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जेएनयू के खिलाफ षड्यंत्ररत् क्यों है आरएसएस ?

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[ जेएनयू देश का अकेला विश्वविद्यालयहै जिसके डस्टबिन तक की जांच कर भाजपा नेता ने कंडोम की गिनती की है और देश भर में बदनाम करने का दुश्प्रचार चलाया है. इतने बड़े और भयानक दुश्प्रचार के बाद भी अगर जेएनयू देश की शैक्षणिक जगत में चट्टान की तरह खड़ा है तो वह जेएनयू की लोकतंत्र के प्रति गहरा विश्वास और समूचे देश की तमाम लोकतांत्रिक ताकतों का एकजुट हो जाना रहा है. जेएनयू देश में लोकतंत्र, लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनाव, बेहतरीन लोकतांत्रिक आकादमिक शैली, अपने प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार सहित  अनेक जनवादी मूल्यों के लिए जाना जाता है, जिससे वास्तव में आरएसएस  नफरत करता है और जल्द से जल्द खत्म कर देने पर आमादा है. प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी के द्वारा विश्लेषित यह आलेख पाठकों के लिए पेश है ]

जेएनयू के खिलाफ षड्यंत्ररत् क्यों है आरएसएस ?

जेएनयू पर एकबार फिर से बमबटुकों के हमले शुरू हो गए हैं. फ़रवरी 2016 के बाद यह हमलों का दूसरा चरण है. जेएनयू के VC ने आरएसएस के नेतृत्व के आदेश के बाद ही टैंक लगाने का प्रस्ताव रखा था. VC के बयान के बाद आरएसएस के साइबर टट्टू सोशल मीडिया में अहर्निश दौड़ रहे हैं और जेएनयू को फिर से गरियाने में लगे हैं.

हम कहना चाहते हैं जेएनयू सच में महान है, वरना बार -बार आरएसएस हमले न करता. जेएनयू महान, वाम की वजह से नहीं, बल्कि विवेकवादी उदार अकादमिक परंपरा के कारण महान है. आरएसएस अपनी नई टैंक मुहिम के बहाने, जेएनयू के बारे में यह धारणा फैलाने की कोशिश कर रहा है कि जेएनयू को ‘मानवता विरोधी और राष्ट्रविरोधी’ संस्थान के रूप में कलंकित किया जाय.

पहले हम यह जान लें कि जेएनयू को ये लोग नापसंद क्यों करते हैं ?

देश में और भी विश्वविद्यालय हैं, उनको बदनाम करने की कोई मुहिम नहीं चल रही, क्योंकि वे सब आरएसएस और टैंक कल्चर के क़ब्ज़े में हैं !

आरएसएस की जेएनयू के प्रति घृणा का प्रधान कारण है जेएनयू के अंदर उच्च अकादमिक माहौल, लोकतान्त्रिक संस्कृति और शिक्षक-छात्र संबंध. जेएनयू में देश के अन्य विश्वविद्यालयों के जैसे शिक्षक -छात्र संबंध नहीं हैं. यहां अधिकांश शिक्षक अपने छात्रों को मित्रवत मानकर बातें करते हैं. ज़्यादातर शिक्षकों के अकादमिक आचरण में पितृसत्तात्मकता का नजरिया नहीं है. यहाँ, वे शिक्षक होते हैं गुरू नहीं. यह वह प्रस्थान बिंदु है जहांं से जेएनयू अन्य विश्वविद्यालयों से अलग है.

दूसरी बडी चीज है सवाल खड़े करने की कला. यह कला यहां के समूचे माहौल में है. यहां छात्र सवाल करते हैं साथ ही “खोज” के नजरिए को जीवन का लक्ष्य बनाते हैं. कक्षा से लेकर राजनीतिक मंचों तक कैंपस में सवाल करने की कला का साम्राज्य है. यह दूसरा बडा कारण है जिसके कारण जेएनयू को आरएसएस नापसंद करता है. आरएसएस को ऐसे कैंपस चाहिए, जहांं छात्रों में सवाल करने की आदत न हो, खोज करने की मानसिकता न हो.

उल्लेखनीय है जिन कैंपस में सवाल उठ रहे हैं वहीं पर आरएसएस के बमबटुकों के साथ, लोकतांत्रिक छात्रों और शिक्षकों का संघर्ष हो रहे हैंं. आरएसएस ऐसे छात्र -शिक्षक पसंद करता है जो हमेशा “जी-जी” करता चले और सवाल न करें !

आरएसएस वाले अच्छी तरह जानते हैं कि जेएनयू के छात्र वामपंथी नहीं हैं. वे यह भी जानते हैं जेएनयू के अंदर आरएसएस की शिक्षकों में एक ताकतवर लॉबी है. इसके बावजूद वे जेएनयू के बुनियादी लोकतांत्रिक चरित्र को बदल नहीं पा रहे हैं. यही वजह है वे बार -बार छात्रों और शिक्षकों पर हमले कर रहे हैं. इन हमलों के लिए नियोजित ढंग से मीडिया का दुरूपयोग कर रहे हैं. राष्ट्रवाद और हिंदुत्व तो बहाना है.

असल लक्ष्य तो जेएनयू के लोकतांत्रिक ढांंचे और लोकतांत्रिक माहौल को नष्ट करना है. संघ को लोकतांत्रिक माहौल से नफरत है. उसे कैंपस में अनुशासित माहौल चाहिए जिससे कैंपस को भोंपुओं और भोंदुओं का केन्द्र बनाया जा सके.

जेएनयू छात्रसंघ का संविधान, तीसरी सबसे महत्वपूर्ण चीज है जिसे आरएसएस नष्ट करना चाहता है. जेएनयू देश का अकेला विश्वविद्यालय है, जहांं छात्रसंघ पूरी तरह स्वायत्त हैं. छात्रसंघ के चुनाव स्वयं छात्र संचालित करते हैं. छात्रसंघ के चुनाव में पैसे की ताकत की बजाय विचारों की ताकत का इस्तेमाल किया जाता है. छात्रों को अपने पदाधिकारियों को वापस बुलाने का भी अधिकार है. छात्रसंघ किसी नेता की मनमानी के आधार पर काम नहीं करता, बल्कि सामूहिक फैसले लेकर काम करता है.

छात्रसंघ की नियमित बैठकें होती हैं और उन बैठकों के फैसले, पर्चे के माध्यम से छात्रों को सम्प्रेषित किए जाते हैं. छात्रसंघ के सभी फैसले सभी छात्र मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं.

विवादास्पद मसलों पर छात्रों की आमसभा में बहुमत के आधार पर बहस के बाद फैसले लिए जाते हैं. ये सारी चीजें छात्रों ने बडे संघर्षों के बाद हासिल की हैं. इनके निर्माण में वाम छात्र संगठनों की अग्रणी भूमिका रही है.

जाहिरा तौर पर आरएसएस और बमबटुकों को इस तरह के जागृत छात्रसंघ से परेशानी है और यही वजह है बार बार छात्रसंघ पर हमले हो रहे हैं.

इसके विपरीत आरएसएस संचालित छात्रसंघों को देखें और उनकी गतिविधियों को देखें तो अंतर साफ समझ में आ जाएगा.

जेएनयू में टैंक कल्चर के प्रतिवाद की परंपरा रही है. टैंक कल्चर वस्तुत: युद्ध की संस्कृति को अभिव्यंजित करती है. जेएनयू के छात्रों का युद्ध के प्रतिवाद का शानदार इतिहास रहा है. इस्रायल के हमलावर रूख के खिलाफ प्रतिवाद से लेकर वियतनाम युद्ध के प्रतिवाद तक, अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सैन्य हस्तक्षेप के खिलाफ प्रतिवाद से लेकर तियेनमैन स्क्वेयर पर चीनी टैंक दमन के प्रतिवाद तक छात्रों के सामूहिक प्रतिवाद की जेएनयू छात्रसंघ की परंपरा रही है. जेएनयू के छात्रों को मानवतावादी नजरिए से सोचने-समझने और काम करने की प्रेरणा, वहांं के पाठ्यक्रम और परिवेश से मिलती है, जिसे आरएसएस पसंद नहीं करता.

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