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2002 के नरसंहार के दोषियों को फांसी पर नहीं चढ़ा पाने की कांग्रेस की व्यर्थता का ख़ामियाज़ा देश दशकों तक भोगेगा

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Subrato Chatterjeeसुब्रतो चटर्जी

अगर आपको लगता है कि मोदी को केजरीवाल की गिरफ़्तारी से होने वाले चुनावी नुक़सान का पता नहीं है, तो या तो आप एक मूर्ख हैं या पागल. दरअसल वे जानते हैं कि इवीएम के द्वारा कैसे इस तरह के राजनीतिक नुक़सानों की भरपाई की जा सकती है.

2016 में जब नोटबंदी की गई थी, तभी मैंने कहा था कि कोई भी लोकतांत्रिक सरकार जिसे जनभावना की फ़िक्र है, वह इस तरह की जनविरोधी निर्णय नहीं ले सकती है. कृषि क़ानूनों के विरुद्ध किसान आंदोलन और कोरोना के समय तालाबंदी के समय में भी बार बार चेताया था कि मोदी सरकार को जनमत की कोई परवाह नहीं है. आप चाहें तो मेरी उन तमाम पुरानी पोस्ट को ढूंढ कर पढ़ सकते हैं.

एडीआर जैसी संस्था ने भी, जिसमें प्रशांत भूषण सरीखे महारथी भी हैं, कहा है कि 2019 के चुनाव में भाजपा को मिली 153 सीटें संदिग्ध हैं. 2019 के चुनावों के बाद डाले गए मेरी किसी भी पोस्ट आप देखें तो यह बात मैंने उसी समय कह दिया था.

गोबर पट्टी और गुजरात को उनके प्रचंड गधत्व और घृणित सांप्रदायिकता के लिए शत प्रतिशत नंबर देने के बाद भी मैं यह नहीं मान सकता हूं कि वहां के लोगों को ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से रत्ती भर का भी फ़र्क़ नहीं पड़ता है.

दरअसल बालाकोट का कौआ मार अभियान, पुलवामा की हत्याओं के नाम पर उठी अंधराष्ट्रवाद की आंधी का ज़िक्र दरअसल इवीएम फ़्रॉड को छुपाने के लिए की जाती है.

चलिए, अगर मैं गोबर पट्टी के प्रखर बुद्धिजीवियों के इस तर्क से इत्तेफाक रख भी लूं तो क्या वे मुझे बताने का कष्ट करेंगे कि क्या यूपी में कोरोना में हुए क़रीब 30 लाख मौतों और तालाबंदी के दौरान मेहनतकश जनता पर हुए बेइंतहा जुल्म का भी कोई असर 2022 के विधानसभा चुनावों पर नहीं हुआ ? क्या आप मानते हैं कि यूपी में आदमी नहीं सिर्फ़ जानवर रहते हैं ? नहीं, दरअसल आप जानवर हैं अगर ऐसा सोचते हैं तो.

आज जब चुनावी बॉंड और अन्य प्रकार के वीभत्स भ्रष्टाचार के घेरे में भाजपा आ गई है, तब भी इन अख़बार नवीसों और प्रचंड बुद्धिजीवी लोगों को फासीवाद का मतलब नहीं समझ आ रहा है. तब भी नहीं जब बिना किसी कारण के केजरीवाल की गिरफ़्तारी के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने ईडी को उन्हें अरेस्ट करने का रास्ता खोल दिया.

तब भी नहीं जब जस्टिस खानविलकर ने ईडी को सुप्रीम कोर्ट से असीमित अधिकार देकर हिटलर की SS and Gestapo बनने की छूट दे दी. दरअसल उस एक फ़ैसले ने ईडी, यानी एक जांच संस्था को सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की पहुंच से बाहर स्थापित कर दिया. यह संविधान के समानांतर एक और संविधान बनाने की दिशा में उठाया गया क़दम था, जिस मुद्दे पर विपक्ष को तहलका मचा देने की ज़रूरत थी और जो वह कर नहीं सका.

अब बहुत देर हो चुकी है. केजरीवाल की गिरफ़्तारी से जनमानस कितना भी उद्वेलित होकर मोदी के खिलाफ भले ही चला जाए, भले ही शत प्रतिशत वोट मोदी के खिलाफ पड़े, इवीएम रहते हुए मोदी कभी नहीं हारेंगे, इस बात को नोट कर रखिए. फ़ासिस्ट चुनाव के ज़रिए सत्ता पर क़ाबिज़ ज़रूर होते हैं, लेकिन चुनावों के ज़रिए कभी भी नहीं हटाए जा सकते हैं.

आज भी विपक्ष में मोदी सरकार के इस्तीफ़े की मांग करने की हिम्मत नहीं है. मुझे भी मालूम है कि फ़ासिस्ट इस्तीफ़ा नहीं देते, लेकिन आपको भी तो मालूम है कि अदालतों में न्याय नहीं मिलता है. फिर आप अदालत जाते क्यों हैं ? अभी भी समय है कि इवीएम के खिलाफ सड़कों पर बवाल काट दो, वरना 4 जून के बाद सारे जेल में होंगे या फांसी पर चढ़ाए जाएंगे.

2002 के नरसंहार के दोषियों को फांसी पर नहीं चढ़ा पाने की कांग्रेस की व्यर्थता का ख़ामियाज़ा देश आने वाले दो दशकों तक भोगेगा. कैसी विडंबना है कि जिस कांग्रेस को हम भारत की आज़ादी का श्रेय देते हैं, उसी कांग्रेस को हमारी आने वाली पीढ़ियां देश में फासीवाद लाने का श्रेय भी देंगी – ‘लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई है.’

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