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राम जन्मभूमि का सच : असली अयोध्या थाईलैंड में है

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राम जन्मभूमि का सच : असली अयोध्या थाईलैंड में है

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

बहुत बार सोशल मीडिया पर अलग-अलग कारणों से बहस होती है जिसमें राम को काल्पनिक बताया जाता है. एक केस में कांग्रेस सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल ने भी कोर्ट में लिखित दिया कि सरकार राममंदिर से जुड़ा कोई अध्यादेश नहीं ला सकती क्योंकि रामायण का भारत से ताल्लुक नहीं है लेकिन लोगों की आस्था का विषय है इसीलिये सरकार इसके विषय में कुछ सार्वजनिक कहने से संकोच कर रही है. और इसी बात को लेकर कई बार भक्त सोशल मीडिया पर राम मंदिर के मुद्दे को हवा देते समय कांग्रेस सरकार के शासन काल में दिये गये इस लिखित जवाब को कांग्रेस से जोड़कर लोगों को कांग्रेस के विरुद्ध भड़काते हैं जबकि असल में रामायण के सारे भारतीय प्रमाण झूठे और गढ़े हुए हैं.

असल में तो भारत का ये वर्तमान हिस्सा रामायण काल के बहुत बाद में प्राकृतिक घटनाओं के कारण एशिया और यूरोप के साथ-साथ इनको जोड़ने वाले यूरेशिया (आज का सोवियत रूस) में जुड़ा और इसी कारण आर्योंं के वंशज, ये नहीं मानते कि वो बाहर से आये जबकि वे इसी द्वीपीय भू-भाग के लिये तो बाहरी ही माने जायेंगे.




आज इस द्वीपीय भू-भाग (जो उस समय समुद्र में तैरता एक बड़ा द्वीप था जो आज के ओसवाना द्वीप (आस्ट्रेलिया) के आसपास था, में बहुत सारे देश है जिसमें से एक भारत भी है (उस समय इस द्वीप का जो विस्तार था, उसमें आज का भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उजेबकिस्तान, क़ज़ाकिस्तान (ये रूस तक के हिस्से में जुड़ गये, जो उस समय यूरेशिया कहलाता था) तथा ओमान, यमन, सऊदी अरब ईरान, ईराक, सीरिया (ये टर्की से जुड़ गये) और इस तरह यूरोप और एशिया का इस द्वीप की वजह से नया मिलन हुआ और नेपाल, भूटान, बांग्लादेश इत्यादि से उस समय के दक्षिण-पूर्व एशिया के म्यांमार (बर्मा), थाईलैंड (उस समय सियाम, श्रीराम भाषायी अपभ्रंश) नगर, वियतनाम (उस समय चंपानगरी), कम्बोडिया (उस समय कम्बोज), मलेशिया (उस समय मलयदेश) इत्यादि प्रमुख भूमि से जुड़े बड़े देश है और इसी जुड़ाव की प्राकृतिक घटना में आज का सिंगापुर जैसे कई प्रायद्वीप और विश्व का सबसे बड़े द्वीपसमूह इंडोनेशिया विभक्त होकर इस द्वीप से अलग हुआ, कई भागों में बिखर गया.

ये सब लगभग 5 हज़ार साल (3000 ई.पू.) पहले हुआ और युरिषियाई आर्य लगभग 3000 हज़ार साल (1000 ई.पू.) पहले इस द्वीप की भूमि विभागों में आना शुरू हुआ और लगभग 2.5 हज़ार साल (500 ई.पू.) पहले भारतीय भू-भाग पर नेपाल के आस-पास तक पहुंंच गये थे, लेकिन आज की भारत भूमि में इनका प्रवेश लगभग 2 हज़ार साल (ईसवीं सन् शुरू होने के आसपास) पहले हुआ (हालांंकि ऐतिहासिक विद्वान तो 1500 BC ही मानते हैं). इसके बारे में विस्तार से जानने के लिये आपको पृथ्वी का भूगोल और उसका इतिहास समझना पड़ेगा क्योंकि प्राकृतिक घटनाओं के चलते (जवालामुखी विस्फोट और भूकंप इत्यादि कारणों से) भूमि का भूगोल बदलता रहता है और कई नये द्वीप बन जाते हैं और कई मिट जाते है. ऐसी ही कुछ और प्राकृतिक घटना का उदहारण दूंं तो नेपाल के 2015 ई. वाले भूकंप के कारण पूरा-का-पूरा हिमालय पहाड़ 5 से.मी. नीचे की ओर उत्तर में धसक गया. 2010 ई. में आये एक और भूकंप की वजह से चिली 10 फ़ीट पश्चिम की ओर खिसक गया.




ऐसी ही प्राकृतिक घटनाओं की वजह से पूरा सैनफ्रांसिसको 2 इंच प्रति वर्ष की गति से लॉस एंजलेस की ओर बढ़ रहा है और आने वाले समय में कैलीफॉर्निया का समुद्र पूरी खत्म हो जायेगा क्योंकि तब सैनफ्रांसिसको उसमें मिल चुका होगा. हिमालय की चौथी श्रृंखला का हिस्सा होने के नाते लखनऊ, भोपाल, कानपुर, पटना, आदि शहर पहाड़ में परिवर्तित हो जायेंगे और गंगा नदी उन पहाड़ों के बीच से झरने के रूप में निकलेगी और गिरेगी. श्रीलंकाई प्रायद्वीप भी 1000-1200 साल (9-10वीं सदी तक) पहले ऐसी ही प्राकृतिक घटनाओं से टूटकर भारतीय उपमहाद्वीप से अलग हुआ था (पहले ये जुड़ा हुआ था).

सिर्फ एक साल के दरम्यान दुनियाभर में 5 लाख बार तो सिर्फ भूकंप ही आते हैं तो बाकी की तो क्या कहें. इन्हीं प्राकृतिक घटनाओं के कारण पृथ्वी लगातार उत्तरी ध्रुव की तरफ झुकती जा रही है, जो अभी 23 डिग्री उत्तर है, जिसे हम ज्योतिषीय भाषा में अयनांश कहते हैं और इसी अयनांश से पंचांग और कुंडली दोनों का सारा गणित चलता है (ज्योतिषीय गणित के लिये इस अयनांश की सटीकता पता होनी जरूरी है) और समय के साथ-साथ हम इसे अपडेट करते रहते हैं. पहले ये 23:30:54 था मगर 2015 के भूकंप के बाद 23:31:39 हो गया है (हालांंकि ज्यादातर ज्योतिषी इतनी सूक्ष्म गणित नहीं करते हैं, वैसे भी अब तो कम्प्यूटर है.)




खैर, ये सब अलग-अलग विषय है, सो इसके बारे में फिर कभी. अभी तो अपने मूल विषय पर लौटते हैं, यथा – अगर रामायण का कोई संबंध भारत से नहीं है लेकिन रामायण काल्पनिक भी नहीं है, तो क्या रामायण के वास्तविक होने के प्रमाण कहीं और उपलब्ध है क्या ?

हांं, रामायण का ताल्लुक भले ही भारत से नहीं है मगर रामायण काल्पनिक नहीं है और इसके सभी सबूत थाईलैंड से लेकर इंडोनेशिया और उसके आसपास में मिलते हैं, जो अभी भी मौजूद है (इंडोनेशियाई द्वीप समूह का प्राचीन नाम इन्देशिया / हिंदेशिया था, जो अब इंडोनेशिया हो गया है. हालांंकि ये सिर्फ भाषायी अपभ्रंश है बाकि मतलब सभी का एक ही है क्योंकि सभी नाम सिंधु नदी के नाम पर ही है. सिंधु को अरबी लोग ‘हिन्दू’ कहते थे और ईरानी लोग ‘इंदु’ और इसी से हिंदेशिया या इन्देशिया नाम प्रचलन में आये. इसी तरह ईरानी और मेसोपोटामियन लोग सिंधु को ‘इंडस वेळी’ बोलते थे तो वो अब इंडोनेशिया हो गया. ऐसा ही भारत के नाम इण्डिया, इंदिया, हिंदिया और हिंदुस्तान के विषय में भी समझ लेवे) अब रामायणकाल के कुछ सबूतों की श्रृंखला को अच्छे से समझ लेवे, यथा :




1. जिसे रामायण में ऋषिकुट पर्वत कहा गया है, वो आज भी इंडोनेसिया में ऋष्यशुक पर्वत के नाम से मौजूद है.

2. रामायण में जिसे सुमित्रा देश (दशरथ की पत्नी के नाम पर बसाया गया) बताते हैं वो आज भी इंडोनेशिया में सुमात्रा द्वीप के रूप में मौजूद है.

3. रामायण में वर्णित नगरी आज भी जावा द्वीप में योग्नाकार्टा नगर के रूप में मौजूद है.

4. रामायण की सरयू नदी आज भी मध्य जावा में बहती है.

5. हनुमान की जन्मस्थली किष्किन्धा नगर आज भी किसक्रेडा गुफाओं (इंडोनेशिया) के रूप में मौजूद है और वहां के मनुष्य आज भी आम इंसान से अलग होते हैं अर्थात जिन्हें रामायण में कपिमानव कहा गया था, वो वैसे ही होते हैं.

6. गंधमाधन पर्वत (अरे, वही संजीवनी वाला) जो लक्ष्मण के इलाज के लिये हनुमान लेकर आये, वो आज भी मलाया में मौजूद है.




7. जिसे रामायण में पहले श्रीलंका कहा गया था, वो आज भी लांग्यासुफ़ के रूप में मौजूद है.

8. जिस पहाड़ श्रृंखला में से हनुमान संजीवनी बूंटी का पूरा पहाड़ उखाड लाये थे, उस पोपा पर्वत की श्रृंखलायें आज भी बर्मा (म्यांमार) के योमेथिन जिले में मौजूद है.

9. वैसे जिसे आज थाईलैंड कहा जाता है, उसका प्राचीन नाम सियाम (भारतीय हिंदी में श्रीराम) था और द्वारावती या द्वारिका (वही जिसके अवशेष अरब सागर में मौजूद है) उसका उपनगर था. थाईलैंड में भी एक अयुत्था नगर है, जिसे प्राचीन आयोध्या नगर माना जाता है और वहां भी बौद्धों और हिन्दुओं के मध्य विवाद चल रहा है.

10. राम के पुत्र लव के नाम पर बसाया गया नगर ‘लवपुरी’ आज भी थाईलैंड में ‘लौपबुरी’ या ‘लौपबूटी’ के नाम से मौजूद है.

11. बाली गुफा भी लौपबुरी थाईलैंड में मौजूद है, जहांं बाली ने दुंदुंभी राक्षस का वध किया था और इस गुफा में जो जलधारा निकलती है उसका नाम आज भी सुग्रीव है.

12. थाईलैंड में ही नरवौन – रचसिया प्रान्त में पाक-थांग-चाई के विकट थोर का पर्वत भी है, जहांं दुंदुंभी राक्षस के मृत शरीर को बाली ने उठाकर 200 किमी दूर फेंका था.




13. सुखो थाईलैंड के निकट संपत नदी है, जहांं सीता गुफा और फ़्राराम (श्रीराम) गुफा भी है.

14. मलाया द्वीप के उत्तर पश्चिम में स्थित छोटे से द्वीप को लंका कहा जाता है.

15. दक्षिणी थाईलैंड के सिंग्गोरा नामक स्थान पर सीता का स्वयंबर रचाया गया था, जहांं राम ने एक ही बाण में सात ताल वृक्षों को बिंधा था और सिंग्गोरा में वे सातों ताल वृक्ष आज भी मौजूद है.

16. दुनिया में सबसे अच्छी रामलीला का मंचन भी इंडोनेशिया और उसके बाद थाईलैंड के लोग ही करते हैं, भारतीय रामलीला का स्थान तो विश्वस्तर पर कहीं भी नहीं है.

17. रामायण के सारे पात्र मूलतः दक्षिण पूर्व एशिया के निवासी थे और रामायण की सारी घटनायें इसी क्षेत्र में घटी थी और रामायण में वर्णित हुलिये भी इस क्षेत्र के लोगों से ही मेल खाते हैं

(आप इन सब स्थानों को वहां जाकर देख सकते हैं क्योंकि भारतीयों के लिये इंडोनेशिया और थाईलैंड बहुत महंगा नहीं है. इंडोनेशियाई करेंसी के लगभग 200 रूपये भारत के एक रूपये के बराबर है और थाईलैंड करेंसी के लगभग 50 पैसे इंडियन 1 रूपये के बराबर है).




तो इस तरह से असल में सारे सबूत इंडोनेशिया और थाईलैंड में आज भी मौजूद है जबकि ज्यादातर भारतीय आज भी यूपी वाले आयोध्या को राम जन्मभूमि मानकर आपस में लड़ रहे हैं जबकि पुरातत्विदों ने जब सबसे पहले जांंच की थी, तब ये स्पष्ट कहा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष जरूर है मगर ये हिन्दू नहीं जैन मंदिर के अवशेष हैं और इसकी बाबत अखबार में भी प्रकाशित हुआ था, लेकिन आरएसएस और बीजेपी ने अपने राजनितिक फायदे के लिये अपने सहयोगी दलों के साथ इसे एक ऐसा मुद्दा बना दिया जिस पर आज भी कोर्ट में केस चल रहा है और सांप्रदायिक विषमता का कारण बना हुआ है.

(बहुत से लोग यहांं प्रश्न उठायेंगे कि अगर मंदिर के अवशेष जैन मंदिर के थे तो जैन समाज ने दावेदारी क्यों नहीं पेश की ? तो इसे भी समझ ले कि जैन समाज शांत समाज है और ऐसे किसी भी मामलों में बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होता. वैसे भी दावा पेश करके हल क्या निकलना है ? दावा तो तिरुमला और गिरनार पर भी किया था लेकिन आज तक हिन्दूओं ने उस पर अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ा. सैकड़ों जैन मंदिरों पर हिन्दू धर्म वालों ने कब्ज़ा कर रखा है, जिसमें उत्तराखंड के केदारनाथ से लेकर महाराष्ट्र के महालक्ष्मी मंदिर और दक्षिण भारत के तिरुमला (तिरुपति) से लेकर गुजरात के गिरनार तक पर हिन्दूओं ने कब्ज़ा कर रखा है. इसी तरह राम मंदिर भी समझ लीजिये.)




खैर, अब आगे पढ़ें. दुनिया में एक नाम के अनेक लोग, शहर और गांव होते हैं जिनमें एक असली होता है और बाकि वो जो किसी प्रसिद्ध स्थान या व्यक्ति के नाम पर रखे जाते है जैसे- दिल्ली में मिलने वाले हलुवे का नाम है कराची हलुआ, मगर बनता दिल्ली में ही है. इसी तरह दिल्ली में अग्रवाल नमकीन भंडार हर एरिया में है लेकिन सबके मालिक अलग-अलग जातियों के हैं. उनमें से शायद कुछ अग्रवाल भी होंगे मगर असली वाला अग्रवाल जिसने अग्रवाल नमकीन के नाम से काम किया था, वो उनमें से एक भी नहीं है. ऐसा नामकरण उस असल की गुणवत्ता दर्शाने अथवा उस प्रसिद्ध नाम का फायदा उठाने के लिये होता है. आज बहुतों के नाम के आगे या पीछे राम शब्द लगा होता है (जैसे रामचंद्र या दयाराम ) तो क्या वे राम मान लिये जायेंगे ? या फिर वे मर्यादा पुरुषोत्तम हो जायेंगे ? नहीं न ?

अयोध्या का नामकरण भी भारत में ऐसे ही किया गया (ऐसा कब किया गया यह खोज और शोध का विषय है. खोज और शोध के लिये इस सरकार से तो कहना बेकार है क्योंकि यह सरकार तो पिछले पांच सालों से हरियाणा में सरस्वती नदी को भी तलाश कर रही है. 2014 में सरकार बनने के बाद यह काम शुरू हुआ था, तब टीवी चैनलों पर भी बताया गया था कि ‘माता सरस्वती नदी’ को खोज लिया गया है और एक बाल्टी में पानी भी दिखाया गया था मगर तब से लेकर अब तक सरस्वती नदी का कोई अता-पता नहीं है. तो ऐसी सरकार से क्या आशा करे ? वैसे भी कम-से-कम मुझे तो किसी भी भारतीय शोधकर्ता या हिंदूवादी सरकार पर विश्वास नहीं है कि ये सही तथ्य जनता के सामने पेश करेंगे).




भारत में अयोध्या तो भले ही बना ली गयी लेकिन राम के जीवन से आज तक कोई भी प्रेरित नहीं हो पाया जबकि दक्षिण पूर्व एशिया स्थित देश थाईलैंड या इंडोनेशियाई लोग आज बौद्ध और मुस्लिम हैं, मगर राम के जीवन से प्रेरित हैं (वे स्पष्ट कहते हैं कि हमने धर्म परिवर्तन जरूर किया है मगर हम अपनी संस्कृति को थोड़े ही बदली हैंं).

अयुत्था नगर थाईलैंड के इतिहास में वहां के आस-पड़ोस की जगहों (उपरोक्तानुसार) का काफी महत्व और योगदान है, जिससे साबित होता है कि वही असल अयोध्या है. वैसे भी छोप्रया, पालाक एवं लोबपुरी नदियों के संगम पर बसा द्वीपनुमा शहर अयुत्था संस्कृति के साथ-साथ आध्यात्मिक अवधारणाओं का भी गढ़ है. अयुत्था शहर थाईलैंड का प्रमुख पर्यटन और व्यापारिक स्थल है अयुत्था का उल्लेख सियाम के इतिहास में राजधानी के रूप में है.




जबकि भारत में आज जिसे आयोध्या कहा जाता है उसका आधिकारिक भारतीय नाम साकेत था और इसके 2000 वर्ष पहले साकेत नाम होने के प्रमाण भी सरकार के पास मौजूद है. ऐसे ही जिस द्वीप को हम आज श्रीलंका कहते हैं, वो 1972 तक सिलोन था और 1972 में इसका नाम लंका रखा गया, जिसे 1974 में ‘श्री’ जोड़कर श्रीलंका किया गया और ऐतिहासिक तथ्यों में इसका पुरातन नाम सिंहल द्वीप था, जो आज से लगभग 1200 साल पहले तक भारत की भूमि से सड़क मार्ग से जुड़ा था और उसी मार्ग से राजा महेंद्र श्रीलंका गये थे (ऐसे प्रमाण हैं) और आज भी उस घाट को महेंद्र घाट के नाम से जाना जाता है तो मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा कि जब भूमि (सड़क) मार्ग आज से 1200 साल पहले तक मौजूद था तो फिर राम को या वानरसेना को रामसेतु बनाने की क्या जरूरत आ पड़ी ?

थाईलैंड के राजा को आज भी ‘राम’ कहा जाता है और थाईलैंड में राम के वंशज आज भी मौजूद हैं. भारत भले ही रामराज्य का सपना देखता हो, मगर थाईलैंड में तो आज भी राम राज्य है. सबसे खास बात वैश्विक अदालत में थाईलैंड भारत से रामायण़ का केस भी जीत चुका है. भारत में रामायण सिर्फ कथा है जबकि थाईलैंड के बौद्धिस्ट होने के बावजूद रामायण वहां का ‘राष्ट्रीय ग्रन्थ’ है.




भारतीय कितना ही लड़-मर ले या हिन्दू-मुस्लिमों को मारकर दंगा कर ले अथवा ये पण्डे-बाबा से लेकर भाजपा तक कितनी ही चिल्ल-पों मचा ले, मगर इनके पास काल्पनिक रूप से रच गये ग्रंथो के अलावा कोई सबूत नहीं है जबकि थाईलैंड से लेकर इंडोनेशिया तक सारे सबूत भरे पडे हैं. ज्ञात रहे आज भी भारत में स्थानों के नाम रामायण़ और गीता के अनुसार बदले जा रहे है, जिन्हे बाद में भुनाया जायेगा और उन स्थानों के बारे में अंधी आस्था उत्पन्न की जायेगी.

अब तक मैं जो लिख रहा था, उससे मुझे फिर धर्म विरोधी होने का तमगा दे दिया जायेगा. अतः हिन्दुओं को छोडो, किसी जैनी से पूछना कि क्या तुम्हारे प्रथम तीर्थंकर का जन्म थाईलैंड की अयुत्था नगरी में हुआ था ? तो वो कहेगा- ‘नहीं ! उत्तरप्रदेश की आयोध्या में.’ बेचारा जैनी असलियत जानता नहीं, लेकिन काल्पनिक साहित्यों से भ्रमित होकर अंधविश्वासी और मुर्ख बन चुका है. भारत में पिछले कई सौ सालों से लगातार धार्मिक साहित्यों ने लोगो को मुर्ख बनाया है. मैं पहले कभी-कभी सोचता था कि भारत में ही ऐसे कौन-से सुर्खाब के पर लगे थे जो हरेक धर्म के महान लोग यहीं पैदा हुए ? लेकिन जब बाद में मैंने सत्य का शोधन किया, तब पता लगा कि सत्य के नाम पर झूठ ही झूठ फैलाया जा रहा है और लोगों को मुर्ख बनाया जा रहा है ताकि धर्म का धंधा चलता रहे.




जैनियों के प्रथम तीर्थंकर का जन्म अयुत्था नगर (सबसे प्रथम नाम विनीता नगरी) में हुआ और प्रथम तीर्थंकर की ही तरह अनेक जैन तीर्थंकरों की जनस्थली अयुत्था नगर थाईलैंड रहा है. और 12वे तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म भी आज के वियतनाम (तब की चंपानगरी) में हुआ था. ये तो क्या 24 में से एक भी तीर्थंकर भारत में पैदा नहीं हुए और ये बात सभी तीर्थंकरों के वर्णोंं से ही स्पष्ट समझ आ जाती है, जिसमें 14 के वर्ण स्वर्णिम और 2 के वर्ण पीले थे अर्थात ये सारे के सारे एशियन थे और उनमें 2 पीलीघाटी सभ्यता (चीन) में हुए थे. दो के वर्ण काले थे और दो के वर्ण नीले थे अर्थात वे अफ्रीकन थे. दो के सफ़ेद थे अर्थात वे हिममानव या यूरोपियन थे और दो के वर्ण लाल थे अर्थात वे रेड इंडियंस या लाल हूणों में से थे. (वैसे भी जैन ग्रंथों में स्पष्ट निर्देशित है कि जैन कोई धर्म नहीं बल्कि जिनेश्वर (तीर्थंकर) द्वारा कथित दर्शन है जिस पर स्थूल और सूक्ष्म ऐसे दो मार्ग (सर्वविरति और देश विरति) के रूप में बताये गये हैं. और अब तो ऐसा लगता है कि मूल तो कही आलोप हो गया है और उसमें पाखंड और क्रियाकांड का इतना समावेश हो चुका है कि सत्य समझना भी हर किसी के लिये आसान नहीं रहा. लोग दर्शन को समझते ही नहीं, लेकिन अंधी आस्थाओं में ऐसे जकड़ चुके हैं कि…….. विषय भटक रहा हूँ, इसके बारे में फिर कभी लिखूंगा लेकिन ये जरूर कहूंगा कि रामायण की ही तरह महाभारत भी थाईलैंड, इंडोनेशिया और उसके पूर्वी आसियान देशों की कथा है. सभी पूर्वी आसियान देश कभी थाईलैंड के उपमहाद्वीप थे और यही संपूर्ण आर्यावर्त (आर्यो के आगमन के बाद) कहलाता था, जबकि ऐसे ही महाभारत के संदर्भ में भारत में अनेक स्थानों का नाम परिवर्तन कर उन्हें महाभारत से जोड़ा गया, जिसमें कुरुक्षेत्र भी एक नाम है जिसका पुराना नाम थानेसर था.




बहरहाल, जो सत्य शोधक हैं उन्हें मेरा लिखा पसंद आयेगा और जो अंधी आस्था में जकड़े कट्टरवादी हैं, वे मुझे गरियायेंगे और धर्म विरोधी कहेंगे. मगर मैं उन्हें हमेशा की तरह यही कहूंगा कि – किसी भी धर्म का मखौल उड़ाना मेरा ध्येय नहीं है बल्कि धर्म में फैली अंधी आस्था और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करना मेरा लक्ष्य है.




नोट : किसी भी धर्म का मखौल उड़ाना मेरा ध्येय नहीं है बल्कि धर्म में फैली अंधी आस्था और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करना मेरा लक्ष्य है. मैं सभी धर्मों की कुरीतियों और रूढ़ियों पर अक्सर मैं ऐसे ही तथ्यपूर्ण चोट करता हूंं. इसीलिये बात लोग के समझ में भी आती है और वे मानते भी हैं कि मैंने सही लिखा है. जो लोग दूसरे धर्मों का मखौल उड़ाते हैं उनसे मैं कहना चाहता हूंं कि मखौल उड़ाने से आपका उद्देश्य सफल नहीं होगा और आपस की दूरियांं बढ़ेंगी तथा आपसी समझ घटेगी. अतः मूर्खतापूर्ण विरोध करने के बजाय कुछ तथ्यात्मक लिखे.




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2 Comments

  1. Anil

    June 26, 2019 at 2:22 pm

    आचार्य चतुरसेन शास्त्री की पुस्तक “वयम् रक्षामः” में भी कुछ इस तरह के उल्लेख हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि हिन्दू धर्म कभी भारत में कम आसपास में ज्यादा थे। रूस का कैस्पियन सागर ,कश्यप श्रृषि के नाम से मिलता जुलता है। अजरबॆजान का असली नाम ‘आर्य विरवान’ है। शुक्राचार्य असल में अरब देश के मक्का मदीना के आसपास के निवासी थे।

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  2. Hitulal Dhurve

    October 25, 2022 at 5:30 am

    बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद 🙏🙏

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