केन्द्र की मोदी सरकार, जो अंबानी-अदानी घरानों का चौकीदार बन गया है, जब देश में होने वाली लोकसभा चुनावों होने को किसी भी तरह नहीं टाल सकी, तब उसने झूठे वायदों को ही देने के बजाय एक फर्जी माहौल बनाना शुरू कर दिया. आचार संहिता की हर दिन धज्जियां उड़ाई जाने लगी. चुनाव आयोग एक ढकोसला के बजाय भाजपा का ही एक टीम बन गया और सेना जैसे गैर-राजनीतिक संस्था के द्वारा किये गये शौर्यपूर्ण कार्यों को भी अपनी उपलब्धि गिनाने लगे.
सेना के प्रतिष्ठा का इ्रस्तेमाल करके आम लोगों पर अपनी गंदी राजनीति रोटी सेंकने का काम भाजपा खुलेआम करती आ रही है, पर अब खुद सेना के ओर से ही मोदी की इस गंदी चालाकी भरी कुकर्मों का विरोध किया जाने लगा है, तब मोदी सरकार बगले झांकने लगी है. मोदी सरकार के द्वारा सेना के प्रतिष्ठा का इस्तेमाल विपक्षी दलों और आम जनता के विरोध का मूंह बंद करने में किया जाने लगा है ताकि कोई मोदी सरकार, जो असल में अंबानी-अदानियों का नौकर बन गया है, के जनविरोधी नीतियों का विरोध न कर सके. ऐसे वक्त में खुद इससे नाराज सेना के वरिष्ठ कमांडरों ने गहरी आपत्ति दर्ज कराते हुए राष्ट्रपति के नाम एक पत्र लिखा है, जिसमें सेना को राजनीति का अखाड़ा न बनाने की अपील की है.
तुर्रा यह कि सेना के द्वारा भेजे गये पत्रों पर मचे कोहराम के बीच राष्ट्रपति – जो असल में भाजपा का ही एक एजेंट है – ने इस पत्र का न मिलने जैसे बयान देकर अपनी खुद की छवि – जो पहले ही खराब हो चुकी थी – ही धूमिल की है. परन्तु, लाखों लोगों के खून से लिखी इस संविधान और इसके संवैधानिक मान्यताओं को इतनी आसानी से नहीं मिटाया जा सकता, इसके बावजूद कि भाजपा इस बात का ऐलान कर चुकी है अगर 17वीं लोकसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में आई तो देश में फिर कोई चुनाव ही नहीं होगा. आईये, सेना के वरिष्ठ कमांडरों की ओर से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे पत्र का हिन्दी अनुवाद पर एक नजर डालते हैं :
‘हमारे सुप्रीम कमांडरों के वरिष्ठों के एक ग्रुप की तरफ से –
अप्रैल, 11, 2019
माननीय श्री राम नाथ कोविंद
भारत के राष्ट्रपति और भारतीय सैन्य बल के सर्वोच्च कमांडर
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली.
प्रिय श्री रामनाथ कोविंद जी,
हम अधोहस्ताक्षरित लोग सैन्य बलों के वरिष्ठ हैं जिन्होंने शांतिकाल में व युद्ध के समय पिछले कई दशकों में विभिन्न पदों पर रहते हुए अपने देश के रक्षा में सेवा प्रदान की है. हमारे सैन्य बलों का अराजनीतिक व धर्मनिरपेक्ष चरित्र प्रत्येक सैनिक, नौ-सैनिक व वायु-सैनिक के लिए विश्वास की वस्तु रही है. भारत के सशस्त्र बल ने सेना के ऊपर असैनिक नियंत्रण के लोकतांत्रिक सिद्धांत का निष्ठापूर्वक पालन किया है. भारत के क्षेत्रिय सम्प्रभुता और राष्ट्रीय एकता को बरकरार रखने हेतु अपने कर्तव्यों के प्रति उनका समर्पण, युद्धभूमि में और उसके बाहर उनका सैन्य पेशेवरपन को व्यापक रूप से सराहा जाता रहा है. सैन्य बलों के सैनिक, नौ-सैनिक और वायु सैनिक भारत के संविधान, जिसका भारतीय संघ के राष्ट्रपति होने के नाते आप कानूनी रखवाले हैं, के प्रति अपनी निष्ठा का निर्वाहन करते रहे हैं. इसी वजह से राष्ट्रपति सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर भी हैं और हम राष्ट्रपति के आदेशों और समय-समय पर कार्यपालिका-अर्थात तत्कालीन सरकार के द्वारा लिये गये निर्णयों को लागू करते रहे हैं.
आप इस बात से वाकिफ होंगे कि वो लोग जो नौकरी में हैं (थल सेना, जल सेना और वायु सेना के तमाम पदों पर काम रहे पुरूष व महिला) वे अपना मत नहीं रख सकते हैं, उन मामलों पर भी जो उनके हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि सैन्य कानून से बंधे हुए हैं और अपने नौकरी से जुड़े संसदीय कानूनों से संचालित होते हैं. किन्तु, हम वरिष्ठ लोग अपने सैन्य बंधुओं तथा नौकरी कर रहे लोगों के साथ लगातार संपर्क में रहते हुए यों कहा जाये कि नब्ज पर पकड़ रखते हैं. यही वजह है कि भारत के सैन्य बलों के सर्वोच्च कमांडर होने के नाते आपके ध्यानाकर्षण में इस बात को लाने के लिए इसे लिख रहे हैं, वैसी चिन्तायें जिसने कार्यरत और सेवानिवृत दोनों किस्म के सैन्यकर्मियों के बीच पर्याप्त अलार्म व अशांति को जन्म दिया.
महाशय, राजनीतिक नेताओं द्वारा सैनिक कार्रवाईयों जैसे, सीमा पार हमला और यहां तक कि अपने सैन्य बलों को ‘मोदी जी की सेना’ बोलने की हद तक जाने के असाधारण व पूर्णतया अस्वीकार्य व्यवहार की तरफ आपका ध्यान दिला रहे हैं. ये सब उन बातों के अतिरिक्त है जहां मीडिया अपने फुटेज में पार्टी कार्यकर्त्ताओं को चुनावी मंच और प्रचार अभियान में पार्टी कार्यकर्त्ताओं को सैनिक बर्दी पहने हुए दिखाती है, पोस्टर और छवियों में सैनिकों की तस्वीर, खासकर भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान, प्रदर्शित की जा रही है.
हम इस बात की सराहना करते हैं कि कुछ वरिष्ठ सेवानिवृतकर्मियों द्वारा किये गये शिकायत, जिसमें नौसेना के एक पूर्व चीफ के द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त को दिया गया लिखित शिकायत भी शामिल है, पर त्वरित प्रतिक्रिया आई है. दरअसल इन वक्तयों के लिए जिम्मेवार लोगों से जिसमें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, से सफाई मांगते हुए एक अधिसूचना जारी की गई है. हालांकि हमें यह कहते हुए दुःख हो रहा है कि इसके वाबजूद भी जमीन पर इनके व्यवहार व क्रियाकलापों में कोई खास परिवर्तन नहीं दिख रहा है.
अब जबकि आम चुनाव नजदीक है, और यह देखते हुए कि राजनीतिक पार्टियां व उम्मीदवार आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन करते हुए दिख रहे हैं, हमें यह डर है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आयेगा ऐसी घटनाओं में वृद्धि होती जायेगी. हम भरोसा करते हैं कि भारत के संविधान अंतर्गत स्थापित तथा भारत के राष्ट्रपति के सर्वोच्च कमांड के तहत कार्यरत सैन्य बलों के किसी भी इस तरह का बेजा इस्तेमाल कार्यरत सैन्यकर्मी – पुरूष व महिला – के लड़ाकू क्षमता और मनोबल को नाकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा. इस तरह यह देश की सुरक्षा व देश की अखंडता को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है.
अतः हम आपसे अपील करते हैं कि हमारे सैन्य बलों के धर्मनिरपेक्ष और अराजनीतिक चरित्र की रक्षा आप सुनिश्चित करेंगे. हम आप से यह आदरपूर्वक आग्रह करते हैं कि हम सभी राजनीतिक पार्टियों को तत्काल प्रभाव से निर्देश देते हुए तमाम आवश्यक कदम उठायेंगे ताकि वे सेना, सेना की बर्दी या संकेत और सैन्यकर्मियों द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई का अपने राजनीतिक हितों के लिए या अपने राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करने से अवश्य बाज आयेंगे.
इस पत्र की प्रतिलिपि भारत के चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त को भी सूचनार्थ व कार्रवाई करने हेतु भेजी गई है.
हम सभी अधोहस्ताक्षरी ऊपर लिखे गये वक्तव्य से इत्तेफाक रखते हैं.
आपका विश्वासी’
इस पत्र के नीचे 61 सेनाध्यक्षों का नाम व पदनाम सहित हस्ताक्षर है, जिसे पाठक अंग्रेजी के मूल प्रति में देख सकते हैं. ऐसे में मोदी सरकार, जो सेना के नाम पर छाती पीटकर लोगों से वोट मांग रही है, खुद सेना ने उसे ऐसा करने से मना किया है. तब यह सहज ही देखा जा सकता है कि सैनिकों के नाम पर छाती पीटने वाली भाजपा दरअसल सैनिकों के विरूद्ध है, और वह अपनी राजनीतिक हितों के लिए किसान, मजदूर, छात्र-नौजवान समेत सेना को भी किसी भी हद तक गिरा सकती है, उसे पतित कर सकती है, उसका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण-देहन करने से कदापि बाज नहीं आयेगी. आज देश के सामने यह चुनौती उठ खड़ी है कि वह लाखों लोगों के खून से लिखी इस संविधान की हिफाजत में मोदी सरकार का सत्ता से भगा पाती है अथवा नहीं ?
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मोदी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान से खिलवाड़ को चौकीदारी बता रहे हैं
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