Home ब्लॉग हमारा देश कहां जा रहा है?

हमारा देश कहां जा रहा है?

34 second read
1
3
1,181

…और उसे बी.एस.एफ. की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.

बी0एस0एफ0 के जवान तेज बहादुर यादव को खाने में शिकायत करने के कारण काफी प्रताड़ना मिली. उसने स्वैच्छिक सेवावकाश की सिफारिश की, जिसे उच्चाधिकारी ने नकार दिया और अब उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. गनिमत है उसकी हत्या उन दूसरे सैनिक की तरह नहीं हुई जिन्होंने बेगारी प्रथा के खिलाफ सोशल मीडिया में स्टिंग ऑपरेशन कर सवाल उठाया था. हलांकि सोशल मीडिया में उसकी हत्या हो जाने की भी एक अफवाह उड़ी थी जिसका खण्डन मुख्यधारा की मीडिया ने अबिलंब किया था.

ठीक ऐसी ही एक घटना पिछले वर्ष की थी. राज्यसभा के सांसद जिसने पूरे 9000 करोड़ रूपये का भारी कर्ज की राशि लेकर भारत से भाग कर लंदन चला गया. देश भर में भारी हंगामा मचा. परन्तु उसे राज्य सभा की सदस्यता से मांग के बावजूद बर्खास्त नहीं किया गया. बल्कि उससे आरजू की गई कि ‘‘सर, आप राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दें !’’ उसने लंदन से ही इस्तीफा की मजमून तैयार कर फैक्स कर दिया. कुछ तकनीकि गड़बड़ियों का हवाला देकर उससे उस गड़बड़ियों को ठीक कर पुनः इस्तीफा-पत्र देने का अनुरोध किया गया. फिर उस राज्यसभा सांसद ने दुबारा फैक्स द्वारा इस्तीफा भेजकर राज्यसभा को उपकृत किया और राज्यसभा ने उस सांसद का इस्तीफा मंजूर कर लिया. पर इस पूरे प्रकरण में उस राज्यसभा सांसद को बर्खास्त करने की हिम्मत भारत सरकार को नहीं हुई, अलबत्ता आजकल उसे ढूंढ़ने और देश में पुनः वापसी के नाम पर जनता को बेवकूफ बनाने का काम जोर-शोर से जारी है. हमारे ये नवरत्न राज्य सभा सांसद थे – विजय माल्या जी.

महज खाने की शिकायत के कारण बर्खास्तगी और 9000 करोड़ की चोरी व गबन के आरोपी को बर्खास्तगी के बजाय ‘‘इस्तीफा’’ की मांग. भारत में घटित ये दो घटनायें भारत सरकार और उसके शासक वर्ग के चरित्र को आईने की तरह सबके सामने रख देती है.

चलिए, एक दूसरा उदाहरण देख लेते हैं. एक तरफ बैंक से लिये गये कुछेक हजार या लाख रूपये के कर्ज को न चुका पाने की विवशता में आत्महत्या करते किसान या दिल्ली की तपती गरमी में खुले बदन तप रहे तमिलनाडु के असहाय किसान हैं तो वहीं दूसरी ओर पूरे साढ़े 8 लाख करोड़ की विशाल धनराशि जो देश के विभिन्न कुछ दर्जन भर कॉरपोरेट घरानों को दिया गया कर्ज आनन-फानन में माफ कर दिया गया. इसे भारत सरकार शब्दों के आवरण से छिपाने की कोशिश तो करती है पर ये कोशिश जितनी ही ज्यादा होती है, भारत सरकार उतनी ही ज्यादा नंगी दिखने लगती है. भारत सरकार का साफ कहना है कि इस देश के करोड़ों लोगों का पेट यही कुछ दर्जन भर धनाढ्य और कुछ लाख टैक्स देने वाले लोग भरते हैं. यह लाख टके का सवाल है कि ये कुछ दर्जन भर धनाढ्य लोग और कुछ लाख टैक्स देने वाले आखिर करोड़ों भारतवासियों का पेट किस प्रकार भरते हैं ? इसका जबाव भारत सरकार और उसके वित्तमंत्री को जरूर देना चाहिए और शोधार्थियों को इस बात पर शोध भी करना चाहिए कि भारतीय पोशाक धोती-कुर्ता और गमछा धारण करने वाली जनता के बीच कैसे एकबारगी खाकी हाफ पैंट और काली टोपी राष्ट्रवादी बन जाती है, और हिटलर-मुसोलिनी का राष्ट्रवाद हमारा राष्ट्रवाद बन जाता है ?

भारत की जनता जो जल्दी ही विश्व की गुरू बनने वाली है और विश्व के तमाम देश उसके कदमों में झुककर भीख मांगेंगी, यह वह ब्राह्मणवादी अतिवाद ही है, जिसने इस देश की विशाल आबादी को मोहताज बना रखा है. इसी मानसिकता को परोसती मीडिया ने देश में एक हौवा का निर्माण कर दिया है. हाल ही में फिल्म उद्योग द्वारा बनायी गई फिल्म ‘‘इंडिया 2030 इंक्रिडेबल इंडिया’’ है, जिसने इस देश की ब्राह्मणवादी गुलाम मानसिकता को बखूबी परोसा है, जिसमें विश्व को गुलाम बनाने का मनोरंजन किया गया है. यह ब्राह्मणवादी गुलाम मानसिकता का बेहतरीन नमूना है. आखिर एक गुलाम मानसिकता इसके अलावे और सोच ही क्या सकता है ?

दरअसल ब्राह्मणवादी मानसिकता सदैव एक काल्पनिक दुनिया की सैर करता है और वहीं वह एक काल्पनिक सुख की प्राप्ति करता है. इस काल्पनिक सुख के लिए वह सबकुछ कुर्बान कर देता है. आज समूचा देश इस मानिकसता से ओत-प्रोत है. देश की वास्तविक समस्या रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, शिक्षा नहीं है. वह गाय-गोबर से निकलकर विश्व का गुरू बनने में हैं, अपनी झूठी दो-कौड़ी की काल्पनिक सोच को विश्व में थोपने में है. यही कारण है कि इस देश में रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, शिक्षा की बुनियादी जरूरत की बात करने वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के तुलना में काल्पनिक दुनिया की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार जनमानस के काल्पनिक सुख के ज्यादा करीब लगता है. माल्या स्वीकार्य है, पर तेज बहादुर यादव नहीं, अंबानी-अदानी की लाखों करोड़ की कर्ज माफी सहज है पर किसानों के कर्ज माफी की मांग स्वीकार्य नहीं है. यह इस हमारा दुर्भाग्य है. चिन्ताजनक है. आखिर हम जा कहां रहे हैं ? ठहरकर सोचना होगा हमें.

इसे भी पढ़ेः
1) http://www.pratibhaekdiary.com/aadhi-raat-wali-nakli-aazadi
2) http://www.pratibhaekdiary.com/मुकदमें-का-खर्च-और-टैक्स-क
3) http://www.pratibhaekdiary.com/चोरों-और-दलालों-का-देश-भार
4) http://www.pratibhaekdiary.com/देश-को-देश-की-जनता-चलाती-है
5) http://www.pratibhaekdiary.com/आखिर-एक-डरी-हुई-सेना-के-सहा

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

One Comment

  1. cours de theatre paris

    September 30, 2017 at 12:35 am

    Great article.Really thank you!

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कॉर्पोरेट नेशनलिज्म छद्म राष्ट्रवाद और पुनरुत्थानवाद की आढ़ में आता है

कॉर्पोरेट नेशनलिज्म इसी तरह आता है जैसे भारत में आया. स्वप्नों को त्रासदियों में बदल देने …