Home ब्लॉग आधी रात वाली नकली आजादी

आधी रात वाली नकली आजादी

1 min read
0
1
2,372


2014 ई0 में लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी, जो अब भारत के प्रधानमंत्री भी हैं, जोर शोर से विभिन्न जनसभाओं को सम्बोधित करते हुए ऐलान किया करते थे, ‘‘100 दिन के अन्दर काला धन लायेंगे … 15 लाख सभी के खातों में डालेंगे … धारा 370 समाप्त करेंगे … हमारे एक सैनिक के मारे जाने पर पाकिस्तान के 10 सैनिकों को मारेंगे.’’ इसके पूर्व विभिन्न जनसभाओं में आधार कार्ड के खिलाफ बयान देना, जी0एस0टी0 कानून का विरोध करना, 500 और 1000 रूपये नोटों को बंद करने का विरोध करना, जिसे कांग्रेस करना चाहती थी आदि-आदि जैसे मुद्दों को उठाते थे. परन्तु केन्द्र की सत्ता हासिल करते ही वे सारे मुद्दे उलटे हो गये और जिसे कांगेस करना चाहती थी और भारतीय जनता पार्टी विरोध करती थी, को बड़े ही जोर-शोर से न केवल जारी ही रखा बल्कि उन सभी मुद्दों को बड़ी ही ढीठतापूर्वक लागू भी किया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह क्या कारण है कि प्रधानमंत्री बनने के तुरन्त बाद नरेन्द्र मोदी पलट गये और अपने सारे विरोधी मुद्दों को ऐसे अपना लिये मानो यही उसके जीवन-मरण का प्रश्न हो !

एक शब्द में कहा जा सकता है कि शायद नरेन्द्र मोदी वादा-खिलाफी कर गये या धीरे-धीरे लागू करेंगे. पर ऐसा है नहीं. नरेन्द्र मोदी की जगह और कोई भी रहता तो वह भी वही करता जो आज प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं. हां, कार्यक्षमता कम-अधिक जरूर हो सकती है. इसके लिए हमें अपनी आधी रात वाली नकली आजादी की पड़ताल करनी होगी, तभी हम यह समझ पायेंगे कि आखिर क्या है कि यह सत्ता जिस पर आते ही हर कोई बदल जाता है और वह भी वही करता है जो उसकी पूर्ववर्ती सरकार कर रही होती है ?

आईये, इतिहास के पन्नों को पलटते हैं. द्वितीय विश्वयुद्ध की आग से निकली अंग्रेजी हुकूमत इतनी कमजोर हो गयी थी कि वह भारत में जनता के बीच अंग्रेजों के खिलाफ सुलग रही आग को रोक पाने में सक्षम नहीं थी. अनेक नाना-प्रकारेण कारणों से अंग्रेजी हुकूमत ने शांतिप्रिय घड़ों (कांग्रेस) को फिर से सेफ्टी वाॅल्व के रूप में इस्तेमाल किया और पुनः संगठित कर इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट, 1947 नामक एक एक्ट बनाया. इसी एक्ट के तहत् अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण का समझौता कांग्रेस के साथ किया, जिसका देश की जनता ने भरसक विरोध भी किया था किन्तु गांधी, जिन्ना, नेहरू, पटेल आदि ने मुफ्त में मिली इस नकली आजादी को सभी नेताओं ने ब्रिटिश उपनिवेश यानि ब्रिटेन की दासता सहित स्वीकार कर लिया और घोषणा कर दिया कि भारत आजाद हो गया.

4 जुलाई, 1947 से आरम्भ हुई सत्ता हस्तांतरण की यह प्रक्रिया 14 अगस्त, 1947 तक मात्र 40 दिनों में अंग्रेजों के कुटनीतिक षड्यंत्रों के तहत सम्पन्न हुई. उस समय के अधिकतर नेता वकील थे और वे सब यह जानते थे कि यह सम्पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है अपितु अल्पकालिक स्वतंत्रता है. यह नकली स्वतंत्रता है जो केवल सत्ता का हस्तांतरण मात्र है अर्थात् सत्ता तो अंग्रेजों के ही पास रहेगी पर उसकी देखभाल देशी शासक वर्ग करेगा. सत्ता के हस्तांतरण की यह प्रक्रिया ‘‘ट्रासंफर आॅफ पाॅवर एग्रीमेंट’’ कहलायी जो लगभग 4 हजार पन्नों में लिखित है. इस एग्रीमेंट को अगले 50 वर्षों तक सार्वजनिक न करने का नियम भी साथ में बनाया था. इस एग्रीमेंट के 50 साल पूरा होने पर सार्वजनिक होने से बचाने के लिए 1997 ई0 में इस एग्रीमेंट को सार्वजनिक न होने देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने इसकी अवधि 20 साल और बढ़ा दी और फलतः 2019 के पूरा होने तक यह सार्वजनिक होने से बच गया अगर वर्तमान शासक इस अवधि को और विस्तारित नहीं करती है तो.

ऐसी ही सत्ता के हस्तांतरण के एग्रीमेंट (समझौता) ब्रिटिश सरकार ने भारत समेत अपने समस्त अधीनस्थ 54 देशों के साथ सम्पन्न किया, जिसमें आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि शामिल है. ये 54 देश ब्रिटिश राज के उपनिवेश कहलाते हैं. इन 54 देशों के नागरिक आज भी कानूनी तौर पर ब्रिटेन की रियाया (प्रजा) है अर्थात्, ब्रिटेन के ही गुलाम नागरिक हैं. इन 54 देशों के समूह को ‘‘राष्ट्रमंडल’’ कहा जाता है, जिसे हम ‘‘काॅमन-वेल्थ’’ के नाम से भी जानते हैं अर्थात् ‘‘संयुक्त सम्पत्ति.’’

उदाहरण के तौर पर यूं समझ लें कि ब्रिटेन समेत सभी ब्रिटिश उपनिवेश अथवा राष्ट्रमंडल देशों के भारत में विदेश मंत्री तथा राजदूत नहीं होते हैं अपितु विदेशी मामलों के मंत्री तथा उच्चायुक्त होते हैं और ठीक इसी प्रकार भारत के भी इन देशों में विदेश मामलों के मंत्री (मिनिस्टर आॅफ फाॅरेन अफेयर्स) तथा उच्चायुक्त (हाई-कमीशन) ही होते हैं. इसे ऐसे समझें. भारत की विदेश मंत्री हैं सुषमा स्वराज, तो यह सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा विदेश मंत्री के तौर पर केवल रूस, जापान, चीन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि स्वतंत्र देशों में ही रहता है परन्तु ब्रिटिश उपनिवेशिक अर्थात् राष्ट्रमंडल देशों जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि जैसे देशों में सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा विदेश मामलों के मंत्री (मिनिस्टर आॅफ फाॅरेन अफेयर्स) ही रहता है.

आखिर भारत जैसे गुलाम देश की नागरिक क्वीन एलिजाबेथ की विदेश मंत्री कैसे हो सकती है क्योंकि यह कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देश तो क्वीन एलिजाबेथ के ही अधिकार क्षेत्र या मालिकाना में आते हैं, जिसे आजकल ‘‘टेरीटाॅरी’’ के नाम से भी समझते हैं. इसी प्रकार उपनिवेशिक राष्ट्रमंडल देशों में भारत का कोई राजदूत (एंबेसडर) नहीं होता अपितु मात्र उच्चायुक्त (हाई-कमीशनर) ही होता है.

‘‘ट्रांसफर और पाॅवर एग्रीमेंट’’ के इन 4 हजारों पन्नों आखिर कौन-कौन की शर्तें लिखी गई हैं ? इसके कुछेक अंशों पर नजर डालते हैं:

  • अंग्रेज हमारी ही भूमि को 99 वर्षों के लिये हम भारतवासियों को ही किराये पर दे गये.
  • भारत का संविधान अभी भी ब्रिटेन के अधीन है.
  • ब्रिटिश नैशनेलटी अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत हर भारतीय, आस्ट्रेलिया, कनाडियन चाहे हिन्दु हो, मुसलमान, सिख अथवा ईसाई ही क्यों न हो, ब्रिटेन की प्रजा है.
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372 व 395 में परिवर्तन की क्षमता भारत की संसद तथा भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है।
  • इस समझौते के तहत् हमारे देश से प्रति वर्ष 10 अरब रूपये पेंशन महारानी एलिजावेथ को दिया जाता है.
  • इसी समझौते के तहत् प्रति वर्ष 30 हजार टन गौ-मांस ब्रिटेन को दिया जाता है.

कहा जाता है कि यही वह गोपनीयता है जिसकी शपथ भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सहित सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा समस्त मंत्री तथा प्रशासनिक अधिकारी को दिया जाता है. अतः उपरोक्त पदाधिकारी समस्त स्वतंत्र देशों की भांति मात्र पद की शपथ नहीं लेते अपितु ‘‘पद एवं गोपनीयता’’ दोनों की शपथ लेते हैं.

  • हमारे सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले को पलटने की क्षमता ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट को है.
  • अनुच्छेद 348 के तहत् उच्चतम न्यायालय एवं ससंद की कार्यवाही केवल अंग्रेजी भाषा में ही होगी.
  • राष्ट्रमंडल समूह के किसी भी देश पर भारत पहले हमला नहीं कर सकता. यही वजह है कि हम पाकिस्तान पर आक्रमण नहीं कर सकते हैं. कारगिल वार में भी हमने सिर्फ जो जमीन पाकिस्तान ने हथिया लिया था, उसे ही वापस पाया है.
  • भारत किसी भी राष्ट्रमंडल समूह के देश को जबरदस्ती अपनी सीमा में नहीं मिला सकता.

ऐसे बहुत सारे नियम एवं शर्तें इस ‘‘ट्रांसफर और पाॅवर एग्रीमेंट’’ में लिखित रूप से दर्ज हैं. अगर भविष्य में भारत ‘‘ट्रांसफर और पाॅवर एग्रीमेंट’’ के किसी भी नियम या शर्त को भंग करता है तो इसका निपटारा इस प्रकार किया जायेगा:

  • भारत का संविधान तत्काल प्रभाव से ‘‘नल एण्ड वाॅयड’’ हो जायेगा.
  • यह नकली स्वतंत्रता भी छीन ली जायेगी.
  • भारत में ‘‘गवर्मेंट आॅफ इंडियन एक्ट, 1935’’ तत्काल प्रभाव से लागू हो जायेगा क्योंकि उसी एक्ट के आधार पर ही ‘‘इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट, 1947’’ को बनाया गया है.
  • भारत में पूर्ण रूप से ब्रिटिश राज पुनः लागू हो जायेगा.

और यही वह ब्रिटिश ऐग्रीमेन्ट है, जिस कारण भारत का प्रधानमंत्री कोई भी बने, लागू वही होगा जो ब्रिटिश कानून के अनुरूप होगा. यही कारण है कि भारत का प्रधानमंत्री कभी भी कोई स्वतंत्र फैसला नहीं ले सकता. उसका हर फैसला ब्रिटिश सरकार के अधीन बनाये गये नियमों के शर्तों के अनुसार होगा.

यही है आधी रात की हमारी तथाकथित आजादी, जिसकी जश्नें हम हर साल मनाते हैं. पर सवाल नहीं पूछ पाते कि आखिर इस आजादी के 70 साल बाद भी हम गुलाम क्यों और कैसे हैं ?

सन्दर्भ लिंक :

Indian Independence Act 1947
http://www.legislation.gov.uk/ukpga/Geo6/10-11/30
.
British Nationality Act 1947
http://lawmin.nic.in/legislative/textofcentralacts/1947.pdf
.
British Nationality Act 1948
http://www.uniset.ca/naty/BNA1948.htmr

Indian Independence Act 1947

An Act to make provision for the setting up in India of two independent Dominions, to substitute other provisions for certain provisions of the Government of India Act 1935, which apply outside those Dominions, and to provide for other matters consequential on or connected with the setting up of tho…

WWW.LEGISLATION.GOV.UK

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कॉर्पोरेट नेशनलिज्म छद्म राष्ट्रवाद और पुनरुत्थानवाद की आढ़ में आता है

कॉर्पोरेट नेशनलिज्म इसी तरह आता है जैसे भारत में आया. स्वप्नों को त्रासदियों में बदल देने …