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संघ मुक्त भारत क्यों ?

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[नीतीश कुमार की पार्टी जदयू जब राजद के साथ बिहार की सत्ता पर काबिज थी तब उन्हीं की पार्टी के एक सक्रिय कार्यकर्त्ता प्रभात कुमार द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका ‘नशा मुक्त समाज और संघ मुक्त भारत के निर्माण को संकल्पित कदम’ थी, जिसमें संघ मुक्त भारत नामक आलेख में भाजपा और उसकी मातृ संगठन आरएसएस पर जमकर प्रहार किया गया था. हलांकि अब जब नीतिश कुमार अपनी पार्टी के साथ खुद ही भाजपा और उसकी मातृ संगठन आरएसएस के गोद में जा बैठे हैं, तब इस पत्रिका को गुमनामी में ढकेलने का प्रयास किया गया है. हम यहां उक्त पत्रिका में प्रकाशित उक्त आलेख को अक्षरशः प्रकाशित कर रहे हैं, जिसे प्रभात कुमार द्वारा लिखा गया था. ]

संघ मुक्त भारत क्यों ?

संघ मुक्त भारत की परिकल्पना के साथ आगे बढ़ने से पहले हमें उपरोक्त प्रश्न का उत्तर जान लेना आवश्यक होगा. यह प्रश्न आज जितना कौतुहल और आश्चर्य पैदा करने वाला है, उससे ज्यादा प्रसांगिक है. कौतुहल इसलिए पैदा होता है कि संघ की मुखौटा भाजपा अपने दोहरे आचरण से एक ऐसा आडम्बरपूर्ण वातावरण तैयार कर चुकी है कि आम जनमानस को सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा है, और ठीक-ठाक लगना इस प्रश्न को प्रसांगिक बनाता है कि संघ भाजपा के माध्यम से देश को किस रास्ते पर और किस गंतव्य की ओर ले जा रहा है. अगर समय रहते देश की जनता को उस गंतव्य के काले पहलु के दुष्परिणामों से आगाह नहीं किया गया तो देर हो जायेगी. इस प्रश्न की प्रसांगिकता को समझने के लिए हमें सर्वप्रथम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास को जानना आवश्यक है.

1. संघ की स्थापना सन्, 1925 ई. में एक कट्टठ हिन्दुत्ववादी विचारक, केशव वलिराम हेडगेवार द्वारा एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के रूप में की गई थी. इसके स्थापना का उद्देश्य हिन्दुत्व की विचारधारा का प्रचार-प्रसार करके भारत को एक कट्टर हिन्दु राष्ट्र के निर्माण का था.

2. इसके संस्थापकगण जर्मनी की, हिटलर के नेतृत्ववाली कट्टर धार्मिकता से जुड़े अन्धराष्ट्रवाद की विचारधारा वाली नात्सी पार्टी की अवधारणा से अभिभूत थे और संघ की स्थापना से पहले उन्होंने नात्सी विचारकों से दीक्षा भी ली थी.

3. हेडगेवार ने संघ को स्थापना काल से ही स्वतंत्रता आन्दोलनों से अलग कर लिया. उसने अपने अनुयायियों (संघियों) को सिर्फ हिन्दुत्व की बात करने और अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध किसी भी तरह के बयान से भी बचने की सलाह दी थी.

4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 26 जनवरी, 1930 ई. को स्वतंत्रता दिवस की घोषणा को भी इन लोगों ने सिर्फ उसी वर्ष मनाया और उसके बाद सदा उसका बहिष्कार किया.

5. हेडगेवार ने 1930 ई. में महात्मा गांधी द्वारा आरम्भ किये गये ‘सत्याग्रह’ आन्दोलन में किसी संघी को भाग न लेने का आदेश पूरे देश में प्रसारित करवाया.

6. संघ के दूसरे सर-संघचालक एम. एस. गोलवलकर इस मामले एक कदम और आगे थे. 1940 ई. में संघ का नेतृत्व संभालने के बाद स्वतंत्रता आन्दोलनों की निन्दा और घोर भर्त्सना उसे ‘ब्रिटिश विरोधी राष्ट्रवाद’ और एक ‘प्रतिक्रियावादी’ सोच बताकर की.

7. संघ को उनके देशभक्ति का प्रमाण-पत्र ब्रिटिश सरकार ने हमेशा उन्हें सराहकर और प्रोत्साहित करके दिया, जैसे ‘‘आरएसएस ने सदा कानून को आदर किया है और 1942 ई. के भारत छोड़ों आन्दोलन में हिस्सा न लेकर कानून और सरकार की सहायता की है.’’

8. इनकी अंग्रेजी हुकूमतपरस्ती का आलम यह था कि क्रांतिकारियों के बीच आरएसएस “रॉयल सीक्रेट सर्विस” के नाम से ज्यादा कुख्यात हो गई थी क्योंकि संघी अंग्रेजों की कृपा पाने के लिए उनके मुखबीर का काम भी करते थे.

9. 1931 ई. में जब गांधी जी ने दलितों के लिए यात्रा निकाली थी तो संघियों ने उस पर बम फेंकवाया था.

10. नाथुराम गोडसे जिसने गांधी जी की हत्या की थी, वह भी पूर्व संघी था और संघ द्वारा दिये गये धार्मिक राष्ट्रवादी उन्माद से लबरेज था.

11. तिरंगे को इन्होंने कभी राष्ट्रीय ध्वज नहीं माना और आज तक भगवा झंडे को ही स्वघोषित राष्ट्रीय ध्वज मानते थे. 22 जुलाई, 1947 ई. को भारतीय संविधान सभा द्वारा तिरंगे को राष्ट्रध्वज घोषित करने की घोर निन्दा की. विरोध में दिये तर्क उनके दकियानूसी सोच का परिचायक है, ‘‘भाग्य से सत्ता प्राप्त किये लोगों ने हमारे हाथों में तिरंगा थमाया है लेकिन हिन्दू इसे न तो कभी अपनायेंगे और न ही कभी इसका सम्मान करेंगे. तीन संख्या अपने आप में अशुभ कारक है और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित रूप से इस देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध होगा.’’

12. भारतीय संविधान के साथ-साथ इसके निर्माता डॉ. अम्बेदकर की भी इन्होंने घोर निन्दा की है. गोलवलकर के विचारों के संकलन की पुस्तक ‘बंच ऑफ थॉट’ में उसने लिखा है, ‘‘यह संविधान विसंगतियों से भरा है और इसे रद्द कर देना चाहिए या कम से कम फिर से लिखा जाना चाहिए.’’

यह तो हुई संघ के इतिहास की झलक अब जरा भाजपा तथा संघ के अन्य अनुषांगक संगठनों के क्रियाकलापों और दुमुहेंपन पर भी एक नजर डाल लें.




भाजपा, विहिप, बजरंग दल आदि संघ के प्रमुख अनुषांगिक संगठन है, जिसमें भाजपा ही एक मात्र राजनीतिक दल है. संघ इन सबकी आत्मा, हृदय और मस्तिष्क है और भाजपा बाकी सबों की आश्रयी यानि शरीर है. भाजपा राजनीतिक दल होने के कारण चुनाव लड़ने, जीतने और सत्ता प्राप्ति के लिए हर हथकंडे अपनाती रही है और इसकी छत्रछाया में और उसे लाभ पहुंचाने के निमित्त उसके अन्य संगठन जातिय धार्मिक उन्माद फैलाते रहे हैं क्योंकि संघ का असल एजेंडा कट्टर हिन्दूवाद ही है.

हलांकि ये सब वे अपने स्थापना काल से ही करते आ रहे हैं, परन्तु धीरे-धीरे इन्होंने सत्ता में या सत्ता के करीब रहकर अपनी ताकत बढ़ायी और वर्ष 2014 ई. के चुनावों में केन्द्र में स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद ये संघ के असली एजेंडे ‘‘कट्ट हिन्दूवादी राष्ट्रीयता’’ पर अमल की तैयारी करने लगे. इनके कुछ प्रमुख मुद्दे जिन पर इनका दोहरा राजनीतिक चरित्र झलकता है –

गोरक्षा – लोकसभा चुनावों में मोदी ने गोहत्या के लिए कांग्रेस को बीफ निर्यात को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था और कहा था कि मेरी सरकार बनी तो मीट निर्यात पर प्रतिबंध लगाऊंगा लेकिन सरकार बनते ही इन्होंने इस पर निर्यात शुल्क 8 प्रतिशत कम कर दिया, जिससे निर्यात 16 प्रतिशत बढ़ गया है. आज भारत विश्व में नं. 1 मांस निर्यातक है. इसके साथ ही संघ ने गोरक्षा दल जैसी गुंडावाहिनी द्वारा धार्मिक उन्माद फैलाना आरम्भ किया है.

लव जिहाद – ये लव जिहाद का मुद्दा उठाते हैं जिसमें मुस्लिम लड़के हिन्दू लड़कियों को प्यार में फंसाकर धर्मांतरण करवाते हैं. इनके करीब-करीब सभी बड़े हिन्दू नेताओं की बेटियों ने अपने लिए मुस्लिम दुल्हे का चुनाव किया है. जैसे मोदी की भतीजी का पति मुस्लिम है. भाजपा के शहनवाज हुसैन की पत्नी मुरली मनोहर जोशी की बेटी है. मुख्तार अब्बास नकवी की पत्नी बीएचपी के अशोक सिंघल की बेटी है. लाल कृष्ण आडवाणी की बेटी ने दूसरी शादी मुस्लिम के साथ की है. सुब्रह्यणयम स्वामी की बेटी सुहासनी ने मुस्लिम से शादी की है. शिव सेना के बालठाकरे की पोती ने मुस्लिम से शादी की है लेकिन इस पर वे कुछ नहीं बोलते.

धर्मांतरण – मुसलमान शासकों के समय हुये धर्मांतरण को ये जबरन किया बताते हैं, साथ ही धर्मांतरण हिन्दू से मुसलमान या हिन्दू से इसाई को ये हिन्दुओं पर बहुत बड़ा सांस्कृतिक हमला बताते हैं लेकिन दूसरी तरफ छुआछूत और जातिय घृणा से भरी मनुस्मृति संहिता के ये उपासक हैं. ऐसे में वंचित समाज के लोगों द्वारा हिन्दू धर्म में आस्था खोना स्वभाविक ही है.

घर वापसी – ये घर वापसी संस्कार करवाते हैं. अरे भाई अगर यह करना है तो शुरूआत अपने घर से अपने दल के बड़े मुसलमान नेताओं नकवी, शहनवाज आदि से करवाईये न !

स्वच्छता अभियान के बहाने गांधी पूजा – संघियों के सदा निशाने पर रहे गांधी जी को स्वच्छ भारत अभियान का प्रेरणास्त्रोत बताकर जिस समय भाजपाई उनकी पूजा कर रहे होते हैं. उन्हीं का एक सांसद साक्षी महाराज गांधी जी के हत्यारे नाथुराम गोडसे का मंदिर बनवाने की बात कर उसे महिमामंडित करता है और भाजपा उस सांसद पर कोई कार्यवाही करना तो दूर उस बयान का खंडन भी नहीं करती है.

हिन्दूवादी राष्ट्रभक्त – प्रधानमंत्री बनने के बाद खुले मन से अपने को हिन्दूवादी राष्ट्रभक्त बताकर गौरवान्वित होने वाले मोदी मुसलमान पंचायत की बात करने लगे हैं, यह एक छलावा और दो-मुंहापन है.

संविधान को सबसे पवित्र पुस्तक बताना – संघ के द्वारा संविधान में अनास्था रखना और उसकी लगातार घोर आलोचना करना और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसे सबसे पवित्र पुस्तक बताना भी भाजपा का दो-मुंहापन है.

ये मात्र कुछ मुख्य उदाहरण है इनके दो-मुंहापन के. भाजपा हर रोज किसी न किसी मुद्दे पर ऐसा करती आई है जैसे महाराष्ट्र चुनावों में एनसीपी को गाली देना, फिर उसके सहयोग से बहुमत प्राप्त करना, जम्मू-कश्मीर चुनाव में पीडीपी के खिलाफ जहर उगलना, फिर से गठबंधन कर सरकार बनाना. भाजपा ऐसा सिर्फ जनता में भ्रम फैलाने के उद्देश्य से करती है ताकि इसकी आड़ में संघ अपना धार्मिक कट्टरता आधारित अन्धराष्ट्रवादी (फासीवादी) एजेंडा आगे बढ़ा सके.

राजनीतिक दो-मुंहापन, भ्रम फैलाना संघ का चरित्र ही रहा है. ये स्थापना काल से ही अपने को घोर राष्ट्रवादी बताते रहे हैं लेकिन स्वतंत्रता आन्दोलनों से सदा दूर रहे. तिरंगे और संविधान का सदा अपमान किया. भ्रम फैलाने में ये तो इतने शातिर हैं कि ये मंदिरों में गोमांस फेंक सकते हैं. मस्जिदों में सुअर घुसवा सकते हैं. जेएनयू में इन्होंने जनवादी छात्रों की मीटिंग में घुसकर देश विरोधी नारे लगाकर किस तरह उन्हें बदनाम किया, यह तो टीवी चैनलों ने भी दिखाया था. यह है संघ का असली चाल और चरित्र.




संघ और भाजपा के असली चाल-चरित्र की झांकी के बाद हम असली मुद्दे पर आते हैं, संघ मुक्त भारत क्यों ?

संघ की स्थापना के उद्देश्यों और विचारधारा से ही स्पष्ट होता है कि संघ देश में किस तरह की शासनव्यवस्था चाहता है. गोलवलकर लोकतंत्र को इसलिए खारिज करते हैं कि यह व्यक्ति को अनावश्यक आजादी देता है तथा देश के संविधान प्रदत्त संघीय ढांचे की व्यवस्था की भी पुरजोर निन्दा करते हुए कहते हैं कि ‘‘संघीय ढांचे के विचार को ही जलाकर गहरे दफन कर देना चाहिए.’’ मतलब वे एक धार्मिक कट्टरतायुक्त अन्धराष्ट्रवादी (फासीवादी) एकात्मक तानाशाही सत्ता स्थापित करना चाहते हैं, जिसके बल पर जनता के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों, खाने-पीने पहनने, लिखने-पढ़ने, बोलने-सुनने-घुमने क्षेत्र, भाषा इत्यादि पर पाबंदियां लगाई जा सके. इसी कारण अब वे सीधे-सीधे हरेक मुद्दे को धर्म और फिर राष्ट्रवाद और देशभक्ति से जोड़ रहे हैं. खासकर भाजपा के केन्द्र में सत्तासीन होने के बाद स्थितियां अचानक बदल गई है. स्वतंत्रता आन्दोलनकारियों से छुआछुत रखने वाला संघ अब देशभक्ति को पुर्नपरिभाषित कर रहा है और उनके मानदंडों पर खरा नहीं उतरने वालों को देशद्रोही करार दे रहा है, जो हिन्दू नहीं वे देशद्रोही, हिन्दू हैं लेकिन संघी नहीं वो देशद्रोही, जो सरकार से सवाल करे वो देशद्रोही, जो सरकार का विरोध करे वो देशद्रोही.

अब इससे आगे इनके पोसे हुये गुंडों द्वारा गोरक्षा के नाम पर लोगों को सजा देना, गैर-हिन्दुओं को खासकर मुसलमानों की देशभक्ति पर शक करना और उन्हें झूठे आतंकी मामलों में फंसाकर जेल में बन्द करवाना. देश में चल रहे जनवादी आन्दोलनों पर दमन करना और उनके नेताओं को जेल में डालना. उन पर आरोप साबित करने में विफल होने के डर से उन्हें से निकाल कर फर्जी मुठभेड़ में उनकी हत्या करना, मथुरा में र्नास्तकों के सम्मेलन पर, इन्दौर में इप्टा के सम्मेलन पर हमले करवाना. उदयपुर में जसम के दलित प्रतिरोध आधारित फिल्मोत्सव को रोकने की कोशिश. विश्वविद्यालयों, कला शिल्प या तकनीकी संस्थानों या फिर किसी प्रकार के शिक्षण संस्थान सभी जगह प्रमुख पदों पर संघीयों की तैनाती की जा रही है. ये देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन और तकनीकी संस्थानों (आईआईएम / आईआईटी) तक में संस्कृत और वेद की पढ़ाई अनिवार्य करने की बात कर रहे है.

संस्कृति संरक्षण के नाम पर ये देश को काल्पनिक वैदिक युग में ले जाना चाहते हैं. संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों द्वारा देश के सामाजिक, आर्थिक, संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर लगातार हमले हो रहे हैं और यह सब देशभक्ति की आड़ में हो रहा है. प्रेस और मीडिया पर अघोषित सेंसर लागू किया जा रहा है. कुछ संघ समर्थक मीडिया घराने जैसे जी-टीवी, आज तक, टाइम्स नॉउ, इंडिया टीवी इत्यादि भी संघ के इशारे पर उनकी आवाज बनकर उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हैं. निष्पक्ष मीडिया की आवाज बनकर उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हैं. निष्पक्ष मीडिया की आवाज को कुचलने की कोशिश हो रही है. इसका उदाहरण एनडीटीवी को 24 घंटे के लिए बन्द करने का फरमान है. जनता द्वारा संवैधानिक रूप से चुने मुख्यमंत्री (अरविन्द केजरीवाल) को उसी के राज्य में गिरफ्तार कर रहे हैं. संघ समर्थक और सोशल मीडिया पर हजारों की संख्या में बहाल किये गये भाड़े के समर्थकों का संघ के क्रियाकलापों को देशभक्ति का जामा पहनाने, दकियानुसी धार्मिक और जातिय (आरक्षण का विरोध) कट्टरता फैलाने और अंधराष्ट्रवाद का आडम्बरपूर्ण वातावरण तैयार करने में किया जा रहा है.

जर्मनी के नाजियों के प्रचार प्रमुख गोयबल्स द्वारा दिये गुरूमंत्र ‘‘झूठ को बार-बार और जोर-जोर से दुहराने पर वह सच लगने लगता है’’ का ये बखुबी इस्तेमाल कर रहे हैं. कुल मिलाकर स्थितियां अघोषित आपातकाल जैसी लग रही है. इसकी तुलना जर्मनी में नाजियों और हिटलर के उद्भव काल से की जा सकती है, जो न सिर्फ अपने देश बल्कि पूरे विश्व की अशान्ति का कारण बना था.

अतः अपने देश को ऐसी परिस्थिति में जाने से रोकने के लिए संघ से मुक्ति जरूरी है और इसके लिए जरूरत है इनके कु-कृत्यों पर चढ़े छद्म राष्ट्रवादी आवरण को हटाने की. जरूरत है देश की भोली-भाली जनता में जागृति फैला कर इनके भ्रामक प्रचार से बचाने की. जरूररत है देश के सभी धर्म-निरपेक्ष, समाजवादी, जनवादी, उदारवादी शक्तियों को एक जुट होकर इनके हमलों का प्रतिकार करने की.

ऐसा नहीं करने से पहले हम सभी को जर्मन कवि मार्टिन निलोमर की ये पंक्तियां याद कर लेनी चाहिए –

‘‘पहले वे कम्युनिस्टों के आये !
मैं चुप रहा क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था !!
फिर वे श्रमिक नेताओं के लिए आए !
मैं चुप रहा क्योंकि मैं श्रमिक नेता नहीं था !!
फिर वे यहूदियों के लिए आए !
मैं चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी नहीं था !!
…   …   …

अंत में वे मेरे लिए आए !
और तब तक (मेरे लिए) बोलने वाला कोई नहीं बचा था !!’’





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