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मोदी सरकार की अमेरिकापरस्त विदेश नीति

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[ माइकल नोस्टरैडैम्स (1503 – 1566) कहते हैं कि “किसी भी देश का शासक अगर अपनी जनता से ज़्यादा अपने वस्त्रों पर ध्यान दे तो समझ लीजिए कि उस देश की बागडोर एक बेहद कमज़ोर, सनकी और डरे हुए इंसान के हाथों में है.” तो वहीं मार्टिन लूथर किंग के अनुसार “जहां सियासत धार्मिक मसलों को शांत करे, वो देश महान होता है और जहां सियासत खुद धार्मिक मसलों को पैदा करे…. समझो देश को गलत लोग चला रहे हैं.”

कहना न होगा उपरोक्त दोनों कथन भारत की वर्तमान मोदी सरकार पर खड़ी उतरती है. एक कमजोर, सनकी, हत्यारे मोदी के कारण आज भारत की विदेश नीति अस्थिर, प्रतिक्रियावादी और अमेरिकापरस्त हो गया है, जिसका दुष्परिणाम यह देश वर्षों भोगता रहेगा. रविन्द्र पटवाल द्वारा किया गया आजादी के बाद और आज के विदेश नीति का विश्लेषण पाठकों के लिए प्रस्तुत है. ]

मोदी सरकार की अमेरिकापरस्त विदेश नीति

एक समय जब भारत नया नया आजाद हुआ था तो बेहद गरीब देश था, अरे भाई अंग्रेजों ने चूस रखा था न् ! एक-एक हड्डी देश की. लेकिन उस समय देश में और देश के नेताओ में गजब का आत्मविश्वास था. उस समय दुनिया में दो ध्रुव थे यानि दो महाबली थे जिन्होंने पूरी दुनिया को अपने -अपने खेमे में बांट रखा था. एक था अमेरिका और दूसरा था USSR अर्थात आज का रूस.

लेकिन नेहरू टीटो और मिश्र के प्रधान ने मिलकर एक तीसरा गुट अपना बनाया, जिसे गुट निरपेक्ष देशों का संगठन बताया गया.

भारत को जो सही लगता था उस देश से वह खरीदता था, चाहे कोई लाख चिल्लाये. याद रखें तब हमारी औकात आज की तुलना में कुछ भी नहीं थी, गुलामी से ताजा ताजा निकले थे और लोकतंत्र का टेस्ट भी नहीं हुआ था.

आज क्या हालात हैं ?

अमेरिका ने डांट दिया, ईरान से तेल मत लेना. दुनिया में ईरान ही एक दोस्त है भारत का जो आपको तेल के बदले में डॉलर के बजाय रूपये या आपके अनाज के बदले दे देता है. फिर किससे खरीदो ? यह अमेरिका बताता है. खामख्वाह एक भरोसेमंद दोस्त को आज दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत खो रहा है.

रूस से जरुरी हथियार खरीदना था क्योंकि सस्ता मिलता है और तकनीक भी हाथों हाथ आज तक मिलती रही है लेकिन बड़े डर-डर के किसी तरह कई साल बाद मिलने-मिलाने का दौर आजकल चल रहा है. हश्र क्या होगा नहीं पता. और ये तब है जब अमेरिका में सबसे बेवकूफ किस्म का बड़बोला राष्ट्रपति पद पर आसीन है, जिसे अमेरिकी भी अब भाव नहीं देते.

यह सब हममें से 90 मित्रों को पता है. लेकिन सवाल यह है कि हमारे देश की 65 आबादी जो 35 साल से कम है, उसे यह सब न पढ़ने को मिला और न उसे यह सब कोई बता रहा है कि एक समय जब हमारी छाती 32 इंच भी नहीं थी, हम दुनिया में किसी से डरते नहीं थे, पर आज ??

आज भारत की जनता के स्वाभिमान की कीमत पर किसी को (इस देश के क्रोनी कैपिटल मित्रों को) खुश करने के लिए देश की इज्जत, आर्थिक हित और अपने बराबर के दोस्त देशों से नाता तोडा जा रहा है क्योंकि अमेरिका का नियम है कि अगर कोई रूस के साथ रक्षा या फिर खुफिया विभाग से संबंधित सौदा करता है तो उसे अमेरिका के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है. लेकिन, रक्षा मंत्री जिम मैटिस की कोशिशों के कारण अमेरिकी संसद ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री को रूस के साथ सौदा करने वाले सहयोगी देशों को प्रतिबंधों से छूट देने का अधिकार दे दिया.

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One Comment

  1. इन्दर

    October 25, 2020 at 7:44 am

    लल्लू हो का , समझ मे नही आ रहा शायद । क्योंकि इतना तो दावे के साथ कह सकता हूँ कि यह जो लिखा गया है मोदी के बारे में वह सब बातें गलत हैं क्योंकि मोदी सरकार में एक विदेश नीति ही तो सही है ।

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