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लाशों का व्यापारी, वोटों का तस्कर

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लाशें ले लो, लाशें ले लो
ताज़ी-ताज़ी लाशें ले लो
वोट दे दो, वोट दे दो
तीन सौ लाशें ले लो
तीन सौ सीट दे दो

सन दो ह़जार वाली पुरानी लाशों की तस्वीरों से जुडी
हमारे पराक्रम की कहानियां ले लो
हम ही असली लाशों वाले हैं
हमारे प्रतिद्वंदियों की बातों में मत आइये

नकलचियों से सावधान
हम ही असली लाशों वाले है
अपनों की लाशें ले लो
गैरों की लाशें ले लो

लाशें ले लो वोट दे दो
नौकरी पानी दवा के वहम में मत पड़िये
लाशें देख कर ही वोट कीजिये
लाशें ले लो, लाशें




उपरोक्त कविता हिमांशु कुमार के वाल से ली गई है. आज सत्ता पर विराजमान शासक इसी लाशों के दम पर एक बार देश की सत्ता पर विराजमान होना चाहती है क्योंकि उसके सारे जुमले और देश के अन्दर की जा रही लाशों का व्यापार ठप्प पड़ गया है. लाशों के इस व्यापारी की पोल सरेआम खुल चुकी है. गाय, गोबर, मंदिर, मुस्लिम, दलित, सवर्ण जैसे सारे मुद्दे फुस्स हो गये हैं. अब इस लाशों के व्यापारी को लाशों का बड़ा ढ़ेर चाहिए इसलिए लाशों के व्यापारी और उसके दलाल-चमचे मीडिया घराने लाशों के बड़े ढ़ेर की तालाश में निकल चुके हैं. कश्मीर से ज्यादा मुफीद जगह और कहां हो सकती है ? अब वह कश्मीर में लाशों का ढ़ेर लगाना चाहती है. अब वह पाकिस्तान की सरहदों पर लाशों का ढेर लगाना चाह रही है. पर पाकिस्तान भी परमाणु बमों से लैस है. लाशों के इस व्यापारी पर अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया की पैनी नजर है. अन्तराष्ट्रीय समुदाय का गहरा नियंत्रण है.

अब क्या किया जा सकता है ? कश्मीर के पुलवामा में पिछड़े कौम से नौकरी करने जाने वाले सीआरपीएफ के जवान मुफीद है. उनकी हत्या करायी जा सकती है. देश में थोड़े कोहराम मचेगा और इसके आड़ में पाकिस्तान पर हमला किया जा सकता है. युद्ध छेड़ी जा सकती है. लाशों के व्यापारी इसी ताक में थे पर अफसोस यह कि लाशें ज्यादा नहीं गिरी. महज 44 लाशों के सहारे पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ी जा सकती, पर पाकिस्तान को छेड़ा जा सकता है. उस पर बम बरसाये तो जा सकते हैं. डिस्कवरी चैनल में जानवरों की शूटिंग की जाती है, अब भी क्या कोई संदेह है. सुना है लाशों के व्यापारी डिस्कवरी चैनल के जानवर बन गये हैं. लोग यूं ही नहीं कहते ‘शेर’. जानवर ही तो होता है शेर, जो मानवों की बस्ती में घुस आया है, लाशों का ढेर लगाने.



पाकिस्तान में गिराये गये घातक बमों से एक कौवा मारा गया. कुछ दरख्त ढह गये. पाकिस्तानी समझ गये, लाशों का व्यापारी को देश में एक बार फिर सत्ता चाहिए. धैर्य रखो. उसने भी धैर्य पूर्वक जवाबी कार्रवाई की और सीमा पार खुले-बंजर जगहों पर बम बरसाये. उस पाकिस्तानी बम-बर्षक को पकड़ने गये दो विमानों को पाकिस्तानियों ने मार गिराया और उसके पायलट को पकड़कर ले गये. देश में कोहराम मच गया. लाशों के व्यापारी की पोल खुल गई. उसकी असहायता और कायरता सरेआम हो गई.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को शुक्रिया, जिसने गिरफ्तार पायलट अभिनंदन को रिहा कर लाशों के इस व्यापारी के मूंह पर करारा तमाचा जड़ दिया. एक बार फिर लाशों के व्यापारी का मूंह काला हो गया. राष्ट्रीयता के उन्मादी हिस्टीरिया पर लगाम लग गया. तब लाशों के इस व्यापारी ने फर्जी खबरें उड़ानी शुरू कर दी पाकिस्तान में घुसने वाले बमवर्षक विमान के हमले में 250, 300, 350 और 400 आतंकवादी मार डाले गये. मारे जाने वाले आतंकवादियों के इस अस्थिर संख्या ने लाशों के व्यापारी पर सवालिया निशान लगा दिया.

कब्रों की पुरानी फोटोग्राफ्स आदि जोर-शोर से उछाले गये, पर अन्तर्राष्ट्रीय न्यूज एजेंसी रायटर ने सेटेलाइट से तस्वीरें जारी यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान में कोई हाताहात नहीं हुआ. पाकिस्तानी न्यूज चैनल जियो ने ग्रांउड रिपोर्ट कर यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय वायु सेना के हमले से एक कौआ और कुछ दरख्तों (पेड़ों) को नुकसान हुआ है, किसी भी आदमी का जान नहीं गया है. केवल एक आदमी घायल हुआ और एक मकान में दरारें पड़ गई. लाशों के इस व्यापारियों ने तब परस्पर विरोधी बयान जारी करना शुरू कर दिया. एक ने कहा ‘250 मार डाले’, तो दूसरे ने कहा ‘किसी को मारना मकसद ही नहीं था’.



लाशों के व्यापारियों के द्वारा देश में राष्ट्रवादी युद्ध उन्माद की इस हिस्टीरियाई की हवा निकल गई. एक बार फिर उसकी नाकामी उभर कर सामने आ गई. अपनी नाकामी को छिपाने की जितनी भी कोशिशें यह लाशों का व्यापारी कर रहा है, उसकी नाकामी उतनी ही ज्यादा उभर कर सामने आ रही है. लोगों ने एक बार फिर अपनी बुनियादी समस्या, बेरोजगारी, भूखमरी, अनाजों की कीमतें, बिजली, पानी, मंहगाई की ओर देखना शुरू कर दिया है क्योंकि उसे पता है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत हो रही है, वह युद्ध नहीं चाह रहा है. उसके शांति के पैगाम को ठुकराना न केवल लाशों के इस व्यापारियों के लिए मुश्किल है, बल्कि उसे कमजोर और डरा हुआ साबित करना भी मूर्खता है.

लाशों का यह व्यापारी देश में युद्धोन्माद के सहारे एक बार फिर वोटों का तस्करी कर देश की सत्ता हासिल करना चाहता है. परन्तु, अब उसे यह एहसास हो चला है कि देश की जनता किसी भी हवाई जुमलों का शिकार नहीं हो सकती. इसलिए अब संभव है, वह अपनी संभावित पराजयता को देखकर अपने भ्रष्टाचार और काले कारनामों की सबूतों को नष्ट करने के लिए दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ या उसे आग के हवाले कर सकती है, जिसकी पूरजोर संभावना है. राफेल मामले में अटर्नी जेनरल के लगातार बदलते बयान यही कहते हैं.




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लाशों पर मंडराते गिद्ध ख़ुशी से चीख रहे हैं ! देशवासियो, होशियार रहो ! 




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