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बेलसोनिका मजदूर आन्दोलन : लोकतंत्र की आड़ में सरकार की मज़दूर विरोधी चेहरा बेनकाब

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बेलसोनिका मजदूर आन्दोलन : लोकतंत्र की आड़ में सरकार की मज़दूर विरोधी चेहरा बेनकाब
बेलसोनिका मजदूर आन्दोलन : लोकतंत्र की आड़ में सरकार की मज़दूर विरोधी चेहरा बेनकाब

मानेसर गुडगांव स्थित फैक्टरी में बेलसोनिका मज़दूरों के हालिया आन्दोलन ने बहुत तीखा रूप लेते हुए अपना पहला पड़ाव पार किया है. बेलसोनिका प्रबंधन मज़दूरों का कार्यस्थल पर लगातार उत्पीडन करते आ रहे हैं. कंपनी की मंशा फर्जी दस्तावेज़ों के बहाने कई परमानेंट मज़दूरों की छंटनी करना है, जो पिछले 10-15 साल से लगातार फैक्टरी में काम करते आ रहे हैं.

इसके अलावा यूनियन में परमानेंट मज़दूरों के साथ कॉन्ट्रैक्ट मजदूरों को एकजुट न होने देना और आख़िर में इस जुझारू मजदूर यूनियन को ही कुचल देना कंपनी प्रबंधन की मंशा रही है. इसके ख़िलाफ़ मजदूर यूनियन और उनका जुझारू नेतृत्व क़रीब एक साल पहले विरोध में उतरा. मज़दूर यूनियन के नेतृत्व की बहुत जागरूक भूमिका रही जिसके चलते सभी मजदूर एकजुट होकर विरोध करने के लिए तत्पर हुए. कभी कभार कुछ मजदूरों की डगमगाहट को भी एक साथ आपसी तालमेल बनाकर यूनियन ने पार किया.

लेकिन यह सब बेलसोनिका प्रबंधन पचा नहीं पा रहा था इसलिए मजदूरों की छंटनी शुरू की गयी. फिर यूनियन में कॉन्ट्रैक्ट मज़दूर शामिल करने के मामले की श्रम दफ्तर में शिक़ायत करके यूनियन पंजीकरण को ही रद्द कराने की कोशिश में प्रबंधन लग गया। प्रबंधन के इतने दमन के खिलाफ़ मज़दूरों ने श्रम दफ्तर से लेकर जिला आयुक्त तक न्याय की गुहार लगायी, धरना प्रदर्शन किया, परिवार के लोगों, बाल-बच्चे भी शामिल हुए, लेकिन कंपनी के खिलाफ़ कोई खास हस्तक्षेप और कार्यवाही नहीं हुई.

इसके उपरांत कंपनी ने फैक्टरी के अन्दर बाउंसर और नए मजदूरों को भर्ती कर लिया. तीन मज़दूर नेताओं को सस्पेंड करके उन्हें उत्पादन से बाहर कर दिया. यहां तक की जिला उपायुक्त के आदेश को भी कंपनी प्रबंधन ने दरकिनार कर दिया. आखिर में मजदूरों ने फैक्टरी गेट के सामने 27 दिन तक लगातार क्रमिक अनशन व धरना चलाया. आखरी चरण में कंपनी प्रबंधन ने पहले पुलिस द्वारा मज़दूरों को धरने से खदेड़ने की कोशिश की, फिर कोर्ट ऑर्डर लेकर दूर भगाने की कोशिश की. इसी बीच चारों ओर से उत्पीड़न के शिकार मज़दूरों ने पलटवार करते हुए फैक्टरी के अन्दर काम बंद कर टूल-डाउन हड़ताल में शामिल हो गए.

हर मिनट जो बेलसोनिका कंपनी मजदूरों के प्रोडक्शन से मारुति कार प्लांट लगाकार भारी मुनाफा कमा रही थी, मज़दूरों के टूल डाउन से दोनों कंपनी प्रबंधनों में हड़कंप मच गया. और पर्दे के पीछे से जो श्रम दफ्तर और प्रशासन निष्क्रिय रहकर कंपनी की मनमानी को बेरोक छूट दे रहा था, अब वे भी सीधे तौर पर मजदूरों के विरोध को दबाने के लिए मैदान में उतर आये.

पुलिस के आला अधिकारी से लेकर श्रम दफ्तर और प्रशासन के अधिकारी यूनियन नेतृत्व पर बार बार धमकी और दबाव बनाने लगे कि हड़ताल बंद कर समझौता कर लो वरना पुलिस बल से मार भगायेंगे. तब बेलसोनिका मज़दूरों ने एक तरफ अकेले ही मैदान में अपने संघर्ष को जारी रखा और दूसरी तरफ बेलसोनिका प्रबंधन के साथ क्षेत्र में सबसे प्रतापशाली मारुति प्रबंधन और पुलिस प्रशासन के सभी विभाग खड़े रहे.

ऐसे भीषण गैर-बराबरी की स्थिति में ट्रेड यूनियन आन्दोलन के इतिहास में सरकार-प्रशासन ने जो सबसे घिनौनी घटना को अंजाम दिया वह यह कि बिना बेलसोनिका प्रबंधन की उपस्थिति के प्रशासनिक अधिकारी और श्रम दफ्तर के अधिकारियों के साथ मजदूर यूनियन का समझौता करा लिया. बेलसोनिका प्रबंधन के सिर्फ़ हस्ताक्षर लेकर ये कार्य संपन्न किया गया. सरकारी अधिकारी और श्रम दफ्तर ने बराबरी के हिसाब से दोनों पक्षों का समझौता कानून अनुसार कराने के बजाय कंपनी की मंशा को पूरा करने के लिए खुद ही कंपनी के प्रतिनिधि बनकर बैठ गये।

लोकतंत्र की चादर हटाकर पूंजीपतियों के पक्ष में सरकार की ये मज़दूर विरोधी चेहरा आज कितना नंगा रूप ले लिया है ये जाहिर हो गया. आखिर में मज़दूरों के सामने और साफ तौर पर खुलासा हो गया कि लोकतंत्र की आंड़ में साम, दाम, दंड, भेद किसके हाथ में है. सरकारी अधिकारी के सामने एक वार्ता के दौरान इस जापानी बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रबंधन को तो ये भी बोलते सुना गया कि उनकी बात न चलने से वे जापानी राजदूत के माध्यम से प्रधानमंत्री के ऑफिस तक शिकायत लेकर जायेंगे. देशी विदेशी बड़े पूंजीपतियों का खुलेआम मजदूर विरोधी चेहरा आज इतना ताक़तवर और बेपरवाह हो चुका है.

ऐसी स्थिति में बेलसोनिका के मजदूरों ने अकेले और अलग-थलग रूप में इसका सामना किया. आखिर में बेलसोनिका के मजदूरों ने यह सोच विचार करके 1 जून को समझौता कर लिया कि वे अपना अधिकार बचाकर आन्दोलन को आगे ले जाने का रास्ता बनाये रख सकते हैं, जिसके तहत 10 सस्पेंड किये गये मजदूर ड्युटी पर बहाल हो गये. इन 10 बहाल होने वाले मज़दूर और सस्पेंड 3 यूनियन के मुख्य पदाधिकारी मजदूरों के आरोप-पत्र पर इन्क्वायरी के बाद दो श्रम अधिकारी—डीएलसी एवं एएलसी—एक प्रबंधन प्रतिनिधि, व एक यूनियन प्रतिनिधि की टीम द्वारा निर्णय लिया जाएगा. जबकि जो 17 बर्खास्त हुए मजदूर, जिनमें 14 परमानेंट एवं तीनकथित कॉन्ट्रैक्ट मजदूर हैं, उनके विषय में प्रबंधन व यूनियन पक्ष एक माह के अन्दर निर्णय लेंगे. इसी समझौते के साथ टूल-डाउन हड़ताल संपन्न हुआ और अभी 10 सस्पेंड मजदूर साथी भी तीन भिन्न भिन्न तारीख में काम पर बहाल हुए है.

बेलसोनिका मजदूर आन्दोलन से फिर कुछ महत्वपूर्ण सबक मिला.

इस आन्दोलन से बेलसोनिका के मजदूर और अन्य कोई कंपनी मालिकों के मनमानी के खिलाफ लड़ना चाहते ऐसे मजदूरों के लिए कुछ महत्वपुर्ण सबक सामने उभर कर आया है या फिर से साबित हुई है. सबसे पहले है – दिनों दिन पूंजीपति मालिकों के साथ सरकार और प्रशासन का सांठगाठ कितना नंगा और आक्रामक रूप ले चुका है.

दूसरा, तमाम फैक्टरियों के मजदूरों की आपसी तालमेल व आपसी मदद एवं एकजुटता कितना कमजोर पड़ गया है कि क्षेत्र में एक फैक्टरी के मजदूर साथी जब इतना जुल्म और दबाव का सामना कर रहे हैं उस वक्त बाकि लगभग सभी मजदूरों में सन्नाटा छाया हुआ है. इस लड़ाई में मारुति के छंटनी किये हुए कुछ मजदूर साथी और पास में ही हिताची-प्रोकेरला के संघर्षरत मजदूरों ने कुछ हद तक समर्थन व मदद किया है.

कुछ यूनियन के अगुआ साथी या नेता भी आए. पर जो चाहिए था उस तीखे दबाव एबं मुश्किल घड़ी में संघर्षरत बेलसोनिका मजदूरों के साथ अन्य फैक्टरी मजदूरों के भीड़ का शामिल होना, हालांकि वैसा कोई प्रयास तक भी नहीं दिखाई दिया. यह स्थिति मजदूर आन्दोलन के एक खतरनाक दशा को दर्शाता है. खास कर आज के समय में जब मालिक-सरकार का गठजोड़ इतना खुले तौर पर आक्रामक है. ये और ज्यादा खतरनाक इसलिए है कि बाकि मजदूर अभी भी समझ नहीं पा रहे है कि इस हमले से कोई भी बच नहीं पाएगा.

बावजूद इसके आज के लड़ाकू, सचेत मजदूरों को ही इस हकीकत को समझना और उस हिसाब से आन्दोलन का योजना तय करना होगा. उनको समझना है कि आज उनके सामने एक बड़ा पहेली है जिसका हल उन्हें ही निकलना है. 1980-90 के दशक से ही ट्रेड यूनियन आन्दोलन में एक बड़ा परिवर्तन आने लगा है. खास तौर पर सरकार द्वारा पूंजीपतियों के लिए वैश्विकरण के आर्थिक नीति अपनाने के समय से. उसी समय से ट्रेड यूनियन आन्दोलन में ऐसा एक अंतर्विरोध पैदा हुआ जिसका चाहत अन्य किस्म का समाधान है.

फैक्टरी स्तर पर ट्रेड यूनियन आन्दोलन आज महज वेतन एवं सुविधा बढ़ाने की लड़ाई मात्र ही नहीं है. ठेकेदारी मजदूरों की संख्या वृद्धि, यूनियन गठन से लेकर, मनमर्जी छंटनी, श्रम दफ्तरों की तयशुदा निष्क्रियता, आन्दोलन पर तरह-तरह के अंकुश — मजदूरों को दबाने के लिए सभी नियम, लिखित, अलिखित कानून पूंजीपति मालिक वर्ग एवं सरकार पुरे देश में साझे तौर पर तय कर लागु कर रही है.

आप किसी भी फैक्टरी में अपने आजीविका के स्वार्थ में ही मजबूरन इसका विरोध करेंगे, करना भी होगा. लेकिन तब साथ-साथ आपको ये भी सोचना है कि इस यूनियन की लड़ाई को कैसे यूनियन स्तर से आगे बढाकर समस्त मजदूरों का एकजुट आन्दोलन का रूप देंगे. क्योंकि आप तो सिर्फ उसी कंपनी की नहीं बल्कि समूचे मालिक वर्ग तथा सरकार की नीति पर ही सवाल खड़ा करने का जुर्म किया है.

और इसलिए आपके प्रबंधन के साथ पूंजीपति वर्ग व सरकार तमाम हथकण्डे को अपनाते हुए उस विरोध को दबाने के लिए आप सभी के खिलाफ कार्यस्थल में टूट पड़ेंगे. वह हमलावर शक्ति आप के फैक्टरी यूनियन की ताकत से कई गुना ज्यादा ताकतवर है. इसलिए आप जो विरोध शुरू किये हैं, उसका फैक्टरी स्तर की कोई समझौता द्वारा पूरा हल होना आज नामुमकिन है.

अगर आप ने यूनियन द्वारा सवाल न उठाकर सिर्फ पैसे की बढ़ोतरी तक मुद्दे को सीमित रखना चाहते हैं, तब हो सकता है उसका हल हो जाए लेकिन धीरे-धीरे दीमक की तरह आप के यूनियन की लड़ाकू क्षमता को अन्दर ही अन्दर खोखला कर देगा, और जो कुछ बचा रहेगा वह सिर्फ एक नाम-के-वास्ते यूनियन बन जाएगा और कंपनी कि मनमानी बढ़ती जाएगी. आखिर जो शेष रहेंगे वह है कुछ गिने चुने स्थायी मजदूर और बेहद शोषण के शिकार भारी संख्या कि ठेका, ट्रेनी, आदि मजदूर, जिनका यूनियन से कोई वास्ता नहीं रहेगा.

आज किसी भी लड़ाकू यूनियन को पूंजीपति मालिक और सरकार की नीति से पैदा हुए मजदूरों के अधिकार एवं संगठन को कुचलने वाला कदम जरुर टकराएगी और वे लड़ने के लिए विवश होंगे. अतीत में मारुति मजदूरों और आज हिताची मजदूरों के सामने भी वही मुद्दा खड़ा हो गया—संगठन बनाने का अधिकार, ठेका प्रथा ख़त्म करना और आजीविका का सुरक्षित अधिकार. क्योंकि वे इस शोषण नीति के विरोध करने का हिम्मत दिखाया है.

बेलसोनिका के मजदूरों ने भी उसी का विरोध किया. कॉन्ट्रैक्ट मजदूर को यूनियन में शामिल किया, फर्जी मजदूर नहीं ये कहके फर्जी छंटनी का विरोध किया. लेकिन असल में अकेला लड़ने के वजह से उनको चोट लगी. उनके साथ में अन्य फैक्टरी मजदूरों की तादाद नहीं थी, जो की दूसरे मजदूरों की भागीदारी मजदूर आन्दोलन का इतिहास में बार-बार दिखाई देता था.

बावजूद इसके बेलसोनिका मजदूर लड़ाई के मैदान पर आज भी डटा हुआ है. आज उनका अगुआ मजदूर साथी इस आन्दोलन के जरिये काफी कुछ ज़रूर सीखे होंगे. वे ज़रूर ये भी समझ गए होंगे कि आज उन्हें हाल के समझौता के बाद फिर एक ऐसा तैयारी के लिए आगे बढ़ना होगा जिससे उनका फैक्टरी की वाहिनी को अटूट रखना है एवं नेतृत्व को और बड़े जिम्मेदारी लेने के काबिल बनना है.

बेलसोनिका मजदूरों के साथ-साथ, हिताची मजदूर, मारुति के मजदूर, ऐसा उस क्षेत्र एवं बिभिन्न क्षेत्र के मजदूर भी कंपनी और सरकार की दमन का शिकार हो रहे हैं. उनका भी जिम्मेदारी बनता है कि ऐसे दमन के खिलाफ वे आगे बढ़ें. यूनियन स्तर की लड़ाई से चारों ओर मालिक वर्ग के नीति के खिलाफ आवाज़ जगा है, या जग रहा है उसके खिलाफ आगे बढ़कर सभी मजदूरों को सामूहिक रूप में एकजुट होना होगा.

मालिक-प्रबंधन-सरकार एकजुट है, बहरहाल हम मजदूरों को भी तमाम क्षेत्रों में एकजुट होना होगा. और इसके लिए — क्षेत्र में सभी मालिकों के दमन-शोषण के खिलाफ मजदूरों को जगाने का काम, एकजुट करने का काम, इन अगुआ लड़ाई से तपे मजदूर ही कर पाएंगे, अगर वे तरह तरह के संगठनों के खोली से बाहर आकर अपना, स्वतंत्र, मजदूरों का एक मोर्चा बना सकते हैं.

एक बार मजदूरों का निराशा एवं निष्क्रियता के माहौल को तोड़ने का काम भिन्न फैक्टारियों से एकजुट हुए अगुआ मजदूर अगर हाथ में लेकर बढ़ सकते हैं तब आज का सबसे बुनियादी ज़रुरत एक क्षेत्रीय मजदूरों का संगठन बनने का रास्ता सुगम होगा, जो मालिक वर्ग के नीति के खिलाफ एकजुट आन्दोलन के साथ किसी फैक्टरी आन्दोलन को भी मदद कर पाएगा.

  • ‘हमारी सोच’ पत्रिका की रपट

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