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भारत माता की जय : असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए सरकारी चालाकी

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भारत माता की जय : असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए सरकारी चालाकी

मैं जानता हूं आपको बहुत बुरा लगता है, जब कोई आपसे कहता है कि इस देश में रहने वाला कोई भारत माता की जय नहीं बोलना चाहता. मानता हूं कि आपका खून खौल जाता है. मैं भी पूरी जवानी भारत माता की जय के नारे लगाता रहा. आज भी लगा सकता हूं. उसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन अब नहीं लगाता. मैं अब जान बूझ कर भारत माता की जय बोलने से मना करता हूं.

क्यों करूंगा मैं ऐसा ? यह मत कहना कि मैं कम्युनिस्ट हूं. या मैं विदेशी पैसा खाता हूं. या मैं नक्सलवादी हूं. या मैं मुसलमानों के तलवे चाटता हूं. मेरा जन्म एक सवर्ण हिंदू परिवार में हुआ. मुझे भी बताया गया कि हिंदू धर्म दुनिया का सबसे महान धर्म है. मुझे भी बताया गया कि हमारी जाति बहुत ऊंची है. मुझे भी बताया गया कि देश की एक खास राजनैतिक पार्टी बिलकुल सही है.

मैं भी सैनिकों की बहादुरी वाली फ़िल्में देखता था और तालियां बजाता था. मैं भी पाकिस्तान से नफ़रत करता था लेकिन फिर मुझे आदिवासी इलाके में जाकर रहने का मौका मिला. मैंने वहां जाकर अनुभव किया कि मेरी धारणाएं काफी अधूरी और गलत हैं.




मैं अपने धर्म को सबसे अच्छा मानता हूं. लेकिन इसी तरह सभी लोग अपने धर्म को अच्छा मानते हैं. तो फिर यह बात सही नहीं हो सकती कि मेरा धर्म सबसे अच्छा है. मैंने दलितों की जली हुई बस्तियों का दौरा किया. मुझे समझ में आया कि मेरे धर्म में बहुत सारी गलत बातें हैं.

धीरे-धीरे मैंने ध्यान दिया कि सभी धर्मों में गलत बातें हैं लेकिन कोई भी धर्म वाला उन गलत बातों को स्वीकार करने और सुधारने के लिए तैयार नहीं है. इस तरह मुझे धर्म की कट्टरता समझ में आयी. इसके बात मैंने अपनी कट्टरता छोड़ने का फैसला किया. मैंने यह भी फैसला किया कि अब मैं किसी भी धर्म को अपना नहीं मानूंगा क्योंकि सभी धर्म एक जैसी मूर्खता और कट्टरता से भरे हुए हैं.

आदिवासियों के बीच रहते हुए मैंने पुलिस की ज्यादतियां देखीं. मैंने उन् आदिवासी लड़कियों की मदद करी, जिनके साथ पुलिस वालों और सुरक्षा बलों के जवानों नें सामूहिक बलात्कार किये थे. मैंने उन मांओं को अपने घर में पनाह दी जिनके बेटों और पति को सुरक्षा बलों ने मार डाला था ताकि उनकी ज़मीनों को उद्योगपतियों को दिया जा सके.




मैंने आदिवासियों के उन गांव में रातें गुजारीं जिन गांव को सुरक्षा बलों ने जला दिया था. उन जले हुए घरों में बैठ कर मुझे मैंने खुद से सवाल पूछे कि आखिर इन निर्दोष आदिवासियों के मकान क्यों जलाये गए ? घर जलने से किसका फायदा होगा ? घर जलाने वाला कौन है ?

वहां मुझे समझ में आया कि हम जो शहरों में मजे से बैठ कर बिजली जलाते हैं. शॉपिंग माल में कार में बैठ कर जाते हैं. हम जो बारह सौ रूपये का पीज्ज़ा खाते हैं, वह सब ऐशो आराम तभी संभव है जब इन आदिवासियों की ज़मीनों पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो. उद्योग लगेंगे तो हम शहरी पढ़े-लिखे लोगों को नौकरी मिलेगी.

हमारे विकास के लिए इन आदिवासियों की ज़मीनों पर कब्ज़ा तो पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान ही करेंगे. आदिवासी अपनी ज़मीन नहीं छोडना चाहता इसलिए हमारे सिपाही आदिवासी का घर जलाते हैं. हम शहरी लोग इसीलिये इन सिपाहियों के गुण गाते हैं.

इसीलिये आदिवासी मरता है या उसके साथ बलात्कार होता है या उसका घर जलता है तो हमें बिलकुल भी बुरा नहीं लगता. लेकिन सिपाही के साथ कुछ भी होने पर हम गाली-गलौज करने लगते हैं. आदिवासियों के जले हुए गांव में बैठ कर मुझे भारतीय मीडिल क्लास की पूरी राजनीति समझ में आ गई.




मुझे राजनीति विज्ञान भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के अध्यन के लिए किसी विश्वविद्यालय में नहीं जाना पड़ा. वो मैंने खुद अनुभव से सीखा. मुझे कश्मीरी दोस्तों से भी मिलने का मौका मिला. मैंने उनके परिवार के साथ भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों के ज़ुल्मों के बारे में जाना. चूंकि तब तक मैं समझ चुका था कि सरकारी फौजें किस तरह से ज़ुल्म करती हैं इसलिए कश्मीरी जनता पर भारतीय सिपाहियों के ज़ुल्मों को मैं साफ़ दिल से समझ पाया. कश्मीर में सेना ने घरों से जिन नौजवानों को उठा कर मार डाला था, मैं उन बच्चों की मांओं से मिला. जिन पुरुषों को सेना ने घरों से उठा लिया और कई सालों तक जिनका फिर कुछ पता नहीं चला, उनकी पत्नियों से मिला. उन औरतों को कश्मीर में हाफ-विडो कहा जाता है. यानी आधी विधवा. मैंने उन महिलाओं के बारे में भी जाना, जिनके साथ हमारी सेना के सैनिकों नें बलात्कार किये.

मैंने मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद वहां रह कर काम किया. वहां एक फर्जी प्रचार के बाद दंगे किये गए थे. मैंने उस फर्ज़ी प्रचार की पूरी सच्चाई की खोज की. दंगा अमित शाह ने करवाया था. इन दंगों में एक लाख गरीब मुसलमान बेघर हो गए थे. सर्दी में उन्हें खुले में तम्बुओं में रहना पड़ रहा. वहां ठण्ड से साठ से भी ज़्यादा बच्चों की मौत हो गयी थी.

इस तरह मैंने देखा कि लव जिहाद के नाम पर भाजपा ने हिदुओं में असुरक्षा की भावना भड़काई और उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए सीटें जीतीं.

मेरी बेचैनी बढ़ती गयी. मुझे लगने लगा कि हम शहरी लोग इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं कि हमारे फायदे के लिए करोड़ों आदिवासियों पर ज़ुल्म किये जाएं ? हम इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं कि दलितों की बस्तियां जलाई जाएं ? और हम क्रिकेट देखते रहें. कश्मीर में हमारी सेना ज़ुल्म करे और हम उसका समर्थन करें ?




तभी भाजपा का शासन आ गया. मैंने देखा कि अब दलितों पर अत्याचार करने वाले और भी ताकतवर हो गए हैं. कश्मीर के ऊपर आवाज़ उठाने के कारण दलित विद्यार्थियों को हॉस्टल से निकाला जा रहा है. इसके बाद इन्हें दलित छात्रों में से एक छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली. मुझे लगा यह आत्महत्या नहीं एक तरह की हत्या ही है. साथ-साथ सोनी सोरी नाम की आदिवासी महिला के ऊपर सरकार के अत्याचार बढते जा रहे थे. मैं बेचैन था कि आखिर इन मुद्दों पर कोई ध्यान क्यों नहीं देता ?

तभी सरकार में बैठे लोगों ने भारत माता का शगूफा छोड़ दिया. मुझे लगा कि भारत माता की जय बोलना तो कोई मुद्दा है ही नहीं. यह तो असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए सरकारी चालाकी है. मैंने निश्चय किया कि मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा. जैसे मैं अब किसी भगवान की पूजा नहीं करता. लेकिन इंसानों के भले के लिए काम करने की कोशिश करता हूं. इसी तरह मैं भाजपा के कहने से भारत माता की जय बिलकुल नहीं कहूंगा. अलबत्ता मैं देश के लोगों की सेवा पहले की तरह करता रहूंगा. इस समय भारत माता की जय लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और मैंने बेवकूफ बनने से इनकार कर दिया है.

  • हिमांशु कुमार




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