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नामांकन पॉलिसी में बदलाव के खिलाफ जेएनयू में विरोध-प्रदर्शन और चुनाव के लिए आम संदेश

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नामांकन पॉलिसी में बदलाव के खिलाफ जेएनयू में विरोध-प्रदर्शन और चुनाव के लिए आम संदेश

नामांकन पॉलिसी में बदलाव लाने के खिलाफ और साथ ही गत 14 मार्च को सोशल मीडिया में एक प्रोस्पेकटस के उजागर हो जाने के बाद गत दो सप्ताहों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) विरोध-प्रदर्शनों से उबल रहा है. इस उजागर हो गये प्रोस्पेक्टस के मुताबिक जेनरल कैटेगरी के विद्यार्थियों के लिए नामांकन की फीस तीन विषयों के लिए 1200 रूपये से बढ़ाकर 3600 रूपये कर दी गयी है. ओबीसीके लिए यह फीस बढ़कर 2700 और एस-एसटी व वैसे दूसरों के लिए 1800 रूपया हो गयी है.

इस फीस वृद्धि के अलावा भी बीए प्रोग्राम में लैटरल इन्ट्री बन्द कर दी गयी है, नामांकन के लिए परीक्षा को ऑन-लाईन कर दिया गया है, एमफिल व पीएचडी प्रोग्रामों में डिप्राइवेशन प्वाईंट घटा दिये गये हैं और एकीकृत एमफिल-पीएचडी प्रोग्राम को भी अलग-अलग कर दिया गया है. ये सारे निर्णय एकेडमिक काउंसिल की बैठक में किये गये हैं जिसमें मौजूदा छात्र यूनियन को भाग लेने की अनुमति नहीं दी गयी है. बाद में विद्यार्थियों के जबरदस्त विरोध के चलते 15 मार्च को जेएनयू प्रशासन नामांकन की फीस बढ़ाने के फैसले को वापस लेना पड़ा है. फिर उसी दिन एक दूसरा प्रोस्पेक्टस भी अधिकारिक रूप से जारी किया गया.




इस दूसरे प्रोस्पेक्टस को भी वापस लेने और कुलपति जगदीश कुमार के इस्तीफे की मांग पर 19 मार्च से 11 छात्र-छात्रएं अनिश्चितकाल के लिए अनशन पर बैठे हैं- छात्र-छत्राओं की ओर से जो और मांगें रखी गयी हैं, वे हैं –

  •  नामांकन के लिए ऑन-लाईन परीक्षा शुरू करने के निर्णय को रद्द किया जाये.
  • हाशिए के समुदायों से आये छात्र-छात्रओं के वास्ते एमफिल और पीएचडी के लिए शुरू किये गये नये कोर्स में फिर से डिप्राईवेशन प्वाईंट को बहाल किया जाए.
  • इंजिनियरिंग और मैनेजमेंट के कोर्सों के लिए निर्धारित आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ी हुई फीस को घटाया जाए.
  • स्कूल ऑफ लैंग्वेज में बीए में लैटरल इंट्री प्रोग्राम को बन्द करने के निर्णय को वापस लिया जाए.
  • एकीकृत एमफिल-पीएचडी प्रोग्राम के अलग-अलग करने के निर्णय को वापस लिया जाए.




छात्र-छात्राओं से एकजुटता का इजहार करते हुए जेएनयू की ओर से भी 20 मार्च को एक दिन की हड़ताल बुलाई गयी थी. भूख-हड़ताल के तीसरे दिन यानी 21 मार्च को छात्र-छात्राएं कुलपति से मिलने के लिए उनके निवास पर गये. तब देखा गया कि कुलपति उस समय कैम्पस के एबीवीपी नेताओं के साथ होली खेलने में मशगूल हैं. छात्र-छात्राओं की मांगें सुनने की जगह उन्होंने अनशन कर रहे छात्र-छात्रओं को मिठाई खिलाने का प्रस्ताव दिया. अनशन जैसे चल रहा था वैसे ही चलता रहा. फलतः बहुत से विद्यार्थी अस्वस्थ हो गये और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा.

जो सारे छात्र-छात्राएं अनिश्चित काल के लिए भूख-हड़ताल कर रहे हैं, उनके साथ एकजुटता जाहिर करते हुए हड़ताल के 7वें दिन (25 मार्च, सोमवार) सैकड़ों की संख्या में दूसरे छात्र-छात्राओं ने एक दिन के लिए रिले अनशन किया. इसी दिन शाम को वे सभी जेएनयूएसयू और भूख-हड़ताल कर रहे छात्र-छत्राओं के साथ मिलकर कुलपति से मिलने उनके निवास पर गये. वे इस मामले पर उनसे बात करना चाहते थे, पर छात्र-छत्राओं ने देखा कि कुलपति निवास के चारों तरफ पहरा लगा है. उन्होंने जब भीतर जाना चाहा तो उन्हें बताया गया कि कुलपति घर में नहीं हैं. अब इसके बाद कौन-से कदम उठाये जाएं, इस विषय पर बातचीत करने के बाद छात्र-छात्राएं अपने हॉस्टल लौट आये. यह पूरी प्रक्रिया ही अत्यन्त शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक थी, पर कुलपति ने पूरी तरह बेबुनियाद आरोप लगाते हुए बताया कि विरोध जाहिर कर रहे छात्र-छात्राओं ने उनका घेराव किया था.




27 मार्च को जेएनयूटीए द्वारा आयोजित नेशनल कन्वेंशन ऑफ युनिवर्सिटिज ने ‘साबरमती प्रस्ताव’ ने नाम से एक प्रस्ताव ग्रहण किया. यह कन्वेंशन जिस जगह प्रायोजित किया गया था- उस स्थान के नाम पर इस प्रस्ताव का नामकरण किया गया. आनन्द तेलतुम्बडे ने कहा है, ‘इस बार के चुनाव में यदि ये लोग सरकार बना लेते हैं तो सभी कुछ खत्म हो जायेगा. तब हम देखेंगे सभी संस्थानों के शीर्ष पर ही मोदी के क्लोन बैठे हैं.’ उन्होंने और भी कहा है – ऊपरी तौर पर देंखे तो तो कांग्रेस और भाजपा में कोई खास फर्क नहीं है. बात इतनी है कि कांग्रेस जहां तात्कालिक स्वार्थों और मौकों से संचालित होती है, भाजपा वही विचारधारा से. साबरमती प्रस्ताव में बताया गया है – ‘सरकारी विश्वविद्यालयों और अय शिक्षा-संस्थानों में पिछले 5 वर्षों से सम्मिलित हमले संचालित किये गये हैं. ये हमले बहुत से स्तरों पर एक ही साथ हुए हैं. मसलन – फंडों की आपूर्ति के मामले में, नामांकनों और वित्त पोषण में अनियमितताएं, अपर्याप्त संरचना, संस्थानों की स्वायत्ता पर आक्रमण, राजनीतिक हस्तक्षेप, समता, पहुंच और आरक्षण में संकुचन, शिक्षा और शोध की गुणात्मकता में ह्रास, अभिव्यक्ति और सभा-सम्मेलन करने व मिलने-जुलने की स्वाधीनता, जनवाद एवं सुरखा अधिकारों पर पाबंदियां आदि.




इस प्रस्ताव में आगे कहा गया है – ‘हालांकि ये सारी चीजें आंशिक रूप से अतीत की विभिन्न खतरनाक प्रवृत्तियों की ही धारावाहिकता है, फिर भी पिछले 5 वर्षों से इन सभी प्रवृतियां और उनके प्रभावों के विस्तार में वृद्धि हुई है, उनकी कटुता और विषाक्तता बढ़ी है.’

7 दिन गुजर जाने के बाद अंततः 29 मार्च को इन छात्र-छात्राओं ने अपनी भूख-हड़ताल तोड़ी. जेएनयू और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने यह शपथ ग्रहण किया है कि ‘साबरमती प्रस्ताव’ के मुताबिक मोदी के नेतृत्वाधीन मौजूदा आरएसएस-भाजपा के फासीवादी शासन को वे उखाड़ फेकेंगे.’

विगत कई वर्षों से जेएनयू को लेकर काफी वाद-विाद होते रहे हैं. वह इसलिए कि देश के जिन कुछेक विश्वविद्यालयों ने स्वाधीन रूप से असहमति जाहिर करने के माहौल को अभी तक बनाये रखा है, उनमें से जेएनयू भी एक है. मौजूदा शासकीय पार्टी यहां हर तरह के वैसे पद्धतिगत बदलाव लाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है जिससे कि हाशिए पर पड़े जनसमुदायों में से कोई भी किसी प्रकार इस जेएनयू में दाखिल नहीं हो सकेगा. इसके अलावा समूचे देश में शिक्षा को जिस तरह वाणिज्यिकरण की ओर धकेलना शुरू हुआ है, जेएनयू में इस हमले को उससे अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए.




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