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देश के साथ गद्दारी का मीठा फल

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देश के साथ गद्दारी का मीठा फल

आई. जे. राय, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ता
विश्व इतिहास का यह अनोखा देश है जहां आज भी देशद्रोही-गद्दारों को पुरस्कृत किया जाता हो और देशभक्तों को न केवल उपेक्षित ही किया जाता है, वरन्, उसके परिजनों को दर-दर का ठोकर खाने को विवश किया जा रहा हो.

भारत की आजादी के इतिहास को जिन अमर शहीदों के रक्त से लिखा गया है, जिन शूरवीरों के बलिदान ने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक उद्वेलित किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवाए हैं, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन पर जन्मभूमि को गर्व है, उनमें से एक थे – भगत सिंह.

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सकता है. आज भी देश का बच्चा-बच्चा उनका नाम इज्जत और फख्र के साथ लेता है, यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में यह वर्णन किया है – भगत सिंह एक प्रतीक बन गया. सैण्डर्स के वध का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गांव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूंज उठा. उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई, वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी. लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार उन के खिलाफ गवाही देने वाले एक भारतीय को मरणोपरांत ऐसा सम्मान देने की तैयारी में था, जिससे उसे सदियों नहीं भुलाया जा सकता था. यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि औरतों के विषय में भौंडा लेखन कर शोहरत हासिल करने वाले लेखक खुशवंत सिंह का पिता सर शोभा सिंह था, जिसपर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की सिफारिश पर विंडसर प्लेस (दिल्ली) का नाम उसके नाम पर करने का प्रस्ताव लेकर आया था.

जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में मुकद्दमा चला तो भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था. बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने संघ के दो लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया. इनमें से एक था शादी लाल और दूसरा था शोभा सिंह. मुकद्दमे में भगत सिंह को उनके दो साथियों समेत फांसी की सजा मिली. इधर दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला. दोनों को न सिर्फ ‘सर’ की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले. सोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली. आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है. यह अलग बात है कि शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा भी नहीं दिया. शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए, तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था.




शोभा सिंह अपने साथी के मुकाबले खुशनसीब रहा. उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी. उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी ’सर’ सोभा सिंह के नाम पर बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया. सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया, जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है. आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं, वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था. खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की.

खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की. खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसके पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल, 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था, जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था. बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही तो दी, लेकिन इसके कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई. शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की.




खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है, जिसमें बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं. बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल-माला चढ़ा आते हैं. यूपीए एक और दो में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुशवंत सिंह की नज़दीकियों का ही असर कहा जा सकता था कि दोनों एक दूसरे की तारीफ में जुटे रहते थे. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया था कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए.

इस दोनों के अलावे और भी गवाह थे, जिन्हें न केवल अंग्रेजी शासक ने बल्कि भारतीय शासकों ने भी मालामाल कर दिया है :

  1. दिवान चन्द फ़ोर्गाट : दिवान चन्द फ़ोर्गाट D.L.F. कम्पनी का founder था,  इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में काटी थी. इसकी इकलौती बेटी थी जो कि K.P.Singh को ब्याही और वो मालिक बन गया DLF का .अब K.P.Singh की भी इकलौती बेटी है जो कि कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आज़ाद (गुज्जर से मुस्लिम Converted) के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है . अब ये DLF का मालिक बनेगा.
  2. जीवन लाल : जीवनलाल मशहूर एटलस कम्पनी का मालिक था.
  3. नवीन जिंदल की बहन के पति का दादा
  4. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा

विश्व इतिहास का यह अनोखा देश है जहां आज भी देशद्रोही-गद्दारों को पुरस्कृत किया जाता हो और देशभक्तों को न केवल उपेक्षित ही किया जाता है, वरन्, उसके परिजनों को दर-दर का ठोकर खाने को विवश किया जा रहा हो. शायद यही कारण है कि देश की सत्ता पर आज गद्दारों ने कब्जा जमा लिया है और किसानों, मजदूरों, छात्र-नौजवानों को ‘देशद्रोही’ का तमगा बांटता नजर आ रहा है.




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ROHIT SHARMA

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