Home ब्लॉग वैज्ञानिक शोध : भारतीय मूर्ख होते हैं ?

वैज्ञानिक शोध : भारतीय मूर्ख होते हैं ?

12 second read
0
3
1,884

वैज्ञानिक शोध : भारतीय मूर्ख होते हैं ?

भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कन्डेय काटजू ने दावा किया था कि ‘90 प्रतिशत भारतीय मूूर्ख होते हैं, जिन्हें शरारती तत्वों द्वारा धर्म के नाम पर आसानी से गुमराह किया जा सकता है.’ तब काटजू का लोगों ने मजाक भी बनाया था और बहुतों के गले यह बात नहीं उतर रही थी. परन्तु अब जब वैज्ञानिकों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है तब बगलें झांकने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता. इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि वैज्ञानिकों के जिस दल ने यह रिसर्च की है वह भी भारतीय ही हैंं और जिस रिसर्च संस्थान ने यह खोज जारी किया है, वह भी भारत मेें ही है.

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी हैदराबाद (IIIT-H) के शोधकर्ताओं ने अपने रिसर्च में खुलासा किया कि पश्चिमी और अन्य पूर्वी देशों के लोगों की तुलना में भारतीय लोगों का मस्तिष्क औसतन ऊंचाई, चौड़ाई और मात्रा में छोटा होता है. एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक ये शोध मस्तिष्क संबंधी बीमारियों और अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारियों का पता लगाने में मदद करेगा. इस शोध को मेडिकल जर्नल न्यूरोलॉजी इंडिया (Neurology India) में प्रकाशित किया गया है.

रिसर्च में पाया गया है कि भारतीय और विदेशियों के मस्तिष्क बीच अंतर है. रिसर्च में पाया गया है कि भारतीयों के दिमाग की औसत लंबाई 160 (mm), चौड़ाई 130 (mm) और ऊंचाई 88 (mm) रही, जबकि चाईनीज दिमाग इस मामले में भारतीयों से आगे रहे और उनका औसतन मस्तिष्क क्रमश: 175 (mm), 145 (mm) और 100 (mm) रहा. इसी तरह कोरियन नागरिकों का औसत मस्तिष्क क्रमश: 160 (mm), 136 (mm) और 92 (mm) ऊंचा रहा.

सेंटर फॉर विजुअल इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी में कार्यरत जयंती सिवास्वामी इस शोध से जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया, ‘मॉन्ट्रियल न्यूरोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (MNI) टेम्पलेट, जिसका इस्तेमाल मानक के तौर पर किया जाता है, इसे कोकेशियान दिमाग की मदद से विकसित किया गया था. शोधकर्ताओं के मुताबिक यह भारतीयों में दिमाग संबंधी अंतर का विश्लेषण करने के लिए आइडियल पैटर्न नहीं है.

उन्होंने कहा कि एमएनआई की तुलना में भारतीयों का दिमाग छोटा होता है और स्कैन के बाद जो आंकड़े सामने आए हैं वो चिंताजनक है. जयंती सिवास्वामी के मुताबिक, चीनी और कोरियन दिमागी टेम्पलेट भी विकसित जा चुके है, लेकिन भारतीयों के लिए अब तक कोई ऐसा टेम्पलेट विकसित नहीं किया गया था.

उल्लेखनीय है कि हैदराबाद स्थित आईआईआईटी (IIIT-H) की टीम ने भारतीयों के मस्तिष्क के टेम्पलेट को विकसित करने की दिशा में पहली कोशिश की है. मस्तिष्क का एटलस तैयार करने के लिए 50 महिलाओं और 50 पुरुषों का एमआरआई किया गया.

विदित हो कि मस्तिष्क के साईज का सीधा संबंध व्यक्ति की बुद्धिमत्ता से होता है जो उसके सोचने, समझने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है. इस क्षमता का प्रदर्शन इस रूप में भी देखा जा सकता है कि पश्चिमी जगत वैज्ञानिक खोजों के नये-नये क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं, वहीं भारतीय आज भी डायन, आघोडि़यों, ब्रह्मराक्षस जैसे धार्मिक अंधविश्वासों में डुबे हुए हैं और विश्व गुरु बनने के लिए बेवकूफियों की नई-नई मिसालें पैदा कर रहा है.

वैज्ञानिकों का यह रिसर्च यह भी स्पष्ट कर रहा है कि दुनिया भर में मान्य वैज्ञानिक सिद्धांतों और वैज्ञानिकों के खिलाफ भारतीय नेताओं के द्वारा क्यों आग उगला जा रहा है. अभी दिन नहीं बीते हैं जब भारतीय नेता डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को नकाराते हुए उन्हें बेवकूफ और महान वैज्ञानिक न्यूटन को ठग बताया था. दरअसल वैज्ञानिकों के इस रिसर्च ने जस्टिस मारकण्डेय काटजू की इस प्रस्थापनाओं को ही सत्यापित करने का काम किया है कि ‘90% भारतीय मूर्ख होते हैं’ और भारतीय इन मूर्खों की मूर्खता पर तालियां बजा कर अपनी मूर्खता का ही दर्शन दुनिया को कराती है.

Read Also –

कायरता और कुशिक्षा के बीच पनपते धार्मिक मूर्ख
कमलेश तिवारी की हत्या : कट्टरतावादी हिन्दुत्व को शहीद की तलाश
युवा पीढ़ी को मानसिक गुलाम बनाने की संघी मोदी की साजिश बनाम अरविन्द केजरीवाल की उच्चस्तरीय शिक्षा नीति
अंध-धार्मिकता’ एक मनोवैज्ञानिक बीमारी
स्युडो साईंस या छद्म विज्ञान : फासीवाद का एक महत्वपूर्ण मददगार
डार्विन का विकासवाद सिद्धांत : विज्ञान बनाम धर्म
राखीगढ़ी : अतीत का वर्तमान को जवाब
मोदी ने इसरो को तमाशा बना दिया
106वीं विज्ञान कांग्रेस बना अवैज्ञानिक विचारों को फैलाने का साधन

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

जाति-वर्ण की बीमारी और बुद्ध का विचार

ढांचे तो तेरहवीं सदी में निपट गए, लेकिन क्या भारत में बुद्ध के धर्म का कुछ असर बचा रह गया …