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नालंदा और तक्षशिला पर रोने वाला अपने समय की यूनिवर्सिटियों को खत्म करने पर अमादा है

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नालंदा और तक्षशिला पर रोने वाला अपने समय की यूनिवर्सिटियों को खत्म करने पर अमादा है

टीवी में जो दिखाया जा रहा है उसके इतर, जेनएयू पर हुए सरकारी हमले की इस क्रोनोलॉजी को पढ़ लीजिए. जेनएयू में असल में क्या हुआ है, ये सारी बातें आपको मोदी-मीडिया नहीं बताएगा, क्योंकि जो एंकर आपके सामने खबर पढ़ रहा है, उसकी सैलरी, चैनल के मालिक की जेब से आती है, और मालिक की जेब में पैसा सरकार के विज्ञापन से आता है. इसलिए टीवी मीडिया से कम ही उम्मीद रखिए.

जेनएयू का पूरा घटनाक्रम कुछ इस तरह है –

1.एक दिन पहले ही धरने पर बैठी हुई लड़कियों के पास कंडोम फैंके गए. हिन्दू राष्ट्र में कन्डोम ‘प्रोटेक्शन’ से ज्यादा औरतों पर लांछन लगाने के लिए यूज किए जाते हैं, बस ये याद रख लीजिए. जेनएयू में किसके चरित्र हनन के लिए ऐसा कृत्य किया गया, समझना मुश्किल नहीं है. शुरू में लगा था कि कुछ लोग होंगे जो कंडोम की फर्जी फोटोज खींचकर जेनएयू को बदनाम करेंगे बस. जैसे गांव में किसी विधवा पर तमाम अफवाहें, लांछन लगाए जाते हैं, ठीक ऐसे ही.

2. सुबह से ही डीयू-एबीवीपी के लड़के बाहर से जेएनयू में आयातित किए गए. सुबह से मूंह ढकी एक टोली का झुंड जेएनयू के ढाबों, हॉस्टलों के आसपास मंडराने लगा. छात्रों ने सुबह से ही ऐसे संदिग्धों के खिलाफ फेसबुक पर शंका जताना शुरू कर दिया था कि जेनएयू में आज कुछ बुरा होने वाला है, कोई साजिश रची जा रही है, इसलिए उन्होने पुलिस को शुरू में ही फ़ोन कर दिया. लेकिन पुलिस का रवैया इतना लचर था कि इससे पहले कभी नहीं देखा गया था. याद रहे ये दिल्ली पुलिस का हाल था, देश की राजधानी में. वायरल व्हाट्सएप ग्रुप की चैट से पता चल जा रहा है कि यह सब सरकार की शह में किया गया है. वाकायदा आरएसएस के गुंडों की एक टोली जेनएयू में दाखिल कराई गई, जिसकी वीडियोज अब सबके सामने आ ही चुकी हैं.

3.शाम होते-होते एबीवीपी के ‘सेफ्टी वॉल्व’ के रूप में सिविल ड्रेस पहने पुलिस बल भेजा जाने लगा, जिसने बाहर से जेनएयू के मेन गेट को घेर लिया, जिससे मीडिया और सिविलियंस अंदर न जा सकें.

4. अब लाठी-डंडे वाले गुंडे कैम्पस के अंदर हैं और उनके संरक्षण के लिए पुलिस बाहर तैनात है. वाकायदा पोजिशन लेकर. याद रहे अंदर गर्ल्स हॉस्टलों तक के कमरों में घुस-घुसकर मारपीट की गई, लाइव इस बात की वीडियोज बाहर आने लगी, लेकिन इन गुंडों को रोकने पुलिस का एक सिपाही भी नहीं भेजा गया. पुलिस का बल गेट पर ही तैनात रहा ताकि कोई भी अंदर न जा पाए, अंदर की खबर बाहर न कर पाए.

5. कैम्पस के बाहर एक और भीड़ आती है जो धार्मिक नारे लगाती है. आरएसएस के संगठनों के लोग पहुंच जाते हैं. ये प्रशिक्षित भीड़ थी, जिनके नारे, भाषा, हरकतों से साफ पहचाना जा सकता था इसलिए इन्हें एक भीड़ कहने के बजाय ‘कारसेवक’ कहना अधिक उचित है, ऐसी ही भीड़ जैसी कभी बाबरी को ढहाने के लिए खड़ी हुई थी. सोचिए मस्जिदों से कारसेवा उतरकर, अब शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंच चुकी है.

6. जेनएयू में हुए इस हिंसक हमले की खबरें जैसे ही आसपास फैलती हैं. वहां के पूर्व छात्र होने के नाते छात्रों की सलामती के लिए योगेंद्र यादव वहां पहुंचते हैं. योगेंद्र यादव को आपने पहले भी पढ़ा-सुना होगा. उनसे ज्यादा सौम्यभाषी भारत में कम ही लीडर मिलेंगे. बाहर पहले से ही खड़े आरएसएस के गुंडों ने योगेंद्र यादव को जमीन पर गिरा लिया, इसकी भी वीडियोज सबके सामने हैं. याद रहे मौकास्थल पर पुलिस है लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही. योगेंद्र को बचाने की कोशिशें तो हुईं, लेकिन उन गुंडों को भगाने की कोशिश पुलिस ने नहीं की, जो योगेंद्र को घसीटकर ले जा रहे थे. क्या इन गुंडों पर हत्या का केस नहीं चलना चाहिए ? लेकिन कुछ नहीं होगा, क्योंकि इस देश के गृहमंत्री पर ही हत्याओं और कत्लों के मुकदमें चल रहे हैं. उससे क्या ही उम्मीद करना. जब योगेंद्र मीडिया से बात कर रहे थे तो ये भीड़ तेज तेज नारे लगाकर उन्हें जेएनयू की घटना के बारे में मीडिया को नहीं बताने दे रही थी, अंदर पुलिस नहीं घुसने दे रही, बाहर गुंडे बोलने नहीं दे रहे, तभी सोचिए कितना भयावह दृश्य रहा होगा !

7. जेनएयू के मेन गेट के सामने वाले क्षेत्र को मुनिरका कहते हैं. जब हमले की इस खबर को सुनकर आम सिविलियन्स मुनिरका की तरफ पहुंचने लगे, तो आरएसएस के गुंडों ने उनके फोन छीनना शुरू कर दिया. जमकर पिटाई की सो अलग. पास ही के मीडिया इंस्टिट्यूट आईआईएमसी के भी कई पत्रकार छात्रों के साथ पिटाई की गई, इसमें एक मेरी एक लड़की दोस्त के साथ भी बद्तमीजी की गई. उसके बाल तक खींचे गए, इन सभी दोस्तों को मैं निजी रूप से जानता हूं. आज तक की भी एक रिपोर्टर का कैमरा तोड़ दिया गया. ऐसे कितने ही लोगों के फोन छीन लिए गए ताकि अंदर और बाहर दोनों जगह के गुंडों की कोई भी करतूतें देश को पता न चले.

8. जेएनयू पर हुए इस टेरर अटैक की खबरें जब दिल्ली भर में पहुंच गई तो कुछ स्थानीय अस्पतालों, एनजीओ से वहां कुछ एम्बुलेंस पहुंचती हैं, बाहर खड़े आरएसएस के संगठनों की उस भीड़ ने एम्बुलेंसों के टायर पिंचर कर दिए. कइयों के साथ तोड़-फोड़ की गई. ये कोई हवा-हवाई बातें नहीं बना रहा, इन सभी बातों के सबूत हैं, वीडियोज हैं, एम्बुलेंसों के साथ ऐसी घटनाएं इस देश में पहली बार हो रही हैं.

9. गेट को घेरकर खड़ी आरएसएस के गुंडों की भीड़, न नागरिकों को विश्वविद्यालय में घुसने दे रही, न एम्बुलेंस को, न पत्रकारों को. किसी भी तरह की सहायता अंदर तक न पहुंच पाए, इसके लिए पूरा दम लगा दिया गया. इन गुंडों को इस बात की भी परवाह नहीं थी कि इलाज न मिल पाने की स्थिति में कोई मर न जाए. इससे ज्यादा नीचता का काम क्या हो सकता है ? क्या वहां युद्ध चल रहा था ? ऐसा काम कभी मुगल सेना किया करती थी, जो किले की रसद खत्म होने तक किले के बाहर डेरा डाले रखती थी, आज एक आजाद मुल्क इस स्तर पर गिर आया है.

10. कुछेक दर्जन घायल छात्र जैसे-तैसे एम्स पहुंचा दिए गए, वहां घायल लड़के-लड़कियों से मिलने ‘सीताराम येचुरी’ पहुंचे तो संघियों की एक दूसरी भीड़ ने अस्पताल पर भी घेरा मारा हुआ है. उन्हें भी अंदर छात्रों से मिलने न दिया गया. उनको भी वहां से भगा दिया गया. और ये सब एक आजाद, लोकतांत्रिक मुल्क में हो रहा है.

11. फिलहाल यानी करीब 12 बजे के बाद से ही जेनएयू में बड़ी ही भारी संख्या में पुलिसबल घुस चुका है. हाथ में लाठियां और हेलमेट हैं. बाकी क्या होना है भविष्य के गर्भ में है (सुबह 4 बजे की अपडेट है कि पुलिस की 8 बड़ी-बड़ी वैन कैम्पस में अंदर घुस चुकी हैं, जिनके पास आसूं गैस, से लेकर बाकी सबका पूरा इंतजाम है).

याद रहे कि ये वही कौम है जो सदियों पहले के नालंदा और तक्षशिला विश्विद्यालयों पर रोती है जबकि अपने ही समय की यूनिवर्सिटियों को खत्म करने पर अमादा है.

  • श्याम मीरा सिंह

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