26 नवम्बर से केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा दिल्ली बाॅर्डर पर जबरन रोक कर रखे गये किसानों को पहले तो खालिस्तानी बता कर देशवासियों को गुमराह करने की कोशिश की गई, फिर उन्हें केवल पंजाब का किसान बताया गया, और फिर इसी तरह लगातार उन्हें कांग्रेसी, आतंकवादी, पाकिस्तान परस्त, चीनी परस्त, विदेशी फंडिंग वगैरह कहा गया. जब इससे भी केन्द्र की कुख्यात मोदी सरकार की दाल नहीं गली तब उन्हें अब ‘माओवादियों द्वारा हाईजैक’ कर लिया गया बताया गया, जबकि किसान आन्दोलन में अबतक भयानक ठंढ़ से तकरीबन 20 किसानों की मौत और एक किसान अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या भी कर लिये हैं.
केन्द्र की मोदी सरकार की नीचता की कल्पना केवल इसी बात से की जा सकती है कि इसका एक मूंह जहां इन किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए नीचतापूर्ण आरोप लगा देती है, तो वहीं इसका दूसरा मूंह कहता है, ‘मैंने तो नहीं कहा. यह उनकी बात है.’ इस तरह 21 दिन से भयानक होती ठंढ़ के मौसम में किसानों को थका डालने, इस आन्दोलन को खत्म कर देने के लिए केन्द्र की मोदी सरकार पहले तो बातचीत के बहाने इस मुद्दे को लम्बा खींचा, वहीं अब देश भर में इस किसान आन्दोलन में फूट डालने के लिए दुश्प्रचार में जुट गई है.
इस दुश्प्रचार के लिए उसकी अपनी रणनीति है, जिसके तहत वह इस आन्दोलन में फूट डालने, आन्दोलनकारियों के बीच अपने गुण्डों को भेज कर अनर्गल नारे लगवाने, दलाल टीवी चैनलों के माध्यम से दुश््रपचार करने, अपने नेता-कार्यकर्ताओं को अपेक्षाकृत शांत राज्यों में भेजकर लोगों को इस किसान आन्दोलन के खिलाफ माहौल बनाने के लिए तैयार करना आदि जैसे कुकृत्य में संलिप्त हो गया है. वहीं इसके मुखिया नरेन्द्र मोदी, जिसकी छवि दिन-व-दिन स्त्रैण की बनती जा रही है, देश भर में घूम-घूमकर नाच-गानों में व्यस्त है.
किसान आन्दोलन के खिलाफ केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा लगाये गये आरोप में सबसे बड़ा आरोप है इस किसान आन्दोलन को माओवादियों के द्वारा हाईजैक कर लिया जाना. अब्बल तो यह सवाल या आरोप ही सिरे से गलत है, परन्तु, अगर इस आरोप में तनिक भी सच्चाई हुई तो यह तय है कि यह आन्दोलन केन्द्र की मोदी सरकार के साथ-साथ अंबानी-अदानी-रामदेव के साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित हो जायेगी.
इसे हम ऐसे समझते हैं. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट, जो केन्द्र की मोदी सरकार का एक चाटुकार के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं रह गया है, के प्रधान न्यायधीश बोबरे ने कहा है कि अगर किसान आन्दोलन का यह मुद्दा नहीं सुलझा तो ‘यह किसान आन्दोलन जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जायेगा. ऐसा लगता है कि सरकार इसे सुलझा नहीं पा रही है.’ मोदी का दलाल सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश, जो भाजपा नेता के एक मंहगे मोटर साईकिल पर बैठता है, की यह एक ऐसी टिपण्णी है जिसका एक व्यापक आधार है, जो किसान आन्दोलन विफल होने और उसके माओवादी कनेक्शन जैसे मोदी सरकार के अफवाह के बाद घातक नतीजे की भविष्यवाणी है.
भारत में पिछले 50 सालों से माओवादी आन्दोलन, जो असल में हथियारबंद किसान आन्दोलन है, देश के अधिकांश भागों में चल रहा है. इस माओवादी हथियारबंद आन्दोलन की बुनियादी मांग ही जल, जंगल और जमीन है. भारत सरकार इन 50 सालों में लाखों की तादाद में माओवादी कार्यर्कर्ताओं को मार गिराया है, बदले में माओवादियों ने भी भारत सरकार की सैन्य बलों और उसके नेताओं को बड़ी तादाद में मौत के घाट उतार डाला है. इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि इतनी बड़ी तादाद में माओवादी आन्दोलनकारियों को मार गिराने के बाद भी भारत सरकार माओवादी आन्दोलनकारियों को खत्म तो करना दूर, वह उल्टे देश के तमाम हिस्सों में फैल गया और एक बड़ी ताकत हासिल कर ली है, जिसे खत्म करना भारत सरकार के लिए एक डरावन ख्वाब है.
ऐसे में देश भर के किसान जो अंबानी-अदानी जैसे काॅरपोरेट घरानों से अपनी जमीन को बचाने के लिए दिल्ली पहुंच रहे थे, को दिल्ली के बाॅर्डर पर कुख्यात मोदी सरकार ने जबरन रोक दिया गया है, और अब उनकी समस्या को हल करने के बजाय उनके खिलाफ दुश्प्रचार की मुहिम चला रही है, उन्हें विभिन्न नामों से बदनाम करने की कोशिश कर रही है. ऐसे में अगर इन आन्दोलनकारी किसानों की मांगों को नहीं माना जाता है, और उनका दमन कर उसे वापस जाने पर मजबूर कर किया जाता है, तब यह निश्चित जानिए किसान अपनी जमीनों को बचाने के लिए हथियार का भी सहारा ले सकते है, यानी अपरोक्ष रूप से सरकार के हिसाब से माओवादी बन जायेंगे सुप्रीम कोर्ट के हिसाब से देशव्यापी आन्दोलन का शक्ल अख्तियार कर लेगा.
अगर यह किसान माओवादी आन्दोलनकारियों से जुड़कर हथियार उठा लेंगे तो निश्चित रूप से देश में माओवादियों की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ जायेगी. तब ये बातचीत का माध्यम तो खुला रखेंगे ही, इसके बाद भी वे अंबानी-अदानियों के गोदामों को बम और बारूद से उड़ाना शुरू कर देंगे. सिंगुर और नन्दीग्राम के किसान आन्दोलन सरकार को याद रखना चाहिए, जहां किसान हथियारबंद होकर न केवल एक बड़ी ताकत जुटा ली थी, बल्कि सत्ता से भी तत्कालीन सत्ता को बेदखल कर टाटा जैसी कम्पनी को बैरंग वापस भागा दिया था. ऐसी स्थिति में केन्द्र की मोदी सरकार का जो नुकसान होना है, वह तो होगा ही, अंबानी-अदानी जैसी कम्पनियों को भी देश छोड़कर या तो भागना पड़ सकता है, अथवा अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है. आखिर सरकार हथियारबंद आम जनता की ताकत के सामने कितने समय तक टिक सकती है. आखिर मरता क्या न करता !
केन्द्र की कुख्यात मोदी सरकार, जिसने अंबानी-अदानी की चैकीदारी करने की कसम उठा रखी है, उसकी सम्पत्ति को दिन-दूनी-रात चैगुनी बढ़ाने के लिए देश की करोड़ों लोगों को मौत के मूंह में झोंकने के लिए तैयार हो गई है, आखिर में वह अपने साथ-साथ अंबानी-अदानी जैसी काॅरपोरेट घरानों को ही खत्म करने की दिशा में बढ़ रही है.
केन्द्र की मोदी सरकार के दुश्प्रचार के उलट वर्तमान किसान आन्दोलन न तो मूर्खों और अनपढ़ों का ही आन्दोलन है और न ही भटके हुए लोगों का. वहीं इसके उलट केन्द्र की मोदी सरकार की यह स्थिति है कि वह देश के सबसे बड़े धन्नासेठों अंबानी-अदानी का ने केवल कुत्ता ही है, बल्कि वह खुद एक अनपढ़ गुण्डा है. यह देश के सबसे सचेत किसान समुदायों का आन्दोलन है, जिसकी असफलता अंबानी-अदानी जैसे मूर्खों, धनपशुओं और उसके मोदी जैसे कुत्तों की कब्र ही खोदेगा, जिसके लिए मोदी सरकार थोड़ी ज्यादा ही सचेष्ट नजर आ रही है.
स्पष्ट है कि मोदी सरकार की यह हठधार्मिता और नीरो की तरह डांस करने की मूर्खता अंत में देश को माओवादियों के शरण में जाने को विवश कर देगी. इससे पहले की देश की जनता अपना जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए माओवादियों के शरण में आ जाये और अंबानी-अदानियों को ठिकाने लगाने लगे, केन्द्र की अनपढ़ और अंबानी-अदानी की चाटुकार मोदी सरकार को किसान आन्दोलन के खिलाफ दुश्प्रचार फैलाने के बजाय किसानों की बात मान लेनी चाहिए.
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