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असमानता और अन्याय मनुष्य जाति के अस्तित्व के लिये खतरा है

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असमानता और अन्याय मनुष्य जाति के अस्तित्व के लिये खतरा है

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्त्ता

समाज में सभी उत्पादक हैं. सब कुछ ना कुछ उत्पादन करते हैं. किसान अनाज का उत्पादन करता है. मजदूर फैक्ट्री में कपडे या कार का उत्पादन करता है. उसी फैक्ट्री में इंजीनियर का काम भी उत्पादन का एक रूप है. एक कम्पनी के क्लर्क और सीईओ का काम भी एक तरह का उत्पादन है. ड्राइवर का गाड़ी चलाना उत्पादन है. पाइलेट का जहाज़ उड़ाना उत्पादन है. सफाई कर्मचारी का सड़क या शौचालय साफ़ करना उत्पादन है. सारे उत्पादन समाज के लिये ज़रूरी हैं.

इन सभी उत्पादकों की जीवन की आवश्कताएं भी बराबर हैं इसलिये सबकी मजदूरी ज़रूरत के अनुसार बराबर होनी चाहिये ताकि समाज के ये सभी सदस्य अपनी ज़रूरतों को बराबर तरीके से पूरा कर सकें. सभी बराबर सम्मान पा सकें और इन सभी के संताने एक सामान शिक्षा, एक समान इलाज और एक सामान जीवन की स्तिथियां पा सकें. विभिन्न उत्पादकों के आपसी सम्बन्ध अगर एक दूसरे के शोषण पर आधारित होंगे तो समाज में असमानता, अमीरी, गरीबी, दुख बीमारी भूख रहेगी.

लेकिन अगर समाज हर काम के लिये बराबर मजदूरी का सिद्धांत स्वीकार कर लेता है तो समाज से सभी लोगों को एक सामान जीवन स्तर का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है. कम मजदूरी पाने वाला गरीब इस समानता के सिद्धांत को मानने के लिये तैयार है लेकिन जिन्हें थोड़ी मेहनत के बदले अधिक मुनाफा मिलता है, वे अमीर लोग समानता के सिद्धांत से नफरत करते हैं.

धर्म ने समानता का उपदेश दिया, अमीरों के समाज ने उसे नहीं माना. लोकतन्त्र भी समानता के सिद्धांत की बात करता है पर अमीर समाज ने लोकतन्त्र की बात भी नहीं मानी. इस सब को देख कर कुछ लोग कहने लगे कि ये कम मेहनत से ज़्यादा कमाने वाले अमीर लोग समानता के सिद्धांत को समझाने से नहीं मानेंगे. इनको ज़बरन बदलना पडेगा. इससे समाज में झगड़ा पैदा हो गया है. इसे राज्य खुद के लिये सबसे बड़ा खतरा मानता है .

और चूंकि कम मेहनत से ज़्यादा कमाने वाले अमीर लोग ही सरकार पर हावी होते हैं इसलिये ये अमीर लोग समानता की कोशिश करने वालों को अपना दुश्मन मान कर उन पर सरकारी पुलिस की सहायता से हमला कर के उन्हें समाप्त करने की कोशिश करते हैं. तब समानता की कोशिश करने वाले सरकार पर ही कब्ज़ा करने की कोशिश करते हैं. सरकार पर कब्ज़ा करने की कोशिश करने वालों का पहला सामना सरकार की पुलिस से ही होता है इसलिये ये पुलिस पर हमला करते हैं.

लेकिन अमीर लोग गरीबों को मजदूरी का लालच देकर अपनी पुलिस में काम करने के लिये भर्ती करते जाते हैं. इस तरह गरीब ही गरीब से लड़ते रहते हैं. इस तरह से समाज की असमानता हथियारों के दम पर चलती रहती है. इस तरह समाज का पूरा आर्थिक ढांचा हिंसा पर आधारित हो जाता है.

आर्थिक ढांचे के आधार पर ही सामाजिक ढांचा बनता है. इस सामाजिक ढांचे में पैसे वाला ज़्यादा इज्ज़त वाला ताकतवर और ऊंचा माना जाता है. इस तरह यह मूलतः यह सामाजिक ढांचा भी हथियारों के दम पर ही टिका हुआ है. इस आर्थिक और राजनैतिक ढांचे को सरकार बनाये रखने का वादा करती है. इस तरह हमारा पूरा आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक ढांचा ही हथियारों के दम पर चलाया जाता है.

इस ढांचे को कम मेहनत करने वाले अमीर शक्तिशाली लोगों द्वारा मेहनत करने वाले गरीब लोगों पर जबरन थोप कर रखा जाता है. यह ढांचा समाज के समानता और न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध है. यह ढांचा असभ्य है, क्रूर, हिंसक और अवैज्ञानिक है. इस ढांचे के रहते समाज में समानता, न्याय, चैन, सुख और शांति नहीं आ सकती. जो लोग इसी ढांचे के रहते विकास और शांति की कल्पना कर रहे हैं, वे विकास के नाम पर अधिक असमानता और उसके परिणाम स्वरूप और अधिक अशांति की तरफ बढ़ रहे हैं.

इस अन्याय के कारण बढ़ने वाली अशांति बड़े युद्ध में बदल सकती है. बड़े हथियारों से भरी इस दुनिया में ऐसा कोई भी युद्ध मानवजाति के अस्तित्व को मिटा सकता है इसलिये असमानता पर आधारित यह समाज मनुष्य जाति के अस्तित्व के लिये खतरा हैं. इसलिये जो लोग समानता के लिये काम कर रहे हैं वे दरअसल मानवजाति के अस्तित्व को बचाने के लिये काम कर रहे हैं. मनुष्य जाति का भविष्य समानता और न्याय में ही है. असमानता और अन्याय मनुष्य जाति के अस्तित्व के लिये खतरा है.

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