केश नं एक – पहलू खान की मॉबलिंचिंग कर हत्या कर दी गई. हत्यारों ने हत्या करते हुए उसकी बकायदा विडियो बनाया. मामला पुलिस और फिर न्यायालय में गया. पुलिस ने विडियो के आधार पर हत्यारों की पहचान की और हत्यारों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. न्यायालय ने हत्या करते हुए बनाये गये विडियो को मानने से इंकार कर दिया. हत्यारों को क्लिनचीट देते हुए न्यायलय ने साफ कर दिया कि मॉबलिंचिंग में हत्या करते हुए बनाये गये विडियो न्यायालय में अमान्य है. हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं और उसे सम्मानित भी किया गया है.
केश नं. दो – मुजफ्फरपुर बालिका गृह में दर्जनों अनाथ नाबालिग लड़कियों के साथ लगातार बलात्कार किया जाता रहा. विरोध करने वाली लड़कियों की बकायदा हत्या कर दी गई. मामले मीडिया में आने के बाद बबाल बढ़ा. मुकदमे दर्ज किये गये. गिरफ्तारी का नाटक किया गया. न्यायालय ने आदेश जारी किया कि मुजफ्फर बालिका गृह के बलात्कार मामले में मीडिया इस मामले में कोई भी खबर न चलाये. पुलिस ने केश को कमजोर कर आरोपितों को बाहर निकलने का रास्ता आसान किया. अब इसकी खबरें भी मीडिया में नहीं आ रही है.
केश नं. तीन – उन्नाव के बलात्कार पीड़िता ने जब पुलिस में केश दर्ज करने की कोशिश की. बलात्कारियों और उसके सहयोगियों ने बकायदा उसके पिता को पेड़ में बांध कर पीट-पीट कर अधमरा कर दिया. पुलिस ने उस बलात्कार पीड़िता के पिता पर फर्जी मुकदमें दर्ज कर पहले उसे उठाकर थाना और फिर जेल में बंद कर दिया. थाना और फिर जेल में पुलिस की पिटाई के बाद उसकी मृत्यु हो गई. फिर उसके चाचा को अनेक फर्जी मुकदमों लगाकर पुलिस ने जेल में बंद कर दिया. जब कहीं भी पिड़िता की कोई सुनवाई नहीं हुई तब पीड़िता प्रदेश के मुख्यमंत्री के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. मामला प्रकाश में आने और पुलिस की भारी थुक्काफजीहत के बाद पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ मुकदमा दायर किया और उसे गिरफ्तार कर जेल में बंद करने का ड्रामा किया. अपने चाचा से जेल में मिलने आने और जाने के क्रम में पुलिस की मिलीभगत से आरोपितों ने पीड़िता, उसकी मां, उसकी चाची और उसका मुकदमा लड़ने वाले वकील पर ट्रक चढ़ा कर हत्या करने की कोशिश की. न्यायालय खामोशी से तमाशा देख रही है.
केश नं. चार – कश्मीर के कठुआ की 8 साल की नाबालिग बच्ची अशिफा की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. मामला सुर्खियों में आने के बाद बलात्कारियों पर मुकदमा दर्ज किया गया. बलात्कारियों के पक्ष में सरकार की ओर से प्रयोजित जुलूस-प्रदर्शन किया गया.
केश नं. पांच – पुलिस अधिकारी सुबोध सिंह को मॉबलिंचिंग कर सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्यारे के खिलाफ मामूली का मुकदमा दायर कर जेल में बंद किया गया. जेल से रिहा होने के बाद उसे माला पहनाया गया और सम्मानित किया गया.
केश नं. छः – तबरेज अंसारी को मॉबलिंचिंग में जय श्री राम का नारा लगाते हुए पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. हत्यारों ने बकायदा इसका विडियों बनाया. पुलिस ने उक्त विडियो के आधार पर कुछ लोगों को गिरफ्तार किया. न्यायालय में तबरेज अंसारी की हत्या को हार्ट-अटैक से हुई मृत्यु बनाकर हत्यारो को निर्दोष साबित कर दिया गया.
केश नं. सात – पूर्व गृहमंत्री चिन्मयानन्द का नग्न अवस्था में युवती से तेल मालिस और बलात्कार का दर्जनों विडियो पुलिस को सौंपे जाने और मीडिया में बबाल खड़ा होने के बाद भी चिन्मयानन्द एयरकंडीशन में आराम में कर रहा है और पीड़ित युवती को पुलिस ने फिरौती मांगने की बात करते हुए गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया और उसके दर्जनों विडियो को अमान्य मान लिया गया.
उपरोक्त तमाम उदाहरणों में आरोपित देश की सत्ता पर बैठी हुई भाजपा के मंत्री, विधायक या उसके रसूखदार नेता और कार्यकर्त्ता शामिल रहे हैं. यह चंद उदाहरण यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि देश में बलात्कार और मॉबलिंचिंग की घटना पर पुलिस और न्यायापालिका का रूख सहमति का है. यह सहमति की बात समझ में नहीं आती अगर न्यायापालिका मॉबलिंचिंग और बलात्कार की घटनाओं में जारी की जा रही विडियों को अमान्य न घोषित करती. सरकार इस केश की पुलिसिया तफ्तीश को कमजोर न करती और सबसे बढ़कर न्यायालय मॉबलिंचिंग के खिलाफ देश के जाने-माने हस्तियों के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज न कर रही होती.
विदित हो कि भारतीय न्यायापलिका एक से बढ़कर एक मिसाल कायम करते हुए अब प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा, फिल्मकार श्याम बेनेगल, गायक शुभा मुदगल, बंगाली सिनेमा जगत के जानकार सौमित्रो चटर्जी, दक्षिणी फिल्म निर्माता अभिनेता रेवती, सामाजिक कार्यकर्ता बिनायक सेन, समाजशास्त्री आशीष नंदी, मणिरत्नम, अर्पणा सेन समेत 50 देश की जानी-मानी हस्तियों पर मुकदमा दर्ज करने की अनुमति यह कहते हुए दी है कि देश भर में मॉबलिंचिंग के मामलों पर इन लोगों ने जो चिंता जाहिर की है, उससे देश और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल हुई है. पुलिस ने मॉबलिंचिंग के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने की जुर्म में प्राथमिकी दर्ज कर ली है, जो भारतीय दण्ड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत राजद्रोह, उपद्रव करने, शांति भंग करने के इरादे से धार्मिक भावनाओं को आहत करने जैसी धाराओं के अन्तर्गत है.
इस मुकदमें से जो चीजें साफ उभर कर सामने आई है वह यह कि देश में मॉबलिंचिंग कर किसी की हत्या करना देना जायज है, और उसकी खिलाफत करना देशद्रोह है. बलात्कार जैसे मामलों का विरोध करना जघन्य अपराध है, अगर बलात्कारी आपकी (पीड़िता) की हत्या नहीं कर पाता है तो न्यायालय खुद उस पीड़िता को गिरफ्तार कर जेल में बंद करेगी. अभी बलात्कार के एक अन्य मामले में तो न्यायालय ने पीड़िता को साफ आदेश दिया है कि पीड़िता अपने साथ दो चश्मदीद गवाह को कोर्ट में पेश करे.
भारतीय न्यायपालिका का यह मिसाल दुनिया में बेमिशाल है. न्यायपालिका ने अपने फैसलों से स्पष्ट कर दिया है कि देश में अब किसी की भी मॉबलिंचिंग कर हत्या करना, उसका विडियो बनाकर वायरल करना, बलात्कार करना कोई अपराध नहीं है बल्कि सम्मान की बात है और इसका विरोध करना देशद्रोह जैसा एक जघन्य अपराध है, जिसमें आपकी हत्या भी की जा सकती है.
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