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देश को सबसे ज्यादा कर्ज में डुबाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने मोदी

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नरेन्द्र मोदी अब तक के सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले प्रधानमंत्री हैं. ये कांग्रेसियों या वामपंथियों के IT सेल की रिपोर्ट नहीं, बल्कि विश्व बैंक की रिपोर्ट है जो World Bank की Official Website पर उपलब्ध है….समीर शेखर का विश्लेषण

देश को सबसे ज्यादा कर्ज में डुबाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने मोदी

सोशल मीडिया पर यह मिथ्या ख़बर पिछले 4 महीनों से फैलाई जा रही है कि हमारी सरकार बिना विश्व बैंक से लोन लिए ऐतिहासिक विकास कर रही है…

ये भ्रम से बाहर आकर यह जानने का वक़्त है, कि नरेन्द्र मोदी अब तक के सबसे ज्यादा विदेशी कर्ज लेने वाले प्रधानमंत्री हैं. ये कांग्रेसियों या वामपंथियों के IT सेल का रिपोर्ट नहीं, बल्कि विश्व बैंक का रिपोर्ट है जो World Bank की Official Website पर उपलब्ध है.

बीजेपी आईटी सेल के द्वारा फैलाये गए भ्रामक ख़बरों के आधार पर प्रधानमंत्री समर्थकों द्वारा बुलंद आवाज में सामान्य लोगों के बीच इस भ्रम को और भी विस्तार से फैलाया जाता रहा है कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने शासन की बागडोर संभालने के बाद से वर्ष 2015, 2016 एवं 2017 तक विश्व बैंक से एक रुपये का भी कर्ज नहीं लिया है.

सोशल मीडिया पर यह मिथ्या ख़बर पिछले 4 महीनों से फैलाई जा रही है कि हमारी सरकार बिना विश्व बैंक से लोन लिए ऐतिहासिक विकास कर रही है. लेकिन हकीकत ये है कि भारत जैसे अर्थव्यस्था का पूर्णतः स्वाबलंबी हो पाना असंभव है, खासकर ऐसी स्थिति में जब डालर के मुकाबले रुपये के मूल्य निरंतर गिरते रहे हैं.

विश्व बाजार में प्रति बैरल तेल के दाम की तुलना में भारत में तेल के मूल्य में निरंतर वृद्धि हो रही है और सर्वाधिक महत्वपूर्ण ये है कि भारतीय निर्यात इसके आयात के मुकाबले कम ही रही है. यह भी सत्य है कि भारत जिस प्रकार की अर्थव्यवस्था है, और स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक सामाजिक संरचना, रक्षा, वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगिक विकास के क्षेत्र में जिन किन्ही परेशानियों से जूझ रहा उसमे पूंजी की कमी सर्वाधिक ध्यान देने योग्य है.

ऐसे में विश्व बैंक, IBRD, IDA, एसियन डेवलपमेंट बैंक सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों पर इसका निर्भर होना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता. चाहे सरकार या तंत्र किसी के भी हाथ में हो मगर इसके निरूपण, संचालन, रखरखाव व राजकोषीय कमी को पूरा करने के लिए ऐसे संस्थानों पर निर्भरता बेहद स्वाभाविक हो जाता है.

हास्यास्पद ये है कि आम जनता को जागरूक बनाने की बजाय सत्ताधारी दल के समर्थकों द्वारा बढ़ चढ़ कर यह अवांछित व झूठी ख़बरों को व्हाट्सएप, ट्वीटर व फेसबुक यूनिवर्सिटी पर धड़ल्ले से परोसा जा रहा है, ताकि आम जनता को लुभा सके. सत्ता की भूख ने नैतिकता को इतना बेबस कर दिया कि राजनेता से लेकर सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता इन्ही ख़बरों के सहारे वोट बटोरने की जुगत में लगे हैं.

सोशल मीडिया में बीजेपी समर्थकों से लेकर टेलीविजन स्क्रीन पर बैठे प्रवक्ताओं द्वारा लगातार हर विफलताओं के लिए कांग्रेस को कोसे जाने क्रम से आप भी अवगत हैं. एक भी सवाल जो सत्ताधारी दल के योजनाओं व कार्यों को लेकर इनके समक्ष खड़े किए जाते हैं उसका जवाब कांग्रेस के नाम का सहारा लिए बगैर संभव नही हो पाता या फिर सवाल की दिशा बदल दिए जाते हैं.

आए दिनों यत्र-तत्र व्हाट्सएप व फेसबुक जैसे प्लेटफोर्म पर यह ख़बरें खुमते हुए पायी जा रही है कि मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने विश्व बैंक से कर्जा लेकर भारतीय अर्थव्यवस्था को दवाब में ला खडा किया है. यही नहीं साथ में यह भी कि नरेंद्र मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं, उन्होंने विश्व बैंक से कोई कर्ज नहीं लिया है. लेकिन जब इसकी पड़ताल की, तो पता चला कि इस अफवाह के पीछे का सच कुछ और ही है.

विश्व बैंक की वेबसाइट पर साफ तौर पर लिखा गया है कि भारत और विश्व बैंक के बीच इसी साल 2 फरवरी 2018 को एक करार हुआ है. इसके तहत विश्व बैंक ने भारत को वाराणसी से हल्दिया के बीच 1360 किमी का जलमार्ग बनाने के लिए 375 मिलियन डॉलर का कर्ज दिया है.

इस करार पर भारत की ओर से इनलैंड वॉटरवेज अथॉरिटी के वाइस चेयरमैन प्रवीर पांडेय, भारत सरकार वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के जॉइंट सेक्रेटरी समीर कुमार खरे, और भारत में विश्व बैंक के डायरेक्टर जुनैद अहमद ने हस्ताक्षर किए हैं.

गौरतलब यह है कि साल 2013 में भारत पर कूल विदेशी कर्ज का भार 409.4 अरब डॉलर (GDP का 11.1 %) था जो 2014 में बढ़ कर 446.2 अरब डॉलर (GDP का 10.4 %) तथा 2015 में 474.7 अरब डॉलर (GDP का 8.8 %) हो गई और आगे यही भार प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में मार्च 2018 में 529 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया जिससे भारत का कूल विदेशी कर्ज में 12.4 % की वृद्दि दर्ज की गई.

यह अब तक की सर्वाधिक सालाना वृद्धि है. यही नहीं यह भार इतनी अधिक हो गई कि GDP का 20.9 % के बराबर पहुच गयी है. ऐसे में इस साल GDP में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि के जो आकड़े देश के सामने प्रस्तुत करके भ्रम फैलाए गए हैं यह भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का कितना विकृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है. हमें यह समझने की जरुरत है सरकार GDP के आंकिक आंकड़े की आड़ में अपनी तमाम आर्थिक विफलताओं को ढकने की कोशिश कर रही.

उपलब्ध आंकड़े के आधार पर यह बात सामने आती है कि स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत, गंगा की सफाई, प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) शिक्षा, ऊर्जा क्षेत्र आदि के विकास के नाम पर अकेले प्रधानमंत्री मोदी ने तक़रीबन 78 अरब डॉलर का कर्ज अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से 2014 से 2018 के बीच लिया है. वर्ल्ड बैक के ही रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ल्ड बैंक एवं IBRD जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था से विश्व में सर्वाधिक लोन लेने वाला देश के रूप में अपनी पहचान रखता है.

ट्वीटर पर जून 2018 को sagarika4india द्वारा संचालित ट्वीटर अकाउंट द्वारा जो गलत सुचना शेयर किया गया था कि भारत के 70 सालों के इतिहास में केवल 3 साल ऐसे हैं जब भारत ने वर्ल्ड बैंक से कर्ज नहीं लिया है 2015, 2016, 2017. इस पर हजारों लाइक्स और रिट्विट हुए जिसमें प्रधानमंत्री को हीरो बताया गया.

यही नही 2 जून को यह फेसबुक के राजनीति नामक पेज पर पोस्ट किया गया, जिसे 25,000 से ज्यादा लोगों ने शेयर किया और फिर वहां से बीजेपी IT सेल द्वारा सक्रियता से इस झूठी खबर को आम जनता तक सोशल मीडिया के माध्यम से पहुचाया जाने लगा. बाद में Zee News Fan Group द्वारा भी यह ख़बरें खूब फैलाई गई. इस खबर की सत्यता को जांचे परखे बगैर आम जनता के बीच ये धारणा बनने लगी की मोदी ने सच में बीते 3 वर्षों में वर्ल्ड बैक से एक भी पैसा कर्ज स्वरूप नहीं लिया.

मगर सत्य कितना भयावह है कि इस दौरान ही सरकार ने 96.56 अरब डॉलर (6952.32 अरब) का विशाल कर्ज लिया. यह बेहद आश्चर्य पैदा करता है कि हम शिक्षित समाज का हिस्सा होने के बावजूद भी बर्बाद को आबाद पढने लगे हैं.

2018 में लिए गए लोन के अलावा मोदी सरकार ने विश्व बैंक से जिन प्रमुख मुद्दों को परोस कर लोन लिया है उनका विवरण निम्नवत हैं :


लोन लेने की तिथि      लोन लेने के उद्देश्य                    लोन का आकार


23 जनवरी 2018     उत्तराखंड में जल आपूर्ति                120 मिलियन डॉलर (8 अरब)
31 जनवरी 2018     तमिलनाडु के गांवों के हालत सुधार     100 मिलियन डॉलर (6.5  अरब रु)
24 अप्रैल 2018      म.प्र. के गांवों की सड़कें दुरुस्त करना  210 मिलियन डॉलर (करीब 14 अरब रु)
अप्रैल 2018          दवाई बनाने व गुणवत्ता में सुधार हेतु     125 मिलियन डॉलर (8 अरब 36 करोड़ रु)
8 मई 2018         राष्ट्रीय कुपोषण मिशन के लिए            200 मिलियन डॉलर (13.5 अरब रु)
29 मई 2018       राजस्थान के लिए                           21.7 मिलियन डॉलर (1.5 अरब रु)

[ स्रोत: वर्ल्ड बैंक विभिन्न दस्तावेज, फाइनेंसियल 365 ]


इसके अतिरिक्त अगर पिछले साल की बात करें तो उनमें कुछ चुनिंदा लोन में भारत सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में टूरिजम को विकसित करने के लिए 40 मिलियन डॉलर (2 अरब 67 करोड़ रुपये) का कर्ज, 21 नवंबर 2017 को सोलर पार्क प्रोजेक्ट के लिए 100 मिलियन डॉलर (6.5 अरब रुपये) का कर्ज, 31 अक्टूबर 2017 को असम में ग्रामीण परिवहन के लिए 200 मिलियन डॉलर (13.5 अरब रुपये) का कर्ज, 30 जून 2017 को नेशनल बायोफार्मा मिशन के लिए 125 मिलियन डॉलर (8 अरब 36 करोड़ रुपये) का कर्ज आदि सम्मिलित हैं, जो बीजेपी IT सेल व समर्थकों सहित आम जनता की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त है.

यही नहीं, गंगा नदी जिसकी सफाई के लिए भारत अब तक विश्व बैंक से हजारों करोड़ रुपये का लोन ले चुका है. विश्व बैंक से कर्ज लेना सरकार की विफलता या कमजोरी नही कहा जा सकता मगर, झूठी ख़बरों को प्रचारित प्रसारित कर वास्तविक स्थिति से लोगों का ध्यान हटाने का यह प्रयास सरकार की तमाम विफलताओं की तरफ इशारा करती है इसमें कोई संशय नहीं.

हालांकि मात्र 3 वर्षों में अगर इतनी बड़ी मात्रा में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से लोन लिए गए तो इसका हिसाब कहां, और काम कितना हुआ है ये आप तय कीजिये. और अगर काम नही हो सके हैं तो आखिर ये लोन के पैसे गए कहां ? याद रखिये इसे अंततः भारत को ही चुकाने हैं.

(डॉ समीर शेखर बीएचयू से विदेश व्यापार नीति में डॉक्टरेट हैं।)

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