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कैसा राष्ट्रवाद ? जो अपने देश के युवाओं को आतंकवादी बनने को प्रेरित करे

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कैसा राष्ट्रवाद ? जो अपने देश के युवाओं को आतंकवादी बनने को प्रेरित करे

आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने और जमानत पर जेल से बाहर आई प्रज्ञा ठाकुर ने बयान दिया कि ‘उसके श्राप ने हेमंत करकरे की जान ले ली’. हेमंत महाराष्ट्र में सिर उठाती आतंकवादी गतिविधियों के पीछे कौन लोग हैं, की जांच कर भंडाफोड़ करने वाले एक पेशेवर कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी थे. प्रज्ञा ठाकुर के बयान कि ‘उनके श्राप ने हेमंत करकरे की जान ले ली’ से मानसिक रूप से आहत हुए पंजाब पुलिस विभाग के एक पूर्व डीजीपी एस. एस. विर्क का एक लेख, 23 अप्रैल के “द इंडियन एक्सप्रेस“ ने Rest in peace, Hemant शीर्षक से प्रकाशित किया है. इस लेख का भावानुवाद नीचे दे रहा हूं.

यह लेख इस ओर इंगित करता है कि महाराष्ट्र में किस तरह मुस्लिम कट्टरपंथियों का मुकाबला करने के नाम पर हिन्दू कट्टरपंथियों ने भोले-भाले युवाओं को धर्म, देश और राष्ट्रवाद के भावनात्मक जाल में फंसाकर उनका भविष्य बर्बाद ही नहीं कर दिया बल्कि देश के कानून को अपने हाथों में लेना सीखा दिया, और युवाओं का यह संगठन आतंक का पर्याय बन गया. हिंदुत्व के नाम पर इस गैर-कानूनी और विभत्स गतिविधियों को किस तरह सिर्फ राजनैतिक ही नहीं पुलिस, प्रशासन और यहां तक कि सेना के जिम्मेदार अधिकारियों का संरक्षण और आशीर्वाद भी प्राप्त था.




यह माहौल जिस राष्ट्रवादी मानसिकता पर आधारित है की पुष्टि हाल ही में मध्य प्रदेश के भाजपा प्रमुख के उस बयान से भी होती है, जो उन्होंने भोपाल की एक चुनावी रैली में दिया है कि ‘भगवाधारी कभी आतंकवादी नहीं होता’.

‘आतंकवाद को सरल शब्दों में ऐसे भी समझा जा सकता है कि किसी नीतिगत मान्यता के प्रति कट्टरता और उस नीति में आस्था न रखने वालों को दुश्मन समझ, उनको सजा देने का जनून ही आतंकवाद है’. यानी ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ में आस्था न रखने वालों को सजा देना उन लोगों के लिए ‘भगवा आतंकवाद’ है, जो हिन्दूराष्ट्रवाद में आस्था नहीं रखते.

वर्तमान राजनैतिक हालात में यह आशीर्वाद अपने चरम पर है. गुजरात में हार्दिक पटेल को जिन कारणों से चुनाव लड़ने के लिए रोका जाता है, उनसे भी गम्भीर आरोपों में घिरी प्रज्ञा ठाकुर को अब मोदी पार्टी चुनाव लड़ा रही है ? भाजपा का नाम पर्दे के पीछे छुपा दिया गया है, 2019 में मोदी अपनी सरकार बनाने के लिए चुनाव मैदान में है –  विनय ओसवाल]




भोपाल संसदीय सीट से भाजपा की उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने 18 अप्रैल को एक गैरजिम्मेदार और विवादास्पद बयान दिया. पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक को संबोधित करते हुए, उन्होंने स्वर्गीय हेमंत करकरे को निशाना बनाया, जिन्होंने मालेगांव विस्फोट में उनकी कथित भूमिका के लिए उन्हें 2008 में गिरफ्तार किया था. प्रज्ञा ठाकुर ने दावा किया कि यह उसका ही श्राप (“तेरा सर्वनाश होगा“) था, जिसने बाद में जल्द ही करकरे का जीवन समाप्त कर दिया. बाद में इस बयान के मीडिया में आ जाने से उपजे विवाद के चलते भले ही उन्हें अपने बयान को वापस लेना पड़ा हो, परंतु इसने मुझे 11 साल पीछे की यादों में धकेल दिया. मृत्यु के लगभग एक महीने पहले, मैंने हेमंत के साथ हिंदू प्रतिक्रियावादी समूहों या तथाकथित “भगवा आतंक“ द्वारा हिंसा के मुद्दे पर चर्चा की थी. मैं हेमंत को अपने कैडर-मेट के रूप में जानता था और वह प्रतिनियुक्ति पर नई दिल्ली में तैनात था. एक बढ़िया अधिकारी, उनकी अपने विभाग में एक उत्कृष्ट, पेशेवर, बढ़िया पुलिस अधिकारी के रूप प्रतिष्ठा थी.

पंजाब में काम करने और एक दशक से अधिक समय तक वहां पनपते लडाकूपन / आतंकवाद से जूझते रहने के बाद, आतंकवाद निश्चित रूप से मेरे लिए एक दिलचस्प विषय बन गया था. भले ही इसका रंग रूप कुछ भी हों.

एक दिन, अक्टूबर, 2008 में, नई दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के स्वागत कक्ष में मेरा हेमंत से आमना-सामना हो गया. मैंने उनसे आतंकवाद के इस नए रूप के बारे में पूछा – ‘क्या यह असली था ? यदि हां, तो मामला कितना गंभीर था, इसके कार्य करने के तौर-तरीके क्या हैं और इसकी क्षमता क्या है ?’ हम अपने कमरे में लगभग दो घंटे बैठे जहां करकरे ने मुझे कट्टरपंथी हिंदू युवकों से जुड़े समूहों द्वारा की गई हिंसा के कृत्यों के बारे में बताया, जो कुछ समय से उग्र हिदू युवकों द्वारा मुस्लिम उग्रवादी समूहों के विरुद्ध काम कर रहे थे.




उन्होंने मुझे बताया कि कुछ विस्फोट बिना किसी कारण के महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में हुए, जिसने उन्हें सोच में डाल दिया. कुछ विस्फोट हिंगोली और नांदेड़ जिलों के मराठवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में हुए थे. आकस्मिक हुए इन विस्फोटों के मामलों में कुछ व्यक्तियों को चोटें आईं लेकिन विस्फोटों के लिए कोई संतोषजनक स्पष्ट कारण तब सामने नहीं आया था. करकरे ने महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद-रोधी दस्ते के प्रमुख के रूप में, कुछ विस्फोट स्थलों का दौरा किया और घायल हुए व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की भी जांच की. दिलचस्प बात यह है कि उनकी पूछताछ से पता चला है कि घायल व्यक्ति आरएसएस से जुड़े कुछ अल्ट्रा हिंदू समूहों के करीबी थे. गहराई से जांच करते हुए करकरे ने अपनी पूछताछ के दायरे को विस्तार दिया और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह के मामलों को सत्यापित करना शुरू किया. इन जांचों से रोचक परिणाम सामने आए. उनके पहले के छापों और गहरी जांच के बाद जो तथ्य सामने आए थे, उनकी पुष्टि हुई. कट्टरपंथी हिंदू गुट मुस्लिम आतंकी गुटों की चुनौतियों से निबटने के लिए आतंकी मॉड्यूल की शक्ल ले चुके हैं और अब सिर उठा रहे हैं.

इन उग्र हिन्दू युवाओं ने ‘अभिनव भारत’ नाम का एक संगठन बना लिया था, जो एक सामाजिक संगठन के रूप में शुरू हुआ था, जिसने युवा हिंदू लड़कों को शामिल किया, उन्हें कट्टरपंथी बनाया और उन्हें इस्लामी ताकतों द्वारा उत्पन्न खतरों से अवगत कराया. और हिंदू आबादी के भीतर इस्लामी उग्रवादियों की चुनौतियों से निबटने में सक्षम समूह बनाने की जरूरत को समझाया. इसने उन समूहों का भी निर्माण किया जो मुस्लिम क्षेत्रों में विस्फोट कर सकें और पूरी कार्यप्रणाली इस तरह से संचालित हों कि शक की सुई मुस्लिम समूहों की ओर मुड़ जाये. वास्तव में, पुलिस पहले से ही मुसलमानों के बीच अपराधियों की तलाश कर रही थी लेकिन इस रहस्योद्घाटन ने जांच की दिशा को पूरी तरह से बदल दिया. कई मामलों में, हिंदू समूहों की आपराधिक लिप्तता और भागीदारी स्पष्ट रूप से जल्द ही स्थापित हो गई.

करकरे ने मालेगांव विस्फोट मामले की सफलतापूर्वक जांच की, जिसमें यह हिंदू गुट शामिल था. जांच में यह प्रमाणित हुआ कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम पर पंजीकृत थी, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया था. जांच में कई अन्य व्यक्तियों की सक्रिय भूमिका भी स्थापित हुई, जिनमें भारतीय सेना के एक लेफ्टिनेंट कर्नल पद पर कार्यरत अधिकारी भी शामिल थे. करकरे और उनकी टीम ने सबूत एकत्र किए और उनमें से कई को गिरफ्तार किया, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित भी शामिल थे.




करकरे ने मुझे यह भी बताया कि राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्रों के कई प्रभावशाली और जिम्मेदार शख्सियतों ने उन पर इस बात के लिए दबाव बनाया कि मैं इन समूहों के विरुद्ध किसी तरह की कार्यवाही न करूं. क्योंकि उनकी निगाह में ये “राष्ट्रवाद की ताकत“ थे. लेकिन करकरे को भरोसा नहीं हुआ. बाद में, दबाव डालने वालों ने उन पर मुस्लिम समर्थक या हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाने की कोशिश की. मुखर रूप से ऐसा आरोप लगाने वाले एक बड़े अधिकारी से मैने कहा “सर, मैं एक उच्च जाति का महाराष्ट्रियन ब्राह्मण और हिंदू हूं लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि केवल मुस्लिम और सिख ही आतंकवादी हैं और हिंदू समूहों के हिंसक कृत्य को माफ / नजरअंदाज कर देना चाहिए ? उन्होंने (करकरे ने) खुद को धार्मिक कारणों से इस तरह घेरने पर कड़ी आपत्ति की. “वह (अपने साक्ष्यों और सबूतों की) जमीन पर मजबूती से खड़ा रहा.“

दुर्भाग्य से, मुंबई में करकरे 26/11/2008 की रात को आतंकवादियों के हमले में मारे गए. उनकी अचानक मृत्यु के कारण, जिस पेशेवर कर्तव्य-परायणता, समर्पण और प्रतिबद्धता जो उन्होंने इस मामले में अब तक बनाये रखी थी, कुछ हद तक ढीली पड़ गई. इसी तरह, बदले हुए राजनीतिक समीकरणों ने अपनी भूमिका निभाई और मामले की जांच एनआईए को स्थानांतरित कर दी गई. बाद में, महाराष्ट्र में भी इसी तरह के राजनीतिक परिवर्तन हुए और मामले पर पकड़ बिल्कुल ढीली हो गई.

एक और परिणाम यह हुआ कि मुख्य आरोपी प्रज्ञा ठाकुर जमानत पर जेल से बाहर आ गई. यही नहीं, करकरे पर दबाव डालने की कोशिश करने वाली छिपी हुई ताकतें अब और मुखर हो गई हैं. उन्होंने न केवल ठाकुर को स्वीकार किया है, बल्कि उन्हें भोपाल से सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार के रूप में भी अपनाया है. छिपा हुआ हाथ अब छिपा नहीं है. मुझे लगता है कि हेमंत करकरे को दोष देना अभी शुरू हुआ है, यह अभी और जोर पकड़ेगा. ठाकुर ने कहा कि यह उनका अभिशाप था जिसने करकरे की जान ले ली. अपनी स्वयं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए, उसने एक पेशेवर और कर्तव्य-परायण अधिकारी पर सारा दोष डालने की कोशिश की, जिसने अपना जीवन कर्तव्य के लिए त्याग दिया था.




ठाकुर शायद भूल गई कि करकरे के अलावा, बॉम्बे पुलिस के 15 अन्य अधिकारी और पुरुष और दर्जनों निर्दोष नागरिक भी 26/11 को मारे गए थे. क्या यह हम-आप को अजीब नहीं लगता है कि मसूद अज़हर के दूतों द्वारा चलाई गई गोलियों के माध्यम से उसका श्राप फलीभूत हुआ ? सच्चाई यह है कि साध्वी और मसूद अजहर दोनों करकरे को मारना चाहते थे; दोनों ने उसकी मृत्यु का जश्न मनाया, हालांकि अलग-अलग कारणों से.

लोकतंत्रों में, कई गलत चीजें होती हैं लेकिन यह शोरगुल जबरदस्त है. आतंकवाद के मुकदमे का सामना करने वाले एक अभियुक्त को एक पार्टी के उम्मीदवार और एक राष्ट्रीय नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. जिसने अपने जीवन का बलिदान दिया, उसके बलिदान को अपमानित किया जा रहा है. क्या शासकों की ओर से इस तरह का गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार समाज या उसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नुकसान नहीं पहुंचाएगा ? हम अपने समाज को कितना संवेदनशील और उदासीन बनाना चाहते हैं ?

हेमंत ! तुम शांति से चिर निद्रा में विश्राम करो. तुमको निश्चित रूप से किसी साध्वी जिसने आपको शाप दिया हो या मसूद अजहर के दूतों से, जिसकी गोली के सामने तुमने परम बलिदान दिया है, प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है. मुझे यकीन है कि आने वाली पीढ़ियां हमेशा अपने भविष्य की दिशा और लक्ष्य निर्धारित करने के लिए आपको अपना आदर्श मानती रहेंगी. आपको मेरा सलाम.




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