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लेनिन और लेनिनवाद

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लेनिन और लेनिनवाद
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मार्क्स और एंगेल्स के अनुगामी लेनिन समूची दुनिया के सर्वहारा वर्ग, मेहनतकश अवाम और उत्पीडित राष्ट्रों के महान क्रान्तिकारी शिक्षक रहे. साम्राज्यवाद के युग की ऐतिहासिक परिस्थिति में और सर्वहारा समाजवादी क्रान्ति की ज्वालाओं के बीच लेनिन ने मार्क्स और एंगेल्स की क्रान्तिकारी शिक्षाओं को विरासत के रूप में ग्रहण किया, मजबूती से उनकी हिफाजृत की, वैज्ञानिक रूप से उन्हें लागू किया और सृजनात्मक रूप से उनका विकास किया. लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रान्ति के युग का मार्क्सवाद है.

उन्होंने साम्राज्यवादी युग के शुरुआती चरण में रूसी क्रान्ति और विश्व सर्वहारा क्रान्ति के ठोस व्यवहार में मार्क्सवाद की बुनियादी प्रस्थापनाओं को सृजनात्मक रूप से लागू किया. कामरेड स्तालिन ने लेनिनवाद का इस प्रकार समाहार किया – ‘यह साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रान्ति के युग का मार्क्सवाद है.’

स्तालिन ने लेनिनवाद की खास विशेषताओं के दो कारणों का उल्लेख किया है – ‘… पहला तथ्य यह कि लेनिनवाद उस सर्वहारा क्रान्ति से पैदा हुआ जिसकी छाप उस पर अवश्य ही दिखायी देती है; दूसरा यह कि दूसरे इण्टरनेशनल के अवसरवाद के खिलाफ संघर्षों में यह विकसित और मजबूत हुआ.

कामरेड लेनिन ने मार्क्सवाद के तीनों संघटक अंगों को समृद्ध करने और सर्वहारा पार्टी, क्रान्तिकारी हिंसा, राज्य, सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व, साम्राज्यवाद, किसानों के सवाल, महिला प्रश्न, राष्ट्रीय प्रश्न, विश्व युद्ध तथा वर्ग संघर्ष में सर्वहारा वर्ग की कार्यनीति के विषय में हमारी समझदारी को अवधारणा की उन्नत मंजिल तक पहुंचाने में महान योगदान दिया. कामरेड लेनिन की सैद्धान्तिक रचनाएं मार्क्स की द्वन्द्वात्मक पद्धति को लागू करते हुए प्रायः सभी विषयों को समेटती है.

लेनिन ने मार्क्सवादियों के बीच मौजूद भौतिकवाद-विरोधी रुझानों की सर्वागीण आलोचना करने के साथ ही एंगेल्स के समय से लेकर अपने समय तक विज्ञान की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियों का भौतिकवादी दर्शन के आधार पर सामान्यीकरण करने के बेहद गम्भीर कार्यभार को हाथ में लिया. विशेष रूप से दर्शनशास्त्र में संशोधनवादी रुझान के रूप में सामने आयी अनुभवसिद्ध आलोचना की आलोचना का बुनियादी महत्व है. तब से लेकर आज तक उनकी यह आलोचना आधुनिक पूंजीवादी दार्शनिक रुझानों की मार्क्सवादी समालोचना के रूप में उपयोगी रही है. आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के आधार पर ‘नवीन” दार्शनिक रुझानों के नाम पर मार्क्सवाद पर होने वाले हमले को उन्होंने दर्शन के मोर्चे पर वर्ग संघर्ष की एक अभिव्यक्ति माना. उन्होंने यह सिद्ध किया कि ‘नवीन’ दार्शनिक सिद्धान्त बर्कले और ह्यूम के पुराने मनोगतवादी आदर्शवाद से भिन्‍न नहीं है. इस प्रकार लेनिन ने दार्शनिक मोर्चे पर मार्क्सवाद पर हुए इस हमले को बखूबी परास्त किया. इस प्रक्रिया में उन्होंने मार्क्सवादी दर्शन का सृजनात्मक विकास किया.

लेनिन ने प्रतिबिम्बन के मार्क्सवादी सिद्धान्त को सृजनात्मक तरीके से विकसित किया. आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के आधार पर उन्होंने यह बताया कि प्रतिबिम्बित होना पदार्थ का गुण है और कि मानव मस्तिष्क में पदार्थ के प्रतिबिम्बन का उच्चतम रूप है चेतना.

लेनिन ने पदार्थ के प्रतिबिम्बन का जो सिद्धान्त विकसित किया, ‘पदार्थ’ की जो परिभाषा की, उसने मार्क्सवादी दार्शनिक भौतिकवाद की बुनियाद को अधिक मजबूत किया और उसे आदर्शवाद के किसी भी रूप के हमले से अभेद्य बनाया. लेनिन ने क्रान्तिकारी द्वन्द्रवाद को आगे विकसित करते हुए अन्तरविरोधों का खास तौर पर गहरा अध्ययन किया. उन्होंने अन्तरविरोध को ‘द्वन्द्ववाद का सारतत्व’ बताया और यह कहा कि ‘एक का विभाजन और उसके अन्तरविरोधी अंगों का ज्ञान ही द्वन्दववाद का सार है.’ उन्होंने आगे इस पर भी जोर दिया कि ‘सक्षेप में द्वद्धवाद को विपरीत तत्वों की एकता के सिद्धान्त के रूप में परिस्थापित किया जा सकता है.’

राजनीतिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भी लेनिन ने महान योगदान किया. मार्क्स और एंगेल्स ने मुक्त प्रतियोगिता की मंजिल के पूंजीवाद के विभिन्‍न पहलुओं को उजागर किया और उसकी प्रवृत्तियों तथा भावी दिशा को चिहिनत किया. किन्तु अब तक सामने न आ सकी पूंजीवाद की उच्चतम मंजिल साम्राज्यवाद का विश्लेषण करना उनके लिए सम्भव न था. लेनिन ने मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र को आगे विकसित किया और साम्राज्यवाद के आर्थिक तथा राजनीतिक सारतत्वों का विश्लेषण किया.

कामरेड लेनिन ने मार्क्सवाद के सिद्धान्त में महान योगदान करने वाले, साम्राज्यवाद के अपने विलक्षण विश्लेषण के जरिये वैज्ञानिक रूप से इजारेदारी से पहले वाली मंजिल से लेकर इजारेदारी की मंजिल तक पूंजीवाद के रूपान्तर की व्याख्या की और यह बताया कि पूंजीवाद की यह उच्चतम मंजिल किस प्रकार युद्ध और क्रान्ति को जन्म देती है. उन्होंने यह बताया कि साम्राज्यवादी युद्ध दरअसल साम्राज्यवादी राजनीति का जारी रूप है. विश्व बाजारों, कच्चे माल के स्रोतों तथा निवेश के क्षेत्रों को खोज निकालने की अपनी हवस के चलते और दुनिया को फिर से विभाजित करने के परस्पर संघर्ष के चलते साम्राज्यवादी शक्तियां विश्व युद्धों की शुरुआत कर देती हैं. इसीलिए जब तक दुनिया में साम्राज्यवाद रहेगा तब तक युद्ध का स्रोत और सम्भावना कायम रहेगी. उन्होंने लोकततन्त्र के मिथक की धज्जियां उड़ायीं और यह बताया कि ‘राजनीतिक तौर पर साम्राज्यवाद हमेशा हिंसा और प्रतिक्रियावाद की दिशा में प्रयासरत होता है.’

लेनिन ने पुरजोर तरीके से कहा कि साम्राज्यवाद इजारेदार, परजीवी या पतनशील, मरणोन्मुख पूंजीवाद है; कि यह पूंजीवाद के विकास की उच्चतम मंजिल तथा अन्तिम मंजिल है और इसी वजह से यह सर्वहारा क्रान्ति की पूर्वबेला है.

लेनिन का एक अन्य प्रमुख योगदान शोषक वर्गों के राज्य के ढाँचे को ध्वस्त करने और सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व की स्थापना करने के सम्बन्ध में है. उन्होंने यह बताया कि किस प्रकार राज्य एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न का उपकरण है और कैसे शोषणकारी राज्य को केवल क्रान्तिकारी हिंसा के जरिये ही ध्वस्त किया जा सकता है. लेनिन ने बार-बार यह बताया कि सर्वहारा क्रान्ति को पूंजीवादी राज्य मशीनरी को ध्वस्त करना होगा और उसके स्थान पर सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व कायम करना होगा.

पेरिस कम्यून और रूसी क्रान्ति से सबक लेते हुए लेनिन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सरकार का सोवियत रूप सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व का सर्वोत्तम रूप है; सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व को मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सर्वहारा तथा गैर-सर्वहारा वर्गों के शोषित अवाम के, खास कर किसानों के वर्ग संश्रय के विशेष रूप के तौर पर परिभाषित किया और यह बताया कि सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व किस प्रकार जनवाद की सर्वोच्च किस्म है, सर्वहारा जनवाद का वह रूप है जो बहुसंख्यक जनता के हितों को अभिव्यक्त करता है. उन्होंने यह बताया कि सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्व पुराने समाज की शक्तियों तथा परम्पराओं के खिलाफ सतत संघर्ष है – रक्तपात-युक्त और रक्तपात-हीन संघर्ष, हिंसक और शान्तिपूर्ण संघर्ष, सामरिक और आर्थिक संघर्ष, शैक्षणिक और प्रशासनिक संघर्ष है और इसका अर्थ है पूंजीपति वर्ग पर सर्वतोमुखी अधिनायकत्व. लेनिन के चिन्तन में सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के महत्व को उनके इस मशहूर कथन से आंका जा सकता है – ‘केवल वहीं मार्क्सवादी है जो वर्ग-संघर्ष की मान्यता को सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व की मान्यता तक स्वीकार करता हो.’

इसके अलावा लेनिन ने पूंजीवाद की पुनर्स्थापना की चर्चा करते हुए यहकहा कि अगर मजदूर वर्ग छोटे पैमाने के माल उत्पादन को पूरी तरह रूपान्तरित नहीं करता, तो इसका खतरा बना रहता है. लेनिन ने कहा है – ‘छोटे पैमाने का उत्पादन लगातार प्रतिदिन, प्रतिघंटा, सहज रूप से और व्यापक पैमाने पर पूंजीवाद और पूंजीपति वर्ग को जन्म देता है.’ यही कारण है कि लेनिन ने इस नये पूंजीपति वर्ग के उभरने पर रोक लगाने के लिए सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व को अनिवार्य माना. पूंजीवाद के असमान आर्थिक तथा राजनीतिक विकास के नियम के आधार पर लेनिन इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे कि विभिन्‍न देशों में पूंजीवाद अत्यन्त असमान रूप से विकसित होने के कारण समाजवाद पहले एक या अनेक देशों में विजयी तो हो सकता है, पर सभी देशों में एक ही साथ विजयी नहीं हो सकता. यही वजह है कि एक या अनेक देशों में समाजवाद की विजय होने पर भी अन्य पूंजीवादी देश मौजूद रहते हैं, इससे समाजवादी राज्यों के खिलाफ तोड़-फोड्‌ की साम्राज्यवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है. इसीलिए संघर्ष दीर्घकालीन होता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1963 में अपने 14 जून के मशहूर पत्र में बहुत स्पष्ट तरीके से कहा है –

‘अक्टूबर क्रान्ति के बाद लेनिन ने कई बार यह कहा है कि –

(क) धराशाई शोषक हजारों तरह से उस ‘स्वर्ग’ को फिर से प्राप्त करने की कोशिश करते हैं जो उनसे छिन चुका है.

(ख) निम्न पूंजीवादी वातावरण में पूंजीवाद के नये तत्व लगातार और सहज रूप से पैदा होते रहते हैं.

(ग) पूंजीवादी प्रभाव तथा निम्न पूंजीपति वर्ग के प्रसाशील व पतनशील वातावरण के परिणामस्वरूप मजदूर वर्ग की पांतों तथा सरकारी कार्य करनेवालों के बीच से राजनीतिक रूप से भ्रष्ट लोगों और नये पूंजीवादी तत्वों का उदय हो सकता है.

(घ) समाजवादी देश के भीतर वर्ग संघर्ष जारी रखने वाली बाहरी स्थितियां हैं – अन्तरराष्ट्रीय पूंजीवाद की घेरेबन्दी, साम्राज्यवादियों की सशस्त्र हस्तक्षेप की धमकी तथा शान्तिपूर्ण तरीके से छिन्‍न-भिन्‍न करने को लिए उनकी षड़यन्त्रकारी सरगरमियां…’.

लेनिन की यह प्रस्थापना कि समाजवाद और पूंजीवाद के बीच संघर्ष एक समूचे ऐतिहासिक दौर तक जारी रहेगा, समाजवाद और साम्यवाद के निर्माण के सिद्धान्त में एक भारी योगदान है.

पार्टी निर्माण की अवधारणा तथा व्यवहार के क्षेत्र में लेनिन के योगदान से नया रास्ता खोलते हुए छलांग लगी जिससे मार्क्सवाद के शस्त्रागार में महान इजाफा हुआ. लेनिन की यह मान्यता रही कि अगर सर्वहारा क्रान्ति को सम्पन्न करना हो और सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व को स्थापित व सुदृढ़ करना हो, तो सर्वहारा वर्ग के लिए यह निहायत जरूरी है कि वह अपनी ऐसी सच्ची क्रान्तिकारी राजनीतिक पार्टी, अर्थात कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना करे जो अवसरवाद से पूरी तरह विच्छेद कर चुकी हो. ‘सत्ता के लिए अपने संघर्ष में सर्वहारा वर्ग के पास संगठन को अलावा और कोई हथियार नहीं है.’ – अपने इस मशहूर कथन में उन्होंने पार्टी की आवश्यकता का विलक्षण समाहार प्रस्तुत किया. उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि पार्टी जनता के सभी अन्य रूपों के संगठनों को निर्देशित करने वाले वर्गीय संगठन का उच्चतम रूप है, कि सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व को केवल सर्वहारा पार्टी के जरिये ही अमल में लाया जा सकता है और कि पार्टी को पेशेवर क्रान्तिकारियों का ऐसा स्थिर केन्द्रक होना चाहिए जिसके साथ पार्टी सदस्यों का एक व्यापक तानाबाना जुड़ा हो. इस राजनीतिक पार्टी को जनता के साथ गहरा जुड़ाव रखना होगा और इतिहास निर्माण में उसकी सृजनात्मक पहलकदमी को पूरा-पूरा महत्व देना होगा. इसे क्रान्ति के दौरान ही नहीं, वरन्‌ समाजवाद तथा साम्यवाद के निर्माण के दौरान भी, जनता पर घनिष्ठ रूप से निर्भर रहना होगा.

राष्ट्रीय प्रश्न पर लेनिनवादी समझदारी गुणात्मक रूप से अधिक उन्नत स्तर की समझदारी है. लेनिन ने उत्पीड़क राष्ट्र के अन्धराष्ट्रवाद तथा उत्पीड़ित राष्ट्र के संकीर्ण राष्ट्रवाद दोनों के ही खिलाफ संघर्ष किया और राष्ट्रीय प्रश्न पर सर्वहारा वर्ग की पार्टी के लिए सभी राष्ट्रों के पूरी तरह समान अधिकार, अलग होने के अधिकार समेत राष्ट्रों के आत्मनिर्णय के अधिकार और समस्त राष्ट्रों के एक साथ जुड़ने के विषय में सही नीति प्रस्तुत की. उन्होंने यह बताया कि किस प्रकार राष्ट्रीय और औपनिवेशिक प्रश्न विश्व सर्वहारा क्रान्ति के सामान्य प्रश्न का अनिवार्य घटक तत्व है और कि इसका समाधान दुनिया भर से साम्राज्यवाद को पूरी तरह समाप्त करके कैसे किया जा सकता है. कामरेड लेनिन की ‘राष्ट्रीय और ओपनिवेशिक थीसिस’ के अनुसार पूंजीवादी देशों के सर्वहारा क्रान्तिकारी आन्दोलनों को उपनिवेशों तथा आश्रित देशों के राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलनों के साथ संश्रय करना चाहिए; यह संश्रय उपनिवेशों तथा आश्रित देशों में साम्राज्यवादियों और सामन्ती तथा दलाल प्रतिक्रियावादी शक्तियों के बीच के संश्रय को ध्वस्त कर सकता है और इस तरीके से यह संश्रय दुनिया भर में साम्राज्यवादी व्यवस्था को अन्ततः हमेशा के लिए समाप्त कर देगा.

लेनिन ने मजदूर वर्ग और किसानों के बीच के संश्रय के सवाल पर मार्क्स और एंगेल्स के विचारों को सृजनात्मक रूप से विकसित करते हुए उसे एक अखण्ड सिद्धान्त का रूप दिया. प्लेखानोव सरीखे मेन्शेविकों की उस लाइन को खारिज करते हुए, जिसके तहत सर्वहारा को केवल चरम वामपन्थी विपक्ष की ही भूमिका अदा करनी होती और रूस की पूंजीवादी जनवादी क्रान्ति के नेतृत्व की भूमिका पूंजीपति वर्ग को सौंप देनी होती तथा किसानों को इस पूंजीपति वर्ग के ही नेतृत्वाधीन रख देना होता, लेनिन ने रूस की क्रान्ति की दोनों ही मंजिलों के लिए रणनीतिक योजनाएं इस प्रकार सूत्रबद्ध की – ‘सर्वहारा वर्ग को व्यापक किसान जनता को साथ जुड़कर जनवादी क्रान्ति को सम्पन्न करना होगा ताकि निरंकुश-तन्त्र के प्रतिरोधों को बलपूर्वक कुचल दिया जा सके और पूजीपति वर्ग की अस्थिरता को पंगु बनाया जा सके. सर्वहारा वर्ग को आबादी के व्यापक अर्द्ध-सर्वहारा तत्वों के साथ जुड़ते हुए सामाजवादी क्रान्ति को पूरा करना होगा ताकि पूजीपति वर्ग के प्रतिरोध को बलपूर्वक कुचल दिया जा सके और किसानों तथा निम्न पूंजीपति वर्ग की अस्थिरता को पंगु बनाया जा सके.’

साम्राज्यवाद के युग में रूस की अन्तरराष्ट्रीय तथा आन्तरिक स्थितियों का विश्लेषण करते हुए लेनिन ने इस प्रकार पूंजीवादी जनवादी तथा सर्वहारा समाजवादी, अर्थात क्रान्ति की उन दोनों ही मंजिलों का एक सर्वथा नया सिद्धान्त विकसित किया जो अविभाज्य होती हैं और जिनका नेतृत्व सर्वहारा को ही करना होगा.

लेनिनवाद बर्नस्टीनवादी संशोधनवादियों, नरोदवादियों, अर्थवादियों, मेन्शेविकों, कानूनी मार्क्सवादियों, विसर्जनवादियों, काउत्स्कीपन्थियों, त्रात्स्कीपन्थियों समेत विभिन्‍न रंग-रूप के अवसरवादियों के खिलाफ अविराम संघर्ष के जरिये विकसित हुआ है. लेनिन ने मार्क्सवाद को जड्सूत्र के रूप में नहीं, बल्कि कार्यों के मार्गदर्शक के रूप में मानते हुए कार्यनीति तैयार की. लेनिन के कार्यनीतिक नारों की विलक्षण स्पष्टता और उनकी क्रान्तिकारी योजनाओं के अनोखे साहस के चलते दूसरे इण्टरनेशनल की समस्त वामपन्थी शक्तियों और क्रान्तिकारी जनता को बोल्शेविकों के पक्ष में लाया जा सका.

संशोधनवादियों को लेनिन मजदूर वर्ग के आन्दोलन की पांतों के बीच छिपे हुए साम्राज्यवाद के दलाल मानते थे. उन्होंने कहा है कि ‘… साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष तब तक ढकोसला और बकवास होगा जब तक इसे अवसरवाद को खिलाफ संघर्ष के साथ अभिन्‍न रूप से न जोड़ दिया जाये.’

‘पितृभूमि की रक्षा’ की अन्धराष्ट्रवादी नीति पर चलने वाली अधिकतर सामाजिक जनवादी पार्टियों के विश्वासघात के चलते प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान दूसरे इण्टरनेशनल का पतन होने पर कामरेड लेनिन ने युद्ध के फौरन बाद तीसरे इण्टरनेशनल का गठन किया और इसे साम्राज्यवाद के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के संघर्ष का शक्तिशाली उपकरण बना दिया.

मार्क्सवाद पूंजीवाद के अपेक्षाकृत शान्तिपूर्ण विकास के युग का सिद्धान्त है. जबकि लेनिनवाद साम्राज्यवाद और सर्वहारा क्रान्ति के युग का सिद्धान्त है.

कामरेड स्तालिन ने उन स्थितियों का वर्णन करते हुए जिनमें लेनिनवाद का उदय हुआ, यह कहा है कि ‘लेनिनवाद ने साम्राज्यवाद की उन स्थितियों में विकास किया और आकार ग्रहण किया जब पूंजीवाद के अन्तरविरोध चरमबिन्दु तक पहुंच चुके थे, सर्वहारा क्रान्ति एक फौरी व्यवहारिक सवाल बन गयी थी, मजदूर वर्ग की क्रान्ति की तैयारी का पुराना दौर बीत चुका था और उसके स्थान पर पूंजीवाद पर सीधा प्रहार करने का नया दौर आ चुका था.’ उन्होंने यह भी कहा है कि ‘लेनिनवाद आम तौर पर सर्वहारा क्रान्ति का सिद्धान्त तथा कार्यनीति है और खास तौर पर सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व का सिद्धान्त तथा कार्यनीति हो.’

आज भी साम्राज्यवाद पर, सर्वहारा क्रान्ति तथा सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व पर, युद्ध और शान्ति पर और समाजवाद तथा साम्यवाद के निर्माण पर लेनिन की शिक्षाएं पूरी तरह प्राणवान बनी हुई हैं. इस प्रकार मार्क्सवाद के विज्ञान ने पूंजीवाद की साम्राज्यवादी अवस्था में सर्वहारा क्रान्ति और दूसरे इण्टरनेशनल के अवसरवादियों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान मार्क्सवाद-लेनिनवाद की दूसरी उन्नत मंजिल तक गुणात्मक छलांग लगायी.

  • प्रस्तुत आलेख सीपीआई माओवादी के अंग्रेजी मुखपत्र ‘Peaple’s War’ के हिन्दी संस्करण ‘लाल पताका’ से लिया गया है. यह आलेख नवम्बर, 2017 के अंक में प्रकाशित हुआ था.

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