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नफरत से भरी मनुस्मृति, रामचरितमानस और बंच आफ थाट्स जैसी किताबों को जला देना चाहिए

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नफरत से भरी मनुस्मृति, रामचरितमानस और बंच आफ थाट्स जैसी किताबों को जला देना चाहिए
नफरत से भरी मनुस्मृति, रामचरितमानस और बंच आफ थाट्स जैसी किताबों को जला देना चाहिए

विश्व गुरु भारत में कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जहां किसी न किसी दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं के खिलाफ जातिय हिंसा न हो रही हो. कहीं मंदिरों के बाहर शुद्रों-महिलाओं का प्रवेश न होने देने के लिए सर्वण जातियां हिंसा कर रही है तो कहीं, धर्मशास्त्र के नाम पर शुद्रों को दोनों हाथों लूट रही है. और यह सब हो रहा है अपनी धर्म, राष्ट्र और संस्कृति की महानता के नाम पर.

प्रख्यात गांधीवादी विचारक हिमांशु कुमार लिखते हैं कि अपने धर्म, राष्ट्र या संस्कृति की महानता का दावा एक चालाकी है. महानता का षड्यंत्र समाज में बदलाव को रोकने के लिए होता है. आजादी के बाद भारत को बदलना था, जाति को मिटाना था, बड़ी जातियां छोटी जातियों को लूट कर अमीर बनकर आरामतलब बनी हुई थी. आर्थिक न्याय लाना था, जो मेहनत करें उसका फल वही ले, ऐसी व्यवस्था लानी थी. लेकिन आरामतलब अमीर वर्ग और सवर्ण जातियों ने चालाकी की और भारत की महानता का शगूफा छोड़ दिया.

झूठ फैलाया गया कि भारत की संस्कृति बहुत महान है. और क्योंकि यह बहुत महान है इसलिए हमें कुछ भी बदलने की जरूरत नहीं है. अगर कुछ करना है तो वह यह कि प्राचीन भारत को फिर से वापस लाना है. यानी नई वैज्ञानिक समझ और समानता व न्याय के लिए काम नहीं करना है. ध्यान दीजिए भारत की महानता का दावा करने वाला संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसके द्वारा बनाया गया ?

ये बनाया गया था सवर्ण जातियों के द्वारा, जो नहीं चाहते थे कि जाति समाप्त हो और जो सवर्ण जातियां सदियों से इस देश में शासक है, उनके हाथ से अमीरी और राज निकल जाए. इसलिए एक राजनीति के तहत महानता का झूठा दावा किया गया. जबकि भारत के अतीत में जातिवाद था, दलितों की बस्तियां थी, दलितों पर हमले थे, औरतों की गुलामी थी, आर्थिक असमानता और लूट थी. लेकिन इस सब को महान कहा गया. और कहा गया कि जब हम महान हैं तो फिर हमें बदलने की क्या जरूरत है ?

ध्यान दीजिए भारत की महानता का दावा सवर्ण जातियों और अमीरों की तरफ से किया गया है. भारत की महानता का दावा भारत के आदिवासियों, भारत के दलितों और भारत के गरीबों की तरफ से नहीं किया गया है.

कल मैं एक अमेरिकी वीडियो देख रहा था. उसमें एक गोरा व्यक्ति कहता है कि –

‘ट्रंप ने चुनाव के समय दावा किया कि हमें अमेरिका को फिर से महान बनाना है. वह गोरा व्यक्ति कहता है कि अमेरिका की महानता के इस दावे पर अमेरिकी गोरे ताली बजा रहे थे. जब गोरों ने अमेरिका के आदिवासियों को मारा, क्या वह आदिवासी अमेरिकी महानता के इस वादे पर गर्व कर सकते हैं ?

‘जिन अफ्रीकियों को गुलाम बनाकर अमेरिका में लाया गया क्या, वह काले अफ्रीकी अमेरिका की महानता के दावे पर गर्व कर सकते हैं ? जापान के साथ जब अमेरिका का युद्ध हुआ तब अमेरिकी सरकार ने अमेरिका में रहने वाले लाखों जापानियों को 4 साल तक कैद करके रखा, क्या वह जापानी लोग अमेरिका की महानता पर यकीन कर सकते हैं ?’

अंत में वह गोरा एक काले नौजवान को मंच पर बुलाकर उसके पांव धोता है और कहता है कि –

‘मैं सारे गोरों की तरफ से जो काले लोगों के ऊपर अत्याचार किए गए उनके लिए क्षमा मांगता हूं और मैं आपके पांव इसलिए धो रहा हूं क्योंकि मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि आपका और मेरा मूल्य समान है. मुझे क्षमा कर दीजिए.’

भारत को अपनी महानता का घमंड छोड़कर अपने भीतर विद्यमान रंगभेद, जातिवाद, सांप्रदायिकता, आर्थिक लूट छोड़ना ही पड़ेगा. तभी भारत अपने इस सड़े-गले अतीत से आजाद हो सकेगा और एक नया भारत जन्म लेगा. जिसमें बराबरी और न्याय होगा. तभी प्रेम और शांति जन्म ले सकती है वरना जाति, संप्रदायवाद और आर्थिक लूट में डूबे हुए भारत में प्रेम और शांति कभी नहीं आ सकती.

प्रख्यात गांधीवादी विचारक हिमांशु कुमार की उपरोक्त कथन पर बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने पिछले दिनों नालंदा खुला विश्वविद्यालय (एनओयू) के 15वें दीक्षांत समारोह के दौरान उक्त सभी बातों पर मुहर लगाते हुए कहा कि –

मनुस्मृति, रामचरितमानस और बंच आफ थाट्स जैसी किताबों को जला देना चाहिए. इन किताबों ने नफरत फैलाई है. लोगों को सदियों पीछे धकेलने का काम किया है. देश में जाति ने समाज को जोड़ने के बजाए तोड़ा है. इसमें मनुस्मृति, गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक माधव सदाशिव गोलवलकर लिखित बंच आफ थाट्स ने 85 प्रतिशत लोगों को सदियों तक पीछे रखने का काम किया है.

इन्हीं के कारण देश के राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री को मंदिरों में जाने से रोका गया. ये ग्रंथ नफरत फैलाते हैं. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इनका प्रतिरोध किया था. उन्होंने मनुस्मृति को जलाने का काम किया था. उन्होंने कहा कि रामचरित मानस में लिखा गया है कि अधम जाति में विद्या पाए, भयहु यथा अहि दूध पिलाए.

इसका अर्थ होता है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण कर जहरीले हो जाते हैं जैसे दूध पीकर सांप हो जाता है. एक युग में मनुस्मृति, दूसरे में रामचरित मानस तथा तीसरे युग में बंच आफ थाट्स ने समाज में नफरत फैलाई है. कोई भी देश नफरत से कभी महान नहीं बना है, देश जब भी महान बनेगा, प्यार से ही.

आज, मनुस्मृति, रामचरित मानस और बंच ऑफ थॉट नफरत बांटती एक ऐसे कल्पित विश्व गुरु नामक देश का निर्माण करती है जहां जातियबोध इतनी प्रचंडता से प्रेषित होती है कि शुद्रों के नाम पर अपमान और नृशंस हत्या का एक से बढ़कर दृष्टांत पैदा हो रहा है. जरूरत है इसके खिलाफ न केवल वैचारिक लड़ाई तेज करते हुए नफरत बांटती इन पुस्तकों को नष्ट करनी होगी बल्कि इसके खिलाफ सशक्त जनप्रतिरोध प्रतिरोध भी संगठित करना होगा.

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One Comment

  1. whoiscall

    September 14, 2023 at 10:33 am

    Good post!

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