Home ब्लॉग संविधान जलाने और विक्टोरिया की पुण्यतिथि मानने वाले देशभक्त हैं, तो रोजी, रोटी, रोजगार मांगने वाले देशद्रोही कैसे ?

संविधान जलाने और विक्टोरिया की पुण्यतिथि मानने वाले देशभक्त हैं, तो रोजी, रोटी, रोजगार मांगने वाले देशद्रोही कैसे ?

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संविधान जलाने और विक्टोरिया की पुण्यतिथि मानने वाले देशभक्त हैं, तो रोजी, रोटी, रोजगार मांगने वाले देशद्रोही कैसे ?

बिजली, पानी, रोजगार, चिकित्सा आदि जैसे बुनियादी सुविधाओं की मांग करने वाला देश का हर नागरिक देशद्रोही हो जाता है. हर वह संस्था, संगठन या व्यक्ति जो आम जनता की बुनियादी सुविधाओं की मांग करता है, देशद्रोही माना जाता है.असली देशद्रोही तो देश का संविधान जलाकर और रानी विक्टोरिया का पुण्यतिथि मनाकर भी देशभक्त बनकर लोगों के संवैधानिक अधिकार को कुचल रहा है. उनकी बुनियादी सुविधाओं को लूट रहा है. उनकी इज्जत-आबरू तक को बाजार में निलाम कर रहा है. आये दिन महिलाओं पर हमले कर रहा है और आस्था के नाम पर लोगों का खून बहा रहा है.

अफजल गुरू को संसद पर हमले के आरोप में फांसी पर चढ़ाने वाली कोर्ट का निर्णय और उनकी अंतिम संस्कार हेतु उनका पार्थिव शरीर भी उनके परिजनों को उपलब्ध न कराने वाली सरकार जब अफजल गुरू का समर्थन वाली पीडीपी के साथ सरकार बनाकर अपनी देशभक्ति का प्रमाण देश भर में बांटी थी, वही अब जेएनयू में अफजल गुरू के समर्थन में कथित नारेवाजी को मुद्दा बनाकर देशद्रोह का मामला दर्ज कर छात्रों को परेशान कर रही है, उसे देश भर में देशद्रोही होने का तमगा बांट रही है. सवाल तो फिर यही उठ जाता है कि गांधी की हत्या करनेवाला आतंकवादी नाथूराम गोडसे को कोर्ट के द्वारा फांसी देने के वाबजूद नाथूराम देशभक्त हो सकता है, तो अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ानेवाली कोर्ट के फैसले के बाद भी अफजल गुरू को देशद्रोही कैसे माना जा सकता है ? अफजल गुरू को देशभक्त मानने वाली राजनीतिक दल पीडीपी के साथ सरकार बनाकर भी भाजपा जब देशभक्त बनी रह सकती है तो उसके समर्थन में नारे लगाने वाले देशद्रोही कैसे हो सकते हैं ? हलांकि यह भी एक तथ्य है कि जेएनयू में अफजल गुरू के समर्थन में नारे लगाने वाला भी यही हिन्दुत्ववादी संगठन है, जिसका उद्देश्य जेएनयू को बदनाम करना है ताकि जेएनयू के माध्यम से देश के गरीब-पिछड़े तबके के छात्र उच्च शिक्षा हासिल न कर सकें.

असल में देशभक्ती और देशद्रोही का पैमाना भाजपा-आरएसएस अपने जरूरत के हिसाब से तय करता है. मसलन, आजादी के पूर्व संध्या पर जंतर-मंतर पर देश का संविधान जलाने वाला हिन्दुत्ववादी संगठन देशभक्त है, उसी तरह 22 जनवरी को भारत को गुलाम बनाने वाली ब्रिटेन की पूर्व महारानी विक्टोरिया की 118वीं पुण्यतिथि मनाने वाला हिदुत्ववादी संगठन देशभक्त हो जाता है, परन्तु बिजली, पानी, रोजगार, चिकित्सा आदि जैसे बुनियादी सुविधाओं की मांग करने वाला देश का हर नागरिक देशद्रोही हो जाता है. हर वह संस्था, संगठन या व्यक्ति जो आम जनता की बुनियादी सुविधाओं की मांग करता है, देशद्रोही माना जाता है.

विदित हो कि देशद्रोह या राजद्रोह का कानून ब्रिटिश हुकूमत ने अपने राज को स्थापित करने और हर देशभक्त को कुचलने या फांसी पर लटकाने के लिए बनाया था. इस कानून को बनाने वाली ब्रिटिश हुकूमत ने भी बदलते वक्त के साथ करीब एक दशक पूर्व ही अपने देश से यह कानून खत्म कर दिया है. इसके वाबजूद आज भी इस कानून को सीने से चिपकाये यह सत्ता देशभक्तों को देशद्रोही का चोंगा पहना रही है, तो इसका मायने पूरी तरह स्पष्ट है कि जिस प्रकार ब्रिटिश हुकूमत ने देशभक्तों को देशद्रोही कहा था, आज भी देशभक्तों को देशद्रोही कहा जा रहा है. असली देशद्रोही तो देश का संविधान जलाकर और रानी विक्टोरिया का पुण्यतिथि मनाकर भी देशभक्त बनकर लोगों के संवैधानिक अधिकार को कुचल रहा है. उनकी बुनियादी सुविधाओं को लूट रहा है. उनकी इज्जत-आबरू तक को बाजार में निलाम कर रहा है. आये दिन महिलाओं पर हमले कर रहा है और आस्था के नाम पर लोगों का खून बहा रहा है.




रानी विक्टोरिया की पुण्यतिथि मनाने वाले हिन्दुत्ववादी संगठन ने यह साबित कर दिया है कि वह आज भी देश में ब्रिटिश हुकूमत के दलाल और जासूस हैं, जो देश में विदेशी हुकूमत का आज भी सबसे बड़ा पैरोकार हैं. यही हिन्दुत्ववादी संगठन ब्रिटिश काल में स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेजों की जासूसी कर उन्हें मौत के घात उतारते थे, उनके खिलाफ कोर्ट में फर्जी गवाही देकर उन्हें जेलों में बंद करवाते थे, उनको फांसी की सजा दिलवाते थे, और अब जब ब्रिटिश राज प्रत्यक्ष रूप से खत्म हो गया है, तब देश में शिक्षा, रोजगार की बात करने वाले, समानता की बात करने वालों को मौत के घात उतार रहे हैं.

यह देश की कितनी बड़ी बिडम्बना है कि आज देश में वैसे ताकतों ने सत्ता हथिया लिया है, जिन्होंने इस देश के खिलाफ ही हमेशा संघर्ष किया है. देशवासियों के खून से अपने हाथ रंगे हैं. देशवासियों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया का वाहक बने हैं. यह हमारी पीढ़ी पर एक कलंक की तरह बन गया है, जब हमने अपने ही पितामह के कुर्बानियों को कौड़ी के मोल उन देशद्रोहियों के यहां गिरवी रख दिया है, जिनके हाथ हमारे पितामहों से खून से सने थे.

हमें अपना इतिहास याद रखना चाहिए. कहा जाता है कि जो अपना इतिहास भूल जाता है, इतिहास उसे भी मिटा देता है. हमें अपने पितामहों की कुर्बानियों को याद रखना चाहिए. साथ ही उन्हें भी याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारे पितामहों के खून से अपने हाथ रंगे थे, वरना इतिहास हमें कभी क्षमा नहीं करेगा. वह हमें भी मिटा कर ही दम लेगा.




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