Home ब्लॉग आप: दो कदम आगे

आप: दो कदम आगे

5 second read
1
6
1,446

भारत में चुनाव की यह प्रक्रिया भी अन्य चीजों की तरह अंग्रेजी हुकूमत की ही देन है. इस तथाकथित लोकतांत्रिक प्रणाली में चुनाव केवल जनता को धोखा देने के लिए प्रचलित किया गया था, जिसका वास्तविक जन-आकांक्षा से कोई लेना-देना नहीं था.यही कारण है कि आम आदमी के लिए इस चुनाव का कोई मायने-मतलब नहीं था और वोट देने हेतु बाहर नहीं निकलता था. बैलेट पेपर से होने वाली चुनाव प्रक्रिया में बूथ-लूट आदि के माध्यम से तमाम अनियमिततायें बदस्तूर जारी थी.

इस निरर्थक और उबाऊ चुनाव प्रक्रिया में पहली बार जान डालने और लोगों को अपने हित की बात करने वाला साबित करने में आम आदमी पार्टी ने अद्भुत प्रयास किया. उसके ही अथक प्रयास के कारण यह सम्भव हो पाया कि लोगों ने पहली बार चुनाव के माध्यम से बदलाव की प्रवाह को देखा और चुनाव प्रक्रिया में विश्वास जताया. परन्तु अब जब भारतीय जनता पार्टी के द्वारा ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की सड़ांध द्वारा चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की बातें साबित होने लगी है, यह चुनावी प्रक्रिया और भी ज्यादा यंत्रमय, संदिग्ध और नकली बन गया है. आम आदमी का चुनाव प्रक्रिया पर अविश्वास और भी ज्यादा गहराने लगा है. चुनाव आयोग जैसी संस्थान आज दलाली के अड्डे के बतौर कुख्यात हो चुका है और शिकायत करने पर शिकायत के निपटारे के बजाय बात-बात पर शिकायतकत्र्ता को ही कोर्ट का मूंह देखने के लिए बाध्य करता है. निश्चित रूप से चुनाव आयोग को मालूम है कि जब तक कोर्ट का फैसला आयेगा नदी में काफी पानी बह चुका होगा. लाखों करोड़ों का घपला हो चुका होगा. कोर्ट की उबाऊ और लंबी प्रक्रिया के चलते तब तक नये चुनाव का भी बिगुल बज चुकेगा. वैसे में कोर्ट का कोई भी फैसला किसी भी चीज को प्रभावित नहीं करेगा. वैसे भी चुनाव आयोग को यह पता है कि कोर्ट भी उसी की तरह या तो खरीदी जा चुकी है, अथवा डराया जा चुका है.

ऐसे माहौल में जब तमाम शासकीय ढ़ांचे भारतीय जनता पार्टी के कदमों तले रौंदी जा चुकी है और बिकने को आतुर ज्यादातर मीडिया संस्थान खरीदे जा चुके हैं, आम आदमी पार्टी जैसी छोटी ताकत उसे लगातार चुनौती पेश कर रहा है. यही वजह है कि अभी सम्पन्न हुए दिल्ली एम.सी.डी. चुनाव में आम आदमी पार्टी का बढ़ता कदम शासकीय दलों के गले नहीं उतर रही है. एक दुष्प्रचार का बबंडर फैला रखा है जिससे यह साबित होने लगता है मानो आम आदमी पार्टी खत्म हो रही है. आईये, आम आदमी पार्टी के विकास के चार वर्ष को तथ्यों के आईने में देखते हैं:

दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2013 0 से 28 सीटें
लोकसभा चुनाव, 2014 0 से 4 सीटें
दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2015 28 से 67 सीटों की कीर्तिमान
पंजाब विधानसभा चुनाव, 2017 0 से 22 सीटें
गोवा विधानसभा चुनाव, 2017 0 से 0 सीटें (पर 7 प्रतिशत वोटें)
दिल्ली एम.सी.डी. चुनाव, 2017 0 से 48 सीटें

अगर हम तथ्यों के आलोक में ही देखे तो आम आदमी पार्टी विकास के जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है वह इतिहास में सबसे अलहदा है. इस सबके केन्द्र में निश्चित रूप से अरविन्द केजरीवाल का कुशल और व्यवहारिक नेतृत्व ही वह उज्ज्वल पक्ष है, जिसका निरंतर विकास निश्चय ही देश को एक नया नजरिया प्रदान करेगी. इसके बावजूद कि बिका चुका मीडिया और सोशल मीडिया पर बिठाये गये ट्रोल और चुनाव आयोग की दलाली और फर्जी मतदाताओं का निर्माण परिवर्तन के नये आयाम को रोक पाने में सक्षम नहीं है पर रफ्तार थोड़ी धीमी जरूर कर दी है.
सवाल उठता है हर तरफ से अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को हारता हुआ दिखाना आखिर क्यों जरूरी है ? यह सवाल हर उस आदमी को जानना चाहिए जो बुनियादी बदलाव की आकांक्षा लिये चुनाव की इस प्रक्रिया में भाग लेना चाहता है. दरअसल अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी किसी एक राज्य या पार्टी नहीं है, वे महज एक राज्य के मुख्यमंत्री मात्र नहीं हैं, वरन् अरविन्द केजरीवाल के जीत का मतलब है पूरे देश में भाजपा, कांग्रेस और उनके जैसे राजनीतिक दलों की खरीद-फरोख्त की राजनीति का समाप्त हो जाना. भ्रष्टाचार की बहती नदी का सूख जाना और यह देश का कोई भी नेता या राजनीतिक दल या मीडिया संस्थान नहीं चाहता है. उनकी स्पष्ट सोच है कि तमाम प्रक्रिया के जरिये अगर अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को खत्म कर दिया गया तो देश के सारे ईमानदार लोग निराश होकर घर बैठ जायेगे और फिर से इन भ्रष्ट लोगों की पुरानी खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया यथावत् चलती रहेगी. यही कारण है कि एम.सी.डी. जैसे छोेटे निकाय के चुनावों को भी राष्ट्रीय स्तर पर ने केवल प्रचारित-प्रसारित किया गया वरन् इवीएम की सेंटिंग के जरिये आम आदमी पार्टी को हारा हुआ दिखाने की पूर जोर आजमाईस होने लगी. इस बात को तमाम ईमानदार लोगों को समझ लेना होगा.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

One Comment

  1. S. Chatterjee

    April 27, 2017 at 3:38 am

    शत् प्रतिशत सच!!

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

जाति-वर्ण की बीमारी और बुद्ध का विचार

ढांचे तो तेरहवीं सदी में निपट गए, लेकिन क्या भारत में बुद्ध के धर्म का कुछ असर बचा रह गया …