार (अभी के रेट से) रुपया होगा, उसे नागरिकता मिल जायेगी. जिन लोगों के पास 55 हजार नहीं होंगे घुसपैठिया ठहराया जायेगा और उसके सारे अधिकार छीने जायेंगे. यानी वह आधुनिक भारत के दास यानी गुलाम होंगे. उससे और उसके परिवार से बैंक सुविधा, सम्पत्ति रखने का अधिकार, सरकारी नौकरी का अधिकार, सरकारी योजनाओं के फ़ायदे का अधिकाकार, वोट डालने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होंगा.

अगर हम खुद को और अपनी आनेवाली पीढियों को दास यानी गुलाम नहीं बनाना चाहते हैं तो अभी से न केवल इस CAA, NRC जैसे काले कानून के खिलाफ खड़ा होना होगा बल्कि इस धोखेबाज, मक्कार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री समेत इसकी पछरी कट्टरपंथी संस्था RSS के खिलाफ उठ खड़ा होना होगा. और उसे ध्वस्त करना होगा.

Read Also –

दिसम्बरी उभार के मायने…
आखिर क्यों और किसे आ पड़ी जरूरत NRC- CAA की ?
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हिटलर की जर्मनी और नागरिकता संशोधन बिल
‘एनआरसी हमारी बहुत बड़ी गलती है’

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ROHIT SHARMA

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