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भाजपा-आरएसएस के साथ कौन से तत्व हैं, जो उसे ताकत प्रदान करती है ?

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भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जब यह ऐलान करते हैं कि ‘हम पचास साल तक राज करेंगे’, तब यह समझना होगा कि भाजपा को आखिर वह कौन-सी ताकत है, जो उसे यह बयान देने का साहस देता है. इसकी समयोचित पड़ताल आज देश में लागू इस संविधान, जिसे लाखों लोगों ने अपने खून से सींचा है, को बचाने के लिए जरूरी है. बार-बार भाजपा-आरएसएस की ओर से बेशर्मी की हद तक जाकर यह बयान जारी किया जा रहा है कि अगर 2019 में भाजपा की सरकार आई तो इस देश के संविधान को बदल देंगे. आखिर, उसे यह सब कहने-बोलने का साहस कहां से मिलता है ? देश में कौन से तत्व हैं, जो इस देशद्रोही-संविधान विरोधी ताकतों को बल प्रदान कर रहा है ? आखिर वह कौन-सी ताकत हैं, जो देश में संविधान विरोधी न केवल नारे ही लगाते हैं, बल्कि उसे सरेआम जला भी रहे हैं ? इसकी पड़ताल बेहद जरूरी है, अन्यथा देश को न तो बचाया ही जा सकता है और न ही भाजपा-आरएसएस की मनोबांछित ‘मनुस्मृति’ को देश का संविधान बनाये जाने से रोका ही जा सकता है. आईये, इसकी पड़ताल करते हैं.

ब्राह्मणवादी ताकतें :

दुनिया की सबसे अधिक अमानवीय व क्रूर व्यवस्था या धर्म ब्राह्मण धर्म है. ब्राह्मण धर्म की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह कमजोरों के ऊपर अकथनीय जुल्म ढाता है. उसपर शारीरिक हिंसा, हत्या, बलात्कार आदि जैसे पैतरे खूब आजमाता है. उसे पशु मानता है, और उसके साथ उसी तरह का क्रूर व्यवहार करता है. इसके ठीक उलट ताकतवर के सामने दुम हिलाता है. उसके सामने अगर अपनी बहन-बेटियों को भी परोसना पड़े तो वह जरा भी नहीं हिचकिचाता है. भारत का सम्पूर्ण इतिहास ब्राह्मणधर्म की इस सच्चाई को व्यक्त करता है. यही कारण है कि ब्राह्मणधर्म कुछ समय के लिए दब जरूर जाता है, पर वह कभी खत्म नहीं हुआ. वह अपने हर कुकृत्यों को बड़े ही करीने से सजा कर पेश करता है, और खुद को जायज ठहरा देता है. सवाल उठाने की किसी को हिम्मत नहीं होती क्योंकि कमजोर पूछ नहीं सकते और ताकतवर को पूछने की जरूरत नहीं पड़ती. देश में पहली बार ब्राह्मणधर्म को खतरा महसूस हुआ गौतम बुद्ध से, जिनके उपदेशों व कमजारों के पक्ष में डट कर खड़े होने से देश में ब्राह्मणधर्म संकट में आया. परन्तु सम्राट अशोक के मृत्यु के बाद सत्ता में आये उनके पोते वृहद्रथ मौर्य के वक्त में ब्राह्मणधर्म ने अपना सर तब उठाया जब उनके ही कट्टर ब्राह्मणवादी सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से वृहद्रथ मौर्य का सर काट लिया और बौद्धों के खिलाफ एक जबदस्त हिंसक मुहिम का सुत्रपात किया और दुनिया के सबसे बड़े बौ़द्ध धर्म को समूल नष्ट कर ब्राह्मणधर्म की पुनर्स्थापना की, जिसे बाद में पुष्यमित्र शुंग के दरबारी ब्राह्मणवादी कवि बाल्मिकी ने राम के रूप में चित्रित किया और बौद्ध वृहद्रथ मौर्य को रावण कहकर अपमानित करने के लिए रामायण जैसे कल्पित कथा और पात्रों को लिखा, जिसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था.

ब्राह्मणधर्म दूसरी बार संकट में तब आया जब भारत में मुस्लिम धर्म आया. समानता और बंधुत्व जैसी अवधारणा को लेकर जब मुस्लिम धर्म भारत में आया तब ब्राह्मणधर्म का जुल्म कमजोर दलितों, शुद्रों, महिलाओं, आदिवासियों पर खूब था, जिसका फायदा मुस्लिमों को मिला और बड़े पैमाने पर निम्न वर्ग के दुःखी लोग ब्राह्मणधर्म का परित्याग कर मुस्लिम धर्म को स्वीकार कर लिये. पर संगठित और ताकतवार मुस्लिम धर्मावलंबियों पर हमला करने का साहस ब्राह्मणधर्म को मानने वाले कभी साहस नही जुटा सके, उल्टे अपनी बहन-बेटियों को मुस्लिम शासकों आदि को देकर अपनी ब्राह्मणवादी सत्ता को अक्षुण्ण रखें.

‘कमजोरों के ऊपर जुल्म ढाना और ताकतवरों के सामने दुम हिलाना’ ब्राह्मणवाद का एक ऐसा चरित्र जिसकी कोई काट नहीं हो सकती थी. परन्तु, ब्राह्मणवादी समाज व्यवस्था पर पहली बार हमला तब हुआ जब भारत में अंग्रेज आये और एकबारगी ब्राह्मणवादी कुव्यस्था पर प्रहार कर सामाजिक तौर पर देश में उथल-पुथल मचा दिया. अंग्रेजों ने दलित-शुद्रों को एकजुट कर, जो ब्राह्मणवादी समाज व्यवस्था में अपना निकृष्टतम जीवन व्यतीत कर रहे थे, ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर हमला बोल दिया, जिसमें पहला सफल शिकार बना था महाराष्ट्र का घोर मानवताविरोधी ब्राह्मणवादी निकृष्ट पेशवाई राज.

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